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शक्ति से भरपूर है भारतीय अर्थव्यवस्था, लेकिन ये दिल मांगे मोर

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार के केंद्र में आने के बाद से भारत ने शानदार आर्थिक प्रदर्शन दर्ज किया है। हालांकि दुनिया की बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की राह में अभी कई सारी रूकावटों से पार पाना है, सरकार एक-एक कर उन बाधाओ को दूर करने की दिशा में काम कर रही है। - के.के. श्रीवास्तव

 

भारत दुनिया की बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का अनुमान है कि वर्ष 2025 तक भारत 4 ट्रिलियन डॉलर के साथ विश्व की चौथी तथा 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। वर्ष 2030 तक भारत की अर्थव्यवस्था 7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने की संभावना है। सकारात्मक संकेतों के साथ भारत अब एक स्थिर और मजबूत अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो गया है जिसकी गिनती अभी कुछ वर्ष पहले तक नाजुक अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में होती थी। बेहतर आर्थिक प्रबंधन, सुधार तथा कल्याणकारी योजनाओं के विस्तार को लेकर सरकार ने प्रतिबद्धता के साथ काम किया तथा आत्मनिर्भरता के नारे के साथ सब को जोड़ते हुए नीतियों का कार्यान्वयन किया। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने भी स्वीकार किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था उच्च प्रदर्शन के मोड में है। भारत को निरंतर 7 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि हासिल होने की संभावना है। इसे देखकर सहज ही कहा जा सकता है कि आजादी के सौ साल पूरा होने के समय वर्ष यानि वर्ष 2047 तक भारत एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने के अपने उद्देश्य को सहज साकार कर सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने अपने नवीनतम अनुमान में वर्ष 2024 और वर्ष 2025 के लिए भारत के विकास अनुमान को संशोधित कर क्रमशः 6.7 प्रतिशत और 6.5 प्रतिशत (कैलेंडर वर्ष के लिए) कर दिया है। तुलनात्मक रूप से भी भारत दुनिया की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे तेज दर से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका है। यह छोटी और लंबी दोनों अवधि के लिए एक प्रभावशाली उपलब्धि की तरह है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन और गहरी क्षमता की गवाही दे रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य के लिए यह एक शुभ संकेत भी है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के मुताबिक भारत में आर्थिक गतिविधियों में जोरदार तेजी आई है। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष में भारत के निदेशक के. सुब्रमण्यम अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के अनुमानों से असहमत हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 7.1 प्रतिशत की संभावित विकास दर का अनुमान लगाते हैं। इस बात में कोई शक नहीं की मोदी के नेतृत्व में पिछले 10 वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने वास्तव में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका यह मानना है कि मोदी का सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी है क्योंकि इन 10 सालों के दौरान मोदी सरकार सबसे अधिक अनुच्छेद 370 और राम मंदिर पर अपना फोकस रखें हुई थी लेकिन अब सरकार अपना सारा फोकस आगे आर्थिक विकास पर ही केंद्रित करने वाली होगी।

देश की युवा पीढ़ी को लगता है कि उनके जीवन काल में भारत एक  विकसित राष्ट्र होने का दर्जा हासिल कर लेगा। भारत एक युवा प्रधान देश है। हालांकि भारतीय युवाओं का जीवन स्तर पहले की पीढ़ी से बेहतर हो चुका है लेकिन यह धारणा मजबूत हुई है कि मोदी शासन काल में प्रत्येक पीढ़ी अपनी पिछली पीढ़ी से हर मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन की है। आने वाले दिनों में निजी और सरकारी क्षेत्र में निवेश, बुनियादी ढांचे का विकास, अधिक कुशल वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाएं और विश्व स्तरीय उभरता हुआ डिजिटल बुनियादी ढांचा जैसे चार कारक भारत के तेज विकास में मदद करेंगे। भौतिक और मानव पूंजी के मेल से बेहतर उत्पादकता की भरपूर संभावनाएं हैं।

सीईए के नवीनतम दस्तावेज में भी मोदी युग के 10 वर्षों को महत्वपूर्ण सुधारों के वृद्धि शील और कुछ को गेम चेंजिंग के रूप में चिन्हित किया गया है। इन्हीं के चलते भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर 7 प्रतिशत वार्षिक के मुकाम पर पहुंच गई है। हालांकि भू राजनीतिक कारकों से प्रदर्शन पर नकारात्मक असर पढ़ने की संभावना उठती रही है लेकिन वैश्विक विकास में मंदी की पृष्ठभूमि में देखें तो इस अवधि में भी भारत का प्रदर्शन सर्वोपरि रहा है। क्योंकि भारत सरकार का आर्थिक दर्शनबुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए आपूर्ति पक्ष में हस्तक्षेप, गरीबों की आजीविका और जीवन स्तर की प्रतिकूलताओं को कम करने के लिए कल्याण जाल का विस्तार और मुद्रा स्फीति नियंत्रण के प्रति प्रतिबद्धता है, जो मौद्रिक नीति हस्तक्षेप के एक बड़े दायरे से परे तक फैली हुई है।

लेकिन प्रशंसा के इन सभी शब्दों का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कोई समस्या नहीं है। वित्त मंत्रालय के दस्तावेज के विपरीत निजी खपत आज भी मजबूत नहीं है। अर्थव्यवस्था की रिकवरी असमान है। कई लोगों का मानना है कि यह ‘के’ आकार की रिकवरी है। बेरोजगारी के आंकड़े ऊंचे स्तर पर बने हुए हैं। देश में नौकरी की चुनौतियां हैं। ऐसे में जो सुधार लागू हैं उनमें निश्चित रूप से तेजी लाने की जरूरत है।भारत की विकास गति शानदार है फिर भी इसे कुछ बूस्टर और सुधारात्मक उपायों की भी जरूरत है। कुशल कार्य बल की बात हमेशा उठती रही है। कौशल विकास के जरिए युवाओं को बेहतर तालीम देने की बात की जा रही है लेकिन अभी इसमें व्यापक सुधार की जरूरत है। इसके चलते भारत के आर्थिक सुधार की गति तेजी नहीं पकड़ पा रही है। सरकार का अपना डाटा रोजगार की गुणवत्ता में गिरावट को दर्शाता है। करोना महामारी के पूर्व चरण के बाद से श्रमिकगण अर्थव्यवस्था के सबसे कम उत्पादक क्षेत्र यानी कृषि की ओर वापस जा रहे हैं। श्रमिकों की एक बड़ी तादाद अब शहर छोड़ कर अपने पुश्तैनी गांव में पहुंच चुकी है। लगभग 46 प्रतिशत श्रमिक कृषि की ओर पलायन कर गए हैं जिसके चलते ग्रामीण मजदूरों की मजदूरी भी कम हो गई है। मजदूरी कम होने का खामियाजा खपत में कमी के रूप में देखा जा रहा है। निजी खपत हमारे सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 61 प्रतिशत है। लेकिन इस परिदृश्य के बाद समग्र आर्थिक विकास की तुलना में निजी खपत अब बहुत धीमी गति से चल रहा है। इसी तरह सरकार ने जीएसटी और दिवालियापन संहिता जैसे दो महत्वपूर्ण सुधार लागू किया है। इन सुधारों का व्यापक असर भी अब दिखने लगा है, लेकिन भारत में उत्पादन के दो महत्वपूर्ण कार्य भूमि और श्रम की उत्पादकता में सुधार के लिए महत्वपूर्ण और ठोस सुधारों की सख्त जरूरत है। ऐसे सुधारों के बिना भारत औद्योगिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी होने का जोखिम नहीं उठा सकता। इसके अतिरिक्त भविष्य में ऐसे सुधार होने चाहिए जिससे कि  कार्य बल को कृषि से निकलकर विनिर्माण क्षेत्र में लाया जा सके।

इसमें कोई दो राय नहीं कि यूपीए शासन के दिनों से विरासत में मिली दोहरी बैलेंस शीट समस्या आज फायदे में बदल गई है। अब इसे व्यापक निजी निवेश पुनरुद्धार में तब्दील करना होगा लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा की इसकी वृद्धि ’के’ आकार की रिकवरी के बजाय व्यापक उपभोग आधारित प्रतिशत पर निर्भर करें। फिर भी महामारी के बाद के चार वर्षो में 7 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि वास्तव में सराहनीय है, लेकिन सुधार अपेक्षित है। 2024 में लगातार विस्तार का अनुमान है जो घरेलू मांग में मजबूत वृद्धि पर आधारित होगा। वर्ष 2030 तक भारत की जीडीपी का आकार जापान से अधिक हो जाएगा, जिससे भारत एशिया प्रशांत क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

लेकिन भारत को अपनी युवा पीढ़ी के लिए आवश्यक पैमाने पर नौकरियां सृजित करने के लिए तेजी से कार्यक्रम बनाने की जरूरत है, वहीं विकास की लगातार बढ़ती लहर का फायदा अधिकाधिक लोगों के बीच पहुंचे, इसके लिए भी ठोस कार्य नीति के साथ सरकार को आगे आना होगा। सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों से कौशल विकास, स्वास्थ्य, छोटी कंपनियों को आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक सुधार जैसे मोर्चां पर व्यापक काम हुआ है लेकिन आगे हमें खामियों को ठीक करने पर भी गंभीरता से केंद्रित होना होगा। सरकार को आयात लाइसेंस और अनियंत्रित उत्पादों पर मूल्य नियंत्रण जैसे कुंड नीति उपकरण तैनात करने की भी आवश्यकता है जो सावधानी और विवेक के साथ तैयार की गई हो जिससे कि खुले बाजार की जटिलताओं को आसानी से हैंडल किया जा सके। सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल में ढेर सारे सुधार किए हैं लेकिन ’ये दिल मांगे मोर’ वाले  विज्ञापन की तर्ज पर कुछ और बेहतर सुधारां की जरूरत आगे भी है।

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