swadeshi jagran manch logo

सरकार का लक्ष्य कृषि सुधार चक्र आगे बढ़े

सरकार ने एमएसपी और एपीएमसी के मुद्दे पर पूरे जोर से संदेश दिया है कि इन पर कोई खतरा नहीं है और वह अब किसानों की प्रतिक्रिया का इंतजार करेगी। इस  लिहाज से किसानों के आंदोलन को कृषि क्षेत्रा में परिवर्तनकारी सुधारों का संक्रमण काल ही माना जाना चाहिए। — स्वदेशी संवाद

 

केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने सत्ता में आने के बाद से ही एग्री मार्केटिंग के क्षेत्र में कई सुधार किए हैं। ई-नाम, ई-एन डब्ल्यूआर और कृषि सुधार कानून तो अपनी जगह पर हैं ही, लेकिन इसके साथ ही किसान उत्पादक संगठनों को लेकर सरकार ने कई ऐसी पहल की है, जो गेम चेंजर है। ऐसे में करीब तीन महीनों से चल रहा किसान आंदोलन भले ही कुछ राज्यों तक सीमित हो, लेकिन केंद्र की सरकार के कामकाज के साथ-साथ उसके इकबाल के लिए भी एक झटके के रूप में सामने आया है। देश के कुछ हिस्सों में चल रहे किसान घमासान की पृष्ठभूमि में उम्मीद की जा रही थी कि सरकार किसानों को लुभाने के लिए बजट में बड़ी घोषणाएं कर सकती है, लेकिन बजट प्रावधानों में देखा जाए तो कृषि के मोर्चे पर यह बजट पहले की अपेक्षा कमतर ही नजर आ रहा है।

इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि पिछले 7 सालों के दौरान केंद्र की सरकार ने कृषि के क्षेत्र में युगांतर कदम उठाए हैं। हाल के तीनों कृषि कानून, जिसके खिलाफ आंदोलन चल रहा है, दरअसल पिछले 7 सालों में कृषि को लेकर सरकार के किए गए तमाम प्रयासों का एक तरह से निचोड़ भी है। अगर किसी कारण बस सरकार को कानून वापस लेने पड़ते हैं तो सरकार के कृषि के क्षेत्र में किए गए पिछले सारे नीतिगत प्रयासों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। यानी साफ है कि सरकार कोई भी नई घोषणा या नीतिगत पहल करने से पहले सुनिश्चित कर लेना चाहती है कि किसान आंदोलन का परिणाम किस दिशा में जाने वाला है।

वित्तमंत्री ने बजट भाषण दस्तावेज में कृषि क्षेत्र के लिए 12 पैराग्राफ समर्पित किए हैं। इनमें 5 पैराग्राफ में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरकारी खरीद के प्रति प्रतिबद्धता जताते हुए वित्तमंत्री ने बताया कि कैसे वर्तमान केंद्र की राजग सरकार ने यूपीए सरकार की तुलना में सरकारी खरीद बढ़ाई है। वित्तमंत्री ने जोर देकर कहा है कि केंद्र सरकार ने पहले तो एमएसपी की लागत डेढ़ गुना किया। फिर गेहूं, चावल, दलहन और कपास आदि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के साथ-साथ खरीददारी में भी बढ़ोत्तरी की। यूपीए शासन के अंतिम साल यानी 2013-14 की तुलना में खरीदारी बहुत ज्यादा बढ़ाई है। गेहूं के किसानों को मिलने वाली रकम में जहां 121 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, वहीं चावल में खरीदारी 170 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ी है।

राजग सरकार के केंद्र में आने से पहले जहां सरकारी खरीद का मतलब सिर्फ धान और गेहूं हुआ करता था, वहीं अब इसका दायरा बढ़कर दलहन, तिलहन, फसल और कपास तक पहुंचा है। वित्तमंत्री ने आंकड़ों से पता करने के लिए बताया कि वर्ष 2013-14 में दालों की एमएसपी पर खरीद के लिए 236 करोड़ों रुपए खर्च हुए थे, लेकिन 2020 में यह 40 गुना बढ़कर 10530 करोड रुपए तक पहुंच गया है। इसी तरह कपास में होने वाली खरीद 6 वर्षों में 288 गुना बढ़कर 90 करोड़ से 25 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। पहले एमएसपी पर सरकारी खरीद सिर्फ पंजाब और हरियाणा तक सीमित थी, अब महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के किसानों तक भी पहुंचने लगी है। यहां तक कि बीते सीजन में पहली बार मध्य प्रदेश में गेहूं की खरीद में पंजाब को पीछे छोड़कर देश में पहला स्थान प्राप्त कर लिया है। हालिया सूचना आई है कि छत्तीसगढ़ में 93 प्रतिशत से अधिक की खरीदारी एमएसपी पर हुई है।

बजट भाषण में दो पैराग्राफ एमएसपी एग्री प्रोड्यूस मार्केट कमेटी मंडियों के प्रति सरकार की योजना का खुलासा करते हैं। पहली घोषणा, ई-नाम इलेक्ट्रॉनिक कृषि बाजार में 1000 मंडियों को जोड़ने की बात कही गई है और दूसरी एपीएमसी मंडियों में बुनियादी ढांचे के विकास में कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर विकास  फंड एआईयूडीएफ का इस्तेमाल करने की अनुमति दिए जाने की है। ई-नाम योजना सरकार ने 14 अप्रैल 2016 को शुरू की थी। जिसका लक्ष्य देश को मंडी प्लेटफार्म के रूप में बदलना है। इसमें अब तक 1000 मंडियां जुड़ चुकी है और बजट की घोषणा के बाद इस नेटवर्क में अगले साल तक दो हजार मंडियां शामिल हो जाएंगी।

ई-नाम में शामिल होने का मतलब है कि देश की 7000 में से 2000 मंडियां अत्याधुनिक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर से सुसज्जित होंगी। उन्हें उपज की गुणवत्ता टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 75 लाख रूपये मिले हैं। इनके विकास में आईडीएफ की अनुमति का भी अपना साफ संदेश है। अब दूसरी तरफ देखें तो आंदोलनकारी किसानों ने आशंका जताई है कि एपीएमसी मंडी के बाहर फसल बेचने की अनुमति देने से मंडिया गैर प्रतिस्पर्धी हो जाएंगी, क्योंकि किसान जहां आएंगे नहीं और इसलिए उनकी आमदनी खत्म हो जाएगी, जिससे उनका बुनियादी ढांचा नष्ट हो जाएगा। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे सरकारों ने मंडियों को प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए मंडी फीस बहुत कम कर दी है। यह लगभग खत्म कर दी है। ऐसे में केंद्र ने एपीएमसी मंडियों के लिए  वित्त की व्यवस्था कर साफ कर दिया है कि वह किसी भी हाल में मंडियों को कमजोर नहीं होने देना चाहता।

पूरे बजट भाषण को समग्रता से देखने पर पता चलता है कि सरकार पूंजीगत व्यय के जरिए अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की कोशिश कर रही है। इसलिए इस बार बजट के कुल व्यय में पूंजीगत व्यय की  हिस्सेदारी को 6.6 फीसद बढ़ाकर 4.4 करोड़ लाख करोड़ रुपए तो किया ही गया है, अगले साल के लिए भी इसमें 25 फ़ीसदी तक की बढ़ोतरी की गई है। इससे अर्थव्यवस्था को कितना फायदा पहुंचेगा यह तो आने वाले समय में पता चलेगा। वैसे समय पर उठाए गए कुछ कदम और नीतिगत निर्णयों से हमारी अर्थव्यवस्था की रिकवरी दूसरे कई देशों की तुलना में बेहतर रही है। मैन्युफैक्चरिंग, पीएमआई, औद्योगिक उत्पादन, जीएसटी संग्रह जैसे प्रमुख संकेतक फिर से अपने पुराने स्तर पर आ गए हैं या उससे धीरे-धीरे आगे निकल रहे हैं। इन्हीं सबको आधार मानकर अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष भी भारतीय अर्थव्यवस्था में 11.5 प्रतिशत तक की ग्रोथ और इसके ग्लोबल इकोनॉमी का विकास इंजन बनने की ओर आशान्वित दिख रहा है।

इन सबके बावजूद कृषि क्षेत्र के बारे में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि किसान आंदोलन को देखते हुए सरकार कृषि के लिए अपना खजाना खोलेगी, लेकिन पिछली बार के मुकाबले इस बार केवल 2 प्रतिशत का ही इजाफा हो पाया है। हालांकि अभी सही है कि इस बार एमएसपी के लिए कमिटमेंट और मंडियों को मजबूत बनाने के साथ-साथ ज्यादा जोर गांव देहात के बुनियादी ढांचे को सुधारने पर है, जो आने वाले समय में बहुत ही फायदेमंद हो सकता है।

मालूम हो कि स्वदेशी जागरण मंच तथा भारतीय किसान संघ ने भी एमएसपी को लेकर स्पष्टता  लाने  की  राय सरकार के समक्ष रखी है। सरकार ने एमएसपी और एपीएमसी के मुद्दे पर पूरे जोर से संदेश दिया है कि इन पर कोई खतरा नहीं है और वह अब किसानों की प्रतिक्रिया का इंतजार करेगी। इस  लिहाज से किसानों के आंदोलन को कृषि क्षेत्र में परिवर्तनकारी सुधारों का संक्रमण काल ही माना जाना चाहिए। दरअसल अगर आंदोलन जीतता है तो सुधारों का यह चक्र वापस पीछे लौटेगा और भारत में किसानों की नियत पुरानी मंडियों में ही जकड़ी रहेगी, लेकिन सरकार अपने इरादों में कामयाब होती है तो यह चक्र नए युग का सूत्रपात करेगा और फिर आने वाले दिनों में हम कृषि क्षेत्र के लिए नई-नई घोषणाएं अवश्य देख सकते हैं।         

Share This

Click to Subscribe