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बंद एवं रुग्ण औद्योगिक इकाइयों को पुनर्जीवन मिले

अधिकतर औद्योगिक इकाइयों के बंद होने का मुख्य कारण टैक्नोलॉजी के अप्रचलित और पुरानी होना और वित्तीय पोषण का अभाव है। बंद होने के बहुत से कारण अन्यान्य भी हैं। - विनोद जौहरी

 

विद्वान अर्थशास्त्री निश्चित रूप से किसी भी आर्थिक उन्नति एवं अवनति, कारण और निवारण, कुप्रभाव एवं अन्य बिंदुओं पर बहुत तथ्यपरक विश्लेषण करते हैं, परंतु उसी समस्या को प्रभावित होने वाला श्रमिक, औद्योगिक इकाइयों के स्वामी भिन्न दृष्टिकोण से देखते और समझते हैं। 

वर्ष 2024 के अंतरिम बजट का सबसे प्रमुख आकर्षण 11.11 लाख करोड़ रूपये का पूंजीगत निवेश है, जिसमें से 6.2 लाख करोड़ रूपये रक्षा के लिए आवंटित किया गया। भारत लक्षित समय से पूर्व ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। इसके साथ ही अब भारत की प्रतिस्पर्धा अमेरिका और चीन से है, जिनकी संरक्षणवादी नीतियों से भी मुकाबला करना है। विश्व की सबसे बड़ी पांच अर्थव्यवस्थाओं में भारत की विशेषता यह सामने आयी है कि सकल प्राप्तियों का 63 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों से प्राप्त हुआ है, जिसका श्रेय देश के उद्योग व्यापार, सेवा क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी और अब कृत्रिम मेधा को जाता है। जिससे न केवल देश की वैश्विक व्यापार में भागीदारी बढ़ रही है, बल्कि रोजगार सृजन भी हो रहा है। इसके साथ ही औद्योगिक प्रगति से संबंधित एक महत्वपूर्ण तथ्य पर ध्यानाकर्षण आवश्यक है, जो बंद पड़ी औद्योगिक इकाइयों के पुनर्निर्माण करने और पुनर्जीवन देने के संबंध में है। 

पब्लिक डोमेन में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 1,80,000 औद्योगिक इकाइयां बीमार हैं, जिनमें से अधिकांश में उत्पादन बंद हो चुका है, जिनकी प्लांट मशीनरी जंग खा चुकी है और औद्योगिक जमीन मुकदमेबाजी, वसूली और विभिन्न कानूनी प्रक्रियाओं में फंसी है। इन पर बैंकों का 26000 करोड़ रूपये की रकम बकाया है। बंद पड़ी निजी क्षेत्र और पब्लिक सैक्टर की इकाइयों के सही आंकड़े बैंकों, आयकर विभाग, एन.सी.एल.टी. और पूर्व बी.आई.एफ.आर., स्थानीय सरकारी उद्योग विभाग, एसेट रीकंस्ट्रक्शन एजेंसियों, डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल, उच्च न्यायालय जहां लिक्विडेशन के केस चल रहे हैं, से प्राप्त किये जा सकते हैं। 

अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पब्लिक सैक्टर यूनिटों (पीएसयू) के संबंध में बहुत उत्साहजनक वक्तव्य दिया है। उनके अनुसार देश में पीएसयू की संख्या 2014 से बढ़कर आज 254 हो चुकी है। इन पीएसयू की नेटवर्थ 17 लाख करोड़ रूपये है और इनका लाभ 2.5 लाख करोड़ रूपये बढ़ चुका है। फिर भी 67 पब्लिक सैक्टर कंपनियां बंद हैं जिनमें कोई औद्योगिक गतिविधियां और उत्पादन बंद हो चुका है। 

सरकारी सेवा के दौरान कानपुर में नेशनल टैक्सटाइल कारपोरेशन के विशालकाय औद्योगिक परिसरों को देखा और उनके आयकर निर्धारण भी किये। इन औद्योगिक परिसरों के बाहर समय समय पर मजदूरों की ट्रेड यूनियनों को धरने प्रदर्शन करते भी देखा। हजारों श्रमिकों को बेरोजगार होते देखा।

ऋषिकेश स्थित इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल लिमिटेड का संयंत्र उत्तराखंड राज्य में हरिद्वार-जोशीमठ राजमार्ग पर ऋषिकेश में पवित्र गंगा नदी के तट पर पहाड़ी परिदृश्य की शांति में स्थित है। प्लांट और कॉलोनी से युक्त ऋषिकेश टाउनशिप 834 एकड़ भूमि (3.38 मिलियन वर्ग मीटर) में फैली हुई है और सड़क, रेल और हवाई मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ी हुई है।यह संयंत्र 1967 में चालू किया गया था और इसमें 44 विभिन्न दवाओं के बल्क उत्पादन के साथ सबसे बड़ी एंटीबायोटिक्स किण्वन सुविधा थी। पेनिसिलिन-जी, टेट्रासाइक्लिन, ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन और स्ट्रेप्टोमाइसिन आदि के लिए किण्वक (प्रत्येक 50एम3 क्षमता) और उनकी शुद्धि सुविधाएं थीं। ऋषिकेश में इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल लिमिटेड की औद्योगिक यूनिट को अपने कार्यकाल में ही भारी उत्पादन और तीन शिफ्टों में चलने के बावजूद बंद होते देखा जबकि लाटूर में फैले प्लेग के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उत्पादन भी ऋषिकेश की आईडीपीएल यूनिट में हुआ। आईडीपीएल के हजारों श्रमिकों को अपने सामने नौकरियां खोते हुए देखा। फैक्ट्री के अधिकारियों को फैक्ट्री बंद होने पर रेहड़ी पटरी पर दुकान लगाते देखा। आई डी पी एल की पांचों अन्य यूनिटें ऋषिकेश, गुरुग्राम, चेन्नई, हैदराबाद, मुजफ्फरपुर में  हैं। प्रमुखता से धार्मिक आस्थाओं और मां गंगा के सानिध्य के रूप में विश्व विख्यात ऋषिकेश में बड़ा औद्योगिक क्षेत्र भी था जिसमें आयरन के सरिये, टायर और विभिन्न अन्य फैक्ट्रियां थी जो बंद पड़ी हैं। 

एचएमटी फैक्ट्री उत्तराखंड की शान समझी जाती थी। 91 एकड़ में फैली इस फैक्ट्री का शुभारंभ 1985 में हुआ था, मगर 2016 से यहां ताला लटक गया था। इसके बाद से ही फैक्ट्री व यहां बनी आवासीय कालोनियां खंडहर हो चुकी हैं।

मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) में 175 से अधिक आयरन सरिया और इंगट निर्माण करने वाली फैक्ट्रियों को बंद होते देखा और मेरठ में विशाल औद्योगिक इकाइयों में भी ताला लग गया, जिनमें मोदी रबर लिमिटेड जैसी बड़ी कंपनियां, जिनमें भारी मशीनरी विदेशों से आयातित थी, बंद हो गयी। टैक्सटाइल प्रोसेसिंग यूनिटों में ताला लग गया। यह सब 2014 के पहले की स्थिति है लेकिन फैक्ट्रियों पर ताले आज भी लगे हैं।

यह बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जिनको स्वयं देखा और अनुभव किया। बड़ी तस्वीर देखनी शेष है।

कहीं भी जायें, किसी भी औद्योगिक क्षेत्र में जायें, बंद पड़ी औद्योगिक यूनिटों पर दृष्टि पड़ ही जायेगी। बंद फैक्ट्रियों को देख कर बहुत पीड़ा होती है जैसे कोई उद्योग जख्मी होकर असहाय पड़ा है, जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

अधिकतर औद्योगिक इकाइयों के बंद होने का मुख्य कारण टैक्नोलॉजी के अप्रचलित और पुरानी होना और वित्तीय पोषण का अभाव है। बंद होने के बहुत से कारण अन्यान्य भी हैं। एक बार बंद यूनिट ऋण अदायगी या किसी अन्य कारण से अदालती मुकदमों में फंस जाये तो कानूनी प्रक्रियाएं इतनी जटिल हैं कि जब तक मशीनरी जंग खा कर बेकार न हो जाये, मुकदमे नहीं निपटते। 

केंद्र सरकार ने औद्योगिक क्षेत्र को विकसित करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। पीएलआई के माध्यम से देश में औद्योगिक उत्पादन पिछले दस वर्षों में बहुत बढ़ा है और आत्मनिर्भरता हमारे उद्योग का धर्म और संस्कृति बनघ् चुकी है। कोई भी नयी औद्योगिक इकाई उत्पादन के बाद भी कम से कम पांच वर्षों तक आयकर देयता में नहीं आती, क्योंकि विभिन्न कटौतियां और डेप्रिसिएशन, हानि के सेट ऑफ और कैरी फॉरवर्ड, कम टैक्स रेट उद्योग को बहुत संरक्षण देते हैं। 

केंद्र और राज्य सरकारें एक टास्क फोर्स बनाकर तथ्यात्मक आंकड़े प्राप्त करें कि किस क्षेत्र में कौन सी औद्योगिक इकाईयां किस कारण से बंद हैं और उनकी देनदारी, मुकदमों की वर्तमान स्थिति क्या है। उनके लंबित पड़े मुकदमों का भी समयबद्ध सीमा में निपटारा हो। केंद्र और राज्य सरकारें यथोचित प्रयास करें कि बंद यूनिटों का उचित मुआवजा देकर अधिग्रहण किया जाये और नयी औद्योगिक फैक्ट्रियां लगाने का उपक्रम किया जाये। केंद्र और राज्य सरकारें इस संबंध में समन्वित नीति निर्धारण करके इन बेकार पड़े औद्योगिक परिसरों का सदुपयोग सुनिश्चित करें जिससे अधिकाधिक कर संग्रहण और रोजगार सृजन हो। वर्तमान में एक नियमित टीवी चैनल पर ‘शार्क टैंक थ्री’ प्रसारित हो रहा है जिसमें नये उद्यमी सोत्साह भाग ले रहे हैं और शार्क भी बहुत युवा प्रतिभावान बड़े उद्यमी हैं। हमारे पास युवा उद्यमियों का एक बड़ा वर्ग है जो बड़े जोखिम उठा कर भी शोध, नवोन्मेष और निवेश के साथ नये उद्यम स्थापित कर सकते हैं। हजारों प्रशिक्षित इंजीनियर जो केवल नौकरियों के सहारे हैं, उनमें कौशल की अपार शक्ति है। ऐसे में हमारे देश में किसी फैक्ट्री में ताला न लगे और हर फैक्ट्री 100-200 लोगों को रोजगार उपलब्ध करायें, तो बेरोज़गारी स्वयं समाप्त हो जायेगी।

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