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बंगालः एक आर्थिक व राजनैतिक परिदृश्य

बंगाल में भी वंचित, शोषित तथा पीड़ित जनता को भी आर्थिक बदहाली से रिहाई जल्दी ही मिलेगी, परंतु इसके लिए राजनैतिक परिवर्तन की आवश्यकता है। - डॉ. धनपत राम अग्रवाल

 

एक तरफ़ जहां भारत की तीसरी विश्व-शक्ति के रूप में उभरने की बात स्पष्ट हो रही है, वहीं थोड़ी सी नज़र अतीत में झांकने की है, जब 1730 ई. के आसपास भारत विश्व की अर्थव्यवस्था का लगभग 25 प्रतिषत और प्रथम श्रेणी का स्थान बनाये हुआ था और उस समय का अखंड भारत और उसी समय का अखण्ड बंगाल भी दुनिया की आय का लगभग 15 प्रतिषत भाग हुआ करता था। यह बात और भी स्पष्ट रूप से हमारी वित्तमंत्री ने हाल में कोलकात्ता में कही है कि 1947 तक भारत के उद्योग का लगभग 25 प्रतिषत हुआ करता था, जो कि वर्तमान में घटकर मात्र 2.5 प्रतिषत रह गया है।

बंगाल की राजनीति और अर्थनीति दोनों के परिप्रेक्ष्य में इस बात की समीक्षा और विष्लेषण करने से यह स्पष्ट रूप में समझ में आयेगा कि बंगाल बहुत सी राजनैतिक उतार-चढ़ाव का षिकार हुआ है। जिस बंगाल को अंग्रेजों ने प्रथम ब्रिटिष साम्राज्य का केंद्र बनाया था, उसकी दुर्दषा की शुरुआत भी उन्हीं अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा 1905 में बंग-भंग द्वारा की गई और 1947 में पूर्वी पाकिस्तान तथा 1971 में बांग्लादेष के निर्माण तथा इसके साथ शरणार्थियों तथा घुसपैठियों की समस्या ने बंगाल की रीढ़ की हड्डी को ही तोड़ दिया।

एक समय जो बंगाल आध्यात्मिक, साहित्यिक, वैज्ञानिक, शैक्षणिक, आर्थिक और राजनैतिक सत्ता का केंद्र हुआ करता था, और हमारे राष्ट्र का सिरमौर था, वही बंगाल आज एक घनघोर अंधकार और नकारात्मक तथा संकीर्ण मानसिकता का षिकार बन गया है।

बंगाल के आर्थिक संसाधन चाहे, मानव-ऊर्जा, बौद्धिक-ऊर्जा, प्राकृतिक संसाधन या अन्य पूँजीगत संसाधन हों, सभी उत्कृष्ट साधन उपलब्ध होने के बावजूद एक सुदृढ़ राजनैतिक नेतृत्व की कमी है। उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बंगाल की खाड़ी तक शस्य-ष्यामला उर्वरक भूमि में गंगा, दामोदर, तीसता, रूप नारायण आदि नदियों द्वारा सिंचित भूमि में जंगल, पहाड़, सागर का तट तथा खनिज के भंडार भरे हैं, किंतु इनका दोहन बंगाल के विकाष में न होकर इनका दुरुपयोग हो रहा है और बंगाल की जनता शोषित हुई है, यहाँ तक कि आज तो स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि नदी की बालू भी और पाखुर के पत्थर भी और रानीगंज की खादानों का कोयला भी माफियाओं की मुट्ठी में क़ैद है।

देष के स्वाधीन होते ही यहाँ के जुट उद्योग को बड़ा झटका लगा जब लगभग सारा कच्चा जुट पैदा करने वाला क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेष) में चला गया। नेहरू की नई इस्पात नीति के द्वारा यहाँ के स्थानीय उत्पादित कोयले को और नज़दीक उड़ीसा से आने वाले लौह-अस्क को महँगा और प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से यहाँ के इस्पात उद्योग को भारी चोट पहुँचाई। 1947 में भारत के उद्योग में शीर्ष स्थान रखने वाला बंगाल धीरे-धीरे नक़्षलवाद और फिर कांग्रेस तथा कम्युनिस्टों की मिलीभगत से गर्त में गिरता गया। 1977-2011 के बामपंथी शाषन ने बंगाल को भारत के आर्थिक नक़्षे के सबसे नीचे स्थान पार ढकेल दिया। यहाँ के उद्योग धंधे बंद होने लगे या अधिकतर बीमारू हो गये। विनियोग का परिवेष बिलकुल समाप्त प्रायः हो गया। सरकारी संस्थाओं का राजनीतिकरण होने लगा। उत्तर बंगाल का चाय उद्योग भी ठप्प पड़ने लगा। उद्योगपति दूसरे राज्यों में जाने लगे और पूँजीपतियों का पलायन तथा उद्यमियों का ह््रास होने लगा। बंगाल उद्योग आधारित अर्थव्यवस्था की जगह उपभोगता आधारित राज्य बन गया। एक समय बाहर से उद्यमी आकर यहाँ नया उद्योग लगाते थे, बाहर से श्रमिक आकर यहाँ रोज़गार करते थे, बाहर से विद्यार्थी आकर पढ़ते थे, बाहर से रोगी आकर यहाँ इलाज करवाते थे, सब कुछ उल्टा हो गया। आज बंगाल के मज़दूर और कारीगर दूसरे राज्यों में परियायी मज़दूरी करते हैं, यहाँ के विद्यार्थी हैदराबाद और बैंगलोर जाकर षिक्षा ग्रहण करते है और वहीं पर नौकरियों ढूँढ रहे हैं।

बंगाल की ऐसी आर्थिक बदहाली और राजनीतिक हिंसा के वातावरण में लोगों ने हताष होकर परिवर्तन की आषा में ममता बनर्जी की तृणमूल पार्टी को चुना किंतु हालात पहले से भी और अधिक ख़राब होने लगे। पहले नंदीग्राम और केषपुर की राजनीतिक हिंसा सुनने में आती थी, सिंगुर के किसानों की बदहाली की घटनायें सुनने में आती थी, अब तो संदेषखाली जैसी दर्दनाक और सरकारी ख़ज़ानों की लूट हो रही है। सरकारी कोष का दिवाला निकल गया है और सरकार हर वर्ष कर्ज पर कर्ज लेती जा रही है। 2011 में तृणमूल ने जब सत्ता सँभाली थी, तब सरकारी ऋण 1.90 लाख करोड़ था, जो 2023-24 में बढ़कर लगभग 6.5 लाख करोड़ हो गया है। और यह भी तब जबकि किसी भी प्रकार का विकासषील पूंजीगत खर्चे का बंगाल के बजट में पिछले 13 वर्षोंं में कोई भी स्थान नहीं रहा है। चारों तरफ़ घोटालों व अराजकता से जनता परेशान हैं। राषन घोटाला, षिक्षा क्षेत्र में नौकरियों के नाम पर घोटाला, पषुओं के बांग्लादेष तस्करी का घोटाला, कोयला घोटाला तथा मंत्री पद पर रहते हुए इन आपराधिक मामलों में क़ैद मंत्रियों के खुलेआम प्रमाणों के बावजूद यहाँ की महिला मुख्यमंत्री केंद्र सरकार द्वारा ग़रीबों के हित में चालू की गई रियायतों को जिसमें आयुष्मान भारत तथा अन्य सुविधायें शामिल हैं, उनसे वंचित रखा है। महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी योजना में आवंटित पैसे का दुरुपयोग किया है। इन सब दुर्नीतियों का नतीजा सामने है, क़ानून व्यवस्था चरमरा गई है, लगातार बंगाल विनियोग सम्मिट् के दुराग्रह करते रहने पर भी बंगाल में विनियोग नहीं आ रहा है। बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है, छोटे-छोटे व्यापारियों को पार्टी के लोगों द्वारा तोलाबाज़ी द्वारा परेषान किया जा रहा है।

एक तरफ़ केंद्र में विकासोन्मुख मोदी सरकार है और दूसरी तरफ़ बंगाल में एक दिषाहीन और हर विकाष के कार्यों में बाधा पहुँचाने वाली तृणमूल सरकार है। 2011-2021 के दस सालों के अराजकता और हिंसा के आधार पर राज्य की अर्थव्यवस्था और सामाजिक सरंचना को धूल धूरसित करने वाली तृणमूल सरकार से निजात पाने के लिये यहाँ की जनता और बुद्धिजीवी वर्ग ने 2019 के लोकसभा और 2021 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बंगाल की राजनीति में कुछ उत्साह डालने की कोषिष की है। उन्हें अब यह विश्वास होने लगा है कि बंगाल में कांग्रेस, कम्युनिस्ट तथा तृणमूल किसी ने भी कोई आषाजनक विकासोन्मुख काम नहीं किया है। बंगाल का गौरवमयी इतिहास यहाँ की जनता से यह अपील करता है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में वे सही निर्णय लेकर यहाँ के भ्रष्ट एवं निकृष्ट शासन को सही सबक़ सिखायें एवं 2026 के राज्य के चुनाव में पूर्ण रूप से इन्हें निर्मूल करके भारतीय जनता पार्टी की नेतृत्व वाली सरकार चुनकर बंगाल को एक खुषहाल और वैभवषाली विकसित राज्य बनायें ताकि यहाँ की माताओं और बहनों की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा हो सके। 

भाजपा की सरकार जिन-जिन राज्यों में काम कर रही है, वहां डबल इंजन की ऊर्जा काम कर रही है और विकास बड़ी तेजी से हो रहा है। यहां तक कि असम, त्रिपुरा तथा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में भी विकास कार्य बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है और वहां कर्म संस्थानों की स्थापना के लिए देषी तथा विदेषी विनियोजन के अनुकूल परिवेष बना हुआ है तथा उद्यमियों को प्रोत्साहन मिल रहा है। कुल मिलाकर वहां के लोगों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ है। आशा है कि बंगाल में भी वहां की वंचित, शोषित तथा पीड़ित जनता को भी आर्थिक बदहाली से रिहाई जल्दी ही मिलेगी, परंतु इसके लिए राजनैतिक परिवर्तन की आवश्यकता है। 

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