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भूमि सुपोषण : जनजीवन व जीवसृष्टि का आधार

भूमि के उचित सुपोषण व संरक्षण से ही हम भूमि की उर्वरता को बनाये रख सकेंगे। लेकिन आज देश की एक तिहाई भूमि विविध प्रकार से अवनति या डीग्रेडेशन की शिकार हो रही है। इससे हमारी खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित हो सकती है। — प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा

 

हमारी उपजाऊ भूमि, शुद्ध जल एवं स्वच्छ वायु प्रकृति के अनुपम उपहार है। ये हमारे जन जीवन व सम्पूर्ण जीव सृष्टि के लिए अनिवार्य जीवन आधार हैं। हमारी कृषि योग्य भूमि एवं उसकी मृदा या मिट्टी का उपजाऊपन हमारी खाद्य सुरक्षा का आधार है। आज मिट्टी मे बढ़ती रासायनिक विषाक्तता, लवणीकरण व ऊसरता हमारे जल स्रोतों को भी प्रदूषित कर रही है। भारत में हम विष्व के 2.5 प्रतिषत भूभाग में निवासरत भारतीय, विष्व की 17.6 प्रतिषत जनसंख्या का निर्माण करते हैं। लेकिन, भारत में विष्व का मात्र 4 प्रतिषत शुद्ध जल ही सुलभ है। देष के क्षेत्रफल सीमित व विष्व का मात्र 2.5 ही होने पर भी प्रकृति के अनुग्रह से विष्व की सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि 18 करोड़ हेक्टर भारत के पास है। हमसे दो से साढे़ पाँच गुने तक क्षेत्रफल वाले देषों के पास भी कृषि योग्य भूमि हमसे कम है। सम्यक कृषि पद्धतियों का अनुसरण कर हम अपनी कृषि उपज इतनी बढ़ा सकते हैं कि विष्व की दो तिहाई जनसंख्या की खाद्य आवष्यकताओं की पूर्त्ति कर सकें। भूमि के उचित सुपोषण व संरक्षण से ही हम भूमि की उर्वरता को बनाये रख सकेंगे। लेकिन आज देष की एक तिहाई भूमि विविध प्रकार से अवनति या डीग्रेडेषन की षिकार हो रही है। इससे हमारी खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित हो सकती है। 

भूमि की अवनति को रोकना आवष्यक

हमारी भूमि का उपजाऊपन व उसकी मिट्टी या मृदा की उर्वरता व जलधारण क्षमता हमारी खाद्य सुरक्षा का आधार है। शुद्ध जल की सुलभता हेतु भी भूमि व मृदा या मिट्टी का प्रदूषण रहित होना आवष्यक है। रसायनों के अविवेकपूर्ण उपयोग व उत्सर्जन से भूमि में विषाक्तता बढ़ती जा रही है। उस विषाक्तता से जल संसाधनों का प्रदूषण, मिट्टी या मृदा में ऊसरता, लवणीयता व क्षारीयता का फैलाव से भूमि की उत्पादकता व हमारी स्वास्थ्य रक्षा भी प्रभावित हो रही है। भूमि में विषैले रसायनों के संकेन्द्रण व उसी से फैलते जल प्रदुषण व ऐसी विषाक्त भूमि में उत्पन्न दूषित फसलों के कारण कैंसर, पार्किन्सन, थायरॉइड ग्रन्थि के रोग, मधुमेह सहित अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों के रोग आदि तेजी से बढ़ रहे हैं। विष्व का एक चौथाई रोग भार या डिजीज बार्डन आज भारत पर है। 

भूमि के उचित पोषण या सुपोषण के अभाव में विविध घातक रसायनों के विवेक रहित उपयोग से भूमि में बढ़ती ऊसरता से जहाँ एक ओर मिट्टी का उपजाऊपन घटने लगा है। वहीं दूसरी ओर विषैले रसायनों के बढ़ते उपयोग से मिट्टी में बढ़ती विषाक्तता शुद्ध जल को प्रदूषित कर जन स्वास्थ्य को भी संकटग्रस्त कर रही है। रसायनों से विषाक्त हो रही मिट्टी से वहाँ का जल और उस भूमि में उत्पादित फसलें कैंसर सहित अनेक बीमारियों का कारण बन रही हैं। कठोर होती मिट्टी की ऊपरी परत से वर्षा का जल भूगर्भ में रिस नहीं पाता है। जिससे भूगर्भ का जल भी सूखता जा रहा है। इससे आज 300 से अधिक जिले भूजल की दृष्टि से डार्क जोन में बदल गये हैं। 

इसलिए हमारी कृषि उत्पादकता, खाद्य सुरक्षा, शुद्ध जल की सुलभता, जैव विविधता सम्पूर्ण जीव सृष्टि का अस्तित्व एवं पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र भूमि या मिट्टी के उपजाऊपन, व उसकी समग्र गुणवत्ता अवलम्बित है। प्रकृति प्रदत्त हमारी भूतलीय मृदा या मिट्टी वायु, जल, वातावरण में शोरगुल रहित नीरवता जीवन के आधार है। उपजाऊ भूमि, शुद्ध जल की सुलभता एवं स्वच्छ वायु जीवन की मौलिक आवष्यकता एवं मुख्य आधार है। 

भारत में भूमि की अवनति या मृदा हृस की समस्या    

विविध घातक रसायनां के विवेक रहित उपयोग, भूमि में बढ़ती ऊसरता, विषैले रसायनों के प्रयोग से मिट्टी में बढ़ते विषैलेपन आदि से बढ़ते जल प्रदूषण से भूमि की गुणवता में गिरावट के साथ ही हमारी स्वास्थ्य रक्षा भी तेजी से प्रभावित हो रही है। भूमि की गुणवत्ता में कमी आने या भूमि की अवनति संबंधी निम्न समस्याएँ गम्भीर रूप ले रही हैः

-    मरूस्थलीकरण,
-    लवणीयता व क्षारीयता प्रसार की समस्या,
-    मृदा अपरदन या क्षरण अर्थात सॉइल इरोजन,
-    ऊसरीकरण व भूमि का बंजर होते जाना, 
-    अम्लीकरण,
-    रसायन जनित प्रदूषण व भूमि की रसायन जनित विषाक्तता,
-    भूमि की उर्वरता व उत्पादकता में हृस,
-    मृदा ऑर्गेनिक कार्बन का हृस,
-    जोतदार भूमि में कमी,
-    आकस्मिक तथा भयंकर बाढ़ का प्रकोप,
-    शुष्क मरूभूमि का विस्तार,
-    बीहड़ तथा बंजर भूमि में वृद्धि, जो असमाजिक तत्वों का शरणस्थल बनता है,
-    स्थानीय जलवायु पर विपरीत प्रभाव,
-    मिट्टी के कटाव से नदियों का मार्ग परिवर्तन व बाढ़ का प्रकोप,
-    भू-जलस्तर का नीचे जाना, फलरूवरूप पेयजल तथा सिंचाई के लिए जल की कमी,
-    खाद्य उत्पादन में कमी, फलस्वरूप आयात में वृद्धि, भुगतान संतुलन का बिगड़ना आदि। 

भारत में भू अवनति की वर्तमान स्थिति

भारत में मरूस्थलीकरण व भूमि की बंजरता एक प्रमुख समस्या बनती जा रही है, जिससे लगभग 30 प्रतिषत भूमि का बंजर होना एवं मरूस्थल में बदल जाना या अन्य प्रकार से मृदा हृस एक गंभीर समस्या है। उल्लेखनीय है कि इसमें से 82 प्रतिषत हिस्सा कुछ राज्यों में जैसे- राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू एवं कष्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडिषा, मध्य प्रदेष और तेलंगाना में है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की ‘‘स्टेट ऑफ एनवायरमेंट इन फिगर्स 2019’’ रिपोर्ट के अनुसार 2003-05 से 2011-13 के बीच भारत में मरुस्थलीकरण 18.7 लाख हेक्टेयर तक बढ़ चुका है। वहीं सूखा प्रभावित 78 में से 21 जिले ऐसे हैं, जिनका 50 प्रतिषत से अधिक क्षेत्र मरुस्थल में बदल चुका है। वर्ष 2003-05 से 2011-13 बीच नौ जिले में मरुस्थलीकरण 2 प्रतिषत से अधिक बढ़ा है। भारत का 29.32 प्रतिषत क्षेत्र मरुस्थलीकरण से प्रभावित है। इसमें 0.56 प्रतिषत वार्षिक बदलाव देखा जा रहा है।

भारत ने 2030 तक 2.1 हेक्टेयर बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के अपने लक्ष्य को हाल ही में बढ़ाकर 2.6 करोड़ हेक्टेयर करने का निर्णय किया है, जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ग्रेटर नोएडा में आयोजित यूनाइटेड नेषन्स कन्वेंषन टू कॉम्बैट डिजर्टिफिकेषन के 14वें सम्मेलन को संबोधित करते हुए की है।

2016 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की ओर से बनाया गया राष्ट्रीय डेटाबेस दिखाता है कि 12.07 करोड़ हेक्टेयर जमीन या भारत की कुल सिंचित और असिंचित भूमि का 36.7 फीसदी जमीन विभिन्न तरह की डिग्रेडेषन (भूमि हृस) की षिकार है। इसमें से 8.3 करोड़ हेक्टेयर (68.4 फीसदी) जमीन पानी से होने वाले कटाव की वजह से कमजोर हो रही है, जो मिट्टी को कमजोर करने वाली वजहों में सबसे बड़ी है। पानी का कटाव मिट्टी में जैविक कार्बन के नुकसान, पोषण असंतुलन, मिट्टी के ठोस होने, मिट्टी की जैव-विविधता घटने और भारी तत्वों व कीटनाषकों की मिलावट के रूप में सामने आता है।

रसायनों से मिट्टी के स्वास्थ्य को होने वाले नुकसानों में खारापन (क्षारीयता), अम्लीयता, रसायनों के कारण मिट्टी में आने वाली विषाक्तता और पोषक व जैविक तत्वों में गिरावट और अन्य पोषण संबंधी नुकसान प्रमुख हैं। खारेपन से प्रभावित 67.4 लाख हेक्टेयर मिट्टी में 37.9 लाख हेक्टेयर में सोडियम की उच्च मात्रा (9.5 से ज्यादा पीएच मान) और 30 लाख हेक्टेयर खारेपन से प्रभावित मिट्टी शामिल है। पीएच मान के आधार पर देष का एक बड़ा हिस्सा औसत रूप से क्षारीय है। उत्तर भारत के कुछ हिस्सों जैसे हिमाचल प्रदेष, जम्मू-कष्मीर (अविभाजित), पष्चिमी उत्तराखंड और पूर्व भारत जैसे ओडिषा, झारखंड, पूर्वी उत्तर और पष्चिमी तट प्रायद्वीप उच्च या औसत रूप से अम्लीय हैं। लगभग 1.1 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन बहुत कम उत्पादकता के साथ अत्यधिक मृदा अम्लीयता (5.5 से कम पीएच मान) से प्रभावित है (अनुपात बहुत ज्यादा क्रमषः रू. 27.7, रू. 6.1, रू.1 और रू. 31.4, रू. 8.0, रू. 1 है)। रासायनिक उर्वरकों का उपयोग भारत के 42 फीसदी जिलों में ही केंद्रित है। देष के कुल 739 जिलों में से 292 जिलों में ही कुल खादों के 80-85 प्रतिषत का उपयोग होता है। नाइट्रोजन वाली खादों के उपयोग का अतिरेक भी मिट्टी को क्षति पहुंचा रहा है। कृषि की स्थायी संसदीय समिति की 54वीं रिपोर्ट (2017-18) के अनुसार उर्वरकों के उपयोग में असंतुलन के पीछे यूरिया के पक्ष में झुकी हुई सब्सिडी नीति और अन्य खादों की ऊंची कीमतें है। रिपोर्ट के अनुसार देष में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैषियम, सल्फर, जिंक, बोरान, मॉलिब्डेनम, आयरन, मैग्नीज और तांबे के लिए पोषक तत्वों की कमी क्रमषः 89 फीसदी, 80 फीसदी, 50 फीसदी, 41 फीसदी, 49 फीसदी, 33 फीसदी, 13 फीसदी, 12 फीसदी, 5 फीसदी और 3 फीसदी है। रिपोर्ट में रासायनिक उर्वरकों के उपभोग का विवेकीकरण तत्काल आवष्यक है, ताकि भूमि के उपजाऊपन को बहाल किया जा सके।

स्वस्थ व सुपोषित भूमि के लाभ

स्वस्थ मिट्टी से आषय मृदा स्वास्थ्य अच्छा होने से है, जिसके निम्नलिखित लाभ होते हैः
1.    उच्च उत्पादकता : स्वस्थ मिट्टी कृषि उपज वृद्धि व उत्पादकता बढ़ाने व उसे बनाए रखने में सहयोगी होती है। 
2.    पोषक तत्व पुनर्चक्रण या रीसाइकिलिंगः पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में भी स्वस्थ मिट्टी महत्वपूर्ण है। कई सूक्ष्मजीव जो स्वस्थ मिट्टी में पाए जाते हैं वे उर्वरक-आधारित नाइट्रोजन और फास्फोरस, व अन्य पोषक तत्व पौधों को आवष्यकतानुसार उपलब्ध कराते हैं, जबकि अतिरिक्त खनिज और नाइट्रिफिकेषन को कम करते हैं, जिससे पोषक तत्वों और प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभावों का नुकसान हो सकता है।
3.    पौधे के लिए ऊपरी सतह पर पानी बनाए रखने के लिएः स्वस्थ मिट्टी की जलाधारण क्षमता अच्छी होती है। जिसके परिणामस्वरूप पौधों को पर्याप्त पानी मिट्टी की ऊपरी सतह में सदैव सुलभ रहता है। 
4.    दूषित पदार्थों को छाननाः स्वस्थ मिट्टी दूषित पदार्थों की मात्रा को कम कर सकती है। 
5.    कृषि मित्र कीटों व जीवों यथा केंचुओं आदि को उचित परिस्थितिकीय परिस्थितियाँ प्रदान करना।
6.    भूजल का स्तर व गुणवता उन्नत करना।
7.    भूमि को मुलायम रखना, जिससे पौधों की जड़ो का सम्यक विकास हो सके।            

लेखक गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर (उपकुलपति) है।

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