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कोरोना से बदली खाने-पीने की आदतें

स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद खाद्य पदार्थों के प्रति आकर्षण बढ़ा है, वहीं एक संभावित भय के चलते ढेर सारे लोग मांसाहार का परित्याग कर शुद्ध शाकाहार की ओर आकर्षित हुए है। अब तक जो लोग पश्चिमी अंधानुकरण के चलते मल्टीनेशनल कंपनियों के झांसे में पड़े थे, उनकी आंखे भी धीरे-धीरे खुल रही है। यह भारतीय संस्कृति व परंपरा के करीब आने का संकेत भी है। — स्वदेशी संवाद

 

कोरोना महामारी के कारण लोगों के खाने पीने के तरीके में भी बदलाव आए हैं। मल्टीनेशनल कंपनियों के पिज़्ज़ा बर्गर जैसे उत्पादों को छोड़कर लोग अब घरों में फल और सब्जियों के साथ ज्यादा से ज्यादा स्वदेशी व स्वनिर्मित उत्पाद खाने लगे हैं।

किसी से यह पूछने पर कि कोरोना महामारी से बचने के लिए आपने क्या किया, तो अक्सर यह उत्तर मिलता है कि फिटनेस पर ध्यान दिया, योगा किया, मास्क लगाकर बाहर निकले, भीड़ से बचे रहे, बार-बार हाथ धोए। इसके अलावा और क्या किया? तो लोग झट से बता रहे हैं कि खूब च्यवनप्राश और गिलोय खाया, अदरक, तुलसी दालचीनी और नींबू का काढ़ा पीया।

हाल के महीनों में आए कुछ सर्वेक्षणों से यह पता चलता है कि लगभग 50 प्रतिशत यानी आबादी का हर दूसरा आदमी, इस कोरोना महामारी के दौरान प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अधिकतर स्वदेशी उत्पादों को अपनाया है। कह सकते हैं कि कोरोना ने लोगों की खाने-पीने की आदतें बहुत हद तक बदल दी है।

दिल्ली में रह रहे एक वरिष्ठ पत्रकार के परिवार में 4 सदस्य कोरोना से संक्रमित हो गए थे, इस दौरान उनके परिवार में च्यवनप्राश, काढ़ा जैसे उत्पादों का खर्च बढ़ गया। उनका कहना है कि संक्रमण के पहले बच्चे बाहर का खाना कुछ अधिक पसंद करते थे लेकिन अब पूरा परिवार इम्यूनिटी बढ़ाने वाली खाने पीने की चीजें स्वतः घर में ही बनाकर खाने के अभ्यस्त हो गए हैं। 16 राज्यों में हजारों लोगों के बीच किए गए सर्वेक्षण में यह बात उभर कर आई है कि 49.2 प्रतिशत लोग स्वनिर्मित पुष्टाहार ले रहे हैं, मेडिकल स्टोरों पर भी च्यवनप्राश और गिलोय के टैबलेट आदि इम्यूनिटी बुस्टर उत्पादों की बिक्री पहले की अपेक्षा कई गुना बढ़ गई है।

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुष मंत्रालय ने भी खाने-पीने के आयुर्वेदिक सुझाव दिए है, जिनमें काढ़ा, च्यवनप्राश जैसे कई उत्पाद शामिल है। मंत्रालय ने खुराक के लिए एडवाइजरी भी जारी की है। तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च जैसे उपयोगी चीजों के साथ हल्दी वाले दूध का भी चलन बढ़ गया है।

एम्स अस्पताल के रसशास्त्र के भसज्य कल्पना विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ए.के. प्रजापति बताते हैं कि कोविड-19 के दौरान ऐसे आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली कंपनियां फायदे में चल रही हैं। आयुर्वेद की तरफ लोगों का विश्वास बढ़ा है। पिछले कुछ महीने से लोग फिजूल के खर्चों को कम करके काम की चीजों पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं। हर्बल चीजों की खासियत है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता, बल्कि शरीर के लिए यह हर तरह से फायदेमंद होता है। आयुर्वेद में च्यवनप्राश जड़ी बूटियों का एक ऐसा मिश्रण होता है जिसमें आंवले के साथ काली मिर्च, हल्दी, अदरक, अश्वगंधा जैसे तत्व मौजूद रहते हैं जो कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर होते हैं।

भारत विविधता वाला देश है। हर राज्य का खानपान, आबोहवा, जलवायु और जरूरतें अलग-अलग हैं। सर्वेक्षण से पता चला है कि उत्तर-पूर्व के राज्यों के 60 प्रतिशत से अधिक लोग, जबकि पश्चिमी राज्यों के 48 प्रतिशत लोग स्वास्थ्यवर्धक चीजों पर पैसा अधिक खर्च कर रहे हैं। उत्तरी राज्यों में, जिसमें कि यूपी, बिहार, झारखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, प्रमुख रूप से आते हैं, में भी अधिकांश लोग पौष्टिक भोजन के प्रति आगे बढ़े हैं।

कोरोना के शुरुआती दौर में ही अफवाह फैलने लगी थी कि चिकन, अंडा, मांस, मछली, खाने से कोरोना फैल रहा है। इससे भी प्रभावित होकर अधिकांश लोग शाकाहार की तरफ लौट आए। सर्वेक्षण में 22 प्रतिशत मांसाहारी लोगों ने शाकाहारी होने का दावा किया है। वहीं 10 प्रतिशत लोगों ने बताया है कि वह सिर्फ अंडा खा रहे हैं, मछली, मांस और चिकन छोड़ दिया है। अध्ययन में 14 प्रतिशत ऐसे लोग भी मिले हैं जिन्होंने अपना खानपान का कल्चर पुराना वाला ही बनाए रखा है लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक अधिकांश लोगों के खाने-पीने की आदतों में तब्दीली आई है। लोगों की आदतों में इस तब्दीली का सीधा असर पोल्ट्री के क्षेत्र में कारोबार करने वालों पर पड़ा है। वहीं चीन से चली अफवाहों के चलते चिकन का बाजार भी ढलान की ओर है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों मांसाहार के घटते कारोबार से इस क्षेत्र से जुड़े कारोबारियों के बिगड़ते हालातों को काबू में करने के लिए केंद्रीय मत्स्य पालन पशुपालन और डेयरी मंत्रालय को एडवाइजरी जारी कर कहना पड़ा था कि मीट, मुर्गा, मछली, खाने से कोरोना नहीं फैलता। 

कोरोना काल में भारतीय समाज में यूं तो कई तरह के बदलाव देखें जा रहे हैं। कर्फ्यू और लॉकडाउन के कारण लोग घरों में हैं तथा आवश्यकता शिष्टाचार का भी पालन हो रहा है। सबसे अधिक बदलाव खाने पीने की आदतों में आया है। स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद खाद्य पदार्थों के प्रति आकर्षण बढ़ा है, वहीं एक संभावित भय के चलते ढेर सारे लोग मांसाहार का परित्याग कर शुद्ध शाकाहार की ओर आकर्षित हुए है। अब तक जो लोग पश्चिमी अंधानुकरण के चलते मल्टीनेशनल कंपनियों के झांसे में पड़े थे, उनकी आंखे भी धीरे-धीरे खुल रही है। यह भारतीय संस्कृति व परंपरा के करीब आने का संकेत भी है।

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