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घटता हुआ दोहरा घाटा

कम दोहरा घाटा मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, कम घरेलू और विदेशी ऋण और घरेलू मुद्रा के बेहतर मूल्य के माध्यम से अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर ला रहा है। यानी इन आंकड़ों का मतलब अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर संभावनाएं हैं। - डॉ. अश्वनी महाजन

 

राजकोषीय घाटा और चालू खाते पर भुगतान संतुलन में घाटा, दो ऐसे घाटे हैं जो लंबे समय से भारतीय अर्थव्यवस्था को परेशान कर रहे थे। अर्थशास्त्र में हम इस परिस्थिति को ‘ट्विन डेफिसिट’ यानी दोहरा घाटा, कहते हैं। यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो हमें चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में दोनों में उल्लेखनीय गिरावट देखने को मिली है। हालाँकि, किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए यह बहुत छोटी अवधि है, लेकिन आने वाले महीनों में यह दोहरा घाटा किसी भी बड़े पैमाने पर फिर से बढ़ने का कोई बड़ा कारण नहीं दिखता है। चालू वित्त वर्ष (2023-24) की पहली दो तिमाहियों में चालू खाते पर भुगतान संतुलन में घाटा (सीएडी), घटकर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक प्रतिशत हो गया है, जबकि अप्रैल से नवंबर 2023 तक पहले आठ महीनों में, राजकोषीय घाटा, पूरे वर्ष के लिए अनुमानित कुल राजकोषीय घाटे का लगभग 50 प्रतिशत दर्ज किया गया है। पूरे वर्ष के लिए अनुमानित कुल राजकोषीय घाटे, यानी 17.86 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले इन आठ महीनों के लिए वास्तविक राजकोषीय घाटा केवल 9.06 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया गया है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि यही प्रक्षेपवक्र चलता रहा, तो पूरे वर्ष (2023-24) के लिए कुल राजकोषीय घाटा 13.5 लाख करोड़ रुपये होगा, जो अनुमानित राजकोषीय घाटे का लगभग 75.4 प्रतिशत होगा। यदि राजकोषीय घाटा मौजूदा अनुमानों से एक लाख करोड़ रुपये अधिक भी हो जाये, तो भी राजकोषीय घाटा अनुमानित आंकड़े का 81 प्रतिशत तक ही होगा।

उल्लेखनीय है कि बजट अनुमानों में वर्ष 2023-24 के लिए राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन कम राजकोषीय घाटे के आंकड़ों के साथ यह जीडीपी का केवल 4.8 प्रतिशत तक रह सकता है। इसलिए, किसी भी कल्पना से, राजकोषीय घाटा बजट अनुमानों से अधिक नहीं हो सकता, बल्कि यह निश्चित रूप से बजटीय राजकोषीय घाटे से कम हो सकता है।

दोहरा घाटाः राजकोषीय घाटे और सीएडी की जोड़ी

राजकोषीय घाटा एक वित्तीय वर्ष में सरकार के कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच का अंतर होता है। राजकोषीय घाटा तब उत्पन्न होता है जब सरकार का व्यय (राजस्व और पूंजीगत खाते पर) उस वर्ष सरकार द्वारा एकत्र राजस्व से अधिक होता है। हालाँकि, राजकोषीय घाटा और सार्वजनिक ऋण में वृद्धि दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं, राजकोषीय घाटे का प्राथमिक प्रभाव सार्वजनिक ऋण पर महसूस किया जाता है। गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में कर्ज में कुल 8.1 लाख करोड़ की बढ़ोतरी हुई है।

भुगतान संतुलन में चालू खाता घाटा (सीएडी) तब होता है जब किसी देश द्वारा आयातित वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य उसके द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य से अधिक हो जाता है। इसका निहितार्थ देश से चालू खाते पर विदेशी मुद्रा के बहिर्वाह पर है। यह घाटा मुख्य रूप से विदेश से उधार लेकर या विदेशी निवेश के प्रवाह, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश दोनों से भरा जाता है। सीएडी का सीधा असर विदेशी मुद्रा की मांग पर पड़ता है, जिससे घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन होता है और विदेशी उधार और विदेशी निवेश पर निर्भरता बढ़ती है और आयातित महंगाई भी।

तेजी से बढ़ता राजस्व

हम समझते हैं कि बढ़ती राजस्व प्राप्तियों के कारण राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखा जा सकता है। पिछले आठ माह में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों करों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, यहां तक घ्घ्कि बजट अनुमानों से भी अधिक। उदाहरण के लिए, चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में औसत मासिक जीएसटी प्राप्तियां 1.66 लाख करोड़ रुपये रही हैं, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में औसत जीएसटी प्राप्तियों 1.50 लाख करोड़ रुपये से लगभग 11 प्रतिशत अधिक है और बजट 2023-24 में अनुमानित प्राप्तियों से भी अधिक है। इसी प्रकार पहले आठ महीनों में कॉर्पोरेट टैक्स से 5.14 लाख करोड़ की बड़ी प्राप्तियां देखी गई हैं, जो 2022-23 में इस अवधि में कॉर्पोरेट टैक्स से प्राप्तियों की तुलना में 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। इसी प्रकार व्यक्तिगत आयकर प्राप्तियां भी 5.67 लाख करोड़ रुपये रहीं, जो एक साल पहले इस अवधि की प्राप्तियों से 29 प्रतिशत अधिक हैं। कच्चे तेल पर अप्रत्याशित कर की दर कम होने के कारण उत्पाद शुल्क से कम प्राप्तियों के बावजूद, कुल कर प्राप्तियों में 14.7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जो बजट में अपेक्षित 10.9 प्रतिशत की वृद्धि से अधिक है। इन आठ महीनों में सरकारी व्यय भी अनुमान से कम नहीं है, बल्कि बजट में बताई गई राशि से थोड़ा अधिक ही है।

बेहतर सेवा निर्यात

दूसरी ओर, हम सेवाओं के निर्यात में तेजी देख रहे हैं, जिससे भारत को भुगतान शेष में चालू घाटे (सीएडी) को सकल घरेलू उत्पाद के लगभग एक प्रतिशत तक सीमित करने में मदद मिल रही है। गौरतलब है कि 2022-23 की अंतिम तिमाही में सीएडी, जीडीपी का 3.8 प्रतिशत था। उल्लेखनीय है कि भारत का सेवाओं का निर्यात पिछले कुछ वर्षों में बहुत तेज गति से बढ़ रहा है। वर्ष 2020-21 में सेवाओं का निर्यात मुश्किल से 206 बिलियन अमेरिकी डॉलर ही था, जबकि यह 2021-22 में 254.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। सेवाओं का निर्यात, 2022-23 में 325.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच चुका था। चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में सेवा निर्यात 254 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है। यदि सेवा निर्यातों में वर्तमान गति बनी रहती है तो वे वर्ष 2023-24 में लगभग 380 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकते हैं। उल्लेखनीय है कि भारत से वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि नहीं हो रही है, बल्कि पिछले आठ माह में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में इसमें 6 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है, और चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में यह 279 बिलियन अमेरिकी डॉलर ही है।

2023-24 के पहले आठ महीनों में माल और सेवाओं का कुल आयात 562.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, चूंकि माल और सेवाओं का निर्यात 533.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, वित्तीय वर्ष 2023-24 के पहले आठ महीनों के लिए भुगतान शेष में चालू घाटा केवल 28.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है। यदि हम पहले आठ महीनों के आधार पर भुगतान शेष में चालू घाटे (सीएडी) का अनुमान लगाएं, तो पूरे वर्ष के लिए कुल सीएडी 43.2 अरब अमेरिकी डॉलर (3.6 लाख करोड़ रुपये) होगा, जो कि चालू वित्तीय वर्ष की अनुमानित जीडीपी 301.75 लाख करोड़ रुपये का 1.19 प्रतिशत ही होगा।

अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर

अनुमानित राजकोषीय घाटा से कम होने से अर्थव्यवस्था के लिए दोहरा लाभ है। पहला, यह कि हम महंगाई को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर पाएंगे। हम समझते हैं कि स्वतंत्र विदेश नीति की बदौलत कच्चे तेल की वैश्विक कीमत की तुलना में रूसी तेल की सस्ती खरीद, दूसरी ओर और खाद्य कीमतों पर नियंत्रण के कारण भारत को मुद्रास्फीति दर को अन्य देशों की तुलना में कम रखने में मदद मिली है। अब, राजकोषीय घाटे के अनुमानित से कम होने से सरकार को क़ीमतों को सीमा के भीतर रखने में मदद मिलेगी।

दूसरे, जैसा कि हम समझते हैं, राजकोषीय घाटा मुख्य रूप से सरकार की उधारी से पाटा जाता है, कम राजकोषीय घाटे का मतलब केंद्र सरकार के ऋण में कम बढ़ोतरी है। विशेष रूप से, बजट 2023-24 के अंत तक केंद्र सरकार का ऋण अनुमान 169.5 लाख करोड़ रुपये दिया गया था, जो कम से कम 3 लाख करोड़ कम हो सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यदि यह कम राजकोषीय घाटा अमल में आता है, तो केंद्र सरकार का कर्ज सकल घरेलू उत्पाद का 55 प्रतिशत होगा, जबकि 2022-23 में यह सकल घरेलू उत्पाद का 56 प्रतिशत था।

कम सीएडी अर्थव्यवस्था के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। अतीत में, हमारा देश सीएडी के काफी ऊंचे स्तर का अनुभव कर रहा था, जो कभी-कभी सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 5 प्रतिशत तक पहुंच जाता था। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में यह जीडीपी के 2 प्रतिशत के आसपास रहा है, इसलिए सीएडी का जीडीपी के 1 प्रतिशत के आसपास हो जाना भी कम उपलब्धि नहीं है। उच्च सीएडी विदेशी उधार और विदेशी निवेश पर हमारी निर्भरता को बढ़ाता है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ता है और इसका मूल्यह्यास होता है। लेकिन कम सीएडी से रुपया मजबूत होगा, जिसका अर्थ है आयातित मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और कई अन्य लाभों के अलावा, विदेशी ऋण पर ब्याज पर कम विदेशी खर्च।

निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि कम दोहरा घाटा मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, कम घरेलू और विदेशी ऋण और घरेलू मुद्रा के बेहतर मूल्य के माध्यम से अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर ला रहा है। यानी इन आंकड़ों का मतलब अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर संभावनाएं हैं।    

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