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उद्यमिता, स्वरोजगार व स्वावलम्बन

स्वावलम्बी भारत अभिमान के अन्तर्गत देश में बड़ी संख्या में जिला रोजगार सृजन केन्द्रों की स्थापना हुई है। ये जिला रोजगार सृजन केन्द्र युवाओं में उद्यमिता का भाव जागरण करने, उद्यमिता विकास का प्रशिक्षण देने और नवीन उद्यम स्थापित करने के कार्य में सहयोग प्रदान करने का कार्य कर रहे हैं। - प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा

 

उद्यमिता, स्वरोजगार और सहकारिता अनादिकाल से भारतीय-समाज जीवन व अर्थतंत्र का मूल आधार रहा है। इसीलिए ब्रिटिश शासन में 1835 में भारत के कार्यकारी गवर्नर जनरल रहे चार्ल्स टी मेटकॉफ ने प्रत्येक भारतीय ग्राम को ही ‘‘स्वावलम्बी लघु गणराज्य’’ कहा है। अनादिकाल से ही भारत उन्नत कृषि व उद्यमिता का केन्द्र रहा है। ब्रिटिष आर्थिक इतिहास लेखक एंगस मेडिसन के अनुसार 15वीं सदी तक तो विष्व के कुल उत्पादन में भारत का 34 प्रतिशत योगदान रहा है। इसी कारण मत्स्य पुराण सहित विविध प्राचीन ग्रन्थों में भारत को ‘‘विश्व का भरण-पोषण करने में सक्षम राष्ट्र‘‘ कहा गया है। प्राचीन काल से हुए देष के अनेक विभाजनों के बाद भी आज भारत के पास सर्वाधिक 18 करोड़ हेक्टर कृषि योग्य भूमि है। विष्व की कार्यषील आयु की सर्वोच्य जन शक्ति भारत में है। विश्व के सर्वाधिक सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों से युक्त राष्ट्र होने से भारत आज विष्व में सर्वाधिक द्रुत आर्थिक वृद्धि दर वाली अर्थव्यवस्था है। देष में आज 9 करोड़ सूक्ष्म लघु व मध्यमाकार उद्यम हैं। विष्व में सर्वाधिक जनसंख्या व सर्वाधिक युवा-षक्ति युक्त देष होने से आज कार्य करने की आयु के सभी व्यक्तियों को यथोचित आय-युक्त कार्य या रोजगार में लगाया जाना परम आवश्यक है। 

रोजगार - भारतीय पारंपरिक चिंतन का आधार

भारत अनादि काल से विकेन्द्रित उद्यमों का केन्द्र व पूर्ण रोजगार युक्त देश रहा है। प्राचीन काल में भी हमारे देष में सम्भूव समुत्थान, सम्वितान आदि कई नामों से सहकारी व साझेदारी व्यवसाय भी रहे हैं। आज भी भारत विष्व का तीसरा प्रमुख स्टार्ट-अप का परिस्थितिकी तंत्र है। रामायण काल में राजा दषरथ के अर्थषास्त्री रहे उपाध्याय सुधन्वा से लेकर चाणक्य तक सभी प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने कार्य करने में सक्षम प्रत्येक व्यक्ति को वृत्ति युक्त किए जाने पर बल दिया है। कार्य करने में सक्षम प्रत्येक व्यक्ति को वृत्ति अर्थात रोजगार में संलग्न करने के सम्बन्ध में ‘उपाध्याय सुधन्वा का कथन कि राज्य में निवासरत व कार्य करने में सक्षम प्रत्येक व्यक्ति को यथोचित कार्य में संलग्न करना, उस कार्य से उसे समुचित आय की प्राप्ति होना, उस आय का सतत विवर्धन और उसके सम्यक वितरण परम आवष्यक है। अर्थषास्त्र के इसी प्राचीन सिद्धान्त का प्रतिपादन कर चाणक्य ने भी लिखा है कि मनुष्यों को वृत्ति अर्थात रोजगार से युत करना ही अर्थषास्त्र है (मनुष्याणां वृत्ति अर्थः)। संस्कृत शब्द वृत्ति का अर्थ रोजगार होता है।

स्वावलम्बन से 400 खरब डालर की अर्थव्यवस्था बनना संभव

भारत की वर्तमान 142 करोड़ जनसंख्या आज सम्पूर्ण यूरोप के 50 देषों व लेटिन अमेरिका के 26 देष अर्थात विष्व के कुल 76 देषों की सम्मिलित जनसंख्या से अधिक है। उपरोक्त 142 करोड़ जनसंख्या में आज 90 करोड़ लोग 15-64 वर्ष के बीच कार्यषील आयु सीमा में हैं। वर्ष 2030 तक कार्यषील आयु की जनसंख्या 100 करोड़ हो जाएगी। यह विष्व की कार्यषील आयु की जनसंख्या का 24.3 प्रतिषत होगा।

भारतीय उद्योग परिसंघ व अन्य कई अर्थषास्त्रियों के आकलनों के अनुसार यदि देष की सम्पूर्ण कार्यषील आयु की जनसंख्या रोजगार युक्त हो जाये तो भारत 40 ट्रिलियन डालर अर्थात 400 खरब डालर या 32,800 खरब रूपये की अर्थव्यवस्था बन सकता है। वर्तमान में भारत की सकल राष्ट्रीय आय अर्थात सकल घरेलू उत्पाद लगभग 3.2 ट्रिलियन डालर है। इस प्रकार कार्यषील आयु के सभी लोगों को रोजगार या स्वरोजगार में यथोचित रूप से नियोजित कर लेने से भारतीय अर्थव्यवस्था 2047 तक 12 से 13 गुना विस्तार पा सकेगी। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के छः दषक पुराने इस वक्तव्य कि ‘‘हर हाथ को काम‘‘ की आज भी वही सार्थकता है। सर्वाधिक बेरोजगारी आज षिक्षित वर्ग में है। उद्यमिता ही बेरोजगारी निवारण का साधन बन सकती है। इसलिए षिक्षा के साथ उद्यमित विकास को जोड़ा जाना आवष्यक है।

सूक्ष्म व लघु उद्यम 

देष में आज विष्व के सर्वाधिक 9 करोड़ सूक्ष्म व लघु उद्यम हे। कार्यषील आयु के सभी व्यक्तियों को कार्य में संलग्न करने के लिए सूक्ष्म व लघु उद्यम ही प्रभावी साधन हैं। भाव जागरण, उद्यमिता प्रषिक्षण और उचित मार्गदर्षन व सहकार-पूर्वक युवाओं को अपना काम स्वयं आरम्भ करने की दिषा में अग्रसर करने से ही यह संभव होगा। इस दृष्टि से कार्यषील आयु के प्रत्येक व्यक्ति को अपना उद्यम प्रारम्भ करने की दिषा में प्रेरित किया जाना आवष्यक है।

ग्रामोद्योग व ग्राम स्वावलम्बन

ग्रामीण कृषि उत्पादों व अन्य वस्तुओं के मूल्य संवर्द्धन हेतु ग्रामोद्योगों की स्थापना से ही देष में व्यापक समृद्धि सम्भव हैं। यदि किसान गेहूँ की बिक्री के स्थान पर उससे आटा, मैदा, सूजी, बिस्किट, ब्रेड, केक, पेस्ट्री आदि के उत्पादन हेतु ग्रामोद्योग की स्थापना करेंगे, तब ही उनकी प्रगति सम्भव है। इसी प्रकार सभी कृषि उत्पादों व लघु वन उपज आदि के मूल्य संवर्द्धन के लिए ग्रामीण उद्योग लगाए जाने से ग्राम रोजगार बढ़ेगा व गांवों में समृद्धि आएगी। इस हेतु ग्रामीण समुदायों को उद्यमिता व उत्पादन कौषल में प्रषिक्षित किया जाना होगा। देष की समग्र कृषि योग्य 18 करोड़ हेक्टर भूमि में सिंचाई के साथ भारत विष्व की दो तिहाई जनसंख्या की खाद्य आपूर्ति कर सकता है। विष्व के सर्वाधिक जैविक कृषिकर्त्ता किसान भारत में हैं। ऐसे में देष के ग्रामीण युवा जैविक कृषि उपज के मूल्य सवंद्धित उत्पाद तैयार कर उनका निर्यात कर सकते है। रसायन रहित जैविक खाद्य उत्पादों की पूरे विष्व में भारी मांग है। इसलिए देष में फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेषन की स्थापना की गति बढ़ाई जानी चाहिए। गैर कृषि ग्रामीण उद्यमों के लिए कृषि से इतर उत्पादक संगठनों के भी द्रुत प्रवर्तन की आवष्यकता है। 

स्टार्टअप

भारत विष्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप ईकोसिस्टम है। देष में 50 से अधिक स्टार्ट-अप संवर्द्धन की शासकीय योजनाएँ भी हैं। देष के युवा नई अवधारणा आधारित अनेक व्यवसाय कर उन्हें यूनिफार्म में संवर्धित कर सकते हैं। जब किसी स्टार्टअप का बाजार पूंजीकरण 1 अरब डालर पार कर जाता है तो वह यूनिकॉर्न कहलाता है। देष में आज 108 यूनिकॉर्न हैं जिनका बाजार मूल्य 345 अरब डालर है।

स्वावलम्बी कैसे बनें

भारत जैसे विषाल देष में जनसंख्या के अनुपात में उपलब्ध नौकरियों संख्या अत्यन्त सीमित है। आज केवल 7.3 प्रतिषत जनता आज सरकारी या किसी सुसंगठित प्रतिष्ठान में नियोजित है। शेष सभी लोगों को अपने स्तर पर किसी स्वरोजगार में लगना अर्थात अपन स्वयं का कोई उद्यम स्थापित कर स्वावलम्बी बनना चाहिए।

किसी स्वयं सहायता समूह के माध्यम से आगे बढ़ सकता है। सूक्ष्म वित्त के माध्यम से या प्रधानमंत्री मुद्रा के माध्यम में से किसी लघु व्यापारिक, उत्पादन, सेवा सम्बन्धी व्यवसाय की स्थापना करके कोई भी स्वावलम्बी बन सकता है। स्टार्ट-अप प्रारम्भ करके, आगे बढ़ा जा सकता है। कृषक उत्पादक संगठन, गैर कृषि उत्पादक संगठन बना कर, कोई सहकारी संस्थान बना कर या और भी किसी प्रकार से व्यवसाय प्रारम्भ करके समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। अपना काम प्रारम्भ कर व्यक्ति स्वयं के लिए अर्थ उपार्जन के साथ अन्य लोगों के लिए भी अन्य लोगां को भी उसमें नियोजित कर रोजगारदाता बन सकते हैं।

इस संबंध में उचित मार्गदर्षन प्राप्त करने हेतु स्वावलम्बी भारत अभियान द्वारा स्थापित किसी रोजगार सृजन केन्द्र, जिला उद्योग केन्द्र, खादी ग्रामोद्योग आयोग आदि की सहायता व मार्गदर्षन प्राप्त कर सकते हैं। स्वावलम्बी भारत अभिमान के अन्तर्गत देष में बड़ी संख्या में जिला रोजगार सृजन केन्द्रों की स्थापना हुई है। ये जिला रोजगार सृजन केन्द्र युवाओं में उद्यमिता का भाव जागरण करने, उद्यमिता विकास का प्रषिक्षण देने और नवीन उद्यम स्थापित करने के कार्य में सहयोग प्रदान करने का कार्य कर रहे हैं। स्वावलम्बी भारत अभियान के ही अन्तर्गत देष में 45 प्रान्तों की रचना कर, ऐसे प्रत्येक प्रान्त में और सभी जिलों में स्वावलम्बी भारत अभियान की टोलियाँ, उद्यमिता विकास के कार्य में पिछले एक वर्ष से सक्रिय है। देष भर के आज 30 से अधिक राष्ट्रव्यापी संगठन इस अभियान को दिषा व गति प्रदान कर रहे हैं। देष में प्रत्येक कार्य करने की आयु का व्यक्ति रोजगार युत हो, इस महान लक्ष्य के साथ आज स्वावलम्बी भारत अभियान सक्रिय है। 

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