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तेल की कीमतों में उछाल से महंगाई बढ़ने की आशंका

रूस-यूक्रेन के बीच पिछले दो सालों से चल रहे युद्ध के दौरान ही इसराइल-हमास के बीच युद्ध के गहराने की आशंका के बीच महंगाई नियंत्रण के लिए कारगर रणनीतिक प्रयास बहुत जरूरी है। - अनिल तिवारी

 

इसराइल और हमास के बीच छिड़े युद्ध का असर अब दुनिया भर में दिखने लगा है। इस जंग से भारत की भी मुसीबतें बढ़ सकती हैं क्योंकि इसराइल-हमास युद्ध के कारण कच्चे तेल उत्पादक देशों द्वारा तेल उत्पादन में कटौती के चलते तेल की कीमतें लगातार ऊंचे स्तर की ओर जा रही है वहीं वैश्विक खाद्यान्न संकट के मद्देनजर खाद्य महंगाई बढ़ने की  आशंका भी गहरा रही है। हालांकि केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम मंत्रालय द्वारा जारी हालिया आंकड़ों के मुताबिक देश में थोक एवं खुदरा महंगाई के सूचकांक, महंगाई में कमी का संकेत दे रहे हैं लेकिन चुनौती पूर्ण वैश्विक भू-राजनीतिक एवं आर्थिक कठिनाइयों के दौर में महंगाई के बढ़ने की आशंका अधिक है।

मालूम हो कि युद्ध के चलते तेल उत्पादक देशों द्वारा की जा रही कटौती के कारण कच्चे तेल की आपूर्ति घटने और उसकी कीमतों के ऊपर जाने की संभावना बढ़ती जा रही है। कच्चे तेल की कीमतें इस साल लगभग 28 प्रतिशत तक बढ़ गई है। वैश्विक बाजार में ब्रेंट क्रूड वायदा 94 डालर प्रति बैरल तक पहुंच चुका है, जिसके युद्ध न रुकने की स्थिति में जल्द ही 100 डॉलर प्रति बैरल होने की बात कहीं जा रही है। तेल के दाम बढ़ते हैं तो भारत की मुसीबतें भी बढ़ सकती हैं।

सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2022-23 में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत 10.02 प्रतिशत बढ़ी जिसके कारण पेट्रोल में 13.4 प्रतिशत, डीजल में 12 प्रतिशत और एयरक्राफ्ट टरबाइन फ्यूल में 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वर्ष 2022-23 में घरेलू उत्पादन में 1.7 प्रतिशत की गिरावट आने से आयातित कच्चे तेल पर हमारी निर्भरता बढ़कर 87.8 प्रतिशत हो गई है। रियायती रूसी आपूर्ति के बावजूद हमारा वार्षिक कच्चे तेल का आयात 158 बिलियन डॉलर था जो पिछले वर्ष की तुलना में 31 प्रतिशत ज्यादा है। मात्रा के लिहाज से कच्चे तेल का आयात 9.4 प्रतिशत बढ़कर 232.4 मिलियन मेट्रिक टन हो गया। पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन में 4.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई,और उनके आयात में 11.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई लेकिन निर्यात में 4.1 प्रतिशत की गिरावट आई।

इसराइल हमास के बीच जारी जंग भारत की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है क्योंकि युद्ध के चलते महंगाई बढ़ सकती है। भारत अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत से अधिक कच्चा तेल आयात करता है। अगर युद्ध पूरे पश्चिम एशिया में फैल गया तो कच्चे तेल की आपूर्ति अवश्य बाधित होगी जिसके कारण तेल की कीमतों में और अधिक तेजी आएगी। भारत में पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ने का सीधा मतलब है रोजमर्रा की चीजों में महंगाई का बढ़ना। चूंकि महंगाई मध्यम वर्ग को अधिक प्रभावित करती है। इसलिए अगले साल लोकसभा चुनाव को देखते हुए महंगाई को बांधे रखना सरकार के लिए एक कठिन चुनौती की तरह है। पिछले दिनों विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में भी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी महंगाई के बढ़ाने की चुनौती प्रस्तुत की गई है। रिपोर्ट में वर्ष 2023-24 में भारत की खुदरा मुद्रा स्फीति 5.9 प्रतिशत रहने का अनुमान किया गया है। पूर्व में प्रस्तुत महंगाई के अनुमान से नया अनुमान अधिक बताया गया है। सितंबर महीने में रासायनिक उत्पादों, खनिज, तेल, कपड़ा, बुनियादी धातुओं और खाद्य उत्पादों की कीमतों में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई थी। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अनुसार जुलाई 2023 में जो खुदरा महंगाई दर 15 महीने के उच्चतम स्तर 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, वह अगस्त 2023 में घटकर 6.8 प्रतिशत और सितंबर में 5.02 प्रतिशत के स्तर पर आ गई। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में यह कमी अनाज, सब्जी, परिधान, फुटवियर, आवास एवं सेवाओं की कीमतों में आई गिरावट की वजह से हुई है। बीते 6 अक्टूबर को भारतीय रिजर्व बैंक ने लगातार चौथी बार नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट) को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखने का निर्णय लिया है।

महंगाई को लेकर चुनौतियां लगातार बड़ी हो रही हैं। पिछले माह ज्यादातर समय कच्चे तेल का दाम 90 डॉलर प्रति बैरल से थोड़ा ऊपर रहा, अब यह और बढ़कर 94 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गया है। दुनिया भर के बाजारों में गेहूं, दाल और चावल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। चीनी की कीमतें 12 साल की रिकॉर्ड ऊंचाई पर है। अक्टूबर महीने में त्यौहारी मांग बढ़ने से दालों के दाम भी ऊंचे हुए हैं। 18 अक्टूबर 2023 को सरकार के द्वारा प्रकाशित खाद्यान्न उत्पादन आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022-23 में गेहूं का उत्पादन अनुमानित लक्ष्य से 20 लाख टन घटकर 11.5 करोड़ टन, दालों का उत्पादन 2.7 करोड़ टन घटकर 2.6 करोड़ टन और चावल का उत्पादन पिछले वर्ष के 13.94 करोड़ टन से घटकर 12.98 करोड़ टन होने का अनुमान है। हालांकि केंद्र की सरकार भारतीय रिजर्व बैंक के साथ मिलकर महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सार्थक प्रयास के साथ आगे बढ़ रही है। खास तौर से गेहूं के दाम नियंत्रण के लिए खुले बाजार में मांग की पूर्ति के अनुरूप इसकी अधिक बिक्री जरूरी है। आटा मिलों को अधिक मात्रा में गेहूं दिया जाना चाहिए। साथ ही गेहूं के शुल्क मुक्त आयत की अनुमति दिए जाने की भी जरूरत है। देश में जमाखोरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई में सरकार को और तेजी लानी होगी। अतिरिक्त नगदी की निकासी पर रिजर्व बैंक को खासा ध्यान देना होगा।सरकार द्वारा खुदरा महंगाई के नियंत्रण के लिए रणनीतिक रूप से एक ऐसी मूल्य नियंत्रण समिति का गठन करने पर विचार करना होगा जो बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव को देखते हुए कीमतों के अनियंत्रित होने से पहले ही मूल्य नियंत्रण के कारगर कदम उठाने के लिए सदैव तत्पर दिखे। रूस-यूक्रेन के बीच पिछले दो सालों से चल रहे युद्ध के दौरान ही इसराइल-हमास के बीच युद्ध के गहराने की आशंका के बीच महंगाई नियंत्रण के लिए कारगर रणनीतिक प्रयास बहुत जरूरी है। उम्मीद की जा रही है कि आगामी चुनाव को देखते हुए सरकार देश के मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग को महंगाई की मार से बचाने के लिए ठोस कार्य नीति के साथ आगे आएगी। 

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