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डिजिटल पेमेंट में विदेशी वर्चस्व, भारत के लिए खतरे की घण्टी 

प्रधानमंत्री मोदी के सफलतम अभियान में से एक डिजिटल इण्डिया को यूँ विदेशी कम्पनियों के चंगुल में नहीं छोड़ा जाना चाहिये। — मुनिशंकर पाण्डेय

 

रुस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जब अमेरिका ने रुस पर आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा की, तब मास्टर कार्ड, वीजा सहित कई दिग्गज कंपनियों ने रुस से अपने कारोबार को समेट लिया। उन्होंने रुस के लोगों से जो भी सेवा प्रदाता के रुप में वायदे किये थे वो सब तत्काल प्रभाव से निलम्बित कर दिये। इस तरह से एक बार फिर मल्टीनेशनल कंपनियों के व्यावसायिक उत्तरदायित्व और स्वदेशी एवं आत्मनिर्भरता पर एक बहस आरम्भ हो गयी है। इसी आलोक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न स्थितियों से निपटने के लिए आत्मनिर्भरता सबसे उपयुक्त रणनीति है। 

ज्ञातव्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी विशेषता इसका अपना बाजार है। देश के 130 करोड़ के लोगों पर दुनिया भर की कंपनियां एक बाजार के रुप में ही देखती है। भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) के आकड़ों की माने तो वर्तमान में भारत में 500 मिलियन स्मार्टफोन उपभोक्ता, 1.2 बिलियन आधार और एक बिलियन मोबाईल फोन उपभोक्ता हैं। इन आकडों के आधार पर ऐसा अनुमान है कि आगामी तीन से पाँच वर्षों में भारत में यूपीआई लेन-देन वर्तमान की तुलना में पाँच गुना हो सकता है। अगर केवल जून 2022 की बात करें तो 5.86 बिलियन ट्रान्जेक्शन से 10 लाख करोड़ से ज्यादा का लेन देन हुआ है। भारत के आत्मनिर्भरता अभियान के समक्ष सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह है कि डिजिटल लेन देन में विदेश की दो कंपनियों वॉलमार्ट के स्वामित्व वाली फोन-पे और गूगल-पे की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत से भी ज्यादा है। इस तरह की विदेशी नियंत्रण की एकाधिकारी प्रवृत्ति भारत के आम लोगों के लिए कदापि अच्छा नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के सफलतम अभियान में से एक डिजिटल इण्डिया को यूँ विदेशी कम्पनियों के चंगुल में नहीं छोड़ा जाना चाहिये।  

उल्लेखनीय है कि यूपीआई को विदेशी कंपनियों द्वारा खतरनाक रूप से नियंत्रित किया जाना और एनपीसीआई द्वारा मार्केट कैप पर किसी भी समय सीमा का विस्तार स्थिति को और वीभत्स कर सकता है। 

जब से भारत में यूपीआई की शुरुआत हुई है, तब से पेमेंट मोड एक बड़ी हिट बन गया है। जून, 2022 में  5.86 बिलियन से अधिक लेनदेन के साथ, फ्रांस में अपने विस्तार के साथ वैश्विक मान्यता प्राप्त करने, यूपीआई भारत में डिजिटल भुगतान का एक प्रमुख हिस्सा बन गया है। हालांकि यह आश्चर्यजनक है कि यूपीआई के भारतीय नवाचार को दो विदेशी कंपनियों - यूएस-आधारित वॉलमार्ट के स्वामित्व वाले फोनपे और गूगलपे द्वारा नियंत्रित किया जाता है। जबकि आईटी और स्टार्टअप्स के क्षेत्र में दूनिया के शीर्ष देशों में भारत का नाम शुमार है।   

उल्लेखनीय है कि नवंबर 2020 में, एनपीसीआई  ने एक साहसिक कदम ने घोषणा की थी कि यूपीआई लेनदेन पर एक मार्केट कैप होगा। इसे भारत के दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखते हुए एक सराहनीय कदम के रूप में स्वागत भी किया गया था, क्योंकि इस नियम से विदेशी कंपनियों फोन पे और गूगल पे के एकाधिकारी प्रवृत्ति को रोकने में सहायता मिलती। इसका मतलब था कि थर्ड पार्टी ऐप्स की यूपीआई में 30 प्रतिशत से अधिक का मार्केट शेयर नहीं हो सकती है। यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि भारतीय फिनटेक, किसी एक खिलाड़ी द्वारा नियंत्रित नहीं रहेगा जिससे जब भी वो खिलाड़ी विफल हो तो पूरा यूपीआई व्यवस्था ही न गड़बड़ हो जाये। 

भारतीय रिजर्व बैंक ने भी बार-बार भारतीय फिनटेक पारिस्थितिकी तंत्र पर बिगटेक और विदेशी कंपनियों के नियंत्रण के बारे में बात की है। इससे पहले मास्टरकार्ड और वीज़ा जैसी कंपनियों ने भुगतान उद्योग पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया था। हालाँकि, भारत के परिवर्तनकारी नियमों और देश में व्यापार करने में आसानी ने भारतीय कंपनियों को देश में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम बनाया है।

वर्तमान में, फोन पे और गूगल पे जैसी विदेशी कंपनियां जो थर्ड-पार्टी एग्रीगेटर हैं, वे भारतीय रिजर्व बैंक के दायरे में भी नहीं आते हैं। इन विदेशी कम्पनियों के पास न तो लाइसेंस है और न ही उन पर सीधे तौर पर बैंकिग क्षेत्र के दिशा-निर्देश लागू होते है। वे केवल अपने प्रायोजित बैंकों की विश्वसनीयता पर काम कर रहे हैं, जो सभी जिम्मेदारी वहन करते हैं। भुगतान प्रणाली ऑपरेटरों (पीएसओ) भारतीय रिजर्व बैंक के नियम सीधे इन ऐप ऑपरेटरों पर लागू नहीं होते हैं। उन्हें अपनी सिस्टम ऑडिट रिपोर्ट (एसएआर) साल में केवल एक बार जमा करनी होती है। यह भारत में यूपीआई में 80 प्रतिशत से अधिक बाजार हिस्सेदारी को नियंत्रित करने के बाद भी है।

एनपीसीआई के बारे में रिपोर्टों के दौर में संभवतः यूपीआई मार्केट कैप की समय सीमा जनवरी 2023 से आगे बढ़ा दी गई है, इससे इन कंपनियों को भारतीय बाजार पर नियंत्रण रखने और असंतुलन पैदा करने के लिए अधिक समय मिलता है। यह भारतीय फिनटेक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है, जिसमें भारतीय कंपनियों को सबसे आगे होना चाहिए और एकाधिकार नहीं होना चाहिए।

भारतीयों के सर्वोत्तम हितों को सुनिश्चित करने और उनकी रक्षा करने के लिए फिनटेक पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन लाना और यूपीआई बाजार में एकाधिकार को तोड़ना महत्वपूर्ण है। थर्ड-पार्टी ऐप्स को भुगतान प्रणाली ऑपरेटर के रूप में आरबीआई के प्रत्यक्ष नियंत्रण के तहत आना चाहिए, जिसमें सीईआरटी और आरबीआई ऑडिट के माध्यम से भारतीय नियमों और प्रक्रियाओं का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।       

 

(लेखक, नीति विश्लेषक एंव आर्थिक मामलों के जानकार है)

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