सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मुफ्तखोरी के लालच पर प्रश्नचिन्ह लगाने के बाद आप जैसे राजनैतिक दल मुफ्त बिजली-पानी को औचित्यपूर्ण ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। — डॉ. अश्वनी महाजन
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की सरकारों द्वारा विकास, गरीबी निवारण, बेहतर सामाजिक सेवाओं, पेयजल, सड़क, रेल निर्माण आदि पर जोर रहा। लेकिन अब कुछ राजनीतिक दल मुफ्त बिजली, पानी, यातायात, मुफ्त टेलीविजन और यहां तक कि मंगलसूत्र तक देने के वादे करने लगे हैं और सरकार की खराब आर्थिक स्थिति और बढ़ते कर्जां के बावजूद उन वादों को कार्यान्वित करने के दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं।
गौरतलब है कि दिल्ली प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से, गोवा के बाद देश दूसरा सबसे समृद्ध प्रांत है। इसके चलते दिल्ली का राजस्व भी काफी अधिक होता है। दिल्ली में बड़ी संख्या में प्रवासी भी रहते हैं, जो रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों से आकर दिल्ली में बसे हुए हैं। उनकी आर्थिक स्थिति बहुत बेहतर नहीं है, जिसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि महामारी के कारण लॉकडाउन लगते ही बड़ी संख्या में तुरंत अपने घरों की ओर रवाना हो गए थे। बड़ी संख्या में पैदल, साइकिल पर अथवा बसों में मात्र एक झोले के साथ जाने के दृश्य आज भी मन को द्रवित करने वाले हैं। अधिकांश प्रवासी मजदूर दिहाड़ीदार हैं, अथवा छोटा-मोटा व्यवसाय करने वाले प्रवासी हैं। एक ही कमरे में बड़ी संख्या में वे रहते हैं, जहां मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव होता है। ऐसे में अधिकांशतः उनके परिवारों के आने का तो सवाल ही नहीं होता।
दिल्ली में ऐसे प्रवासी मजदूरों की संख्या 20 लाख से कम नहीं। जो मजदूर अपने परिवारों को साथ ले आते हैं, वे भी अत्यंत दयनीय अवस्था में दिल्ली में रह रहे हैं। उनके और उनके परिवारों के लिए स्कूल, कालेज एवं अन्य शिक्षा संस्थानों की जरूरत है। साथ ही साथ बेहतर जल-मल व्यवस्था और बड़ी संख्या में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की भी दरकार है। उनकी आवाजाही के लिए सड़कों, पुलों, आदि की भी आवश्यकता है। लेकिन इन सब कार्यों के लिए भारी खर्चे की जरूरत होती है। देखा जा रहा है कि खर्च के अभाव में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार विकास और रखरखाव के लिए भी धन जुटा नहीं पा रही है।
मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा 2015 में सत्ता संभालने के बाद आज तक दिल्ली सरकार कोई नया स्कूल, कालेज, अस्पताल, फ्लाईओवर आदि बना नहीं पाई। ऐसे में गरीब की दुर्दशा का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। सड़कों, जल-मल व्यवस्था की ठीक प्रकार से देखभाल भी नहीं हो पा रही। इसके लिए धनाभाव मुख्य कारण है। ऐसा नहीं है कि दिल्ली का राजस्व कम है, वास्तव में दिल्ली में प्रति व्यक्ति राजस्व शेष भारत से काफी अधिक है और लगातार बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन उस राजस्व को मुफ्त बिजली, पानी और यातायात में खर्च कर देने के कारण आवश्यक नागरिक सुविधाओं हेतु धनाभाव होता जा रहा है।
कितना राजस्व-कितनी मुफ्तखोरी
2021-22 के लिए दिल्ली का कुल राजस्व 53070 करोड़ रुपए अनुमानित है। जो सभी राज्यों के राजस्व का 3 प्रतिशत है। 2019-20 में यह 47136 करोड रुपए था और 2015-16 में यह मात्र मात्र 34996 करोड रुपए ही था। लेकिन इस बढ़ते राजस्व के साथ-साथ दिल्ली सरकार का मुफ्त बिजली, पानी, यातायात पर खर्च भी बढ़ता गया। मुफ्त बिजली पर खर्च वर्ष 2015-16 में 1639 करोड रुपए था जो बढ़ता हुआ 2016-17 में 1807 करोड़ रुपए, 2017-18 में 1736 करोड़ रुपए, 2019-20 में 2423 करोड रुपए, 2020-21 में 2846 करोड़ रूपये और 2021-22 में 2968 करोड़ रुपए पहुंच गया है। वर्ष 2022-23 के लिए विद्युत विभाग ने दिल्ली सरकार से इस बिजली सब्सिडी हेतु 3200 करोड़ रूपये की मांग की है। यानि समझा जा सकता है कि दिल्ली सरकार द्वारा बिजली मुफ्त करने के नाम पर बजट पर बोझ बढ़ता जा रहा है और 2015-16 से लगभग दोगुना होता हुआ 2022-23 में यह 3200 करोड़ रूपये तक पहुंच चुका है।
पानी के बिलों को शून्य करने की कवायद में दिल्ली जल बोर्ड का घाटा और कर्ज दोनों बढ़ रहे हैं। केजरीवाल सरकार के पहले तीन साल में दिल्ली जल बोर्ड का घाटा 2015-16 में 220.19 करोड़ से बढ़ता हुआ 2018-19 में 663 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका था। ‘कैग’ की रपट के अनुसार 1998-99 में जहां 26620 करोड़ रुपए दिल्ली जल बोर्ड को उधार दिए गए थे जिनमें से अभी तक मात्र 351 करोड रुपए ही वापस लौटाये गए थे और 31 मार्च 2018 तक 26269 करोड़ रुपए ऋण बकाया था। इस बीच दिल्ली सरकार ने पिछले 5 वर्षों में दिल्ली जल बोर्ड को 41000 करोड रुपए ऋण के रूप में दिए हैं। दिल्ली जल बोर्ड की बदतर स्थिति का अंदाजा उसके विकास कार्यों में धीमेपन और लचर जल व्यवस्था से लगाया जा सकता है। माना जाता है कि दिल्ली जल बोर्ड के दिल्ली सरकार के अधीन होने और पानी मुफ्त करने की कवायद में दिल्ली जल बोर्ड की वित्तीय हालत बहुत खराब हो चुकी है। दिल्ली जल बोर्ड द्वारा अनियमित कालोनियों में जल कनेक्शन में धीमापन सीवर की लचर स्थिति उसी कारण है। विपक्षी दल हालांकि दिल्ली जल बोर्ड में कथित रूप से भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाते रहे हैं।
इसके अतिरिक्त महिलाओं को मुफ्त दिल्ली परिवहन निगम की बसों में यात्रा एक अन्य मुफ्तखोरी की स्कीम दिल्ली सरकार द्वारा चलाई गई है। सरकार द्वारा लोगों को मुफ्त की स्कीमों के माध्यम से हजारों करोड रुपए का घाटा होता है। स्वभाविक है कि सीमित संसाधनों के चलते इस मुफ्तखोरी की नीति के चलते सरकारी राजस्व पर दबाव बनता है और कई आवश्यक खर्चों को टालना पड़ जाता है।
वर्तमान में सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी ने दिल्ली को 20 नए कालेज देने, फ्री वाई-फाई उपलब्ध कराने, 20000 सार्वजनिक टॉयलेट बनवाने, महिला सुरक्षा फोर्स बनाने, 3 लाख सीसीटीवी कैमरे लगाने, स्वास्थ सुविधाओं के विस्तार, 8 लाख नौकरियों के सृजन, दिल्ली कौशल मिशन द्वारा हर साल एक लाख युवकों को कौशल प्रशिक्षण समेत 69 ऐसे वायदे किए थे, जो या तो केवल वादे रह गए या जिनमें प्रगति अत्यंत धीमी रही। समझा जा सकता है कि इन वादों को पूरा न कर पाने के पीछे मुख्य कारण धनाभाव है। गौरतलब है कि ‘आप’ सरकार से पहले, 1999-2000 और 2014-15 के बीच 15 सालों में पूंजीगत व्यय 510.5 करोड़ रुपये से बढ़कर 7430 करोड़ रुपये हो गया (यानि प्रति वर्ष वृद्धि 19.6 प्रतिशत रही), जो कि आप सरकार के पहले 5 साल में 7430 करोड़ रुपये से बढ़कर मुश्किल से 11549 करोड़ रुपये ही पहुँची (यानि वार्षिक वृद्धि मात्र 9.2 प्रतिशत रह गई)।
यदि कहा जाए कि सरकारी खजाने से पैसा देकर बिजली को ‘गरीबों’ के लिए मुफ्त अथवा कम कीमत पर उपलब्ध कराया जा रहा है तो यह सही नहीं होगा। वर्ष 2021-22 में दिल्ली में जहां चालू कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय 4,01,982 रूपये प्रति वर्ष है, वहां 54.5 लाख बिजली उपभोक्ताओं में से 43.2 लाख लोगों को या तो मुफ्त अथवा आधी कीमतों पर बिजली उपलब्ध कराई जा रही है, जिसके कारण नागरिक सुविधाएं बुरी तरह से प्रभावित हो रही है और सरकार पर कर्ज बढ़ रहा है, तो उसे औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता। यही नहीं 5.3 लाख घरों को प्रति माह 20 हजार लीटर पानी भी मुफ्त में उपलब्ध कराया जा रहा है। मुफ्त जल उपलब्ध कराये जाने के कारण दिल्ली जल बोर्ड़ की बदतर हालत छुपी हुई नहीं है।
दिल्ली में मुफ्त बिजली, पानी के लालच से राजनैतिक लाभ उठाने वाली, इस आम आदमी पार्टी ने अब दूसरे राज्यों में भी इसी प्रकार का लालच देना शुरू किया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस प्रकार के लालच पर प्रश्नचिन्ह लगाने के बाद यह राजनैतिक दल मुफ्त बिजली-पानी को औचित्यपूर्ण ठहराने की कोशिश कर रहा है। समझना होगा कि मुफ्तखोरी की यह राजनीति देश की अर्थव्यवस्था और शासन व्यवस्था दोनों के लिए अमंगलकारी है, जिसे आम सहमति से रोकने की जरूरत है।ु