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गंगे! तव दर्शनात्मुक्तिः

“नमामि गंगे“ वाक्य गंगा के प्रति व्यक्ति एवं राष्ट्र की सहज रूप से उसके प्रति प्रतिबद्धता सम्मान एवं आस्था व्यक्त करता है। वस्तुतः नमामि गंगे परियोजना का लक्ष्य गंगा को बचाना है। — डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

 

गंगा कार्य योजना से लेकर नमामि गंगे तक के लगभग 35 सालों से अधिक के समय में गंगा में पानी बहुत बहा लेकिन गंगा सफाई के नाम पर चलाई गई सभी परियोजनाओं के नतीजे सिफर ही रहें। अपने दर्शन मात्र से मानव जीवन को मुक्ति प्रदान करने वाली मां गंगा आज भी अपनी मुक्ति के लिए एक अदद भगीरथ की राह देख रही है। गंगा में निरंतर कम हो रहे जल के कारण माघ मेला में कुंभ कल्पवासियों के लिए उच्च न्यायालय ने प्रतिदिन 3700 क्यूसिक पानी छोड़ने का आदेश दिया है। न्यायालय का हालिया हस्तक्षेप बताता है कि गंगा मैली की मैली ही है। 

यूं तो मां गंगा की चर्चा येन केन प्रकारेण वर्ष पर्यंत होती रहती है, किंतु माघ मास में प्रयागराज में आयोजित होने वाले माघ मेले के समय यह चर्चा मुखर होकर सामने आती है। गंगा में निरंतर कम हो रहे जल तथा बढ़ रहे प्रदूषण को दृष्टिगत रखते हुए कल्पवासियों के स्नान हेतु गंगा में पर्याप्त स्वच्छ जल की उपलब्धता न होने के कारण माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में जनहित याचिका दाखिल कर गंगा में पर्याप्त जल प्रवाहित करने तथा उसे प्रदूषण मुक्त किए जाने की मांग की गई, जिस पर माननीय उच्च न्यायालय ने प्रतिदिन 3700 क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया है। सुनवाई के दौरान यह तथ्य उभरकर सामने आया कि प्रयागराज में 16 नालों के पानी के शुद्धिकरण के लिए लगाए गए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। कई प्लांट बंद हो चुके है। नालों के माध्यम से शहर के अधिकांश मोहल्लों का पानी गंगा में जा रहा है। पानी की बायोरेमेडीएशन विधि से शुद्धिकरण करने की व्यवस्था बनाई गई है किंतु यह व्यवस्था भी कारगर नहीं है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और बायोरेमेडीएशन विधि से शुद्ध किया जाने वाला पानी बिना उपयुक्त शुद्धता प्राप्त किए गंगा में प्रवाहित हो रहा है। 

वर्ष 2014 में गंगा को प्रदूषण मुक्त कर उसे अविरल प्रवाह प्रदान करने एवं उसे मूर्त रूप देने के लिए नमामि गंगे नाम से एक स्वतंत्र मंत्रालय का गठन कर गंगा की मुक्ति, शुद्धि के लिए भारत सरकार द्वारा ठोस कदम उठाने का कार्य किया गया है। नमामि गंगे का शाब्दिक अर्थ है-गंगा को नमस्कार करता हूं या गंगा को प्रणाम करता हूं। “नमामि गंगे“ वाक्य गंगा के प्रति व्यक्ति एवं राष्ट्र की सहज रूप से उसके प्रति प्रतिबद्धता सम्मान एवं आस्था व्यक्त करता है। वस्तुतः नमामि गंगे परियोजना का लक्ष्य गंगा को बचाना है। इस योजना का अधिकारिक नाम एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन परियोजना है। इस परियोजना हेतु वर्ष 2014-15 के बजट में 2037 करोड़ रुपए की आरंभिक राशि की व्यवस्था कर योजना को प्रारंभ किया गया था। परियोजना देश के 5 राज्यों तक फैली हुई है, जिनमें उत्तराखंड, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार तो पूर्णरूपेण गंगा नदी के प्रवाह पथ में स्थित हैं। इसके अतिरिक्त सहायक नदियों के कारण हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और दिल्ली का भी कुछ हिस्सा इस परियोजना में सम्मिलित हैं।

इससे पहले गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का कार्य वर्ष 1985 में गंगा कार्य योजना के नाम से प्रारंभ हुआ था, जिसके द्वारा दूषित कचरा एवं मल-जल लेकर गंगा में मिलने वाले नालों की पहचान कर उन पर जल उपचार संयत्र लगाने की योजना प्रारंभ की गई थी और मार्च 2000 में लगभग 451 करोड़ की धनराशि खर्च करने के बाद इस योजना को पूर्ण घोषित कर दिया गया था किंतु अब तक किए गए कार्य से कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला। 

पिछले दिनों राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार ने 16 राज्यों में 34 नदियों की सफाई के लिए 5800 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी थी और अपने हिस्से की 2500 करोड़ की धनराशि भी विभिन्न राज्यों को प्रदान किया था, जिससे गंगा में मिलने वाली उसकी सहायक नदियों की भी साफ-सफाई हो सके। 

नमामि गंगे की घोषणा के बाद यह विश्वास बना था कि गंगा की सफाई होगी और गंगा अपने मूल स्वरूप को वापस प्राप्त कर लेगी किंतु इस दिशा में कोई ठोस कार्य न होने से दुखी गंगा पुत्र स्वामी सानंद ने गंगा की जीवन रक्षा हेतु आत्म-बलिदान कर दिया किंतु उसका भी कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया। ऋषि कल्प पर्यावरणविद सच्चे अर्थों में गंगा को मां मानने वाले स्वामी सानंद का जीवन गंगा रक्षा के नाम पर चला गया, किंतु गंगा के नाम पर राजनीति करने वाले और धन संग्रह कर अट्टालिकाएं बनाने वालों के कान पर जूं भी नहीं रेंगी और  परिणाम अब भी वही है ढाक के तीन पात। पर्याप्त जल की उपलब्धता न होने के कारण गंगा उसी तरह प्रदूषित मल युक्त, मैली कुचैली, गंदे नाले के रूप में मरणासन्न अवस्था में  जीर्ण-शीर्ण काया के साथ प्रवाहित हो रही है।

भारत सरकार ने गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के प्रदूषण को कम करने उनके संरक्षण और पुनरुद्धार के लिए 20000 करोड़ों रुपए के कुल बजट के साथ वर्ष 2014 में नमामि गंगे परियोजना का प्रारंभ किया था। इस कार्यक्रम के अंतर्गत गंगा नदी की स्वच्छता और पुनरुद्धार के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यों यथा - घरेलू सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट, ठोस अपशिष्ट सहित प्रदूषण कम करने, नदी तट प्रबंधन, अविरल जल धारा, ग्रामीण स्वच्छता तथा जैव विविधता के संरक्षण आदि कार्यों को प्रमुख स्थान दिया गया था। इस परियोजना के अंतर्गत 80235 करोड़ की स्वीकृत लागत से कुल 346 परियोजनाएं शुरू हुई थी जिनमें से 158 परियोजनाएं पूर्ण हो चुकी हैं। विश्व बैंक द्वारा 300 करोड़ रुपए की नमामि गंगे परियोजना को 45 अरब रूपये आगामी 5 वर्ष की अवधि के लिए मंजूर किया गया है। जिसके अंतर्गत विश्व बैंक द्वारा 25000 करोड रुपए की 313 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। विश्व बैंक से प्राप्त इस ऋण का उपयोग नदी बेसिन में प्रदूषण को समाप्त करने एवं अवसंरचना परियोजनाओं के विकास और सुधार के लिए किया जाएगा। 45 अरब रुपए के इस ऋण में 11.34 अरब रुपए का उपयोग मेरठ आगरा तथा सहारनपुर में गंगा की सहायक नदियों पर तीन नए हाइब्रिड एन्यूटी प्रोजेक्ट बनाने तथा 1209 करोड़ रुपए बक्सर, मुंगेर, बेगूसराय में चल रही डिजाइन बिल्ड ऑपरेट और ट्रांसफर (डीबीओटी) परियोजनाओं के लिए मंजूर किया गया है। गंगा को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाए रखने के एक अन्य प्रयास में नमामि गंगे योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश सरकार के मत्स्य पालन विभाग द्वारा विभिन्न प्रजातियों की लगभग 15 लाख मछलियों को नदी में छोड़ने की कार्य योजना बनाई गई है। इससे नदी में जैव विविधता को बनाए रखने और संरक्षित करने में मदद मिलेगी और नमामि गंगे अभियान के तहत इसकी सफाई सुनिश्चित होगी। मछलियों को पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक के करीब 12 जिलों  गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, प्रयागराज, कौशांबी, प्रतापगढ़, कानपुर, हरदोई, बहराइच, बुलंदशहर, अमरोहा और बिजनौर में छोड़ा जाएगा। वाराणसी और गाजीपुर जिलों में गंगा में लगभग डेढ़ डेढ़ लाख मछलियां छोड़ी जाएगी, जो गंगा को स्वच्छ रखने के साथ-साथ जैव विविधता को भी नया आयाम देंगी।

जल अभाव का सामना कर रही आज गंगा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। समय रहते यदि उसे नहीं बचाया गया तो वह दिन दूर नहीं है जब गंगा का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। अपने उद्गम स्थल से पर्याप्त जल लेकर आगे बढ़ने वाली मां गंगा जल लुटेरों के माया जाल में फंस कर हिमालय की उपत्यका से निकलते निकलते अपने अगाध जल राशि से हाथ धो बैठती है और अपने आगोश में नाम मात्र का जल लेकर जीर्ण शीर्ण काया लेकर आगे बढ़ती है जहां अनेकानेक नदी नालों के माध्यम से आने वाला प्रदूषित जहर युक्त अपशिष्ट जल जीवन शक्ति के साथ-साथ उस में विद्यमान जैव विविधता को भी समाप्त करती है। गंगाजल का नहरों के माध्यम से अनियंत्रित अवशोषण, अन्य स्रोतों से पर्याप्त जलापूर्ति का अभाव, सनातन धर्म के अन्य प्रतीकों की भांति  मां गंगा को भी लुप्त करने के लिए उद्यत है। कभी अपने स्पर्श, दर्शन एवं स्नान से जन-जन को मुक्ति प्रदान करने वाली गंगा मां आज स्वयं जलाभाव से मुक्ति प्रदान कर उसे जीवन देने हेतु भागीरथ की बाट जोह रही है, जो उसे जीवन देकर जीर्ण शीर्ण काया तथा प्रदूषित जहर युक्त जल से मुक्ति दिलाकर पुनः जन-जन की मुक्त दायिनी बना सके।

इस बीच खबर है कि केंद्र सरकार गंगा एवं सहायक नदियों की स्वच्छता एवं निर्मलता के लिए अभियान को और गति प्रदान करने के लिए नमामि गंगे 2.0 परियोजना शुरू करने जा रही है। इस परियोजना का प्रारंभ आगामी कुछ महीनों में हो सकता है।

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