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रुपये की बढ़ेगी वैश्विक स्वीकार्यता

भारत अपनी आवश्यकताओं का 85 प्रतिशत तेल और गैस आयात करता है ऐसे में रुपये में व्यापार से भारत लाभ की स्थिति में होगा। भारत की वैश्विक स्वीकार्यता औऱ लगातार बढ़ रहे कद के कारण से रुपये को अन्तर्राष्ट्रीय करेन्सी के रुप में स्थापित करने में मदद मिलेगी। — मुनि शंकर पाण्डेय

 

रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने जुलाई 11, 2022 को भारत के मौद्रिक इतिहास का एक साहसिक निर्णय लेते हुए ये घोषणा की कि अब से भारत का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार भारतीय रुपये में होगा। इस निर्णय का अर्थ रहा कि भारतीय निर्यातकों और आयातकों को अब व्यापार के लिए डालर की अनिवार्यता नहीं रहेगी। आर्थात् दुनिया का कोई भी देश भारत से सीधे बिना डालर के व्यापार कर सकता है। दुनियाभर में बसे भारतीयों का एक तबका वर्षों से सोचता था कि एक सौ तीस करोड़ वाले देश की अपनी मुद्रा की वैश्विक मुद्रा में स्वीकृति क्यों नहीं? एक प्रकार से भारतीय रुपये को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए एक करेन्सी में स्वीकार करवाने की दिशा में सबसे ठोस कदम भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लिया है। 

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का यह निर्णय हाल के वर्षो में हुए वैश्विक घटनाक्रमों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय विदेश व्यापार बढ़ाने के के आलोक में भी देखा जाना चाहिये। इसी प्रकार से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के इस रुपये में निर्यात-आयात के इस निर्णय को भारत के वैश्विक उद्देश्यों को साधने के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक मजबूती के सन्दर्भ में देखना होगा। इसके साथ भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के इस निर्णय का तात्कालिक प्रभाव का भी आकलन करना होगा। 

सबसे पहले अगर हमें डालर के वैश्विक मुद्रा के रुप में स्वीकृति और डालर के हेजेमनी (उच्चता की मानसिकता) को समझने की आवश्यकता है। ज्ञातव्य है कि इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइज़ेशन लिस्ट के अनुसार दुनिया भर में कुल 185 करंसी हैं जबकि सभी देशों के केंद्रीय बैंकों में जमा कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 64 फ़ीसदी अमेरीकी डॉलर रखा हुआ है। इसके मुद्रा भंडार में 19.9 फ़ीसदी की हिस्सेदारी यूरो की है जबकि दुनिया के सम्पूर्ण व्यापार का 85 फ़ीसदी व्यापार में डॉलर में होता है साथ ही संसार के समस्त कर्जों में डॉलर की हिस्सेदारी 39 फ़ीसदी है, यहीं कारण है कि अमरीकी डॉलर दुनिया की सबसे स्वीकार्य करेन्सी है। 

यहाँ दिलचस्प बात यह है कि सामान्य नियम है कि अगर किसी देश की करेन्सी मजबूत होती है तो उसके अर्थव्यवस्था पर कई नकारात्मक असर पड़ते है जबकि अमेरिका के बारे में इसका उल्टा होता है। जैसे-जैसे अमेरीकी डॉलर मजबूत होता है विश्व के तमाम बाजारों के निवेशक अमेरिकी अर्थव्यवस्था में वापस लौट आते हैं साथ ही उपभोग आधारित अर्थव्यवस्था के कारण आयात सस्ता होता है जिससे सामान्य उपभोग की आयातित चीजें सस्ती हो जाती हैं क्योकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था का 70 प्रतिशत हिस्सा उपभोग पर आधारित है।  

2008 में अमेरिका की अपनी स्थानीय नीतियों के कारण आये सबप्राइम संकट ने जिस तरह से दुनिया की अर्थव्वस्था को हिला दिया था उसके बाद से ही चीन और रुस जैसे देशों ने अमेरीकी डॉलर के वर्चस्व को तोड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया था। कालान्तर में चीन और रुस ने आपसी व्यापार अपनी मुद्राओं में शुरु भी कर दिया। एशिया निक्केई रिव्यू के रिपोर्ट की माने तो रूस के केंद्रीय बैंक और फ़ेडरल कस्टम सेवा के ज़रिए जारी किए गए आँकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2020 की पहली तिमाही में रूस और चीन के बीच व्यापार में डॉलर की हिस्सेदारी पहली बार 50 फ़ीसदी के नीचे चली गई थी जो कि 2015 में 90 प्रतिशत थी। 2022 के रुस यूक्रेन युद्ध के बाद रुस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद चीन-रुस का व्यापार यथावत जारी रहा जबकि कई अमेरिकी मल्टीनेशनल्स ने अमेरिकी सरकारी कम्पनियों की तरह व्यवहार करते हुए वहाँ से अपने कारोबार को समेट लिया। 

कोरोना महामारी, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं और रुस-युक्रेन युद्ध से उपजे वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल ने देश के नीति नियन्ताओं के समक्ष भारत के आर्थिक हितों के सम्बन्ध में कई प्रश्न खडें किये। अर्थव्यवस्था में किसी भी रुप में एकाधिकारी प्रवृत्ति या किसी भी आपूर्ति के लिए एक देश पर निर्भरता भारत के दीर्घकालिक हितों के प्रतिकुल है। रिजर्व बैंक आफ इण्डिया का हाल में लिया गया कदम भारत के वैश्विक लक्ष्यों की तरफ एक कदम है। 

ज्ञातव्य है कि करेंसी की विनिमय दर में उस राष्ट्र के आयात-निर्यात, अर्थव्यवस्था का मैनेजमेंट तथा वैश्विक आर्थिक और राजनैतिक परिस्थितियों का बहुत बड़ा हाथ होता है। रुपये की कीमत वास्तविक प्रभावी विनिमय दर विश्व की 40 मुद्राओं की तुलना में निर्धारित की जाती है। डाँलर और रुपये की तुलना में रुपया भले ही कमजोर हुआ हो लेकिन अन्य मुद्राओं की अपेक्षा में रुपया सबसे कम गिरा है। साथ ही जापानी येन, चीनी युवान सहित अन्य मुद्राओं की तुलना में रुपया मजबूत हुआ है। उहाहरण के लिए अब एक अमेरिकी डॉलर के बदले 138 जापानी येन मिल रहा है जो कि वर्ष 2018 में 110 येन मिलता था। वहीं वर्ष 2007 में एक यूरो का 1.60 डॉलर मिलता था जो अब एक यूरो, एक डॉलर का हो गया है। भारतीय रुपया के मजबूती का कारण भारत की राजनीतिक स्थिरता, भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारभूत तत्वों का मजबूत और मुद्रा स्फिति के बावजूद भारत में लागातार माँग का बने रहना साथ ही कोरोना महामारी का विश्व की सर्वाधिक तेजी के साथ रिकवरी वाली अर्थव्यवस्था में शुमार होना है।

यहाँ उल्लेखनीय है कि जनवरी 1998 में एक अमेरिकी डॉलर में 56 थाई बाथ (थाईलैण्ड की) मिलता था जो कालान्तर में 2015 के आस पास 30 थाई बाथ (थाईलैण्ड की) हो गया था जो वर्तमान में 38 थाई बाथ प्रति अमेरिकी डॉलर है। इससे यह कहा जा सकता है कि आगामी वर्षों में जैसे-जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ेगा और निर्यात में उत्तरोत्तर वृद्धि होगी तो भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के बदले और भी मजबूत होसकता है। 

रिजर्व बैंक आफ इण्डिया के समक्ष अपने निर्णय को वैश्विक स्तर पर लागू करवाना एक बेहद जटिल कार्य है। जिसके लिए बड़ें पैमाने पर भारतीय बैंको की वैश्विक उपस्थिति सुनिश्चित करना साथ ही करोबारी देश के केन्द्रीय बैंको से समायोजन के साथ-साथ अपने देश के व्यापारियों को अमेरिकी डॉलर के बदले भारतीय रुपये की गंभीर चुनौती से जुझना होगा। 

उल्लेखनीय है कि रुपये में लेन-देन के लिए आयातकों और निर्यातकों को किसी भी व्यावसायिक बैंक में खाता खोलना होगा जिसके लिए बैंक को भारतीय रिजर्व बैंक के विदेश विभाग से अनुमति लेनी होगी। रुपये का मूल्य वास्तविक बाजार मूल्य पर निर्धारित करते हुए उस देश की मुद्रा में सीधे हस्तांतरित किया जा सकेगा। इसका तत्कालिक लाभ भारत को ईरान, रुस के साथ उन देशों के साथ व्यापार में मिलेगा, जिनके पास या तो अमेरिकी डॉलर नहीं है या जो अमेरिकी प्रतिबंधां के कारण व्यापार नहीं कर पा रहे। भारत अपनी आवश्यकताओं का 85 प्रतिशत तेल और गैस आयात करता है ऐसे में रुपये में व्यापार से भारत लाभ की स्थिति में होगा। भारत की वैश्विक स्वीकार्यता औऱ लगातार बढ़ रहे कद के कारण से रुपये को अन्तर्राष्ट्रीय करेंसी के रुप में स्थापित करने में मदद मिलेगी।        

(लेखक नीति विश्लेषक और आर्थिक मामलों के जानकार हैं।) 

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