विशेषज्ञों ने हिमालय को एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने की मांग करते हुए कहा है कि उत्तराखंड में विकास के नाम पर अनियोजित और अनियंत्रित निर्माण ने जोशीमठ को डूबने के कगार पर ला दिया है। स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) द्वारा शनिवार को आयोजित एक गोलमेज बैठक में पारित एक प्रस्ताव में विशेषज्ञों ने बाढ़ प्रभावित जोशीमठ में मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए उठाए गए कदमों को “अपर्याप्त“ करार दिया है।
बैठक में सरकार से समस्या के समाधान के लिए लॉन्ग टर्म उपाय करने पर विचार करने के लिए भी कहा। विशेषज्ञों ने कहा कि अगर मानव लालच से प्रेरित तथाकथित विकास की जांच नहीं की जाती है तो नैनीताल, मसूरी और गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह की स्थिति पैदा हो सकती है।
प्रस्ताव में कहा गया है कि हिमालय को एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जाए ताकि तबाही मचाने वाली बड़ी परियोजनाओं को विनियमित करने पर नुकसान कम हो सके। चार धाम रेलवे परियोजना का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए उत्तराखंड की एक विस्तृत वहन क्षमता का आकलन किया जाना चाहिए कि इन स्थानों पर आने वाले पर्यटकों की संख्या का हिसाब रखा जाए और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि पर्यटकों के फ्लो से पर्यावरण पर बोझ न पड़े। ’इमीनेट हिमालयन क्राइसिस’ विषय पर विचार-विमर्श के लिए आयोजित गोलमेज सम्मेलन में केंद्र की चार धाम परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के पूर्व अध्यक्ष रवि चोपड़ा, इसके पूर्व सदस्य हेमंत ध्यानी और एसजेएम के सह-संयोजक अश्वनी महाजन ने भाग लिया।