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मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) कितना उपयोगी?

दुनिया के बाजार में मुक्त व्यापार समझौते का माहौल है। भारत दुनिया में तेजी से उभरती हुई एक अर्थव्यवस्था है, भारत की प्रगति दुश्मन देशों को फूटी आंख भी अच्छी नहीं लगती। ऐसे में हमें एफटीए के मोर्चे पर सावधानीपूर्वक आगे बढ़ने की जरूरत है। - के.के. श्रीवास्तव

 

विश्व बैंक की एक नई रिपोर्ट ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की लड़खड़ाती संभावनाओं का अशुभ संकेत दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक विश्व अर्थव्यवस्था 2023 से 2030 के बीच प्रतिवर्ष 2.2 प्रतिशत के हिसाब से तीन दशक के निचले स्तर तक गिरने की संभावना है। हालांकि यह आंकड़ा 2011-2021 के 2.6 प्रतिशत और 2001-2011 में 3.5 प्रतिशत से कम है। इसमें तत्कालिक कारणों के अलावा कोविड-19, युद्ध, कमोडिटी की कीमतें, दीर्घकालिक दृष्टिकोण से पूंजी संचय, श्रम शक्ति में वृद्धि या श्रम उत्पादकता में वृद्धि के कारण गंभीर रूप से नुकसान हुआ है। वर्तमान दशक के शेष वर्षों के दौरान इन सभी मोर्चों पर और धीमे होने की संभावना है। अनुमान किया गया है कि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय संकट आने या वैश्विक मंदी शुरू होने पर संभावित विकास दर नकारात्मक रूप से और अधिक प्रभावित हो सकती है।

धीमी विकास दर सबके लिए घातक होती है, लेकिन भारत जैसे देश के लिए विशेष रूप से हानिकारक मानी जाती है। हालांकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अपने समूह में भारत अपेक्षाकृत थोड़ा बेहतर हो सकता है लेकिन भू राजनीतिक तनाव, व्यापार के लिए खुलापन का कम होना, नीति की अनिश्चितता और इसी तरह के अन्य कारण भारत के लिए अपने वांछित विकास पथ पर चलना उतना सरल नहीं रह जाएगा। उदाहरण के लिए भारत के निर्यात की मांग, जो घरेलू विकास का एक महत्वपूर्ण इंजन है, के कमजोर रहने की संभावना है। सरकार का लक्ष्य 2030 तक भारत के निर्यात को 2 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ाना है। सरकार इसे मुक्त व्यापार समझौतों, आयात प्रतिस्थापन, आयात विविधीकरण और आत्मनिर्भर भारत अभियान, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, लचीला तथा व्यापार सुगम, वित्तीय संस्थान जैसे अन्य उपायों के माध्यम से हासिल करने की उम्मीद करती है। कोविड-19 के बाद पूरी दुनिया भारत को चीन के विकल्प के रूप में आजमाने की कोशिश भी कर रही है और भारत का लक्ष्य भी दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ एक विश्वसनीय वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला भागीदार बनने की है। यह अच्छी बात है और इसके लिए सरकार के स्तर पर पहल भी हो रही है।

लेकिन हम अप्रिय तथ्यों की उपेक्षा नहीं कर सकते। नोबेल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के अनुसार भारत का व्यापारिक आयात 2023 में 15 प्रतिशत बढ़कर रिकॉर्ड 710 बिलियन डालर तक पहुंचने की उम्मीद है। वास्तव में भारत का आयात इसके 25 व्यापारिक भागीदारों में से 22 के निर्यात से अधिक है। भारत की दिली इच्छा के बावजूद चीन भारत का सबसे बड़ा आयात का स्त्रोत भी बना हुआ है, जिसका भारत के विरुद्ध 87.5 बिलियन डालर का प्रतिकूल व्यापार संतुलन है। भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बीच ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति का अनुसरण करने की प्रवृत्ति का लाभ उठाने में सक्षम नहीं रहा है, जो भारत वैकल्पिक स्थलों की खोज करके चीन में विनिर्माण उत्पादन पर निर्भरता कम करना चाहता है। इसके बजाय वियतनाम, थाईलैंड आज छोटे देश आगे बढ़ गए हैं। संसाधनों और योजना की उपलब्धता के बावजूद चीन से दूर जा रही बहुराष्ट्रीय कंपनियों को हमारे देश में स्थानांतरित करने में अभी तक विफल ही रहा है। हालांकि भू राजनीतिक घटनाओं उच्च कीमतों आपूर्ति में व्यवधान आदि के कारण कमजोर वैश्विक मांग के समग्र भारतीय अर्थव्यवस्था मामूली रूप से प्रभावित होगी, फिर भी इसके निर्यात पर प्रतिकूल असर होने की संभावना है।

दो देशों के बीच आर्थिक जुड़ाव को गहरा करने के लिए पारंपरिक व्यापार के दायरे से बाहर निकलकर मुक्त व्यापार समझौते की बात की गई। संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, जीसीसी और यूरोपीय संघ सहित कई एक देश भारत के साथ आर्थिक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर करने को इच्छुक हैं। बहुत अच्छी और द्विपक्षीय दोनों स्तरों पर भविष्य के लिए हमारी साझा दृष्टि के परिणाम के रूप में भारत विभिन्न देशों के बीच संबंधों के इस बड़े हुए स्तर पर क्षमता से देख रहा है। भारत एक मध्यम आय वाला देश बनने की अपनी खोज में विभक्ति बिंदु पर पहुंचने के कगार पर है, जो कि चीन और अमेरिका के बाद तीसरा बड़ा देश होगा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत का आर्थिक दबदबा बढ़ रहा है और बाहरी आर्थिक संबंधों के साथ भारत ने मुक्त व्यापार के प्रति कुछ अनूठा दृष्टिकोण अपनाने का फैसला भी किया है। प्रोडक्शन लिंकड इनसेटिंव (पीएलआई) योजना इसका एक उदाहरण है। हालांकि समग्र रूप से विश्व वैश्विक स्तर पर एकीकरण से पीछे हट रहा है और भारत इस तथ्य को जानता है। हम आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं और अपनी विशाल घरेलू अर्थव्यवस्था का लाभ उठाना चाहते हैं। इसलिए भारत ने संभलकर चलने का फैसला किया है। यही कारण है कि हमारी बाजारों को पूरी तरह से खोलने के बजाय अन्य बातों के साथ-साथ मुक्त व्यापार समझौता करने का फैसला किया गया है। हालांकि इस तरह के समझौते के लिए आगे आने वाला भारत अकेला देश नहीं है।

सामान्य धारणा है कि एफटीए व्यापार बढ़ाने का एक उम्दा मंच है। आज दुनिया भर में 350 से अधिक एफटीए हुए हैं जो वर्तमान में लागू हैं। आर्थिक विकास के लिए एफटीए को सौ ताले की एक चाबी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। लेकिन भारत जैसे उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश को इस मोर्चे पर ठहर कर सोचना चाहिए और फिर बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेते हुए आगे बढ़ना चाहिए। हमें किसी के जाल में फंसने की वजाय कुछ जरूरी तथ्यों पर ध्यान देते हुए सावधान कदमों के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

1. विकसित देश एफटीए पर हस्ताक्षर करने में जल्दबाजी नहीं कर रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ कच्चे माल के आपूर्तिकर्ताओं या छोटे देशों के साथ एफटीए करने में बहुत चयनात्मक हैं।

2. यह जरूरी नहीं कि एफटीए करने से निवेश को बढ़ावा मिल जाएगा। निवेश की गुणवत्ता आमतौर पर दक्षता पर निर्भर करती है। एक देश जो अधिक कुशल है, उसके विनिर्माण केंद्र बनने की संभावना है, न कि केवल एफटीए पर हस्ताक्षर करने के कारण।

3. आसियान को भारतीय निर्यात का 70 प्रतिशत एमएफएन पर प्रवेश मिलता है, एफटीए के कारण नहीं। इसलिए कई बार एफटीए के माध्यम से होने वाले व्यापार को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है।

4. आवश्यक रूप से कीमतों को कम नहीं करते हैं यदि सभी कीमतों को केवल उस सीमा तक कम किया जा सकता है कि निर्यातक घरेलू फर्म से प्रतिस्पर्धा को दूर कर सके।

5. मार्ग के माध्यम से माल तैयार माल का शून्य शुल्क आयात वास्तव में बढ़ावा देने के बजाय कई घरेलू विनिर्माण कार्यक्रमों को बाधित कर सकता है। इसलिए तैयार माल के आयात के इस मुद्दे को और अधिक सावधानी से देखने की जरूरत है।

6. कई विकसित देश बड़ी आसानी से विकासशील देशों से विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के साथ-साथ बौद्धिक संपदा पर्यावरण आदि मुद्दों के दायित्वों का पालन करने के लिए कहते हैं। विकासशील देशों के निर्यात के खिलाफ कई गैर टैरिफ बाधाएं लगाई जाती है।

7. यदि हमारे साझेदार देश का शेष विश्व के लिए वैसे भी कम आयात शुल्क है, तो हमें शायद ही भारत से एफडीए भागीदार देशों को निर्यात में त्वरित वृद्धि देखने को मिले।

8. वैश्विक मूल्य श्रृंखला में बढ़ी हुई भागीदारी का नेतृत्व कर सकते हैं या नहीं भी कर सकते हैं। क्योंकि एफटीए के तहत मूल शर्तों के नियमों का अनुपालन होना चाहिए, शून्य एमएफएन शुल्क के तहत माल की मुक्त आवाजाही सबसे अच्छा है।

सवाल है कि क्या हमें एफडीए पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहिए? नहीं, इसके बजाय हमें और अधिक गणनात्मक होना चाहिए। उदाहरण के लिए हमें वियतनाम से सीखने की जरूरत है, जो व्यापार सृजन पर ध्यान केंद्रित करता है न कि व्यापार मोड पर। इस प्रकार भारत को निर्यात करने वाले देशों के लिए एक विनिर्माण गंतव्य बनना चाहिए जो यहां आधार स्थापित करते हैं और तैयार माल को विकसित बाजारों के साथ-साथ अन्य देशों में निर्यात करते हैं। दूसरे शब्दों में इसका लक्ष्य मूल्य संवर्धन के अधिक से अधिक हिस्से पर कब्जा करना होना चाहिए। वर्तमान में अलग-अलग एफटीए का हमारी निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने पर बहुत सीमित प्रभाव पड़ा है, इसलिए हमें आगे संभलकर चलने की जरूरत है।   

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