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बढ़ रहा है मिलेट्स (सुपर फूड) का चलन

भारत से मोटा अनाज खरीदकर विदेशी कंपनियां उत्पाद बनाकर उन्हें भारत सहित दुनियाभर में बेच मुनाफा कमा रही है। — शीला शर्मा

 

आजकल सुपर फूड खाने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। ’मिलेट्स’ जिन्हें मोटा अनाज कहा जाता है जो कभी हमारा मुख्य अनाज हुआ करता था, उसे धीरे-धीरे करके भुला दिया गया है। ये अनाज अति प्राचीन है जिनका उल्लेख पुरानी सभ्यता व यर्जुवेद में भी मिलता है। ये अभी सुपर फूड बना हुआ। जी हाँ मोटा अनाज जिन्हें मिलेट्स, छोटे आकार के बीज, पोषक अनाज व कदन्न भी कहा जाता है, इन्हें हमें अपनी रसोई व थाली में फिर से लाना है।

मोटे अनाज का महत्व समझकर भारत सरकार ने 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को एक प्रस्ताव दिया था जिसे मार्च 2021 में सर्व सम्मति से स्वीकार कर लिया गया है, जिसके तहत वर्ष 2023 को ’’अर्न्तराष्ट्रीय मोटा अनाज’’ वर्ष घोषित किया गया इस प्रस्ताव का 70 से अधिक देषों ने समर्थन किया व सर्वसम्मिति से इसे पारित किया। इस साझेदारी के तहत मोटे अनाज पर विशेष ध्यान दिया जायेगा और ज्ञान के आदान-प्रदान में भारत के नेतृत्व को समर्थन दिया जाना है। इसका उद्देश्य मोटे अनाज के पोषण व स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता लाने के साथ-साथ इन पोषक अनाजों की खेती व खपत को बढ़ावा देना है। इससे खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए भोजन में इन अनाजों को अपनाने के प्रति वैश्विक जागरूकता को भी बढ़ावा देना है। यह अनाज कम पानी में, गर्म स्थान में भी अच्छी तरह उगाये जा सकते है। यह अधिक उत्पादन वाली फसलें है जो कम समय में ही तैयार हो जाती है व साथ ही साथ कीट-पंतगों के प्रति प्रतिरोधक भी है व खाद की कम आवश्यकता वाली फसलें है।

मोटे अनाजों को सूक्षम पोषक तत्वों से भरपूर अनाज के रूप में जाना जाता है। ये दो प्रकार के होते है- 

1. मोटे दाने वाला जिसमें - 1 बाजरा, 2. रागी, 3 ज्वार, 4 कगंनी, 5 पुनर्वा/चना, 6. टेफ या फेनिओं आदि।

2 छोटे दाने वाला, जिसमें - 1 सावां, 2 कोदो, 3 कुटकी।

यह सभी मिलेट्स पोषक तत्वों से भरपूर है। इनमें अन्य अनाजों के मुकाबले अधिक प्रोटीन पाया जाता है, साथ ही एक जरूरी अमीनो एसीड लाइसिन जो गेंहूँ में अनुपस्थित रहता है, वह भी पाया जाता है। लाइसिन की उपस्थिति मांसपेषियों के क्षरण को रोकती है व षरीर को छरहरा बनाये रखने में मदद करती है। इनके उपयोग से सेरोटोनिन की मात्रा स्रावित होती है जो इसके रक्त स्तर का बढ़ाकर षरीर को तनावमुक्त रखने में मदद करता है। इनमें रेशा अधिक मात्रा में पाया जाता है, यह कब्ज व आंत से संबंधित अन्य विकारो के लिए उपयुक्त है। कगंनी में दोनो तरह के रेशे घुलनशील व अघुलनशील भी उपस्थित रहतें है। इसके साथ ही फाइटोन्यूट्रिन्ट भी पाए जाते है जो आंत के कैंसर के खतरे को कम करने वाला माना गया है। रेशे की मात्रा अधिक होने से इनका पाचन धीमा होता है व कार्बोज शर्करा धीरे-धीरे रक्त में पहुँचती है। ये अनाज विशेषकर रागी, बाजरा, कगंनी आदि मधुमेह रोगियों के लिए वरदान है, क्योंकि इनका ग्लाइसेमिक सूचकांक कम होता है। यानि रक्त शर्करा के स्तर पर कार्बोज के प्रभाव का माप यानि जो कार्बोज पाचन के दौरान तेजी से टूटते है और रक्त धारा में ग्लूकोज को तेजी से छोड़ते है उनका ग्लाइसेमिक सूचकांक ज्यादा होता है और जो धीरे-धीरे टूटते है उनका ग्लाइसेमिक सूचकांक कम होता है। निम्न ग्लाइसेमिक सूचकांक कार्बोज के पाचन व अवशोषण की धीमी दर को इंगित करता है यह रक्त शर्करा को कम करने व इंसुलिन के प्रभाव को बढ़ाता है। रेशा पाचन की गति को नियंत्रित करता है, पोषक तत्वों के अवशोषण यानि आंत में उपस्थित सूक्ष्मजीवों के स्वास्थ्य को बढ़ाता है, पेट भरने की अनुभूति देता है, जिससे पेट जल्दी खाली नहीं होता व भूख जल्दी नहीं लगती। इस प्रकार यह वजन को नियंत्रित व कम करने में बेहद उपयोगी है। यह रेशा आंत साफ रखने, विशैले पदार्थो को बाहर निकालने, पाचन से संबंधी विकारों के लिए अमृततुल्य है।

कदन्न ग्लूटेन फ्री होते है। इस तरह यह सिलिएक बीमारी या गेंहूँ से एलर्जी वालों के लिए व कई बार मानसिक विकास के विकारों के लिए जिन्हें ग्लूटेन रहित भोजन दिया जाना रहता है वे इन अनाजों को आराम से अपने भोजन का हिस्सा बना सकते है। बाजरा में उपस्थित लिगनिन जो कि एक प्रतिरोधी तत्व है यह आंत में परिवर्तित होकर स्तन कैंसर से बचाता है या यह कह सकते है कि इनके उपयोग से स्तन कैंसर के बनने का खतरा 50 प्रतिशत तक कम हो जाता है, इस तरह यह महिलाओं के लिए विशेष उपयोगी है। मैग्नीशियम की अधिकता की वजह से यह महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान होने वाले असहनीय दर्द एवं ऐंढन को कम करता है।

गर्भवती व धात्री माताओं को इनके सेवन विशेषकर रागी की सलाह दी जाती है क्योंकि यह कैल्शियम का अच्छा स्त्रोत है इसके सेवन से दूध का स्त्राव अधिक होता है जिससे माताएं अपने नवजात को अधिक समय तक दूध पिला सकती हैं। यह दूध बढ़ाने वाले भोज्य पदार्थों में गिना जाता है। इनमें एंटीऑक्सीडेंट भरपूर पाए जाते हैं जो शरीर में उपस्थित फ्री रेडिकल से मुकाबला करते हैं उनके प्रभाव को कम करके बढ़ती उम्र के असर को कम करते हैं। त्वचा के निर्माण कारक कोलेजन को भी बनाते हैं जो त्वचा का लचीलापन बढ़ा कर झुर्रियों को कम करते हैं। ज्वार, कोदो, कुटकी में विशेष रुप से एंटीऑक्सीडेंट की अधिक मात्रा इन्हें विशिष्ट बनाती है यह मात्रा अन्य फल व अनाजों के मुकाबले अधिक एंटीऑक्सीडेंट प्रतिक्रिया देती है। इनके उपयोग से कुल कोलेस्ट्रॉल व बुरा कोलेस्ट्रॉल कम होकर अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है। ज्वार में उपस्थित फायटोकेमिकल मनुष्य के शरीर व स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालते हैं अंदर जाकर अन्य अनाज फलों से अधिक एंटीऑक्सीडेंट प्रतिक्रिया देते हैं। इनका उपयोग हृदय के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है व रक्त के मुक्त प्रवाह में मददकारी है। रक्तचाप को नियंत्रित करके कम करते हैं वह हृदय रोग के खतरे को घटाते हैं।

रागी में खनिज तत्व की अधिकता विशेष है। इनके नियमित उपयोग से कैल्शियम लोह तत्व की कमी दूर होती है, विशेषकर बढ़ते बच्चों के लिए गुणकारी है यह खून की कमी को दूर कर हड्डियों के विकास में मदद करता है नियमित उपयोग से कुपोषण, अपक्षीय बीमारियों से बचा जा सकता है। बढ़ते शिशुओं के लिए इनका उपयोग पूरक आहार के रूप में किया जाता है।

मोटे  अनाजों से एमायलेज-यानि भोजन पचाने वाला एंजाइम से भरपूर भोजन बनाया जा सकता है, जो कम घनत्व में अधिक ऊर्जा प्रदान करते है जिन्हें आंत से संबंधित विकार या पाचन विकार है, नली द्वारा आहार दिया जाना है यह आसानी से दिये जा सकते है। मोटे अनाज गहरी व शांतिप्रद निंदा में सहायक होते हैं

भोजन में शामिल करने हेतु सुझाव-

1    शुरू में एक समय के भोजन में इन्हें शामिल करें।

2    चावल की जगह मोटा अनाज उपयोग करें जैसे खिचड़ी, चीला, इडली, डोसा आदि में 1ः1 के अनुपात में उपयोग करें।

3    मोटे अनाज व सब्जियों का मिश्रित उपयोग करें स्वादिष्ट पुलाव, सब्जी वाली नमकीन खिचड़ी, दलिया बनाएं, उपमा आदि बनाएं इनमें दालें भी मिलाई जा सकती हैं।

4    अंकुरित करके इनके पोषण को बढ़ाया जा सकता है।

5    पायसम खीर, चूरमा आदि बनाकर मीठे के रूप में खाया जा सकता है।

6    रोटी, पराठा, बाटी बनाकर उपयोग किया जा सकता है।

7    नाष्ते में ओट्स या कार्नफ्लैक्स के बदले इन्हें खाया जा सकता है।

8    मठरी, चीला, खाखरा, पीड़िया, पीठा, ढोकला खम्मन आदि बनाया जा सकता है।

9    सूप में सब्जी के रस आदि में मिलाया जा सकता है।

इनके अलावा और भी अपने बुद्धि विवेक से नये प्रयोग में स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जा सकते है।

भारत अकेले दुनियाभर में 38 प्रतिषत मोटा अनाज पैदा करता है। बेबी फूड, रेडी टू ईट, ब्रेक फास्ट, बेकरी, रेडी टू कुक, रेडी टू सर्व, बेवरेज व पषु आहार बनाकर चीन मोटी कमाई कर रहा है, जबकि 9 प्रतिषत पैदावर करता है। भारत से मोटा अनाज खरीदकर विदेषी कंपनियां उत्पाद बनाकर उन्हें भारत सहित दुनियाभर में बेच मुनाफा कमा रही है। 11388 मिट्रिक टन मोटा अनाज पैदा करके भी कमाई में भारत चीन से काफी पीछे है। कारण प्रोसिसींग यूनिट बहुत कम है। देष में स्नैक्स, इडली, डोसा, उपमा, बाजरे के लड्डू, चूरमा, कुकीज आदि उत्पादों की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के हिसाब से पैकिंग नहीं होने के कारण व ब्रॉडिंग न होने का खामियाजा देश को उठाना पडता है। रोजगार सृजन व स्वावलंबी भारत अभियान में इस विषय पर युवाओं को ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

शीला शर्माः आहार विशेषज्ञ, अखिल भारतीय सह महिला प्रमुख, स्वदेशी जागरण मंच, रायपुर (छ.ग.)
 

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