भारत एक महान राष्ट्र है राहुल जी
कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि राज्यों का संघ है। जहां तक संविधान का प्रश्न है यह बात सही है कि संविधान में भारत को राज्यों के संघ के रूप में वर्णित किया गया है। लेकिन उनका यह कहना कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, संविधान, संविधान की भावना और इस देश की सांस्कृतिक सोच सभी के खिलाफ है। भारत का संविधान कहता है कि इंडिया यानि भारत राज्यों का संघ होगा, भारत कहते ही यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यह देश भारत है। भारत शब्द कहते ही हमारे सामने एक भौगोलिक चित्र के साथ-साथ हजारों वर्षों की सांस्कृतिक धरोहर की अनुभूति आ जाती है। विष्णु पुराण में भी भारत के भौगोलिक स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा गया है - उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।/वर्ष तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।। अर्थात् समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो भूमि स्थित है, उसे भारत भूमि कहते हैं, और इस पवित्र भारत भूमि पर निवास करने वाले लोगों को भारतीय कहा जाता है।
भारत को एक राष्ट्र के रूप में मात्र इसलिए नहीं जाना जाता कि वह एक भू-भाग है, बल्कि इसलिए भी जाना जाता है कि भारत विश्व की सबसे पुरानी एवं जीवित संस्कृतियों में से एक है जिसमें विविधताओं के साथ-साथ यहां की संस्कृति में एकात्म भाव देखने को मिलता है। यह एक स्थापित सत्य है कि भारत में विभिन्न मत संप्रदाय, असंख्य भाषाएं, बोलियां, वेश-भूषा, जातियां, रीति-रिवाज, आदि पाए जाते हैं, उसके बावजूद भी पुरातन काल से ही हमारी संपूर्ण रचना एकात्मता पर आधारित है।
पश्चिमी देशों में नेशनलिज़म की परिभाषा उनकी भाषा, सम्प्रभु, राज्य, भौगोलिक सीमा, जनता की इच्छाशक्ति, आदि के आधार पर दी जाती रही है। इन्हीं तत्वों के आधार पर पाश्चात्य विचारक नेशनलिज़म का विचार करते हैं। यूरोप में नेशनलिज़म की अवधारणा बहुत पुरानी नहीं है। यूरोप के अलग-अलग देशों ने अलग-अलग वर्षों में नेशनहुड प्राप्त किया। यानि कहा जा सकता है कि यूरोप के देशों में नेशनलिज़म प्रारंभिक काल से नहीं था। इस नेशनलिज़म के निर्माण एवं ध्रुवीकरण की प्रक्रिया में राजा और राजनेताओं का बड़ा योगदान रहा। इसकी तुलना में यदि भारत में देखते हैं तो भारत की राष्ट्रीयता किसी राजा, भाषा अथवा राज्य शासन पर आधारित नहीं रही। बहुत से राजा अलग-अलग समय में देश के अलग-अलग भागों में शासन करते रहे। संपूर्ण भारत अधिकांश समय किसी एक राजा के आधिपत्य में नहीं रहा। स्वतंत्रता से पूर्व कभी भी देश में एक जैसे नियम-कानून लागू नहीं रहे, तो भी भारत को हमेशा से एक राष्ट्र माना जाता रहा है। ऐसा क्या है कि भारत की राष्ट्रीयता हजारों वर्षों से अक्षुण्ण रही है, जबकि पश्चिम के विचारक और उनके विचारों से अभिभूत भारत के कुछ विचारक भारत की राष्ट्रीयता को पश्चिम के नेशनलिज़म के पैमाने से नापने की कोशिश करते हैं, जबकि पश्चिम में नेशनलिज़म अपेक्षाकृत एक नई एवं संकीर्ण अवधारणा है, जो 15वीं और 16वीं शताब्दी में ही रूप ले पाई।
ऐसे में वे लोग जो भारत की राष्ट्रीयता को पश्चिम के चश्मे से देखना चाहते हैं, उन्हें भारत कोई एक राष्ट्र था और है, यह बात समझ में नहीं आती। उन्हें लगता है कि राष्ट्र से अभिप्राय किसी एक राज्य व्यवस्था के आस्तित्व से है, इसलिए वे इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस इत्यादि युरोपीय देशों के राष्ट्रवाद को तो मान्यता देते हैं, लेकिन भारत के राष्ट्रवाद को नकारते हैं।
जो लोग नेशनलिज़म की यूरोपीय अवधारणा से अभिभूत हैं, उन्हें भारत की राष्ट्रीयता समझ में नहीं आती। ऐसा देश जिसे हजारों वर्ष पहले लिखे पुराणों में भी एक राष्ट्र माना गया है, जहां विभिन्न भाषाओं, रीति-रिवाजों, जात-विरादरियों, पूजा पद्धतियों के बावजूद एक एकात्मता का भाव है, जहां हजारों वर्षों से लोग देश की चारों दिशाओं में तीर्थों के लिए जाते हैं, जहां विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग राज्य व्यवस्था होते हुए भी एक राष्ट्रीय विचार हमेशा उपस्थित रहा है, उसे वे राष्ट्र मानने के लिए तैयार नहीं है। उनको ऐसा लगता है कि ब्रिटिश शासन आने के बाद ही देश में एक राज्य व्यवस्था लागू हो सकी, इसलिए भारत को एक राष्ट्र बनाने के लिए ब्रिटिश शासन ही जिम्मेवार है।
लेकिन वे लोग जिनकी यह दृढ़ मान्यता है, और जो सही भी है कि भारत जिसमें विविधताओं के बावजूद लोगों में एकात्म भाव है, जिसकी अपनी एक सांस्कृतिक पहचान, विरासत एवं एकता विभिन्न प्रकार से परिलक्षित होती है, वे यह मानने के लिए कतई तैयार नहीं कि भारत की राष्ट्रीयता ब्रिटेन के शासन की कर्जदार है। जहां आजादी की लड़ाई में देश के कोने-कोने से भारत को आजाद करने के लिए लड़ाई लड़ी गई, पंजाब से भगत सिंह, महाराष्ट्र से राजगुरू, मध्य प्रदेश से चंद्रशेखर आजाद, आदि अनेकों क्रांतिकारी वीरों ने अपनी जान की आहुति दी, जहां तमिलनाडू से सुब्रमण्यम भारती जैसे वीरों ने अपनी क्रांतिकारी लेखनी एवं गीतों से ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी, उड़ीसा में जन्मे सुभाष चंद्र बोस ने वैश्विक स्तर पर गठजोड़ करते हुए ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी, ऐसे भारत को एक राष्ट्र न मानना, केवल एक नासमझी नहीं कही जा सकती, इसमें एक षडयंत्र की बू भी आती है।
श्री राहुल गांधी द्वारा यह कहना कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, देश विरोधी वक्तव्यों एवं राष्ट्रद्रोह के आरोपों से घिरे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों के साथ उनकी निकटता की भी याद दिलाता है। यह बात छुपी हुई नहीं है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारत के टुकड़े-टुकड़े करने संबंधी नारे लगाए गए थे, और उन आरोपों से घिरे छात्रों के साथ श्री राहुल गांधी न केवल मिलते जुलते रहे, बल्कि उनमें से एक को तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल करते हुए, चुनाव प्रत्याशी भी बनाया गया। ऐसे में कहीं जाने-अनजाने में श्री राहुल गांधी उनके वक्तव्यों से इतने प्रभावित तो नहीं हो गए हैं कि उन्होंने भारत को एक राष्ट्र नहीं होने की बात तक कह दी। हालांकि अभी तक आजादी से पहले और आजादी के बाद भी कांग्रेस के किसी नेता ने भारत एक राष्ट्र नहीं है, जैसी बात नहीं कही है। ऐसे में देश के सभी राजनेताओं, विचारकों एवं देश को दिशा देने वाले अन्य महानुभावों द्वारा श्री राहुल गांधी को यह बात समझाने की जरूरत है कि अपने इस प्रकार के बयानों से देश के दुश्मनों, जो इसके टुकड़े-टुकड़े करना चाहते हैं, की मंशा को सफल करने में सहयोगी न बने।
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