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खुशी की गिनती में पीछे, पर खुशहाली में अव्वल है भारत

भारतीयों के आनंद की परिभाषा पाश्चात्य जगत के परिभाषा से अलग है। पाश्चात्य जगत गिने जाने वाले आनंद में विश्वास करता है जबकि भारतीय अंतरमन में शाश्वत आनंद के अनुभव में विश्वास करता है जो गिनने-गिनाने से परे होता है। — अनिल जवलेकर

 

आनंद की कल्पना भारतीयों के लिए नई नहीं है। हर भारतीय की मन से यह इच्छा रहती है कि वह जीवन में आनंद प्राप्त करें। यह बात सही है कि भारतीयों के आनंद की परिभाषा पाश्चात्य जगत के परिभाषा से अलग है। पाश्चात्य जगत गिने जाने वाले आनंद में विश्वास करता है जबकि भारतीय अंतरमन में शाश्वत आनंद के अनुभव में विश्वास करता है जो गिनने-गिनाने से परे होता है। गिने जाने वाले आनंद को हम खुशी कह सकते है क्योंकि यह बदलते बाह्य जगत के प्रभाव का परिणाम है न कि आंतरिक अनुभूति का प्रत्यय। ऐसी खुशी की एक रिपोर्ट हर साल आती है जो हर साल दुनिया के खुश लोगों के बारे में जानकारी हासिल करती है और जहाँ इस तरह के खुश लोग ज्यादा है उस देश को ‘खुशहाल’ देश जाहिर करती है। भारत ऐसी गिनती वाली खुशी के देशों में हमेशा पीछे रहता है। इसका मतलब यह नहीं लेना चाहिए कि भारत के लोग खुशी को नहीं समझते और वे खुश नहीं रहते। खुशी की गिनती में हम जरूर पीछे होंगे लेकिन आनंद की अनुभूति में शायद दुनिया में सबसे आगे है।

खुशी की रिपोर्ट 

दुनिया के कुछ विशेषज्ञों ने मिलकर बनाई गई दुनिया की ‘खुशहाली रिपोर्ट 2022’ हाल ही में प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट के अनुसार 2020-21 वर्ष में खुश देशों के सूची में भारत की स्थिति 146 देशों में 136 नंबर पर थी। इसका मतलब यह है कि भारत सबसे कम खुश देशों में आता है। अर्थात सबसे खुश देशों में जैसे यूरोपीय समृद्ध  देश है वैसे अमरीका, कनडा और अरब जैसे और भी समृद्ध देश ही है। इससे यह बात तो स्पष्ट है कि इस खुशी का नाता सुख-समृद्धि से ज्यादा है। कुछ संकेतों को सामने रखकर  देश की परिस्थिति और उससे संबंधित देश के लोगों की प्रतिक्रिया को आधार बनाकर खुशी की यह रिपोर्ट तैयार की जाती है।  

खुशी जानने का तरीका 

रिपोर्ट बनाने वाले यह विशेषज्ञ ‘ग्यालप सर्वे’ से जमा डाटा का उपयोग करते है। ग्यालप एक जनमत संग्रह करने वाली कंपनी है जो सवाल-जवाब के जरिये ऐसे सर्वे करती रहती है। खुशी तय करते समय कुछ संकेतों का संदर्भ लिया जाता है जिसमें देश में प्रति व्यक्ति ‘जीडीपी’ कितनी है, सामाजिक सुरक्षा का क्या हाल है, स्वस्थ आयु की संभावना क्या है, जीवन जीने की कितनी स्वतंत्रता है, लोग कितने उदार है, भ्रष्टाचार और आतंक की स्थिति कैसी है तथा लोगों में आत्मविश्वास कैसा है वगैरे मुख्य है। यहाँ यह भी बात ध्यान रखना जरूरी है कि विश्लेषण का आधार ‘सर्वे’ के सवाल-जवाब पर निर्भर होता है जो सवाल व्यक्ति को पूछे गए है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि व्यक्ति अपने समझ के अनुसार सवाल के जवाब देता है। 

खुशी की अभिव्यक्ति उपयोगी 

रिपोर्ट उसी खुशी की बात करती है जो बाह्य वस्तु व सेवा के सेवन एवं अच्छी सामाजिक सुरक्षा, अच्छा सामाजिक वातावरण और अच्छी आर्थिक स्थिति से प्राप्त होती है और यह कहने की जरूरत नहीं है कि यह व्यक्ति सापेक्ष तथा परिस्थिति सापेक्ष होती है। इसलिए यह खुशी व्यक्ति की मात्र अपनी भावना की अभिव्यक्ति है जो उसने विशिष्ट संदर्भ में विशेष सवाल के जवाब देते समय महसूस की है। इससे खुशी का एक सामान्य अनुमान लगाया जा सकता है न कि खुशी की कोई निश्चिति की जा सकती है। हाँ, खुशी की यह सोच और अभिव्यक्ति सरकार को अपनी आर्थिक नीति विशेष तौर पर जनसाधारण को सुख सुविधा मिले ऐसी व्यवस्था बनाने में मदद कर सकती है और यही इस रिपोर्ट से अपेक्षित है। 

आनंद और खुशी अलग-अलग 

खुशी एक मानसिक स्थिति कही जा सकती है जो हर व्यक्ति के मनःस्थिति अनुसार बदलती है। और यह बात कई संदर्भ में अलग-अलग होती है। कम या ज्यादा खुशी की बात भी चर्चा का विषय होती है। ईर्षा और स्पर्धा के जमाने में दूसरे की हार भी खुशी का कारण बन सकती है। इसलिए खुशी की बात खुशी के व्यक्त संदर्भ में ही देखी जानी चाहिए या समझनी चाहिए और उसकी तुलना आनंद से नहीं करनी चाहिए। आनंद किसी भी खुशी से अलग माना जाता है क्योंकि उसकी भारतीय परिभाषा आध्यात्मिक ज्यादा है और भौतिक जीवन संघर्ष में मिलने वाली खुशी से अलग है। यह माना जाता है की खुशी का संदर्भ सुख-समृद्धि से है और संसाधनों के होने न होने से जैसे यह बढ़ती या घटती है वैसे ही सामाजिक सुरक्षितता वगैरे का भी उस पर असर होता है। ‘डर’ के माहौल में समृद्धि भी खुशी नहीं दे सकती। इसलिए जीवन की सुरक्षितता और जीवन जीने योग्य सामाजिक सहकारिता महत्वपूर्ण कही जा सकती है। निश्चित तौर पर सांसारिक जीवन में सुख के साधन होना आवश्यक है और उसका अभाव व्यक्ति और समाज के अस्वस्थता का कारण बन सकता है तथा खुशी कम होने का कारण भी माना जा सकता है। इसलिए सरकार भी भौतिक समृद्धि को आवश्यक मानती है और समाज के सभी घटकों का जीवन सुखमय हो ऐसी व्यवस्था निर्माण करने का प्रयास करती है जिससे लोगों की खुशी बढ़े और देश भी खुशहाल हो।

भारत का हाल बहुत अच्छा नहीं है 

निश्चित तौर पर भारत अभी भी विकासशील देश है। भारत का प्रति व्यक्ति जीडीपी समृद्ध देशों के मुक़ाबले बहुत ही कम है और उससे ही समृद्धि और खुशी की बात आँकी जा सकती है। भारत सरकार को अपनी 80 प्रतिशत जनता को मुफ्त में अनाज देना पड़ता है और रोजगार की उपलब्धि के लिए रोजगार गारंटी योजना चलानी पड़ती है इससे इसका अंदाजा हो सकता है। गरीबी लोगों को बहुत सी वस्तु एवं सेवा के सेवन से वंचित रखती है जो खुशहाली में बाधा बनती है। आयु-संभाव्यता की बात करें तो जापानी भारतीयों से 10 साल ज्यादा जीने की उम्मीद रख सकता है। भारतीयों की आयु-संभाव्यता कम होने की वजह आरोग्य सुविधा की कमी कही जा सकती है। सामाजिक सुरक्षा का हाल अपने देश में बहुत अच्छा है ऐसा नहीं कहा जा सकता। भ्रष्टाचार भी कम नहीं हुआ है। निश्चित ही भारत को अपनी कायदा और कानून व्यवस्था और उससे जुड़ी न्याय व्यवस्था में सुधार करना पड़ेगा तभी लोग सुरक्षित महसूस करेंगे। यह जरूर है कि पिछले कुछ सालों से आतंकवाद कम हुआ है जो अच्छी बात है। 

यह खुशी भी महत्वपूर्ण है 

दुनिया जिसे खुशी समझती है वह भौतिक संसाधनों के संदर्भ में लागू होती है और ऐसी खुशी का अपना  महत्व है जिसे नकारा नहीं जाना चाहिए। यह सही है कि भारतीयों ने अपना आनंद भौतिकता के त्याग में देखा है। लेकिन यह भी सही है कि भारतीय दर्शन शास्त्र जीवन के आनंद में भी विश्वास करता है और गृहस्थाश्रम में कर्म द्वारा प्राप्त भौतिक समृद्धि और सुख महत्वपूर्ण मानता है। निश्चित ही  इस सुख से मिलने वाली खुशी महत्व की है। व्यक्ति और समाज जब समृद्ध होकर भौतिक जीवन में सुखी होता है तभी अपनी खुशी को अभिव्यक्त कर पाता है और तब वह समाज खुशहाल देश की पहचान बनता है।        

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