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औद्योगिक क्रांति 4.0ः तैयारी उड़ने की

आम तौर पर औद्योगिक क्रांति 4.0 के आयामों के संबंध में भारत के विकास पथ के बारे में आम सहमति है, लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन और रोबोटिक्स के उपयोग पर अभी कुछ हलकों में आपत्तियां हैं। - डॉ. अश्वनी महाजन

 

23 अगस्त 2023 को भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग करके इतिहास रच दिया है। भारत चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने वाला दुनिया का चौथा देश और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बन गया है। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की न तो पहली उपलब्धि है, और न ही आखिरी। लेकिन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह कुशल और लागत प्रभावी है। उदाहरण के लिए, जबकि अन्य देश अपने चंद्रमा मिशनों पर भारी खर्च कर रहे हैं, चंद्रयान अभियान की लागत केवल 615 करोड़ रुपये ही है। पिछले कुछ समय में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है।

1993 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पहली बार ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) लांच किया। हालाँकि इसे भारत के रिमोट सेंसिंग उपग्रहों को सूर्य-समकालिक कक्षा में स्थापित करने के लिए लांच किया गया था, अब तक इसने 58 उड़ानें लांच की हैं, जिनमें से 55 पूरी तरह से सफल, एक आंशिक रूप से सफल और दो असफल रही हैं। प्रत्येक प्रक्षेपण की लागत उसकी वहन क्षमता के आधार पर 130 करोड़ रुपये से 200 करोड़ रुपये के बीच होती है। लेकिन हमारे देश और दूसरे देशों के सैटेलाइट लांच करके ‘इसरो’ को जो कमाई होती है, वो उससे कहीं ज्यादा है। उल्लेखनीय है कि पीएसएलवी की 37वीं उड़ान ने सबसे किफायती तरीके से एक साथ 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित कर इतिहास रचा था।

सच तो यह है कि विश्व के अधिकांश विकसित देश भी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की सहायता से ही अपने उपग्रह प्रक्षेपित करते हैं, क्योंकि ‘इसरो’ जिस मितव्ययता से यह कार्य करने में सक्षम है, उसका मुकाबला कोई भी देश नहीं कर सकता।

भारत की एक और तकनीकी उपलब्धि है, जिसने दुनिया का ध्यान खींचा है, वह है ‘यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस’ (यूपीआई)। गौरतलब है कि साल 2022 में देश में कुल 149.5 लाख करोड़ रुपये का ऑनलाइन लेनदेन हुआ। इनमें 126 लाख करोड़ रुपये के भुगतान सिर्फ यूपीआई के माध्यम से किये गये। पिछले साल देश में कुल मिलाकर लगभग 88 बिलियन ऑनलाइन लेनदेन दर्ज किए गए। अगस्त 2023 में ऑनलाइन लेनदेन 10 बिलियन का आंकड़ा पार कर गया है। ‘प्राइस वॉटरहाउस कूपर’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2026-27 तक ऑनलाइन भुगतान की संख्या एक अरब प्रतिदिन तक पहुंच सकती है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया में होने वाले सभी ऑनलाइन लेनदेन में भारत का हिस्सा 40 प्रतिशत से अधिक है।

अगर हम यूपीआई के माध्यम से ऑनलाइन लेनदेन की लागत कुशलता की बात करते हैं तो हमें पता चलता है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के व्यय बजट के तहत 2023-24 के लिए डिजिटल भुगतान उद्योग के लिए मुश्किल से 1500 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया गया है। लेन-देन की मात्रा को देखते हुए, यह मुश्किल से उसका 0.0001 प्रतिशत है। यह संख्या हमारी स्वदेशी भुगतान प्रणाली की लागत प्रभावशीलता का द्योतक है और यह प्रौद्योगिकी से ही संभव हुआ है।

पूरी दुनिया में यूपीआई का कोई सानी नहीं है। यूपीआई की शुरुआत से पहले, सभी भुगतानों के लिए ऑनलाइन लेनदेन क्रेडिट और डेबिट कार्ड के माध्यम से होता था। 2014 से पहले सभी क्रेडिट और डेबिट कार्ड दो अंतरराष्ट्रीय दिग्गज वीजा और मास्टरकार्ड के हुआ करते थे। इन कार्डों के माध्यम से लेनदेन एक बड़े कमीशन के अधीन थे, जो 1 प्रतिशत से 2.5 प्रतिशत के बीच था। अंतरराष्ट्रीय भुगतानकर्ताओं द्वारा यूपीआई के उपयोग के लिए यूपीआई में एक नई सुविधा जोड़ी गई है, जिसे यूपीआई इंटरनेशनल कहा जाता है। जिससे क्यूआर कोड की मदद से भारतीय बैंक खातों से विदेशी बैंकों में भुगतान किया जा सकेगा। भूटान, नेपाल, सिंगापुर, यूएई और मॉरीशस में यूपीआई भुगतान पहले से ही संभव था और अब फ्रांस भी इस सूची में शामिल हो गया है।

औद्योगिक क्रांति 4.0 की तैयारी

हम औद्योगिक क्रांति 4.0 के युग में जी रहे हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि भारत पहली तीन औद्योगिक क्रांतियों में पिछड़ गया था। औद्योगिक क्रांति 1.0 में, उत्पादन को पानी और भाप से यंत्रीकृत किया गया था। विदेशी शासन के कारण हम इससे चूक गये। दूसरी औद्योगिक क्रांति, जिसने बिजली से चलने वाले मशीनीकरण का उपयोग शुरू किया, को सार्वजनिक क्षेत्र की प्रबलता और नवाचारों के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं होने के कारण भारत में ज्यादा सफलता नहीं मिली। इसके अन्य कारण थे देश में बिजली की कमी और अनुसंधान और विकास का अभाव। सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स की तीसरी औद्योगिक क्रांति, हम इससे भी चूक गए, क्योंकि जब इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग तेजी से बढ़ रहा था और चीन दुनिया में इन उत्पादों के लिए विनिर्माण का केंद्र बन रहा था, देश में नवाचार की कमी और सरकार के उदासीन रवैये ने देश में आईटी से संबंधित उत्पादों के उत्पादन में बाधा उत्पन्न की। हालाँकि, सॉफ्टवेयर कंपनियाँ देश में बड़े पैमाने पर विकसित हुईं, जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों के लिए सॉफ्टवेयर विकसित कर रही थीं।

आज औद्योगिक क्रांति 4.0 का समय है, जो तीव्र तकनीकी विकास से जुड़ा है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन, रोबोटिक्स, जीन एडिटिंग और तमाम तरह की स्मार्ट टेक्नोलॉजी, मशीन-टू-मशीन कम्युनिकेशन और इंटरनेट ऑफ थिंग्स के जरिए बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। यह समझना होगा कि भले ही भारत पहली तीन औद्योगिक क्रांतियों में पिछड़ गया था, लेकिन चौथी औद्योगिक क्रांति में भारत दुनिया में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरने की क्षमता रखता है। हमारे युवा, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डिजिटल विशेषज्ञ, इंजीनियर, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सभी इस प्रयास में लगे हैं कि औद्योगिक क्रांति 4.0 में भारत दुनिया में पहली पंक्ति में खड़ा हो। भारत ने अंतरिक्ष और भुगतान बुनियादी ढ़ांचे के निर्माण में अपनी प्रतिभा का भरपूर प्रदर्शन किया है। भारत के युवा स्टार्ट अप्स के माध्यम से चिकित्सा में रोबोटिक्स, ड्रोन, डिजिटलाइजेशन समेत कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय और सराहनीय कार्य कर रहे हैं। नए विचारों वाले लगभग एक लाख स्टार्ट-अप विभिन्न प्रौद्योगिकियों के विकास और नवाचार में लगे हुए हैं। हमारा अब तक का अनुभव बताता है कि हम अपने नए विचारों, बुद्धिमत्ता और भारतीय युवाओं के कौशल से औद्योगिक क्रांति 4.0 में आसानी से उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं।

5जी आई जैसी तकनीकें दुनिया को आश्चर्य चकित कर रही हैं और स्थापित विदेशी तकनीकों को चुनौती दे रही हैं। आज देश में चल रहे इन प्रयासों को गति देने का समय है। इसके लिए देश में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना और नवाचार को बढ़ावा देना जरूरी है। अब तक की उपलब्धियाँ उत्साहवर्धक हैं और वर्तमान प्रयासों को जारी रखने की आवश्यकता है।

वास्तव में, हम औद्योगिक क्रांति 4.0 के लगभग सभी घटकों में आगे बढ़ रहे हैं। इसका मुख्य कारण है व्यक्तिगत पहल को प्रोत्साहन और इसके लिए अनुकूल माहौल। यदि हम भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि भारत का स्वर्णिम काल वह था जब उत्पादन विकेंद्रीकृत था और माहौल व्यक्तिगत उद्यमियों के लिए अनुकूल था। आज यह भारत के लिए सही समय है, जहां हमारे उद्यमी, स्टार्ट-अप, वैज्ञानिक, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ भारत को औद्योगिक क्रांति 4.0 की ओर तेजी से ले जाने के लिए तैयार हैं।

हालाँकि, आम तौर पर औद्योगिक क्रांति 4.0 के आयामों के संबंध में भारत के विकास पथ के बारे में आम सहमति है, लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन और रोबोटिक्स के उपयोग पर अभी कुछ हलकों में आपत्तियां हैं। लेकिन हमें यह समझने की जरूरत है कि भारत ने इन प्रौद्योगिकियों में क्षमताएं विकसित की हैं और वह इन क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान कर सकता है। हम इन उत्पादों में वैश्विक सेवा प्रदाता और उत्पादक बन सकते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि भारत को केवल सेवाओं पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए और विनिर्माण की बस में नहीं चढ़ना चाहिए। लेकिन विशाल संसाधनों और कौशल वाले देश में यह कोई बुद्धिमानी भरा सुझाव नहीं है। हम सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट हो सकते हैं।   

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