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विदेशी मीडिया में भारत विरोधः कारण और निवारण

भारत विरोधी प्रचार वैश्विक भुखमरी सूचकांक, मीडिया स्वतन्त्रता, पर्यावरण, को लेकर अमर्यादित और अमान्य आंकड़ों के साथ किया जाता है। इस विदेशी दुष्प्रचार का कोई नियम, कानून नहीं है। — विनोद जौहरी

 

बहुत समय से विदेशी मीडिया में भारत का विरोध हो रहा है। यह विरोध धर्म, जाति और समाज व्यवस्था, पर्यावरण के नाम पर, अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण, किसान आंदोलन, नागरिकता संशोधन, हिजाब जैसे कितने ही मुद्दों पर देखने को मिला हैं। पिछले आठ वर्षों में भारत आर्थिक शक्ति के रूप में दसवें स्थान से पांचवें स्थान पर पहुँच गया। भारत में बहुत बड़े बदलाव हुए हैं। सामरिक शक्ति के रूप में भारत अमेरिका, रूस, चीन के सामने महाशक्ति के रूप में स्थापित हुआ है और आयुध शक्ति में आत्मनिर्भर होने लगा है। अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण ने भारत की राजनीति की जीवन धारा मोड़ दी है। अयोध्या, काशी और उज्जैन के वैभव ने विश्व भर में बसे हिंदुओं का भारत में विश्वास और आस्था जाग चुका है। भारत में अपने अतीत के प्रति गौरव, धर्म और संस्कृति के प्रति गहरा विश्वास जाग्रत हो चुका है। कोरोना महामारी के कालखंड में जहां अमेरिका और चीन सहित सभी देशों की अर्थ व्यवस्थाएं अधोगति को प्राप्त हो रहीं हैं, वहाँ भारत लगातार सुदृढ़ स्थिति में है। अब हमारे उद्योग को विदेशी ऋण की आवश्यकता नहीं है और लगातार कॉर्पोरेट जगत में विदेशी ऋण की मांग घटी है। भारत किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था का ऋणी नहीं है। बस यही बातें विदेशी मीडिया और समाचार पत्रों में भारत विरोधी अनर्गल प्रलाप का कारण है। इसके पीछे यह भी मंशा है कि भारत में विदेशी निवेश न हो और भारत के उत्पादों पर विश्वसनीयता कम की जाए। अधिकतर यह विरोध यूरोपीय और इस्लामिक देश, अमेरिका, चीन से प्रायोजित होते हैं। इनमें वैश्विक संगठन, विदेशी सरकारें, निजी स्वयंसेवी संस्थाएं, एनजीओ, निजी स्वार्थों द्वारा संचालित थिंक टेंक, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, सोशल मीडिया सम्मिलित होते हैं। दुख की बात यह है कि पश्चिमी मीडिया के इस कुलीनतंत्र में कुछ भारतीय और भारतीय मूल के टिप्पणीकार भी शामिल हैं। जिन भारतीयों को भारत के उत्थान से परेशानी है, वे पश्चिमी मीडिया में लिखते हैं, ताकि भारत की छवि पर लगातार आघात हो। 

कोरोना काल में भी हमने इसका भयंकर रूप देखा था जब भारत की स्वास्थ्य तंत्र, मेडिकल सुविधाओं, चिकित्सा प्रणाली को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विपरीत टिप्पणियाँ की थीं। भारत विरोधी प्रचार वैश्विक भुखमरी सूचकांक, मीडिया स्वतन्त्रता, पर्यावरण, को लेकर अमर्यादित और अमान्य आंकड़ों के साथ किया जाता है। इस विदेशी दुष्प्रचार का कोई नियम, कानून नहीं है और राजनयिक स्तर पर कोई समाधान नहीं होता। दुष्प्रचार के नए नए आयाम, संस्थाएं और श्रोत उत्पन्न होते रहते हैं जिन पर कोई कार्यवाही नहीं होती। 

इस विदेशी भारत विरोधी प्रचार के आधार पर भारत में भी निजी स्वार्थों, राजनीतिक अजेंडे, विघटनकारी और सांप्रदायिक तत्वों द्वारा देश में भ्रामक और विद्वेषात्मक प्रचार किया जाता है। एक पुस्तक (पोलिटिक्स आफटर टेलीविजनः हिन्दू नेशनेलिज्म एंड दा रेशपिंग आफ दा पब्लिक इन इंडिया) में तो दूरदर्शन चैनल पर रामानन्द सागर के सबसे प्रसिद्ध धारावाहिक रामायण को प्रसारित करने के लिए भारत सरकार की आलोचना भी की थी। फ्रांस स्थित एक संस्था आरएसएफ़ द्वारा 180 देशों में भारत को जनवरी 2022 में 150 वें स्थान पर रखा गया है जबकि हमारे देश में ही खुलकर सभी टीवी चैनल, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ और सोशल मीडिया सरकार, हिन्दू धर्म और संस्कृति की आलोचना करते हैं। विश्व भुखमरी सूचकांक में भारत को 121 देशों में 107 वें स्थान पर रखा गया है जबकि इस वर्ष  भारत से 50 बिलियन अमेरिकी डालर के खाद्यान निर्यात हुआ हैं और हमारा देश कृषि में आत्मनिर्भर है। विदेशी मीडिया में भारत के विरुद्ध नकारात्मक समाचार अधिक प्रचारित होते हैं। चीन का ग्लोबल टाइम्स भारत के विरुद्ध लगातार दुष्प्रचार करता रहता है और भारत में गरीबी पर तंज़ कसता रहता है। 

बीते दिनों अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने नौकरी का एक अनोखा विज्ञापन दिया। वह भारत समेत दक्षिण एशिया क्षेत्र में बिजनेस संवाददाता की नियुक्ति के लिए ऐसे पत्रकार को ढूंढ रहा था, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत को लेकर आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाए। चाहे नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक मामले हों, पाकिस्तान के बालाकोट में वायुसेना की एयर स्ट्राइक हो, कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करना हो, नागरिकता संशोधन कानून लाना हो, या कोरोना महामारी से निपटना और विश्व की सहायता करना हो, इन सबको न्यूयॉर्क टाइम्स और उसके सम्बद्ध मीडिया संस्थानों ने असफल, विनाशकारी और आत्मघाती ही घोषित किया।

न्यूयॉर्क टाइम्स में कश्मीर पर मोदी और भारतीय सेना को खलनायक की तरह पेश किया जाता है। कश्मीर हमारे देश के सबसे संवेदनशील मुद्दों में है, लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स में कश्मीर के बारे में जब भी खबरें छपती हैं तो उनमें मोदी और भारतीय सेना को खलनायक की तरह पेश किया जाता है और पाकिस्तान-प्रायोजित अलगाववादियों और आतंकियों के अभिप्राय ही उद्धृत होते हैं। भले ही कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हो, पर पश्चिमी मीडिया ने पहले से ही तय कर लिया है कि कश्मीर में ‘आजादी’ की पुकार को अंतरराष्ट्रीय पटल पर प्रोत्साहित करना उसका उदारवादी कर्तव्य है। अमेरिका के ही वाशिंगटन पोस्ट और सीएनएन एवं ब्रिटेन के गार्जियन और बीबीसी भी इसी प्रकार भारत को नकारात्मक स्वरूप में दिखाते हैं।  

इस विदेशी दुष्प्रचार के कुछ और भी उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं। आपको याद होगा रामनवमी के दिन हमारे देश में शोभायात्राओं पर पत्थरबाजी हुई थी और भारत के कई शहरों में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की थी। अब इस पूरे घटनाक्रम के बाद एक झूठा सूचना तंत्र तैयार किया गया कि भारत में मुसलमान खतरे  में हैं। भारत की गुप्तचर संस्थाओं ने जब ये पता लगाने की कोशिश की तो पता चला कि ये सारे पोस्ट पाकिस्तान और अफगानिस्तान से लिखे जा रहे थे।  इस झूठे सूचना तंत्र के पीछे ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन का नाम सामने आया जिसके मालिक जॉर्ज सोरोस हैं। जॉर्ज सोरोस एक भारत विरोधी अमेरिकी कारोबारी है। इसके अलावा जॉर्ज सोरोस की संस्था भारत में कई वामपंथी मीडिया संस्थानों को फंड देती है।   

भारत जब कोरोना की सबसे भयानक मार झेल रहा था  ऐसे समय में दुनिया की प्रतिष्ठित टाइम मैगज़ीन ने अपने अंक में “इंडिया इन क्राइसिस” शीर्षक से कवर स्टोरी लिखी जिसके मुखपृष्ठ पर एक तस्वीर छापी गई। अपने कवर पेज पर देश के एक शहर के श्मशान में शव ले जाते परिजनों की तस्वीर प्रकाशित की। जबकि इसी समय में कोरोना से अमेरिका,ब्रिटेन व अन्य यूरोपीय देशों में हर रोज पांच-छह हजार लोगों की मौत हो रही थी।  

पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर भारत के खिलाफ हैशटैग को ट्रेंड करने के लिए बकायदा एक ’ट्वीट आर्मी’ है।  हजारों की संख्या में हैशटैग को ट्वीट करने और उन्हें ट्रेंड कराया जाता है। यही नहीं दुनिया भर में बैठे पाकिस्तानियों ने फेक लोकेशन से 1 लाख से ज़्यादा भारत विरोधी कमेंट लिखे। जानकारी के मुताबिक 30 देशों से 40 भाषा और करीब 46 हज़ार प्रोफाइल के जरिये भारत के खिलाफ तमाम आधारहीन बातें दुनिया भर में फैलाई गई। जाहिर है खाड़ी देशों से भारत के संबंध बिगाड़ने की साजिश के तहत पाकिस्तान से नूपुर शर्मा से जुड़े हैशटैग को ट्रेंड कराया गया।  

ऐसे में निम्न सुझावों के जरिये भारत विरोधी स्वर रोका जा सकता है- 

1.    भारत में विभिन्न धर्म, संस्कृतियाँ, भाषाएँ और उत्सव हैं, इस विविधता और सुंदरता को हम मीडिया में अपनी शक्ति और समृद्धि के रूप में प्रदर्शित कर सकते हैं। 

2.    अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न संगठनों जैसे यूनेस्को, ब्रिक्स, विश्व व्यापार संगठन और विभिन्न गैर सरकारी संगठनों में भारत अपने विकास, शिक्षा, संस्कृति की समृद्धि को जोरदार तरीके से प्रदर्शित कर सकते हैं।  

3.    विदेशी मीडिया को विशाल और समृद्ध भारत के विषय में बहुत कम जानकारी है। समय समय पर सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं विदेशी मीडिया संस्थानों को भारत में भारत दर्शन के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। 

4.    विभिन्न देशों में स्वतंत्र दिवस, गणतन्त्र दिवस, दीपावली पर भारतोत्सव और व्यापार मेले आयोजित किए जा सकते हैं जिस से वहाँ के नागरिकों को भारत के बारे में जानने को उत्सुकता पैदा हो और भारत के विरोधी मीडिया प्रचार को प्रतिकार का सामना करना पड़े। 

5.    एक बहुत महत्वपूर्ण विषय यह भी है कि विदेशी मीडिया में भारत का निवेश प्रारम्भ हो। तभी विदेशों में भारत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होने लगेगा। 

6.    वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मुंबई में चल रही बैठक और भविष्य में आयोजित होने वाले जी 20 के होने वाले सम्मेलन में भारत के पास अवसर हैं कि भारत के सफल लोकतन्त्र, विकास और राजनीतिक विविधता के हमारे लोकतन्त्र में बहुत समवेशी संदर्श को विश्व के पटल पर रखे। 

7.    सरकार ‘दूरदर्शन इंटरनेशनल’ चैनल खोलने के प्रस्ताव पर अगर शीघ्रता और बुद्धिमानी से अमल करे तो भारत के अनुकूल अंतरराष्ट्रीय लोकमत बनाना संभव है। 

8.    केंद्र सरकार का सांख्यकी और कार्यक्रम कार्यान्वययन मंत्रलाय वह सभी आंकड़े तैयार कर अंक जारी करे, जिनके बारे में भ्रामक जानकारी फैलाई जाती है।   

 

विनोद जौहरीः पूर्व अपर आयकर आयुक्त  
 

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