swadeshi jagran manch logo

बीटी बैंगन परीक्षणों को जल्द से जल्द रोकने का अनुरोध, क्योंकि वे राष्ट्रीय हित में नहीं

सेवा में
भारत के माननीय प्रधानमंत्री
भारत सरकार, नई दिल्ली

 

विषयः बीटी बैंगन परीक्षणों को जल्द से जल्द रोकने का अनुरोध, क्योंकि वे राष्ट्रीय हित में नहीं

आदरणीय नरेंद्र मोदी जी,
नमस्कार!

हम यह पत्र हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) की पिछली बैठक में परेशान करने वाले निर्णयों को आपके संज्ञान में लाने हेतु लिख रहे हैं। समिति ने बीटी बैंगन प्रकार 142 हेतु बीआरएल-प्प् परीक्षण को अनुमति दी है, जो न तो उपभोक्ताओं, पारिस्थितिकी और न ही किसान के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। उन्होंने 8 राज्यों को इस विवादास्पद प्रौद्योगिकी के परीक्षण के लिए मार्ग प्रशस्त करने के लिए कहा है। हम इन परीक्षणों को जल्द से जल्द रोकने हेतु आपके व्यक्तिगत हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।

ध्यातव्य है कि जीएम फसलों को अनुमति विदेशी कंपनियों पर निर्भरता कम करने और घरेलू उपभोग के लिए और निर्यात के लिए अत्याधुनिक उत्पादों को विकसित करने के लिए विश्व स्तर के इको-सिस्टम को विकसित करते हुए, आपके द्वारा शुरू किए गए आत्मनिर्भरता अभियान को पराजित करने वाली है। यह बीटी बैंगन भी, महिको के बीटी बैंगन जैसा है, जिस पर फरवरी 2010 में एक अनिश्चित स्थगन लगाया गया था। यह पूरी तरह से अनावश्यक तकनीक है। सिंथेटिक कीटनाशकों के उपयोग के बिना भी बैंगन में कीट प्रबंधन संभव है और इसके लिए वैज्ञानिक साक्ष्य भी मौजूद हैं। वास्तव में, बीटी बैंगन पर रोक के बाद भारत में बैंगन की पैदावार और उत्पादन में वृद्धि हुई, जो स्पष्ट रूप से दिखाती है कि इस तकनीक की जरूरत नहीं है।

यह उल्लेखनीय है कि बीटी बैंगन मूल रूप से नियामक पाइपलाइन में आगे इसलिए बढ़ सका, क्योंकि नियामक संस्थान में अत्यधिक गहरे हितों के टकराव रहे हैं।  उदाहरण के लिए, जब इस नए बीटी बैंगन को सभी प्रारंभिक अनुमतियां दी गईं थी, जीएम इवेंट डेवलपर और जैव सुरक्षा परीक्षण व्यक्ति, जो राष्ट्रीय पोषण संस्थान में थे, जिन्होंने इस बीटी बैंगन की विषाक्तता का परीक्षण किया था, दोनों, उद्योग लॉबी निकायों से भी जुड़े हुए थे। इस बीटी बैंगन पर विषाक्तता परीक्षणों के परिणामों के बारे में कई अन्य नियामकों द्वारा चिंता व्यक्त की गई थी, लेकिन इस बीटी बैंगन को अगले चरण में धकेलने के लिए इन आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गया था। अब, यह वाणिज्यिक खेती की मंजूरी के बहुत करीब खड़ा है।  बायोटेक उद्योग लॉबी अब फिर से सक्रिय हो गई है।

हम विनम्रतापूर्वक कहना चाहते हैं कि देश में बैंगन की कमी नहीं हैं, न तो गुणवत्ता में और न ही मात्रा में। इसके अलावा, चूंकि बैंगन इस उपमहाद्वीप की स्वदेशी फसल है, इसलिए दुनिया के इसी हिस्से में अधिकतम विविधता उपलब्ध है। इस विविधता के समाप्त होने के जोखिम को लेने का कोई मतलब नहीं है। इसके अलावा, बीटी कॉटन के 18 वर्षों के अनुभव से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि जीएम फसलों को लाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ बीज के स्वयं के संस्करण को ही विकसित करने के लिए काम करती हैं। इसके साथ, ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां न केवल बाजार पर एकाधिकार स्थापित कर लेती हैं, बल्कि कीमत भी तय करती हैं। अनुभव से पता चलता है कि इससे पहले कि आपकी सरकार बीटी कपास के बीज पर लगने वाले शुल्क को शून्य कर किसानों को कठिनाइयों से बचाती, मॉनसेंटो कंपनी किसानों से बौद्धिक संपदा के नाम पर 8000 करोड़ रुपये लूट चुकी थी। इसके अलावा, यह निर्णय देश की खाद्य सुरक्षा को भी खतरे में डालने वाला है।

अवैध एचटीबीटी कॉटन का लगातार प्रसार

हम आपके संज्ञान में लाना चाहते हैं कि आपकी सरकार द्वारा सख्त क़दम उठाए जाने के बाद भी एचटीबीटी का ग़ैर क़ानूनी प्रसार बेरोकटोक जारी है; और कॉर्पोरेट लॉबी के लोग नौकरशाहों को इस प्रक्रिया को धीमा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

एक तरफ हितों के टकराव के साथ ही ये लोग एचटीबीटी कपास के अवैध प्रसार के लिए काम कर रहे हैं, दूसरी ओर इसी ग़ैर क़ानूनी एचटीबीटी कपास को अनुमति देने हेतु प्रयास भी जारी हैं। यह जानते हुए भी कि उत्पाद उपभोक्ताओं, पारिस्थितिकी, न ही किसान के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, एचटीबीटी कपास के अवैध प्रसार के लिए जिम्मेदार अपराधी कंपनी को आमंत्रित किया जा रहा है। 2002 में, बीटी कॉटन की मंजूरी इस बात का साक्ष्य है कि नियामकों ने फसलों की अक्षमता की जांच लिए बिना जल्दबाजी में बीटी कपास को मंजूरी दे दी थी।

कृषि निर्यात ख़तरे में

जब भारत दुनिया भर में ग़ैर जीएम फसलों को निर्यात कर रहा है, तो ऐसे में जीएम प्रौद्योगिकी का चयन करके भारत अपनी व्यापार सुरक्षा को खतरे में नहीं डाल सकता है। गैर-जीएम उत्पाद एक आला, सुरक्षित उपजें है जिससे वैश्विक बाजारों में भी हम उम्दा क़ीमत पा सकते हैं, और भारत को अभी यह लाभ है। ऐसे में जीएम फसल उत्पादन को अस्वीकार करने में हमें नहीं चूकना चाहिए और खुले क्षेत्र में परीक्षण भी नहीं करना चाहिए। वास्तविकता यह है कि जिन देशों ने शुरू में जीएम फसलों को अपनाया था, वे वास्तव में उसी को छोड़ चुके हैं। यदि भारत गैर-जीएम खेती की मौजूदा ताकत का लाभ नहीं उठाता है, तो यह भारत की ही गलती होगी और हम गैर-जीएमओ टैग को खोकर हमारे निर्यात को खतरे में डाल देंगे।

महामारी के बाद, विश्व स्तर पर सोच बदल रही है। विश्व स्वास्थ्यप्रद विकल्पों की तलाश में है, न कि अधिक उत्पादन या जीएम फसलों के। स्वदेशी जागरण मंच जैविक और प्राकृतिक खेती के लिए आपके आह्वान का पूरी तरह से समर्थन करता है। यह भारत के लिए दुनिया को दिखाने का समय है कि हम पर्यावरण के साथ-साथ अपने लोगों की आवश्यकता और स्वस्थ जीवन के साथ संतुलन कैसे बना सकते हैं। जीएम हमारी सोच के विपरीत है। यह हमारे कथन के भी अनुकूल नहीं है, न ही हमें इसकी आवश्यकता है। हम भारत को विश्व के स्वस्थ खाद्य स्रोत के रूप में देखना चाहते हैं। लेकिन जीएम फसलें इसके विपरीत असर करेगी।

हमें यकीन है कि आप हमारे किसान को आत्मनिर्भर और उपभोक्ताओं को अस्वास्थ्यकर भोजन से मुक्त बनाने हेतु खेती में जीएम फसलों पर तुरंत रोक लगाएंगे। 

सादर,

डॉ. अश्वनी महाजन
राष्ट्रीय सह संयोजक

Share This

Click to Subscribe