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ऐतिहासिक करवट के प्रतीक ऋषि सुनक

ऋषि सुनक सिर्फ भारतीय मूल से संबंध नहीं रखते, बल्कि भारत की सनातन परंपरा इनकी व्यवहारिकता में भी शामिल है। ब्रिटेन के सबसे उच्च पद के लिए भी अपने संस्कारों से समझौता न कर अपने स्पष्ट इरादों को दुनिया के समक्ष उन्होंने पहले ही जाहिर कर दिया था। — डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

 

भारतीय मूल के ऋषि सुनक का ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होना, कई अर्थों में ऐतिहासिक घटना है। ब्रिटेन गर्व करता है कि उसके उदार लोकतंत्र में किसी भी रंग और धर्म का व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है। दूसरी और भारत को भी गर्व है कि उसके मूल का एक व्यक्ति अपनी प्रतिभा और क्षमता के बल पर उस ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बना है जो 75 साल पहले तक भारत का शासक था। गुलामी के सालों में भारत की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने वाले देश ब्रिटेन में सुनक की ताजपोशी वहां की बिगड़ चुकी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के गरज से की गई है। यही तो हमारा आदर्श है, यही तो हमारी सभ्यता है, यही तो हमारी संस्कृति है और यही हमारा वसुधैव कुटुंबकम का नारा है।

इतिहास पर नजर रखने वाले जानते हैं कि एक समय में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने भारतीयों की नेतृत्व और प्रशासनिक क्षमता का उपहास उड़ाया था। लेकिन आज उसी ब्रिटेन के प्रशासन की डोर भारतीय मूल के एक राजनेता के हाथ में आ चुकी है। सुनक से पहले भी कई भारतवंशी विभिन्न देशों के शासन अध्यक्ष बन चुके हैं लेकिन ब्रिटेन जैसे देश का प्रधानमंत्री भारतीय मूल का व्यक्ति पहली बार बना है। यह भारतीयों की प्रतिभा के बढ़ते प्रभुत्व को दर्शाती है।

भारतवंशी अपनी प्रतिभा और समर्पण के बदौलत हर दिशा और हर विधा में धीरे-धीरे छाते जा रहे हैं। विज्ञान के क्षेत्र में वर्ष 2008 में छपे इक्नामिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध विमानकी और अंतरिक्ष संस्था नासा में 36 प्रतिशत वैज्ञानिक और अमेरिकन एसोसिएशन आफ फिजिशियंस आफ इंडियन ओरिजिन के वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका के लगभग 30 प्रतिशत चिकित्सक भारतीय मूल के हैं। कमोबेश यही स्थिति व्यवसाय में भी है। भारतीय व्यवसायियों द्वारा स्थापित किए जा रहे व्यवसाय लगातार आगे बढ़ रहे हैं। विश्व की बड़ी कंपनियां भी भारतीय मूल के पेशेवरों को सर्वोच्च पदों पर नियुक्त कर रही है। अमेरिका की सिलिकॉन वैली में नियुक्त इंजीनियरों में एक तिहाई से अधिक भारत से हैं। पूरी दुनिया में लगभग 10 फ़ीसदी उच्च तकनीकी कंपनियों के सीईओ भारतीय मूल के हैं। और तो और राजनीति के क्षेत्र में भी 10 विभिन्न देशों में कुल 31 बार भारतीय मूल के व्यक्ति प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति रहे हैं।

भारतीय मूल के विश्व प्रसिद्ध उद्योगपतियों में आर्सेलर मित्तल, लक्ष्मी मित्तल, जेडी स्केलर, के. जय चौधरी, माइक्रोसिस्टम के पूर्व संस्थापक विनोद खोसला, वेदांता रिसोर्सेज के अनिल अग्रवाल, सिंफनी टेक्नोलॉजी ग्रुप के संस्थापक रोमेश वाधवानी, जैसे तमाम नाम शामिल है। आज हजारों की संख्या में अप्रवासी भारतीय विदेशों में अपना व्यवसाय संचालित कर रहे हैं। दुनिया भर के देशों में भारतीय उद्योगपतियों की लिस्ट तो लंबी हो ही रही है, उनकी नेटवर्थ और बाजार मूल्यांकन में भी तेजी देखी जा रही है। उदाहरण के तौर पर विनोद खोसला की नेटवर्थ 2020 के 2.3 अरब अमेरिकी डालर से 2 वर्ष में बढ़कर 5.3 अरब अमेरिकी डालर तक पहुंच गई है। वहीं रमेश वाधवानी की कुल संपत्ति 2020 के 3.4 अरब डालर के मुकाबले बढ़कर 5.1 डालर हो गई है। आईटी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी माइक्रोसाफ्ट के सीईओ सत्य नडेला भारतीय मूल के हैं। प्रसिद्ध इंटरनेट कंपनी अल्फाबेट के सुंदर पिचाई भी भारतीय मूल के हैं। सॉफ्टवेयर कंपनी एजेब के शांतनु नारायण, आईबीएम के अरविंद कृष्ण, एल.एम. वेयर के रंगराजन रघुराम, स्टार नेटवर्क की जयश्री, मास्टरकार्ड के अजय पाल सिंह बग्गा सहित अनेक भारतीय मूल के पेशेवर न सिर्फ लोकप्रिय हैं, बल्कि बहुत ही सही ढंग से आईटी और तकनीकी कंपनियों का संचालन कर रहे हैं। पहले भारतीय पेशेवरों को तकनीकी व्यवसाय तक सीमित माना जाता था लेकिन बार्कलेज केसीएस वेंकट आदि विभिन्न क्षेत्र में भारतीय मूल के पेशेवरों का प्रभुत्व स्थापित कर रहे हैं। कहने का आशय है कि भारतीय प्रतिभा और भारतीय मेधा का वर्चस्व लगातार विस्तृत हो रहा है।

फिर से लौट कर आते हैं ऋषि सुनक पर। सबको मालूम है कि ब्रिटेन आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है। लंदन में काबिल और मजबूत इरादों वाला व्यक्ति चाहिए था। प्रधानमंत्री मोदी ने यह मानक स्थापित किया है कि आधुनिक समय में एक विचारशील प्राणी जिसके अंदर इच्छाशक्ति हो, किसी भी देश की परंपरा को आधार बना, इसकी मौलिकता को कायम रखते हुए, आर्थिक सुधार को लाकर, अपने राष्ट्र को सही पटरी पर ला सकता है। ब्रिटेन ने ऋषि सुनक में जायज तौर पर यही सब खोजा होगा। 

ऋषि सुनक सिर्फ भारतीय मूल से संबंध नहीं रखते, बल्कि भारत की सनातन परंपरा इनकी व्यवहारिकता में भी शामिल है। ब्रिटेन के सबसे उच्च पद के लिए भी अपने संस्कारों से समझौता न कर अपने स्पष्ट इरादों को दुनिया के समक्ष उन्होंने पहले ही जाहिर कर दिया था। ऋषि सुनक का जन्म इंग्लैंड में हुआ किंतु इन्हें, परिवार में भारत के पंजाब में पैदा हुए दादा और पिता की परवरिश मिली। भारत में पैदा हुई, पली-बढ़ी अक्षता का संग मिला। दो बेटियां हैं और दोनों का नामकरण शुद्ध हिंदी शब्दों पर आधारित है। घर की जीवन पद्धति सनातन और भारतीय विचारों से संबद्ध रही है।

दरअसल गुलामी प्रथा के अंत होने के बाद ब्रिटेन को श्रमिकों की जरूरत पड़ी। जिसके बाद भारत से मजदूर बाहर के देशों में जाने लगे। भारत के बाहर जाने वाला प्रत्येक भारतीय अपने साथ एक छोटा भारत लेकर ही जाता है। भारतवंशी अपने साथ तुलसी का  रामचरित्रमानस, भाषा, खानपान एवं परंपराओं के रूप में भारतीय संस्कृति को लादे हुए ही घूमता हैं। यही कारण है कि फीजी, त्रिनिडाड, गुयाना सूरीनाम और मारीशस लघु भारत के रूप में उभरे।

इस फेहरिस्त में बहुत सारे नामों को गिनाया जा सकता है, खैर ऋषि सुनक का ग्रेट ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनना भारत और भारतवंशियों के लिए निश्चित ही गर्व की बात है। भारत से बाहर बसा हर एक भारतवंशी भारत का ब्रांड अंबेसडर होता है। इनकी सफलता से भारत का गर्व होना लाजमी भी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जो सिलसिला छेदी जगन ने शुरू किया और जिसे मारीशस में शिवसागर, रामगुलाम से लेकर अनिरुद्ध, जगन्नाथ, वासुदेव पांडे, चंद्रिका प्रसाद संतोषी, कमला हैरिस और अब ब्रिटेन में सुनक ने आगे बढ़ाया है, वह आगे भी निरंतर आगे बढ़ता रहेगा और भारतवंशी भारत के बाहर भी बड़े-बड़े पदों पर आसीन होते रहेंगे।           

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