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विज्ञान, अनुसंधान, भारतीय कृषि और डॉ. स्वामीनाथन

श्रद्धांजलि

बात 1960 के दषक की है, जब भारत एक कृषि प्रधान देष होने के बावजूद ऐसी स्थिति में आ चुका था कि देष का खाद्यान्न उत्पादन हमारी बढ़ती हुई जनसंख्या के भरण-पोषण हेतु पर्याप्त नहीं हो पा रहा था। हमारी विदेषों पर निर्भरता भी बढ़ गई थी और देष को अमरीका के समक्ष गेहूं की आपूर्ति करने के लिए हाथ भी फैलाने पड़े थे। ऐसे में डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन ने हमारे कृषि वैज्ञानिकों की अगुवाई करते हुए कुछ ऐसे नए हाइब्रीड बीजों का विकास किया, जिसकी मदद से हमारे खाद्यान्न उत्पादन, विषेषतौर पर गेहूं और चावल में बहुत तेजी से वृद्धि हुई और देष खाद्यान्नों की दृष्टि से आत्मनिर्भर बना। गौरतलब है कि 1960-61 में हमारा कुल खाद्यान्न उत्पादन मात्र 82 मिलियन टन ही था, लेकिन 1964-65 में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित नई उच्च उत्पादकता वाली किस्मों के उपयोग के बाद 1970-71 तक हमारा खाद्यान्न उत्पादन 108 मिलियन टन और 1978-79 तक 132 मिलियन टन और 1990-91 तक 176 मिलियन टन तक पहुंच गया। चूंकि खाद्यान्न उत्पादन में इतनी तेजी से वृद्धि हुई थी कि इस स्थिति को हरित क्रांति का नाम दिया गया। यह हरित क्रांति डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व में हुई, इसलिए उन्हें भारत की इस हरित क्रांति का जनक भी कहा जाता है। 98 वर्ष की आयु में 28 सितंबर 2023 को डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन का देहांत हुआ और सम्पूर्ण देष में उन्हें भावभीनी विदाई दी। 

विज्ञान और गैर-विज्ञान की स्पष्ट समझ

आमतौर पर, यह देखा जाता है कि किसी भी कुल के वैज्ञानिक किसी भी नए आविष्कार या खोज के पर्यावरण और स्वास्थ्य प्रभाव के प्रति सजग नहीं रहते। लेकिन, डॉ. स्वामीनाथन एक ऐसे वैज्ञानिक थे, जो अच्छे और बुरे विज्ञान के बीच अंतर कर सकते थे। 1990 के दषक के अंत और 2000 की शुरुआत से, वैज्ञानिकों का एक समूह, जिन्हें जीएम वैज्ञानिक कहा जाता है, आनुवंषिक रूप से संषोधित जीव (जीएमओ) की शुरूआत के लिए वकालत कर रहे थे। लेकिन स्वामीनाथन ने इन जीएम बीजों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जब तक कि यह बिना किसी संदेह के साबित नहीं होता कि ये बीज स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं हैं।

हाल ही में उन्होंने इन जीएम बीजों को लेकर गंभीर चिंता जताई थी। डॉ स्वामीनाथन और उनके सह-लेखक द्वारा लिखित एक सहकर्मी-समीक्षा पत्रिका में प्रकाषित एक लेख में उन्होंने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि जीई (आनुवंषिक रूप से परिवर्धित) बीटी कपास भारत में विफल हो गया है। यह एक टिकाऊ कृषि प्रौद्योगिकी के रूप में विफल रही है और इसलिए, कपास किसानों के लिए आजीविका सुरक्षा प्रदान करने में भी विफल रही है, जो मुख्य रूप से संसाधन-विपन्न, छोटे और सीमांत किसान हैं,“ लेख के अनुसार, “... एहतियाती सिद्धांत को ख़त्म कर दिया गया है और कोई विज्ञान-आधारित और कठोर जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल के आधार पर जीएम फसलों का मूल्यांकन नहीं किया गया है।”

वह सिर्फ जीएम बीजों पर चिंता नहीं जता रहे थे, बल्कि अपना ’वैज्ञानिक धर्म’ भी निभा रहे थे। हालाँकि, उन्हें जीएम कट्टरपंथियों के क्रोध का सामना करना पड़ा, जो अपनी प्रयोगषाला से परे कुछ भी नहीं देखते हैं। ऐसे ही एक जीएम कट्टरपंथी, चन्ना प्रकाष ने कहा, “यह दुखद है कि प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन, जिन्होंने हरित क्रांति के माध्यम से भारत में योगदान दिया है, बायोटेक का मूल्य अधिकांष लोगों से ज्यादा जानते हैं, अब जीएमओ विरोधी भीड़ में शामिल हो गए हैं, और वंदना षिवा की तरह लग रहे हैं! निष्चित नहीं कि क्या उनका वास्तव में यही मतलब है?”

एक बार भ्रम पैदा किया गया कि डॉ. स्वामीनाथन ने जीएमओ का समर्थन किया है। लेकिन डॉ. स्वामीनाथन ने इस श्रद्धांजलि के लेखक को एक्स (पूर्व ट्विटर) के माध्यम से एक व्यक्तिगत संदेष भेजा, इस आषय से कि वे अपनी 2004 की रिपोर्ट पर कायम हैं और इस प्रकार कहा -

प्रिय अश्वनी, जीएम फसलों पर आपकी टिप्पणी के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं। मैं वर्ष 2004 में कृषि मंत्रालय को सौंपी गई एक रिपोर्ट में अपनी सिफारिष नीचे दे रहा हूं। हमारी राष्ट्रीय कृषि जैव प्रौद्योगिकी नीति का सार कृषक परिवारों की आर्थिक भलाई, राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा, उपभोक्ता की स्वास्थ्य सुरक्षा, कृषि और स्वास्थ्य की जैव सुरक्षा, पर्यावरण की सुरक्षा और कृषि वस्तुओं के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की सुरक्षा होना चाहिए। - एम.एस. स्वामीनाथन"

संयोग से, डॉ. स्वामीनाथन का यह बयान स्पष्ट करता है कि उनकी राय जीएम फसलों पर स्वदेषी जागरण मंच के रुख का समर्थन करती है, जहां एसजेएम ने उच्च उत्पादकता, पर्यावरण पर हानिकारक प्रभावों, कृषि और स्वास्थ्य की जैव सुरक्षा और पर साक्ष्य की कमी के मुद्दे उठाए हैं। साथ ही कृषि वस्तुओं में हमारे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर खतरे मंडरा रहे हैं। एसजेएम दूरदर्षी दृष्टिकोण वाले इस महान वैज्ञानिक जो विज्ञान पर बयानबाजी से विचलित नहीं होता, को प्रणाम करता है और श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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