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भविष्य का ईंधन - हाइड्रोजन

भविष्य में हमारे उद्योग, कृषि, परिवहन, विमानन, घरेलू बिजली और सभी ऊर्जा की आवश्यकताएँ हमारे देश में अक्षय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन से पोषित हों, यही लक्ष्य हमारे देश को विश्व में ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बना सकता है। — विनोद जौहरी

 

किसी भी राष्ट्र की प्रगति का मुख्य श्रोत्र ऊर्जा है। राष्ट्र की आर्थिक शक्ति भी ऊर्जा से ही संचालित होती है। अक्षय ऊर्जा (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, सामुद्रिक ऊर्जा), कोयला, भूमि और समुद्र में कच्चा तेल (पेट्रोल डीज़ल) और गैस (सीएनजी, एलपीजी और पीएनजी) का अधिकतम सदुपयोग राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाता है। वर्तमान में सभी देश आयातित और स्वयं उत्पादित पेट्रोल, डीज़ल, सीएनजी, एलपीजी और पीएनजी ही सबसे अधिक प्रयोग करते हैं। उद्योग, परिवहन, घरेलू उपकरण सभी इन पर ही आधारित हैं। आज जब विश्व में रूस यूक्रेन युद्ध और मध्य एशिया में विक्षोभ की स्थिति के कारण इनकी उपलब्धता बहुत महंगी हो रही है तथा पर्यावरण पर त्राहि त्राहि हो रही है, तब पर्यावरण और सुलभ उपलब्धता के लिए अक्षय ऊर्जा और अन्य साधनों के लिए प्रयत्न हो रहे हैं। भारत की सरकार ने इन चुनौतियों को बहुत पहले ही भाँप लिया था। हमने कोरोना महाकाल में वेक्सीन, वेंटीलेटर, दवाओं में बहुत जल्दी आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली थी। इसी प्रकार भारत सरकार ने ऊर्जा के क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा के लिए अथक प्रयास किए हैं। ग्रीन हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में उपयोग के लिए सरकार ने राष्ट्रीय नीति की भी घोषणा की है।    

ग्रीन हाइड्रोजन क्या होता है? 

ग्रीन हाइड्रोजन एनर्जी का सर्वोत्तम स्रोत है। इससे प्रदूषण नहीं होता है। ग्रीन हाइड्रोजन एनर्जी बनाने के लिए पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग किया जाता है। इसमें इलेक्ट्रोलाइजर का उपयोग होता है। इलेक्ट्रोलाइजर नवीकरणीय (अक्षय) ऊर्जा (सोलर, हवा) का प्रयोग करता है। आवर्त सारणी पर हाइड्रोजन पहला और सबसे हल्का तत्त्व है। चूंकि हाइड्रोजन का वजन हवा से भी कम होता है, अतः यह वायुमंडल में ऊपर की ओर उठती है। इसलिए यह शुद्ध रूप में बहुत कम ही पाई जाती है। मानक तापमान और दबाव पर हाइड्रोजन एक गैर-विषाक्त, अधातु, गंधहीन, स्वादहीन, रंगहीन और अत्यधिक ज्वलनशील द्विपरमाणुक गैस है। ऑक्सीजन के साथ दहन के दौरान हाइड्रोजन ईंधन एक शून्य-उत्सर्जन ईंधन है। ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग ट्रांसपोर्ट, केमिकल, आयरन सहित कई उपक्रमों  में किया जा सकता है। इसका उपयोग फ्यूल सेल या आंतरिक दहन इंजन में किया जा सकता है। यह अंतरिक्ष यान प्रणोदन के लिए ईंधन के रूप में भी उपयोग किया जाता है।

ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया के लाभ 

-    जीवाश्म फ्यूल (पेट्रोल, डीजल, कोयला) से कम से कम तीन गुना अच्छा है।
-    हाइड्रोजन से कार्बन नहीं निकलता है।
-    यह पेट्रोल और डीजल तुलना में अधिक ऊर्जा दक्ष है।
-    इसका उपयोग गाड़ियों व रॉकेट के ईंधन में किया जा सकता है।

भविष्य के ईधन में आत्मनिर्भरता

ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया बनाने की बात इसलिए हो रही है क्योंकि यह भविष्य का प्रमुख ईंधन माना जा रहा है। इसके तहत भारत ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया जैसे ईंधनों में आत्मनिर्भर बनना चाहता है। पेट्रोलियम की तरह भारत इन ईंधनों के लिए दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहना चाहता है। यह भविष्य में फॉसिल फ्यूल (पेट्रोल, डीजल, कोयला) का स्थान लेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को ग्रीन हाइड्रोजन का नया वैश्विक केंद्र बनाने के लिए 15 अगस्त 2021 को लाल किले से राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की स्थापना की घोषणा की। इस मिशन के तहत सरकार भारत को ग्रीन हाइड्रोजन हब बनाना चाहती है। राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन में कहा गया है कि ग्रीन हाइड्रोजन बनाने वाले मैन्युफैक्चरर्स पावर एक्सचेंज से रिन्यूएबल पावर खरीद सकते हैं। मैन्युफैक्चरर्स खुद का भी रिन्यूएबल एनर्जी प्लांट लगा सकते हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत हर साल 12 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च करता है। इसी के साथ उन्होंने वर्ष 2047 तक भारत को ऊर्जा क्षेत्र में स्वतंत्र बनाने का लक्ष्य भी तय किया। सीएनजी-पीएनजी का नेटवर्क हो, 20 प्रतिशत इथेनॉल ब्लेंडिंग का टारगेट हो। भारत इस दिशा में एक तय लक्ष्य के साथ तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत ने इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की तरफ भी कदम बढ़ाया है और रेलवे के शत-प्रतिशत विद्युतीकरण के काम में तेज गति से आगे बढ़ रहा है। भारतीय रेलवे ने 2030 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जक बनने का लक्ष्य रखा है। इन सारे प्रयासों के साथ ही देश ‘मिशन सर्कुलर इकोनॉमी’ पर भी बल दे रहा है।

हरित ऊर्जा यानि ग्रीन एनर्जी के लिए भारत के प्रयास लगातार जारी हैं। देश ने फिलहाल कुल स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता में 100 गीगावाट का मील का पत्थर पार कर लिया है। इसलिए यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इससे देश में हरित ऊर्जा प्रक्षेपवक्र में तेजी आई है क्योंकि भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता अब 383.73 गीगावॉट हो गई है। इसके अतिरिक्त भारत एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर है- जो वर्ष 2022 के अंत तक 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा की क्षमता प्राप्त करने, और 2030 तक 450 गीगावाट तक उसे विस्तारित करने पर पूरा होगा। सरकार ने 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन बनाने का लक्ष्य रखा है। 

हाइड्रोजन पॉलिसी के मुख्य बिन्दु 

हाइड्रोजन प्रोडक्शन एप्लीकेशन देने के 15 दिन के अंदर स्वीकृति दी जाएगी। 30 जून 2025 के पहले इसकी शुरूआत करने पर 25 साल तक इंटर स्टेट ट्रांसमिशन ड्यूटी में छूट मिलेगी। हाइड्रोजन मिशन वाली कंपनी 30 दिन तक की रिनुअल एनर्जी को अपने पास रख सकती हैं। हाइड्रोजन मिशन के लिए एक वेबसाइट बनेगी जिसमें इससे संबन्धित  सभी काम एक ही जगह पर हो सकेगा। ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया बनाने वाली कंपनी को निर्यात व शिपिंग के लिए बंदरगाह के पास स्टोरेज के लिए जगह दी जाएगी।

हाइड्रोजन मिशन के ऐलान के बाद कई कंपनियों ने इसे बनाने की तैयारी भी शुरू कर दी है।  

-    रिलायंस इंडस्ट्रीज - ग्रीन हाइड्रोजन बनाएगी इसके साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए इलेक्ट्रोलाइजर भी बनाएगी।

-    गेल इंडिया लिमिटेड - नेचुरल गैस में हाइड्रोजन मिला रही है। इसके साथ ही यह देश का सबसे बड़ा हाइड्रोजन प्लांट लगाने के बारे में योजना बना रही है।

-    एनटीपीसी लिमिटेड - विंध्याचल में इसने पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। इसकी प्रति यूनिट उत्पादन लागत यूएसडी 2.8-3/किलो. है।

-    आईओसी - मथुरा रिफाइनरी में ग्रीन हाइड्रोजन बना रही है।

-    एलएंडटी  - हजीरा कॉम्प्लेक्स में इसके प्लांट है। वहीं इलेक्ट्रोलाइजर भी बनाने की योजना है।

आज जी-20 देशों के समूह में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जो अपने जलवायु के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत ने इस दशक के अंत तक रिन्यूएबल एनर्जी के 450 गीगावाट का लक्ष्य तय किया है। इसमें से 100 गीगावाट के लक्ष्य को भारत ने तय समय से पहले प्राप्त भी कर लिया है। हमारे ये प्रयास दुनिया को भी एक विश्वास दे रहे हैं। वैश्विक स्तर पर ‘अंतर्राष्ट्रीय सोलर अलायंस’ इसका बड़ा उदाहरण है।

अंतर्राष्ट्रीय सोलर अलायंस  

पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप-21) के 21वें सत्र के दौरान 121 सदस्य देशों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने और सौर ऊर्जा संयंत्रों की तैनाती के लिए 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का निवेश जुटाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री और फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद द्वारा नवंबर 2015 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) किया गया। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, ऐसे सौर संसाधन संपन्न देशों का एक गठबंधन है, जो पूरी तरह से या आंशिक रूप से कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच स्थित है। इस गठबंधन का उद्देश्य सौर ऊर्जा अनुप्रयोगों को बढ़ाना, स्वैच्छिक आधार पर शुरू किए गए कार्यक्रमों और गतिविधियों के माध्यम से समन्वित कार्यवाही करना और सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में सहयोगात्मक अनुसंधान और विकास गतिविधियों को सुविधाजनक बनाना है।

स्वदेशी जागरण मंच के ग्वालियर में 24-26 दिसंबर 2021 को आयोजित राष्ट्रीय सभा में ग्लोबल वार्मिंग, कार्बन उत्सर्जन और ओज़ोन पर्त के क्षरण पर चिंतन किया तथा प्रस्ताव पारित किया गया। भविष्य में हमारे उद्योग, कृषि, परिवहन, विमानन, घरेलू बिजली और सभी ऊर्जा की आवश्यकताएँ हमारे देश में अक्षय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन से पोषित हों, यही लक्ष्य हमारे देश को विश्व में ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बना सकता है।   

विनोद जौहरीः सह विचार प्रमुख, स्वदेशी जागरण मंच दिल्ली प्रांत

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