यूरोप, अमरीका पर भारी पड़ते उन्हीं के प्रतिबंध
फरवरी 2022 से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध के दुष्परिणाम आज पूरी दुनिया भुगत रही है। गौरतलब है कि यूक्रेन द्वारा ‘नाटो’ से पींगें बढ़ाने से नाराज रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया था, जिससे यूक्रेन में तो भारी जान-माल का नुकसान हुआ ही, लेकिन उस युद्ध से उपजी वैश्विक आर्थिक समस्याओं से निजात निकट भविष्य में दिखाई नहीं दे रहा। तेल की बढ़ती कीमतें, आपूर्ति श्रृंखला में आई बाधाएं, खाद्यान्न की कमी और उसके कारण सभी मुल्कों में प्रभावित होती ग्रोथ और बढ़ती कीमतों ने दुनिया के हर आदमी को प्रभावित किया है। अमरीका और उसके मित्र यूरोपीय देशों द्वारा रूस को सबक सिखाने के उद्देश्य से आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए। अमरीका का मानना था कि इन प्रतिबंधों के कारण रूसी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। लेकिन रूसी अर्थव्यवस्था तो ध्वस्त नहीं हुई लेकिन इन प्रतिबंधों का खासा असर पश्चिम के देशों पर देखने को ज़रूर मिल रहा है। गौरतलब है कि रूस दुनिया में गैस और कच्चे तेल का बड़ा आपूर्तिकर्ता है। दुनिया में पेट्रोलियम की पदार्थों की आपूर्ति में रूस का दबदबा है। वो पेट्रोलियम पदार्थों का सबसे बड़ा और कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। अमरीका और यूरोप के देशों ने रूस को अपनी भुगतान प्रणाली ‘स्विफ़्ट’ से प्रतिबंधित कर दिया। अमरीका की योजना यह थी कि ऐसे में रूस अपने तेल को नहीं बेच पाएगा, जिससे उसकी वित्तीय रीढ़ टूट जाएगी। लेकिन रूस की रणनीति ने अमरीका की अपेक्षाओं पर पानी फेर दिया और आज अमरीका और उसके मित्र यूरोपीय देशों को भारी आर्थिक संकट आते दिखाई दे रहे हैं। यह समझते हुए कि दुनिया में बढ़ती तेल कीमतों के कारण यूरोप समेत सभी देश सस्ते तेल की खोज में रूस की शरण में ही आएंगे, एक तरफ़ रूस ने अपने तेल की आपूर्ति भारत को सस्ते दामों पर और रूपए में करना शुरू कर दिया और भारत ने रुस से तेल आयात 50 गुना बढ़ा दिया। दूसरी तरफ़ उसे यूरोपीय देशों से तेल भुगतानों में कोई बाधा नहीं आई। यूरोपीय देश चूंकि रूस से सस्ते तेल पर निर्भर हो रहे थे, उन्होंने स्वयं के प्रतिबंधों को ही दरकिनार करते हुए रूस से तेल खरीदना जारी रखा। उसके बाद यूरोपीय देशों द्वारा आर्थिक प्रतिबंधों को जारी रखने से नाराज रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने इन मुल्कों को तेल की आपूर्ति कम करने का निर्णय ले लिया। जर्मनी जो यूरोपीय देशों के पिछले कुछ दशकों से आर्थिक संकटों से अभी तक अप्रभावित था, अब रूस की रणनीति के चलते वो भी तेल की कमी के चपेट में आ गया। इसका स्वभाविक असर जर्मनी में बिजली उत्पादन पर पड़ा। वहाँ बिजली उत्पादन की लागत ही नहीं बढ़ी है, बिजली की आपूर्ति भी संकट में आ गई। आगे आने वाले समय में जब शीतकाल बहुत नजदीक है, यूरोपीय देशों के सरकारों का चितिंत होना स्वभाविक ही है। जर्मनी सरकार कह रही हैं कि यह यूरोप पर रूसी राष्ट्रपति पुतिन का आर्थिक आक्रमण है और पुतिन की यह रणनीति है कि यूरोप में कीमतें बढ़ाई जाएं, ऊर्जा असुरक्षा हो और यूरोप के देशों में फूट पड़े।
अमरीका और यूरोप के सभी अनुमान फेल हो गए हैं और पुतिन के प्रतिशोध की आंच को अब वो सह नहीं पा रहे हैं।शायद अमरीका और यूरोप को यह लगा था कि पूरी दुनिया रूस के खिलाफ खड़ी हो जाएगी और वो पुतिन को सबक सिखाने के अपने मकसद में कामयाब हो जाएँगे। लेकिन उनके सभी अनुमान गलत सिद्ध हुए। यह सही है कि भारत समेत दुनिया के मुल्क यह मानते हैं कि दुनिया में शांति पुनः स्थापित होनी चाहिए, रूस को अब इस युद्ध को बंद करना चाहिए। उनकी संवेदनाएं यूक्रेन के लोगों के साथ है, लेकिन साथ ही साथ दुनिया के मुल्क अमरीका और यूरोप के देशों द्वारा लगाए जा रहे आर्थिक प्रतिबंधों से भी सशंकित हैं। इससे पहले भी जब भारत ने 1998 में पोखरण में परमाणु विस्फोट किया था, तब भी अमरीका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। उसके बाद भी किसी भी छोटी-बड़ी बात पर अमरीका भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी देता रहा है। इसके अलावा अमरीका ने ईरान, वेनेजुएला समेत कई मुल्कों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं, जिससे इन देशों के आर्थिक संकट और गहरा गए हैं। इन सब कारणों से अमरीका और यूरोप के साथ शेष दुनिया की कोई सहानुभूति नहीं है। ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेर बोल्सोनरो ने कहा है कि रूस के ख़लिफ़ आर्थिक प्रतिबंध कारगर सिद्ध नहीं हो रहे और ब्राज़ील ने अपने देश हितों को ध्यान में रखते हुए रूस के साथ अपने आर्थिक सम्बन्धों को और प्रगाढ़ करते हुए उससे उर्वरकों की ख़रीद प्रारंभ कर दी है। उधर बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने भी अमेरिका से आर्थिक प्रतिबंधों को वापस लेने की गुहार लगायी है। उनका कहना है कि इन आर्थिक प्रतिबंधों के कारण आम आदमी पेट्रोलियम तेल और गैस, खाद्य पदार्थ, उर्वरक और अन्य वस्तुओं की महँगाई से त्रस्त है। इसलिए ये आर्थिक प्रतिबंध मानवाधिकारों की अवहेलना कर रहे हैं।
अमरीका और यूरोपीय देश अपने प्रतिबंधों को न केवल और सख्त कर रहे हैं बल्कि दूसरे मुल्कों पर भी दबाव बना रहे हैं कि वे भी इनका हिस्सा बनें। लेकिन भारत, ब्राज़ील और अन्य देश उन्हें धत्ता दिखाते हुए रूस के साथ अपने रिश्तों को न केवल बरकरार रख रहे हैं बल्कि अधिक प्रगाढ़ भी कर रहे हैं। आज ज़रूरत इस बात की है कि अमरीका और यूरोपीय देश वास्तविकता समझें और आर्थिक प्रतिबंधों की बजाय अन्य राजनयिक प्रयासों के माध्यम से इस समस्या का समाधान खोजें। इस कड़ी में भारत और रूस के रिश्तों की गरमाहट और उनकी आपसी समझ का भी उपयोग इस युद्ध की समाप्ति हेतु किया जा सकता है।
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