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आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान का शहरी सूचकांकः प्रधानमत्रीं स्वनिधि योजना  

स्ट्रीट वेंडिंग सूक्ष्म उद्यमिता का वो प्रारूप है जो शहरी भारत के सामने खड़ी बेरोजगारी की चुनौती का समाधान कर सकने में सक्षम है। इसी प्रारूप को आगे बढ़ने का काम ‘प्रधानमत्रीं स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि योजना’ करती है। — विकास सिन्हा

 

गरीबी और रोजगार के नगण्य होते अवसर गांव तथा छोटे शहरों के लोगों को बड़े शहर सदा ही अपनी तरफ आकर्षित करते रहे है!  इसके फलस्वरूप मुख्यतः कम पढ़े-लिखे और अनिपुण लोग बड़े शहरों में आते है और शोषण का शिकार हो जाते है तथा कम भत्ते में अधिक परिश्रम करने को मजबूर होते है। गावों से शहर की ओर बढ़ती यह आबादी तथा शहरों में मौजूद सीमित संसाधन सरकार के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है। मौजूदा आकड़ों के अनुसार 50 करोड़ से अधिक जनसँख्या भारत के शहरों में विद्यमान है। लगभग 20 लाख नए लोग प्रतिवर्ष इस श्रेणी में और सम्मिलित हो जाते है। सीएमआईई के आंकड़ों अनुसार शहरी बेरोजगारी की दर बीते सितंबर माह में 7.7 प्रतिशत थी। सभी जरूरमंद हाथों को काम देना सरकार के लिए एक भगीरथ कार्य है।

कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता, बल्कि उसके करने वाले की सोच बड़ी या छोटी होती है। दिल्ली के प्रीतमपुरा में ठेला लगाकर अपना व्यवसाय शुरू करने वाले श्री सतिराम यादव को आज बिट्टू टिक्की वाला के मालिक के रूप में कौन नहीं जानता है। अपनी एमबीए की पढाई बीच में ही छोड़कर एमबीए चायवाला के नाम से मशहूर प्रफुल्ला बिल्लोरे को कौन नहीं जानता। स्ट्रीट वेंडिंग के माध्यम से इन जैसे कितने ही सफल लोगों ने न सिर्फ अपनी उद्यमिता को साबित किया, बल्कि लाखां लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किये है। स्ट्रीट वेंडिंग सूक्ष्म उद्यमिता का वो प्रारूप है जो शहरी भारत के सामने खड़ी बेरोजगारी की चुनौती का समाधान कर सकने में सक्षम है। इसी प्रारूप को आगे बढ़ने का काम ‘प्रधानमत्रीं स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि योजना’ करती है।

क्या है यह योजना 

यह योजना मुख्यतः शहरी पथ विक्रेताओं को सरकारी निकाय द्वारा लाइसेंस के द्वारा चिन्हित कर व्ययसाय करने का अवसर देती है तथा वित्तीय संस्थानों द्वारा सब्सिडाइज़्ड रेट पर ऋण मुहैया कराने में मदद करतीं है। कोरोना महामारी तथा लगातार बढ़ते लॉकडाउन से जूझते शहरी पथ विक्रेताओं को वित्तीय मदद करने के लिए आवासन तथा शहरी कार्य  मंत्रालय द्वारा इस योजना की शुरुआत 1 जून 2020 को की गयी थी। इस योजना के अंतर्गत शहरी स्थानीय निकाय क्षेत्र में मौजूद सभी शहरी पथ विक्रेता जो मार्च 2020 या उससे पहले से व्यवसाय कर रहे थे वो अपने व्यवसाय का लाइसेंस या सर्टिफिकेट को लेकर अपने क्षेत्रीय निकाय ऑफिस में जाकर इस योजना के भीतर अपने आपको पंजीकृत कराते है जिसके पश्चात उन्हें लेटर ऑफ़ रिकमेन्डेशन जारी किया जाता है और अपने चुने गए बैंक या वित्तीय संसथान से प्रथम साल में दस हज़ार रूपए का ऋण कम से कम दस्तावेज में प्राप्त कर सकते है।

योजना का कार्यक्षेत्र 

वर्तमान में यह योजना उन्ही राज्य तथा संघ राज्यों में उपलब्ध है जिन्होंने पथ विक्रेता (पथ विक्रेता की आजीविका और विनियमन की सुरक्षा) अधिनियम 2014 के अंतर्गत नियम और स्कीम अधिसूचित की है, वर्तमान में यह योजना राज्य तथा संघ राज्यों के कुल 125 शहरी निगम संकाय में कार्यान्वित है।

योजना का लक्ष्य

1. रोजगार संचालन एवं  सृजनः यद्यपि इस योजना की शुरुआत कोरोना महामारी से पथ विक्रेताओं को वित्तीय पोषण के लिए किया गया था परन्तु योजना की सफलता ने यह साबित किया है कि यह योजना रोजगार सृजन तथा आत्मनिर्भरता की दिशा में मिल का पत्थर साबित होगी। प्रथम वर्ष में दस हज़ार की धन राशि व्यवसाय को नियमित रूप से चलाने में मददगार साबित होती है। यह दस हज़ार रुपए बैंको के माध्यम से कार्यशील पूंजी के रूप में प्रदान किया जाता है, जिसे एक  वर्ष की अवधी में 12 मासिक किस्तों में चुकाना होता है।

2. वित्तीय अनुशासनताः इस योजना के माध्यम से पथ विक्रेताओं को साहूकारों के चंगुल से निकालकर संगठित वित्तीय क्षेत्र में पंजीकृत किया जा रहा है, जहाँ उन्हें उचित ब्याज दर पर ऋण मुहैया कराया जाता है और समय पर ऋण वापस करने के एवज में अगले साल बढ़ी हुई ऋण पात्रता उपलब्ध किया जाता है। इसके साथ ही सरकार ने इस योजना में प्रोत्साहन  के रूप 7 प्रतिशत ब्याज सब्सिडी का प्रावधान भी रखा है।

3. डिजिटल लेन देन को बढ़ावा देनाः इस योजना के अंतर्गत पथ विक्रेताओं को डिजिटल लेन देन करने पर प्रोत्साहन के रूप में कैशबैक का प्रावधान रखा गया है। प्रति माह प्रथम 50 लेन देन पर 50 रुपए, अगले 50 लेन देन पर 25 रुपए और इसके अगले हर 100 लेन देन पर 25 रुपए क्रमशः  कैशबैक के रूप में पथ विक्रेताओं को प्रोत्शाहन के लिए दिया जाता है। डिजिटल लेन देन के द्वारा पथ विक्रेताओं अपने क्रेडिट इतिहास को बना पाएंगे और आने वाले समय में सही क्रेडिट मूल्यांकन के द्वारा ऋण प्राप्त कर पाएंगे।

योजना की उपलब्धिया 

1.    योजना के अंतर्गत अब तक  तीन चरणों में 50 लाख पथ विक्रेताओं को पंजीकृत किया जा चूका है।

2.    योजना के अंतर्गत 40 लाख विक्रेताओं को वित्तीय संस्थानों से दस हज़ार से बीस हज़ार रुपए तक का प्रत्येक ऋण स्वीकृत  किया गया है।

3.    14 लाख से अधिक लाभार्थियों ने अभी तक प्रथम वर्ष का ऋण वापसी भी पूरा कर दिया है।

4.    इस योजना के माध्यम से  लाभार्थियों को न केवल ऋण की सुविधा दी जा रही है बल्कि इन्हें सरकार के विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में पंजीकृत कर उनका लाभ दे रही है जिनमें प्रधानमंत्री जीवन बीमा, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, जननी सुरक्षा  योजना आदि शामिल है। 

योजना की चुनौतिया एवं समाधान  

1. अतिक्रमणकारी छविः पथ विक्रेताओं को आज भी समाज का एक बड़ा वर्ग पथ अतिक्रमणकारी समझते है, चाहे वो दूकान वाले व्यवसायी हो या रोड पर मोटरगाड़ी चलाने वाले। इन्हें न केवल दुकानदारों से बल्कि प्रशासन में मौजूद लोगों से भी  सामंजस्य बना कर रखना होता है। सरकार तथा माननीय न्यायालय ने इसमें सकारात्मक भूमिका अदा की है। पथ विक्रेता (पथ विक्रेता की आजीविका और विनियमन की सुरक्षा) अधिनियम 2014 के अंतर्गत सरकार ने पथ विकरण व्यवसाय को कानूनी वैद्यता प्रदान की है। वहीं माननीय न्यायलय ने पथ विक्रयण को व्यवस्याय करने के मौलिक अधिकार के रूप में माना है, कुछ शर्तो के साथ। अब समाज को अपनी सोच बदलने की जरूरत है।

2. जानकारी का अभावः यद्यपि सरकार द्वारा योजना का प्रचार प्रसार किया जा रहा है पर इसे काफी नहीं  माना जा सकता। पथ विक्रेताओं का एक बड़ा हिस्सा योजना या इसकी खूबियों से अनभिज्ञ है। योजना के महत्व को देखते हुए इसे जनमानस के बीच प्रचारित करने की जरूरत है।

3. तालमेल की कमीः कार्यान्वयन प्राधिकारियों में तालमेल की कमी देखी गयी है जिससे इसकी सफलता की गति धीरे हो सकती है, इसके लिए प्राधिकारियों की लगातार बैठके होनी आवश्यक है।

4. सीमित कार्यक्षेत्रः फिलहाल इस योजना को 125 शहरी निगम  संकाय में कार्यान्वित किया गया है जोकि नाकाफी माना जा रहा है योजना की सफलता को देखते हुए इसका विस्तार अधिक से अधिक शहरों में करना चाहिए। इस योजना के माध्यम से हम छोटे शहरों में लोगों को रोजगार देकर महानगरों में आने से रोक सकते है।

5. बैंकों द्वारा लोन की अस्वीकृतिः जानकारी तथा योजना प्रशिक्षण की कमी के कारण कई बार बैंकों द्वारा लोन अस्वीकृत कर दिए जाते है और कई बार जानकारी के अभाव में आवेदक लोन लेने बैंक शाखाओं में उपस्थित ही नहीं होते इसलिए योजना प्रके अंतर्गत विभिन्न स्तर पर  प्रशिक्षण की जरूरत है। 

6. ऋण की न्यूनतम राशिः मौजूदा प्रावधानों के अंतर्गत लाभार्थी को प्रथम वर्ष केवल दस हज़ार रुपए का ऋण प्राप्त होता है। आज के इस परिवेश में यह धनराशि बहुत कम लगती है, सरकार को इस राशि को बढ़ाने की जरूरत है।

दूसरे देश का सन्दर्भः स्ट्रीट वेंडर्स के सन्दर्भ में चीन की उल्लेख करना जरूरी है।

कोरोना महामारी के पहले दमनकारी नीति अपनाने वाले चीन को कोविड-19 के बाद जब अचानक बढ़ती  बेरोजगारी का सामना करना पड़ा तो  चीन ने प्रीमियर ली केक्यांग की अगुआई में अपनी नीति उलटफेर की और स्ट्रीट वेंडर्स के प्रति सकारात्मक रूप अपनाया और उन्हें क़ानूनी मान्यताएं दी और इसका सफल प्रयोग चेंगडु प्रांत में किया, जिसके फलस्वरुप एक लाख से भी अधिक रोजगार का सृजन हुआ। यह अनुमान किया जा रहा है कि चीन इस नीति के प्रयोग से 5 करोड़ से अधिक लोगों को नए रोजगार दे पायेगा। 

निष्कर्षः पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि योजना की उपयोगिता महज रोजगार सृजन ही नहीं है बल्कि इस योजना के माध्यम से सरकार पथ विक्रेताओं को स्वावलम्बी बनाना चाहती है, उनका पूर्णतावादी विकास, उनका सामाजिक उत्थान तथा उन्हें पूर्णतः संगठित क्षेत्र में लाना चाहती है ताकि उन्हें समग्र सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया जा सके। इस योजना की उपयोगिता और दूरदर्शिता को देखते हुए इस योजना की तारीफ ़अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने भी की  है और कई अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों में इसे व्यष्टि अध्ययन के रूप में पढ़ाया जा रहा है।

पथ विक्रेता  मुक्त बाजार प्रतिस्पर्धा के नियमों का पालन करते हुए समाज के गरीब तथा सम्पन्न वर्ग की दूरियों को जोड़ने का काम करती है। लोगों को दिनचर्या में काम आने वाले चीज़ो को कम मूल्यों पर, कम दूरी पर, कम से कम समय पर उपलब्ध कराती है। हमारी सड़कों पर उतना ही हक़ इनका है जितना बाकी लोगों का। स्वावलंबी भारत अभियान में इनकी उपयोगिता पथ प्रदर्शक साबित हो सकती है। 

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