इसरो निकट भविष्य में पृथ्वी की निचली कक्षा में एक मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन की भी योजना बना रहा है जो विभिन्न अत्याधुनिक वैज्ञानिक जांचों के लिए सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण प्रयोगों के अवसर खोलेगा। - अनिल जवलेकर
भारत ने आखिर अपनी जिद पूरी की और अपना यान चाँद पर उतार दिया। जुलाई 2019 की असफलता के बाद कम से कम समय में भारत ने फिर एक बार कोशिश की और सफलता प्राप्त की, यह उल्लेखनीय है। वैसे भारत आकाश और अंतरिक्ष का अभ्यास तो सदियों से करता आया है और चाँद के मानवी जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को भी मानता आ रहा है। चाँद का समुद्र के ज्वार तथा मानवी मन का संबंध तो अब दुनिया भी मान रही है। चाँद को भारत में चंदा मामा के रूप में कौटोंबिक सदस्य भी माना गया है और उसे जीवन व्यवहार में स्थान दिया है, जो कि भारतीय जीवन दृष्टिकोण स्पष्ट करता है। आज दुनिया के साथ भारत भी अंतरिक्ष खोज में शामिल है, जो कि भारत के विकास, आत्मनिर्भरता और समर्थता का एक प्रतीक है।
भारत का अंतरिक्ष अभियान
स्वतंत्रता के बाद से ही भारत ने विज्ञान को स्वीकार कर अपनी नीति बनाई और सर्व दृष्टि से प्रगति की और दुनिया के साथ चलने का प्रयास किया। आकाश और अंतरिक्ष की खोज इसी प्रयास का हिस्सा है। सबसे पहले भारत ने विज्ञान अभ्यास की ओर ध्यान दिया तथा शैक्षणिक संस्थाएँ शुरू की। बाद में आकाश और अंतरिक्ष के अभ्यास हेतु संस्थाओं का निर्माण किया, जिसमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) मुख्य है। आज इस संगठन के देश भर में छह प्रमुख केंद्र तथा कई अन्य इकाइयाँ, एजेंसी, सुविधाएँ और प्रयोगशालाएँ स्थापित हैं। भारत का अंतरिक्ष अभियान भारत के प्रधानमंत्री के देखरेख में एक खास विभाग द्वारा किया जाता है। भारत के यही प्रयास आज नया इतिहास लिख रहे हैं।
संस्था और सुविधा का निर्माण
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) जो कि अंतरिक्ष खोज की जिम्मेदारी लिए हुए है, अब अंतरिक्ष में स्वतंत्र पहुंच रखने वाली, स्वदेशी क्षमताओं से विकसित एक कार्यक्षम संस्था बन गई है। भारत की अंतरिक्ष विज्ञान खोज परिज्ञापी रॉकेटों के उपयोग से ऊपरी वायुमंडल के अध्ययन के साथ शुरू हुई और यह गाथा एस्ट्रोसैट, मंगल, चंद्रयान जैसे वैज्ञानिक मिशनों के बाद सौर और अन्य ग्रहीय मिशनों के साथ जारी है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी, ग्रहीय और पृथ्वी विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान और सैद्धांतिक भौतिकी जैसे वैज्ञानिक गुब्बारों, परिज्ञापी रॉकेट, अंतरिक्ष प्लेटफार्मों और भूमि-आधारित सुविधाओं जैसे कई क्षेत्रों में अनुसंधान शामिल हैं।
प्रक्षेपक का विकास
अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए ’प्रक्षेपक या प्रक्षेपण यान का उपयोग किया जाता है। पहला रॉकेट, नैकी-अपाची, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से प्राप्त किया गया था, जिसे 21 नवंबर, 1963 को प्रमोचित किया गया था। उसके बाद भारत का स्वदेशी परिज्ञापी रॉकेट, 1967 में प्रमोचित किया गया था। प्रथम 40 किलोग्राम वजन उठाने और आकाश में ले जाने वाले छोटे वाहनों का निर्माण भारत ने 1970 से शुरू किया, जो 1979 की एसएलवी प्रयोग के असफलता को झेलते हुए 1980 में सफल हुआ। अब भारत के पास तीन सक्रिय परिचालन प्रक्षेपण यान हैंः ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट प्रक्षेपण यान एमके-3 (एलवीएम 3)। पीएसएलवी, एक बहुमुखी रॉकेट है, जो उपग्रहों को कक्षाओं में प्रक्षेपित करने में सक्षम है। इसरो द्वारा अपने भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रमोचक रॉकेट (जीएसएलवी) और एलवीएम-3 के संचालन और लघु उपग्रह प्रमोचक रॉकेट (एसएसएलवी) के निर्माण के साथ, वांछित रॉकेट पर प्रमोचन के रूप में, एनसिल अपनी प्रमोचन सेवाएं प्रस्तुत करने और विस्तार करने की स्थिति में है। मांग आधारित आधार पर छोटे उपग्रह प्रक्षेपण बाजार को पूरा करने के लिए लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) को पूर्ण स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के साथ विकसित किया जा रहा है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि इसरो आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है।
उपग्रह की उड़ान
उपग्रहों की बात की जाए तो उपग्रहों को मोटे तौर पर दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है, संचार उपग्रह और सुदूर संवेदन उपग्रह। संचार उपग्रह, आमतौर पर संचार, दूरदर्शन प्रसारण, मौसम-विज्ञान, आपदा चेतावनी आदि की ज़रूरतों के लिए भू-तुल्यकाली कक्षा में कार्य करते हैं। सुदूर संवेदन उपग्रह प्राकृतिक संसाधन निगरानी और प्रबंधन के लिए अभिप्रेत है और यह सूर्य- तुल्यकाली ध्रुवीय कक्षा (एसएसपीओ) से परिचालित होता है। वर्ष 1963 में, पहला परिज्ञापी रॉकेट तिरुवनंतपुरम् के पास थुम्बा भूमध्यरेखीय रॉकेट प्रमोचन स्टेशन (टर्ल्स) से प्रक्षेपित किया गया था। इसके बाद, ध्वनि रॉकेट के माध्यम से रॉकेट-वाहित उपकरणों का उपयोग करके ऊपरी वायुमंडलीय क्षेत्र से कई जांच की गई। आकाश की ओर पहला भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट 1975 में भेजा गया था। उसके बाद भास्कर, रोहिणी, इन्सैट, आईआरएस और ऐसे कई उपग्रह सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किए गए।
अन्य देश भी लाभान्वित
गौरवान्वित करने वाली बात यह है कि इसरो के ध्रुवीय उपग्रह रॉकेट (पीएसएलवी) द्वारा 1999 से ग्राहक उपग्रहों के लिए प्रमोचन सेवाएं प्रदान कर रहा है। जून 2019 तक, 33 देशों के 319 ग्राहक उपग्रहों को वाणिज्यिक आधार पर पीएसएलवी पर अपनी वाणिज्यिक शाखा के माध्यम से प्रमोचित किया गया है। भारत अब इस सुविधा से पैसा भी कमा रहा है। 2018-22 के पाँच वर्षो के बीच भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (आईएसआरओ) ने 19 देशों के लिए 177 उपग्रह छोड़कर 1100 करोड़ रुपए कमाए है।
सेवाओं का उपयोग
भारत ने अब इस क्षेत्र में सभी दृष्टि से अपनी क्षमता बढ़ाई है और उपग्रह द्वारा सभी प्रकार का डाटा हासिल कर कई समस्याओं को सुलझाने की कोशिश में है। वाणिज्यिक संचार उपग्रह-समूह भारत संचार प्रेषानुकरों के साथ काम कर रहा है। ये प्रेषानुकर टेलीविजन, दूरसंचार, रेडियो नेटवर्किंग, सामरिक संचार और सामाजिक अनुप्रयोगों जैसी सेवाओं में योगदान देते है। बीएसएनएल, दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो, रणनीतिक सरकारी उपयोगकर्ता, सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाईयां, निजी वीएसएटी ऑपरेटर, डीटीएच और टीवी ऑपरेटर, बैंकिंग और वित्तीय संस्थान आदि इन प्रेषानुकरों के प्रमुख उपयोगकर्ता हैं। वर्तमान में, मौसम संबंधी उपग्रह मौसम पूर्वानुमान सेवाओं में सहायता कर रहे हैं। भारत उपग्रह प्रणाली के माध्यम से विपदा चेतावनी और अवस्थिति स्थान सेवा का लाभ उठा रहा है। गगन के कार्यान्वयन से विमानन क्षेत्र को ईंधन की बचत, उपकरण लागत में बचत, उड़ान सुरक्षा, वर्धित वायु अंतरिक्ष क्षमता, दक्षता, विश्वसनीयता में वृद्धि, ऑपरेटरों के कार्यभार में कमी, हवाई यातायात नियंत्रण के लिए समुद्री क्षेत्र के कवरेज के मामले में कई लाभ पहुंचे हैं। राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र सक्रिय रूप से बाढ़, चक्रवात, भूस्खलन, भूकंप और जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी में लगा हुआ है। अंतरिक्ष उपयोग केंद्र द्वारा उपग्रह सुदूर संवेदन डेटा का उपयोग करके महत्वपूर्ण कृषि फसलों का उत्पादन पूर्वानुमान लगाया जा रहा है। इसलिए यह कहा जा सकता है की भारत सभी क्षेत्रों में उपग्रह से मिलने वाले डाटा से लाभ उठा रहा है।
गर्व की उड़ान
आज तक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय भागीदारी के साथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा 3500 से अधिक परिज्ञापी रॉकेट सफलतापूर्वक प्रमोचित किए गए हैं। वर्तमान में परिज्ञापी रॉकेट की कई किस्में विभिन्न पेलोड क्षमता और एपोजी रेंज के साथ कार्यशील हैं। अंतरिक्ष कार्यक्रम के दूसरे स्तर के विकास के दौरान किए गए अंतरिक्ष विज्ञान और अन्वेषण मिशन जैसे कि चंद्रयान, मंगल मिशन, एस्ट्रोसैट मिशनों ने मूल्यवान वैज्ञानिक डेटा प्रदान करना जारी रखा है और ब्रह्मांड के संबंध में मूलभूत वैश्विक ज्ञान में योगदान दे रहे हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (आईएसआरओ) निकट भविष्य में पृथ्वी की निचली कक्षा में एक मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन की भी योजना बना रहा है जो विभिन्न अत्याधुनिक वैज्ञानिक जांचों के लिए सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण प्रयोगों के अवसर खोलेगा। इसलिए यह कहा जा सकता है की भारत की अंतरिक्ष की ओर उड़ान गर्व भरी है।