जल संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है कि तालाबों में पहले से कहीं अधिक जल हो। इसलिए तालाबों की रक्षा एवं वर्षा जल संरक्षण का कार्य अब और महत्वपूर्ण हो गया है। - डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्रा
ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब पानी संबंधी विभिन्न ज़रूरतें पूरी करने के साथ भूजल स्तर बनाए रखने का मुख्य आधार रहे हैं। हाल के समय में विभिन्न तरह की उपेक्षा के कारण अनेक तालाब क्षतिग्रस्त हुए हैं। इस कारण बढ़े जल संकट के बीच अब उनकी रक्षा के कुछ महत्वपूर्ण प्रयास भी होने लगे हैं। विषेषकर बुंदेलखंड में ऐसे प्रयास काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वहां जल संतुलन बनाए रखने में तालाबों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
लहर ठाकुरपुर गांव (बबीना ब्लॉक, जिला-झांसी) में इसी नाम का विषाल लगभग 87 एकड़ का तालाब आसपास के ग्रामीण इलाकों के लिए गौरवषाली धरोहर रहा है, पर हाल के वर्षों में जलकुंभी, मिट्टी गाद आदि के चलते इसकी सुंदरता और उपयोगिता दोनों कम होती जा रही थी। ऐसे में कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने तालाब की स्वच्छता के लिए जनसभा कर अभियान चलाया और प्रषासन से भी संपर्क किया तो उसे काफी सहयोग मिला। मनरेगा के अंतर्गत महीनों तक तालाब की सफाई का अभियान चलाया गया। जलकुंभी और गाद की सफाई की गई तथा नहर का पानी तालाब में लाया गया। आसपास बाड़ लगाई गई और जमीन को पक्का किया गया। हालांकि अभी रोषनी की व्यवस्था और मरम्मत का कार्य होना शेष है, फिर भी तालाब बहुत सुंदर बन गया है। इसकी जल ग्रहण क्षमता बढ़ गई है और पानी साफ हुआ है। गांव वासियों की माने तो एक छोटी नहर निकालकर इसमें सिंचाई की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके अलावा चंदेल राजाओं के समय से चले आ रहे 100 एकड़ से बड़े क्षेत्र में फैले मानपुर का तालाब जो इसी ब्लॉक में स्थित है में एक छोटी नहर की व्यवस्था पहले से परंपरागत तौर पर रही है। पर आजकल इसमें बहुत टूट फूट हो गई है। स्वयंसेवी संस्थाओं ने उस नहर के किनारे भी मरम्मत एवं तालाब की सफाई का काम शुरू किया है। इस कारण गांव वासियों को सिंचाई का बेहतर लाभ मिल रहा है। यह कार्य ऐसे समय में गैर मषीनीकृत पारंपरिक स्वदेशी उपाय से किया गया जब यहां लोगों को रोजगार की बहुत जरूरत थी। खजरा खुर्द गांव में पुराना तालाब नाम से विख्यात तालाब की उपयोगिता हाल के समय में सफाई न होने के कारण घट गई थी। स्वावलंबी भारत अभियान से जुड़े कुछ साथियों और उनकी महिला कार्यकर्ताओं ’जल-सहेलियों’ ने इसे पुनर्जीवित करने के लिए अभियान चलाया है। इसके बाद किनारों की मरम्मत, मिट्टी, गाद हटाने, आसपास वृक्षारोपण आदि के कार्य शुरू हुए हैं। तालाब की जल ग्रहण क्षमता बढ़ने के साथ इसके आसपास के कुओं का जलस्तर भी बढ़ा है। इसी तरह मध्य प्रदेष राज्य के छतरपुर जिला के अंगरौठा गांव में महिलाओं ने 107 मीटर की नहर खोदने का कार्य बहुत कठिन परिस्थितियों में शुरू किया ताकि यहां के सूखे पड़े तालाब में पानी पहुंच सके। बाद में उनके इस साहसिक कार्य से प्रेरित होकर अन्य लोगों ने भी सहयोग किया। इसी जिले में गंगा नामक महिला ने अपनी सखियों के साथ एक उपेक्षित सूखे तालाब को फिर से पानीदार बना दिया। इस तालाब के बारे में अंधविश्वास प्रचलित था कि जो इसका पुनरुद्धार करेगा उसे हानि होगी। लेकिन गंगा ने लोगों को समझाया कि यह अंधविश्वास है और गांव की प्यास बुझाने का प्रयास इस कारण नहीं रुकना चाहिए। इन महिलाओं ने न केवल तालाब की सफाई की बल्कि इसमें पानी भी पहुंचाया।
देष में बुंदेलखंड जैसे कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां जल संतुलन में तालाबों की विषेष भूमिका है और इनके निर्माण व रखरखाव के लिए परंपरागत तकनीक व सामाजिक तौर तरीके दोनों प्रषंसनीय रहे हैं। इनसे आज भी सीखा जा सकता है। चाहे सभी घरों में नल से जल आ जाए पर इन तालाबों का महत्व बना रहेगा और इनके संरक्षण पर ध्यान देना जरूरी है। इनमें जमे गाद और मिट्टी को हटाकर इसकी जल ग्रहण क्षमता भी बढ़ाई जा सकती है। ऐसा करने से किसानों को उपजाऊ गाद मिट्टी अपने खेतों के लिए मिल जाएगी। अनेक स्थानों पर भूजल स्तर पहले से बहुत नीचे चला गया है। यदि बोरवेल आदि से नलों के लिए भूजल का उपयोग किया जाएगा तो ऐसे में जल संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है कि तालाबों में पहले से कहीं अधिक जल हो। इसलिए तालाबों की रक्षा एवं वर्षा जल संरक्षण का कार्य अब और महत्वपूर्ण हो गया है।