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उत्साहवर्धक है अर्थ संकल्प 2021-22 

भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रा अपना-अपना योगदान देंगे तो भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से उभरेगी, इसमें कोई शंका नहीं है। ग्रामीण भारत में संरचना का विकास इसमें सबसे महत्वपूर्ण काम करेगा, जो ग्रामीण उद्योग और कृषि क्षेत्रा के विकास को बढ़ावा देगा और यही इस आम बजट की उत्साहवर्धक बात कही जाएगी। — अनिल जावलेकर

 

अर्थ संकल्प (बजट) की हर साल की पेशकश वैसे तो रूटीन होती जा रही है लेकिन इस साल का कोरोना के पार्श्व भूमि पर पेश किए जाने वाले अर्थ संकल्प की सभी को प्रतीक्षा थी। पिछले एक साल से कोरोना ने देश-दुनिया को हलकान किया हुआ है। भारत में कृषि के अलावा अर्थव्यवस्था का कोई क्षेत्र ढंग से काम नहीं कर रहा। कोरोना काल में सरकार भी किसी न किसी क्षेत्र के लिए कोई न कोई आर्थिक पैकेज जाहिर करती आ रही थी। नए अर्थ संकल्प में और कुछ अच्छा होगा, ऐसी उम्मीद सभी को थी। वित्तमंत्री ने काफी हद तक जनता के आशा अनुसार कुछ करने की कोशिश की है और इसलिए आने वाले वित्तीय वर्ष का अर्थ संकल्प उत्साहवर्धक कहा जा सकता है।

किसानों की शंका का निवारण

वित्तमंत्री ने किसानों की हाल ही में पास किए गए तीन कृषि बाजार सुधार कानून पर जो शंकाएँ थी, उसको दूर करने की कोशिश की है। पहली शंका, फसल समर्थन मूल्य व्यवस्था खत्म किए जाने के बारे में थी। दूसरी शंका, रेगुलेटेड मंडियाँ बंद होने के बारे में थी। पहली शंका का निस्तारण करते हुए वित्तमंत्री ने आकड़ों के आधार पर यह बात स्पष्ट की कि फसल समर्थन मूल्य व्यवस्था चल रही है और समर्थन मूल्य पर सरकार खरीद भी कर रही है, आगे भी करती रहेगी। यह बात उन्होंने ज़ोर देकर कही कि सरकार मांग के अनुसार समर्थन मूल्य उत्पाद मूल्य से डेढ़ गुना ज्यादा दे रही है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 2013-14 के मुक़ाबले कई गुना खरीद बढ़ी है और बढ़ रही है। किसान को इसमें शंका रखने की जरूरी नहीं, यह विश्वास भी उन्होंने दिलाया। दूसरी शंका जो मंडियों के बारे में थी, उसके बारे  में वित्तमंत्री ने बाजार समितियों के सुधार की ही बात कही और कृषि असंरचना कोष बाजार समितियों को उपलब्ध करने की सिफारिश की। इससे समितियां किसान को और अच्छी सुविधा दे सकेंगी। इस वक्तव्य ने मंडियां बंद होने की संभावनाओं को नकार दिया। 

महत्वपूर्ण सुझाव 

1.    वित्तमंत्री ने वर्ष 2021-22 के लिए छः स्तंभों को आधारभूत माना है, जिसमें स्वास्थ्य और कल्याण, भौतिक और वित्तीय पूंजी और असंरचना, आकांक्षी भारत के लिए समावेशी विकास, मानव पूंजी में नव जीवन का संचार करना, नवप्रवर्तन और अनुसंधान एवं विकास तथा न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन शामिल है। पूरा अर्थ संकल्प इन्हीं उद्देश्यों को सफल बनाने की बात करता है। 

2.    कोरोना ने स्वास्थ्य की सारी कल्पनाएँ बदल दी है और संस्थात्मक ढ़ाचे की कमियाँ भी सामने आयी है। भविष्य के लिए इसमें सुधार जरूरी हो गया था। वित्तमंत्री ने इस अर्थ संकल्प में इसको सबसे ज्यादा अहमियत दी है। स्वास्थ्य और कल्याण के लिए इस वर्ष के अर्थ संकल्प अनुमान 94,452 करोड़ रुपए की तुलना में वर्ष 2021-22 में 2,23,846 करोड़ रूपए है। इस तरह 137 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। कोरोना की वजह से स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ेंगी, यह समान्यजनों के लिए उपलब्धि ही कही जाएगी। 

3.    आत्मनिर्भर भारत की कल्पना साकार हो, इसलिए 13 सेक्टरों में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना शुरू की गई है। जिसके द्वारा हमारी विनिर्माण कंपनियों के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृखंलाओं का एक अंगभूत भाग बनने, प्रमुख सक्षमता और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी रखने की आवश्यकता को पूरा करने की कोशिश होगी। यह एक अच्छा कदम कहा जाएगा, जिससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। इंफ्रास्ट्रक्चर एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। उसके लिए एक नई डीएफ़आई स्थापन करने की पेशकश की गई है। “राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन” योजना भी जाहिर की गई है, जो संभावित ब्रॉउनफील्ड अवसंरचना आस्तियों के मुद्रीकरण करने में उपयुक्त होगी। 

4. बीमा कंपनियां में अब 74 प्रतिशत हिस्सा विदेशियों का हो सकता है। बैंक के खराब आस्तियों के लिए एक और असेट रिकस्ट्रेक्सन कंपनी लिमिटेड और असेट मैनेंजमेंट कंपनी का गठन किया जाएगा, जिससे वर्तमान के तनाव ग्रस्त ऋण को समेकित किया जा सके। सरकारी बैंक की वित्तीय क्षमता को और अधिक समेकित करने के लिए वर्ष 2021-22 में 20,000 करोड़ रुपये और पुनः पूंजीकरण किए जाने का प्रस्ताव भी है। वर्ष 2021-22 में आईडीबीआई बैंक के अलावा दो सार्वजनिक क्षेत्रीय बैंकों और एक सामान्य बीमा कंपनी का भी निजीकरण करने का प्रस्ताव हैं। अर्थ संकल्प में एक प्रस्ताव यह भी है कि चार क्षेत्र जो कि सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, उसे छोड़ बाकी का निजीकरण कर दिया जाएगा।

5.    वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 9.5 प्रतिशत है। सरकारी उधारियों, बहुपक्षीय उधारियों, लघु बचत निधियों और अल्पावधि उधारियों के माध्यम से इसका निधीयन किया जाएगा। सरकार की अगले वर्ष के लिए बाजार से सकल उधारी लगभग 12 लाख करोड़ रुपये होगी।

कुछ मिठास के साथ खटास भरे सुझाव

कर संरचना को सरल करना तथा 75 के ऊपर वाले वृद्ध नागरिकों को कर रिटर्न न भरने की सहूलियत देना कुछ अच्छी बातें की गई है। लेकिन इसके साथ ही वेतनधारी कर्मचारियों से पीएफ़ में की जाने वाली बचत को कर संरचना के दायरे में लाया गया है, जो खटास भरा है। भारत में एकमात्र सुरक्षित बचत का मार्ग पीएफ़ है और सभी वेतनधारी कर्मचारियों का बुढ़ापे का सहारा है। कितनी भी बचत हो बुढ़ापे में कम ही होती है। इसलिए यह कहना की रु 2.50 लाख तक छूट वाजिब है गलत होगा। उसी तरह यूलीप जैसे योजना के प्रीमियम की छूट कम करना सही नहीं ठहराया जा सकता। कुछ कस्टम ड्यूटी बढ़ने से कीमते बढ़ सकती है, जिसमें एयर कंडीटशनर, मोबाइल वगैरा हो सकते है। भारत सरकार की भारतीय बीमा कंपनियों में विदेशियों की हिस्सेदारी बढ़ाने वाली बात और कुछ महत्वपूर्ण सरकारी कंपनियों का निजीकरण करना दीर्घकाल में भारी पढ़ सकता है।

अर्थ संकल्प में एक नई डीएफ़आई की बात की है। यहाँ यह विचारणीय है कि पुरानी आईसीआईसीआई, एचडीएफ़सी, आईडीबीआई, एसआईडीबीआई और कुछ हद तक नाबार्ड जैसी विकास संस्थाओं का स्वरूप क्यों बदला गया और यह संस्थाएँ क्यों बेअसर रही। इसके बारे में वित्तमंत्री ने कुछ नहीं कहा। सिर्फ नई वित्तीय विकास संस्था खड़ी करके काम नहीं होगा। वैसे ही कुछ क्षेत्र के लिए कोरपोराशन बने हुये है और वो जरूरत के मुताबिक फंड जमा करते है। इसलिए नई संस्था कुछ ज्यादा कर पाएगी ऐसा नहीं कह सकते।

अर्थ संकल्प उत्साहवर्धक ही कहा जाएगा 

कठिन समय में भारत सरकार का खर्च जब बढ़ रहा हो, समान्यजनों पर बोझ न डालते हुए अर्थ संकल्प पेश करने की कवायद शायद भारत के इतिहास में पहली बार हुई है। अर्थ संकल्प का वित्तीय घाटा भी काफी बढ़ गया है और सरकार उधारी पर चल रही है। लेकिन खर्चा अगर विकास हेतु कुछ उभारने के लिए हो रहा है तो चिंता की बात नहीं मानी जाएगी। यह बात स्पष्ट है कि कोरोना ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में लिया हुआ है और दुनिया की सप्लाई चैन टूट सी गई है, जिससे जागतिकरण धीमा हो गया है। इसका परिणाम भारत पर भी पड़ा है और भारतीय अर्थव्यवस्था भी धीमी हुई है। ऐसे समय में भारत सरकार ने आत्मनिर्भरता की बात की है और उस के लिए 27 लाख करोड़ रुपये का पैकेज भी जाहिर किया है। भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र अपना-अपना योगदान देंगे तो भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से उभरेगी, इसमें कोई शंका नहीं है। ग्रामीण भारत में संरचना का विकास इसमें सबसे महत्वपूर्ण काम करेगा, जो ग्रामीण उद्योग और कृषि क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देगा और यही इस अर्थ संकल्प की उत्साहवर्धक बात कही जाएगी।

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