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शीरे के नवोन्मेष से शराब पर शिकंजा संभव

यदि देश में कुल शीरे का उत्पादन एथनोल में प्रयोग हो जाए तो उसकी खपत पेट्रोल डीजल में ब्लेंडिंग में काम आ सकती हैं और काफी हद तक प्रदेश सरकारों के राजस्व की भरपाई हो सकती है, क्योंकि पेट्रोल डीजल से प्राप्त राजस्व भी प्रदेश सरकार को ही मिलती है। — विनोद जौहरी

 

यूं तो शराब का सेवन किसी भी समाज में सम्मानजनक नहीं है, पर एक सच यह भी है कि विकासशील देशों की ढेर सारी कल्याणकारी योजनाएं इसी की कमाई पर निर्भर है। यही कारण है कि सरकारें खुद शराब के धंधे को राजस्व के लिए बढ़ावा देती रही है। और इससे राजस्व एकत्रित कर कल्याणकारी योजनाओं का संचालन कर रही हैं। 

सरकारें शराब से होने वाले नुकसान की बड़ी वजह जानते हुए भी शराब पर प्रतिबंद्ध नहीं लगा सकती है। सरकारों की बेवसी और मदिरा मदान्धों की दयनीयता इस बात से देखी जा सकती हैं कि कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन के मध्य सरकारों को शराब की दुकानें खोलनी पड़ीं थी और लोग शराब की दुकानों के आगे लंबी कतारों में खड़े थे। स्थिति यह है कि महीने की पहली तारीख से 10 तारीख तक शराब के ठेकों के बाहर बहुत लंबी कतारें लगी रहती हैं, क्योकि वेतनभोगी कर्मचारियों, कामगारों को 1-7 तारीख मध्य वेतन मिलता है, जिसका बड़ा भाग वह शराब पर खर्च कर देते हैं। 

भारत की मूल्यांकित एल्कोहाल इंडस्ट्री विश्व में चीन और रूस के बाद तीसरे नंबर पर है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार देश में शराब की बिक्री 2022 तक 168 करोड़ लीटर हो जाएगी। सर्वेक्षण के अनुसार देशभर में 10 से 75 साल की आयु वर्ग के 14.6 प्रतिशत यानी करीब 16 करोड़ लोग शराब पीते हैं। छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश और गोवा में शराब का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इस सर्वे की चैंकाने वाली बात यह है कि देश में 10 साल के बच्चे भी नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों में शामिल हैं। एक अन्य सर्वे के मुताबिक भारत में गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लगभग 37 प्रतिशत लोग नशे का सेवन करते हैं। इनमें ऐसे लोग भी शामिल है जिनके घरों में दो जून रोटी भी सुलभ नहीं है। जिन परिवारों के पास रोटी-कपड़ा और मकान की सुविधा उपलब्ध नहीं है तथा सुबह-शाम के खाने के लाले पड़े हुए हैं, उनके मुखिया मजदूरी के रूप में जो कमा कर लाते हैं वे शराब पर फूंक डालते हैं। 

आजादी के बाद देश में शराब की खपत 60 से 80 गुना अधिक बढ़ी है। शराब की बिक्री से सरकार को एक बड़े राजस्व की प्राप्ति होती है। मगर इस प्रकार की आय से हमारा सामाजिक ढांचा क्षत-विक्षत हो रहा है और परिवार के परिवार खत्म होते जा रहे हैं। यंग इंडिया 25 जून 1931 के अंक के अनुसार महात्मा गांधी ने कहा था कि यदि मुझे एक घंटे के लिए भारत का डिक्टेटर (तानाशाह) बना दिया जाए तो मेरा सबसे पहला काम होगा कि शराब की दुकानों को बिना मुआवजा दिए ही बंद करा दिया जाएगा।

जहरीली शराब से 1978 से 2020 तक 17 बड़े हादसे हो चुके हैं, जिनमें हजारों गरीब लोगों की मौत हो गई और उनके परिवार बर्बाद हो गए। 

–    धनबाद में जहरीली शराब से 1978 में 254 लोगों की मौत हुई। 
–    बंगलोर में जुलाई 1981 में जहरीली शराब (मिथाईल एल्कोहोल) से 308 मौतें हुईं। 
–    कोच्ची केरल के निकट ओणम के दिन 1982 में जहरीली शराब से 77 लोगो को मौत हो गई, 63 लोग अंधे हो गए और 15 लोग अपंग हो गए। 
–    5 नवम्बर 1991 को दिल्ली में 199 लोग जहरीली शराब से मर गए। 
–    कटक ओड़ीशा में 200 लोगों से अधिक लोग 1992 में जहरीली शराब से मर गए। 
–    2008 में कर्नाटक तमिलनाडू में जहरीली शराब से 180 लोग मारे गए। 
–    जुलाई 2009 में गुजरात में जहरीली शराब से 136 लोग की मृत्यु हो गए। 
–    दिसम्बर 2011 में संग्रामपुर पश्चिम बंगाल में 143 लोगों कि जहरीली शराब से मौत हो गई। 
–    2011  में पश्चिम बंगाल में जहरीली शराब से 167 लोगों की मौत हुई। 
–    कटक ओड़ीशा में 29 लोग फरवरी 2012 में जहरीली शराब से मर गए।
–    अक्तूबर 2013 में आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में 39 लोग जहरीली शराब से मर गए।
–    सितंबर 2015 में पश्चिम बंगाल में जहरीली शराब से 15 लोगों की मौत हुई। 
–    जून 2015 में मुंबई में मालाड के पास लक्ष्मी नगर में जहरीली शराब से 102 लोगों की मौत हुई। 
–    16 अगस्त 2016 में गोपालगंज बिहार में जहरीली शराब से 16 लोगों की मौत हुई। 
–    फरवरी 2019 में असम में गोलाघाट और जोरहाट में जहरीली शराब से 168 लोगों की मौत हुई। 
–    फरवरी 2019 में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जहरीली शराब से 100 लोगों की मौत हुई। 
–    जुलाई अगस्त 2020 में अमृतसर, गुरदासपुर, तरंतारण में जहरीली शराब से 100 लोगों की मौत हुई। 

यह तो केवल जहरीली शराब के आपराधिक मौतों के आकड़े हैं। वैसे देश में प्रतिवर्ष 2,60,000 मौतें शराब से होती हैं यानि 29 मौतें प्रति घंटा। 

पब्लिक डोमेन में उपलब्ध सूचना के अनुसार राज्य सरकारों को शराब की बिक्री से रुपये 1.75 लाख करोड़ (2020 के आकड़ों के अनुसार) की राजस्व की आय होती है। अधिक राजस्व वाले राज्य निम्न हैं-

राज्य              राजस्व (करोड़ रुपयों में)
उत्तर प्रदेश         31517
कर्नाटक           20950
महाराष्ट्र            17477
मध्य प्रदेश        13000
पश्चिम बंगाल    11873
तेलंगाना           10901
राजस्थान          10500
आंध्र प्रदेश        8518
तमिलनाडू        7262
हरियाणा         7000

इस विकट समस्या का निदान शराब की बिक्री पर रोक लगाने से नहीं हो सकता, क्योंकि राज्य सरकारों की अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाएगी और शराब की मैनुफेक्चरिंग में लगे उद्योग और कामगारों समस्याग्रस्त हो जाएंगे। राज्य सरकारों की राजस्व हानि की भरपाई केंद्र सरकार को करनी पड़ सकती है।

इस समस्या को राज्य सरकारों को राजस्व की भरपाई, शराब उद्यमियों (निर्माताओं), शराब व्यापार में लगे कामगार, सभी का एक साथ समाधान करना होगा। इस दृष्टि से सबसे पहले शराब की मैनुफेक्चुरिंग में मुख्य रॉ मेटेरियल मोलसेस (शीरा-शुगर मिलों में चीनी उत्पादन का बाइ प्रॉडक्ट) का लाभान्वित उपयोग जिसको बेहतर तकनीक से विभिन्न उत्पादों में रॉ मेटेरियल के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। 1999-2000 में पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने बायोफ्यूल का पेट्रोल में मिश्रण का विचार दिया था। एथनोल इंडस्ट्री में नवोन्मेष, रिसर्च एवं डेव्लपमेंट और अप्लाइड रिसर्च द्वारा बायोफ्यूल मुख्यतः शीरा विभिन्न उद्योगों में प्रयोग किया जा सकता है, जिसके माध्यम से सरकार को राजस्व प्राप्ति हो सकती है। शीरे के अलावा आलू, अनाज जैसे गेहूं, बाजरा, ज्वार से भी बायोफ्यूल का उत्पादन किया जा सकता है। जिससे किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। हमारे प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी, आईसीएआर, कृषि विश्वविद्यालय इस रिसर्च एवं डेव्लपमेंट और अप्लाइड रिसर्च के क्षेत्र में असाधारण कार्य कर सकते है। 

अभी भारत सरकार का लक्ष्य हैं कि 2025 तक पेट्रोल डीजल में एथनोल की 20 प्रतिशत ब्लेंडिंग करके क्रूड ऑयल के आयात को कम किया जाए। अभी ब्लेंडिंग 10 प्रतिशत तक हो सकी है। यदि देश में कुल शीरे का उत्पादन एथनोल में प्रयोग हो जाए तो उसकी खपत पेट्रोल डीजल में ब्लेंडिंग में काम आ सकती हैं और काफी हद तक प्रदेश सरकारों के राजस्व की भरपाई हो सकती है, क्योंकि पेट्रोल डीजल से प्राप्त राजस्व भी प्रदेश सरकार को ही मिलती है।

वर्ष 2021-22 के इस बजट में तथा पिछले बजटों में केंद्र सरकार ने ग्रामीण, कृषि, वंचित वर्गों के लिए बहुत सारी कल्याणकारी योजनाएँ और व्यय किए है। यह बहुत चिंता का विषय है कि जिस व्यापार से करोड़ों परिवारों की आर्थिक स्थिति नष्ट हो रही हो, केंद्र एवं राज्य सरकारों के प्रयत्न निष्फल हो रहे हों, लाखों लोगों की अकाल मौत हो जाए, जो हजारों अपराधों, बलात्कारों का कारण है, उस व्यापार से राजस्व प्राप्ति किस सीमा तक देश के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो सकता है। इसका समाधान हो सकता है यदि राजनैतिक संकल्प शक्ति हो और केंद्र व राज्य सरकारें अपनी वित्तीय व्यवस्था को मदिरा-अवरोधी बना सकें।   

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