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...फिर कांपी धरती तो उठे दहलाने वाले सवाल!

ऐसे में भूकंप के किसी बड़े जलजले से बचने के लिए सिर्फ बचाव ही एकमात्र रास्ता है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों विशेषज्ञों का यह मानना है कि संवेदनशील इलाकों में इमारत को भूकंप के लिहाज से तैयार किया जाना चाहिए ताकि भूकंप के संभावित नुकसान को कम से काम किया जा सके। - डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्रा

 

नेपाल में 3 नवम्बर 2023 को आए भीषण भूकंप की वजह से डेढ़ सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, हजारों लोग घायल हैं,कई मकान जमीदोंज हो गए हैं, सड़कों में दरारें आ गई है। इससे पहले 8 अक्टूबर को पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान में आए शक्तिशाली भूकंप के झटको में ढाई हजार से अधिक लोग मौत के मुंह में समा गए थे। इसके ठीक पहले दिल्ली एनसीआर सहित उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश में भी भूकंप के जोरदार झटके महसूस किए गए थे, जिसका केंद्र नेपाल में था। उत्तर भारत में उसी दिन धरती लगातार दो बार कांपी थी। इसी साल तुरकिए में भी 7.8 तीव्रतावाला बेहद शक्तिशाली और विनाशकारी भूकंप आया था, जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी। उस भूकंप ने तुरकिये की जमीन को भी लगभग 3 मीटर तक किसका दिया था।

पिछले एक महीने में यह तीसरी बार है जब भूकंप के जोरदार झटके से दिल्ली एनसीआर समेत उत्तर भारत के कई हिस्से के लोग डर कर अपने-अपने घरों से  बाहर भागने लगे। बीती रात भी भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। रेक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 6.4 दर्ज की गई। कई भूगर्भ वैज्ञानिक का शंका जता चुके हैं कि भूकंप के छोटे-छोटे झटके किसी बड़े भूकंप का संकेत भी हो सकते हैं। दिल्ली से बिहार के बीच 7.5 से 8.5 की तीव्रता की बड़े भूकंप की आशंका भी जता चुके हैं। दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में तो भूकंप के झटके बार-बार लगते रहे हैं और इन्हें देखते हुए यह सवाल भी उठता रहा है कि क्या दिल्ली की ऊंची आलीशान इमारते किसी बड़े भूकंप को झेलने की स्थिति में है? इसके साथ ही यह सवाल भी बार-बार खड़ा होने लगा है कि आखिर दिल्ली एनसीआर में भूकंप के झटके लगातार क्यों महसूस होते हैं? यहां रहनेवाले लोगों को चिंता सता रही है कि बार-बार आने वाले झटके किसी बड़े भूकंप की आहट तो नहीं है?

भारत में भूकंप के झटको को लेकर नेशनल सेंटर ऑफ सीस्मोलॉजी द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह कहा जा चुका है  कि जिन 20 भारतीय शहरों तथा कस्बों में भूकंप का खतरा सर्वाधिक है उनमें दिल्ली सहित 9 राज्यों की राजधानियां भी शामिल है। हिमालय पर्वत शृंखला क्षेत्र को दुनिया में भूकंप को लेकर सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है और एनसीएस के एक अध्ययन के मुताबिक भूकंप के लिहाज से सर्वाधिक संवेदनशील शहर इसी क्षेत्र में बसे हुए हैं। हालांकि एनसीएस की ओर से पिछले महीने यह भी कहा गया था कि खासकर दिल्ली एनसीआर के क्षेत्र में आने वाले भूकंप के झटको से घबराने की नहीं बल्कि जोखिम कम करने के उपायों पर जोर देने की जरूरत है। लेकिन साथ ही साथ यह भी कहा गया था कि ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिससे भूकंप आने के समय, स्थिति, तीव्रता की सटीक भविष्यवाणी की जा सके। भूगर्भ वैज्ञानिकों के मुताबिक दिल्ली हरिद्वार वन क्षेत्र में खिंचाव के कारण धरती बार-बार हिल रही है। इन झटकों से पता चलता है कि यहां के भूगर्भीय फाल्ट सक्रिय हैं जिसकी वजह से बड़ा भूकंप भी आ सकता है। लेकिन उसका कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता।

इंडियन प्लेट हिमालय से लेकर अंटार्कटिका तक फैली है जो हिमालय के दक्षिण में है जबकि यूरेशियन प्लेट हिमालय के उत्तर में है। कई अध्ययनों के आधार पर कहा गया है कि 72 प्रतिशत मामलों में हल्के भूकंप ही शक्तिशाली भूकंप के संकेत होते हैं। भूकंप के लिहाज से दिल्ली एनसीआर को संवेदनशील इलाका माना जाता है, जो खतरनाक भूकंप संभावित क्षेत्र 4 में आता है।

दिल्ली में 90 प्रतिशत से अधिक मकान कंक्रीट और सरिया से बने हैं, जिनमें 6 से अधिक की तीव्रता वाले भूकंप को झेलने की सामर्थ्य नहीं है। दिल्ली का करीब 30 प्रतिशत इलाका भूकंप की दृष्टि से क्षेत्र 5 में आता है, जो सर्वाधिक संवेदनशील है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया है कि दिल्ली में बनी नई इमारतें 6 से लेकर 6.30 तक की तीव्रता झेल सकती हैं जबकि पुरानी इमारते 5 से 5.30 तीव्रता का भूकंप ही सह सकती हैं। कमोबेश सभी विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली में जान माल का नुकसान अधिक हो सकता है क्योंकि दिल्ली की आबादी दो करोड़ से अधिक है और प्रति वर्ग किलोमीटर में करीब 10 हजार से अधिक लोग रहते हैं।

किसी बड़े भूकंप का असर करीब 300 किलोमीटर तक दिखता है। वर्ष 2001 में भुज में आए भूकंप के कारण वहां से 300 किलोमीटर दूर अहमदाबाद में भी काफी तबाही हुई थी। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस के वैज्ञानिक भी दिल्ली, कानपुर, लखनऊ और उत्तरकाशी के इलाकों में बड़े भूकंप की चेतावनी दे चुके हैं। उनके मुताबिक लगभग पूरा उत्तर भारत भूकंप की चपेट में आ सकता है।

विशेषज्ञों के मुताबिक 2 से 2.9 तीव्रता का भूकंप आने पर हल्का कंपन होता है, जबकि 3 से 3.9 तीव्रता का भूकंप आने पर ऐसा लगता है मानो कोई भारी ट्रक नजदीक से गुजरा हो। 4 से 4.9 तीव्रता वाले भूकंप में खिड़कियों के शीशे टूटने और दीवारों पर टंगे फ्रेम गिरने लगते हैं। रिक्टर स्केल पर 5 से कम तीव्रता वाले भूकंप को हल्का माना जाता है। 5 से 5.9 तीव्रता के भूकंप में भारी फर्नीचर हिलने लगते हैं और 6 से 6.9 तीव्रता में इमारत की नींव धड़कने से ऊपरी मंजिलों को काफी नुकसान हो सकता है। 7 से 7.9 तीव्रता का भूकंप आने पर इमारत के गिरने के साथ जमीन के अंदर की पाइपलाइन भी फट जाती है। 8 से 8.9 तीव्रता का भूकंप आने पर तो इमारत सहित बड़े-बड़े पुल भी गिर जाते हैं, जबकि 9 तीव्रता का भूकंप आने पर हर तरफ तबाही मच जाती है।

ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड द्वारा भूकंप के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों को जोन 2 से लेकर जोन 5 में रखा गया है। दिल्ली एनसीआर हरियाणा पंजाब जम्मू कश्मीर हिमाचल उत्तर प्रदेश बिहार सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल का कुछ क्षेत्र जोन 4 में आता है। जोन 5 में गुजरात का भुज, जम्मू कश्मीर का कुछ क्षेत्र, अंडमान निकोबार, उत्तराखंड का कुछ क्षेत्र तथा समस्त पूर्वोत्तर भारत आता है।

वैज्ञानिक सिद्धांतों के मुताबिक पृथ्वी की संरचना टेक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है जिस पर यह प्लेट्स तैरती रहती हैं। कई बार यह प्लेट्स आपस में टकरा जाती हैं। बार-बार टकराने से कई बार प्लेट्स के कोने मुड़ जाते हैं और ज्यादा दबाव पड़ने पर यह टूटने लगते हैं। ऐसे में नीचे से निकली ऊर्जा बाहर निकलने का रास्ता खोजती है जिसके कारण भूकंप आता है। भूकंप कब आएगा? भूकंप कहां आएगा और भूकंप कितनी तीव्रता का आएगा? इसकी सटीक भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता। हालांकि चीन ने एक समय में दावा किया था कि जानवरों के व्यवहार से भूकंप की भविष्यवाणी की जा सकती है, मगर यह सरासर झूठ साबित हुआ।

ऐसे में भूकंप के किसी बड़े जलजले से बचने के लिए सिर्फ बचाव ही एकमात्र रास्ता है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों विशेषज्ञों का यह मानना है कि संवेदनशील इलाकों में इमारत को भूकंप के लिहाज से तैयार किया जाना चाहिए ताकि भूकंप के संभावित नुकसान को कम से काम किया जा सके।

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