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रोजगार के बरक्स

वैश्विक मंदी की आशंका के बीच बेरोजगारी के संकट से घिरे भारत के नीति निर्माताओं को अपनी प्राचीन आर्थिक पद्धति को गौर करते हुए स्वदेशी की भावना से ओतप्रोत स्वावलंबी भारत की पहल गंभीरता के साथ करनी होगी —  डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

 

बीते मंगलवार को केंद्र सरकार ने रोजगार मेला के तहत 71 हजार युवाओं को नियुक्ति पत्र दिया है, इससे पहले दिवाली पर 75 हजार युवाओं को प्रधानमंत्री ने विभिन्न विभागों में नियुक्ति का तोहफा दिया था। इस तरह एक महीने के भीतर 1 लाख 46 हजार को रोजगार मिला। सरकार ने 10 लाख नौकरियां देने का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए सभी राज्य सरकारों से भी बढ़-चढ़कर नौकरियां देने की अपील की गई है। लेकिन इसी अवधि में श्रमिक भागीदारी दर (एलपीआर) में दर्ज की गई गिरावट न सिर्फ कामकाजी आबादी के बीच पनपती निराशा का संकेत है, बल्कि रोजगार पैदा करने में अक्षम होने की कहानी भी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी (सीएमआईई) के आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर 2022 में रोजगार की दर घटकर 36 फ़ीसदी पर आ गई, जो साल भर पहले इसी अवधि में लगभग 37.3 फीसदी थी। अक्टूबर के महीने में नौकरियों की संख्या में 78 लाख की गिरावट आई, लेकिन बेरोजगारों की संख्या 56 लाख ही बढी। यानी 22 लाख लोग रोजगार बाजार से निराश होकर अपने घरों को लौट गए। सितंबर 2022 में बेरोजगारी की दर 6.4 प्रतिशत थी जो कि अक्टूबर 2022 में बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गई है। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ जोंक की तरह चिपकी बेरोजगारी के दरमियान कुछ हजार नौकरियों का तोहफा रोजगार के बाजार में ऊंट के मुंह में जीरा जैसा ही है।

आंकड़े और अनुभव दोनों इस बात की गवाही दे रहे हैं कि घरेलू बाजार में मांग नहीं है और ऊंची महंगाई दर इसे और नीचे लाने में जुटी हुई है। दूसरी तरफ वैश्विक मांग में गिरावट के कारण निर्यात भी लगातार नीचे की ओर जा रहा है। अक्टूबर 2022 में निर्यात 16.58 प्रतिशत गिरकर 20 महीने के निचले स्तर 29.8 अरब डालर पर आ गया है जबकि आयात 6 फीसदी बढ़कर 56.69 अरब डालर पर पहुंच गया है। यदि अप्रैल से अक्टूबर 2022 के आंकड़े को देखें तो निर्यात में मात्र 12.55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और यह 263.35 अरब डालर का रहा है, जबकि आयात 33.12 प्रतिशत बढ़कर 436.81 अरब डालर पर पहुंच गया। आयात निर्यात का यह विपरीत रुझान घरेलू रोजगार बाजार के भविष्य के लिए दो धारी तलवार की तरह है। एक तरफ निर्यात में गिरावट के कारण नौकरियां घट रही हैं तो दूसरी तरफ आयात बिल बढ़ने से पूंजीगत निवेश प्रभावित हो रहा है। ऐसे में यक्ष प्रश्न है कि फिर नौकरियां कैसे पैदा हो पाएंगी?

चिंता की बात यह है कि शहरी बेरोजगारी के साथ-साथ ग्रामीण बेरोजगारी में भी वृद्धि हुई है। जून 2020 से ग्रामीण बेरोजगारी की दर जो 7.7 प्रतिशत थी, अक्टूबर महीने में 8 का आंकड़ा पार कर गई है। एलपीआर लगातार 40 प्रतिशत से नीचे बनी हुई है। नौकरियों के मामले में कृषि क्षेत्र नवंबर 2021 में अपने उच्चतम पर था, जब इस क्षेत्र में 16.4 करोड़ लोग रोजगाररत थे, लेकिन उसके बाद से आंकड़ा तेजी के साथ नीचे आया और सितंबर 2022 में कृषि क्षेत्र में 13.4 करोड़ लोग ही रोजगाररत पाए गए। अक्टूबर 2022 में इस आंकड़े में थोड़ा सुधार जरूर हुआ और यह बढ़कर 13.96 करोड हो गया, लेकिन पिछले 4 सालों के दौरान अक्टूबर महीने में कृषि क्षेत्र में नौकरियों का यह न्यूनतम आंकड़ा है।

इसी तरह सेवा क्षेत्र में 79 लाख नौकरियां समाप्त हो गई, जिनमें 46 लाख ग्रामीण इलाकों में थी, और इसमें भी 43 लाख खुदरा क्षेत्र में थी। यानि सेवा क्षेत्र में लगभग आधी हिस्सेदारी रखने वाले खुदरा क्षेत्र की हालत भी ग्रामीण इलाकों में खराब हो रही है। देश की लगभग 70 फ़ीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में खरीदारी की क्षमता घट रही है जिसके चलते मांग की दर भी नीचे आ रही है।

औद्योगिक क्षेत्र की स्थिति भी अच्छी नहीं है। सबसे ज्यादा नौकरियां पैदा करने वाला निर्माण क्षेत्र ने भी अक्टूबर 2022 में दगा दिया, यहां 10 लाख से अधिक नौकरियां समाप्त हो गई हैं। सितंबर 2022 में शहरी क्षेत्र में कुल 12.6 करोड़ नौकरियां थी लेकिन अक्टूबर 22 में यह आंकड़ा बढ़कर 12.74 करोड हो गया है।

विश्व व्यापार संगठन ने भी रोजगार को लेकर नकारात्मक संदेश दिया हैं। संगठन के अनुमान के मुताबिक 2022 में वैश्विक व्यापार की वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत रहेगी, जबकि 2023 में यह मात्र 1 प्रतिशत पर सिमट जाएगी। इसका मतलब है कि भारत का निर्यात लगातार कम होगा और यह कमी रोजगार बाजार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। हमारे पास सेवा क्षेत्र से थोड़ी बहुत उम्मीद है। लेकिन लगभग 140 करोड़ के देश की विशाल कामकाजी आबादी के लिए यह क्षेत्र कितना खाद पानी जुटा पाएगा, सहज ही समझा जा सकता है।

इस क्रम में मुनाफे के सिद्धांत पर धंधा करने वाले निजी क्षेत्र अब भी उदासीन है। कारपोरेट कर में कटौती, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन और अन्य राजकोषीय प्रोत्साहनों के बावजूद निजी क्षेत्र निवेश के लिए कदम नहीं बढ़ा रहा है। वित्तमंत्री बार-बार इसको रेखांकित करती रही है। वर्तमान का एक तथ्य यह भी है कि सरकार अप्रैल से अगस्त के दौरान 75 खरब रुपए के वार्षिक पूंजीगत निवेश लक्ष्य का मात्र 33.7 प्रतिशत ही खर्च कर पाई, जबकि केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ने अप्रैल से सितंबर के दौरान 66.2 खरब डालर के वार्षिक पूंजीगत निवेश लक्ष्य का 43 प्रतिशत खर्च किया। आखिर बिना निवेश बढ़ाए रोजगार कैसे पैदा होगा? वैश्विक मंदी की आशंका के बीच बेरोजगारी के संकट से घिरे भारत के नीति निर्माताओं को अपनी प्राचीन आर्थिक पद्धति को गौर करते हुए स्वदेशी की भावना से ओतप्रोत स्वावलंबी भारत की पहल गंभीरता के साथ करनी होगी और अस्थिर वैश्विक आर्थिकी के मद्देनजर रोजगार की राह को आसान बनाने के लिए सरकार के संतुलनकारों को सूझबूझ के साथ अनुकूल नीति के साथ आगे बढ़ना होगा। वरना बेरोजगारों की बढ़ती तादाद के आगे रोजगार के मेले बौने ही बने रहेंगे।           

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