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जरूरी हो गया है चीन का बहिष्कार

चीन में तानाषाही है। चीन दुनिया के पर्यावरण का दुष्मन है। चीन मानवाधिकार का उल्लंघन करता रहता है। चीन आतंकवाद को समर्थन देते रहता है। चीन हमारी सीमा सुरक्षा के लिए खतरा है। — अमोल पुसदकर

 

कुछ हद तक चीन एक साम्राज्यवादी देष है। उसका उसके पडोसी राष्ट्रों के साथ सीमा विवाद है। कुछ न कुछ बहाना बनाकर विवाद उत्पन्न करना और धोखे से पडोसी राष्ट्र की भूमि हथियाना ये चीन की पद्धति है। अंग्रेजों के कालखंड में 1914 में भारत और तिब्बत की सीमा रेखा निष्चित करने का काम जिस अधिकारी को सौंपा गया, उसका नाम मॅकमोहन था। इसलिये इस सीमा रेखा को मॅकमोहन लाईन अथवा मॅकमोहन रेखा भी कहा जाता है। 1950 में तिब्बत चीन का हिस्सा बना। वास्तव में जो भारत और तिब्बत की सीमा रेखा थी वहीं सीमा रेखा चीन और भारत की होनी चाहिये थी। लेकिन चीन ने मॅकमोहन लाईन को स्वीकार नहीं किया। वो कहता है कि भारत अंग्रेजों का गुलाम था और गुलाम को अपनी सीमा रेखा निर्धारित करने का कोई अधिकार नहीं होता। इसलिये वो इस मॅकमोहन लाईन को नहीं मानता। मॅकमोहन लाईन कागज की रेखा है। सीमा पर वास्तविकता में कोई भौगोलिक चिन्ह या कटीले तार विद्यमान नहीं है। जिसके कारण सीमा को पहचाना जा सके। इसी कारण चीन इसका फायदा उठाकर बार-बार भारत की सीमा में घुसपैठ करता है। बहुत बार उसे जब ये समझाया जाता है कि ये भूमि भारत की भूमि है तब भी वो इसे मानता नहीं और पीछे जाने से मना करता है। गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद चीन को यह अच्छी तरह से पता लग गया है कि वो अगर कुछ भी करेंगे तो भारत की सेना सह लेंगी ऐसा नही है। भारत जवाब देगा ही। जैसा कि 9 दिसंबर को तवांग में चीन ने भारत की सीमा में घुसपैठ करने की कोषिष की, तब हमारे सैनिकों ने उसे अच्छा सबक सिखाया। आज सेना के पीछे पूरा देष और सरकार खडी है। इसलिये सेना का मनोबल भी ऊंचा है। केंद्र सरकार ने सेना को पूरे अधिकार दे रखे है। जिसके कारण वह योग्य परिस्थिति में योग्य निर्णय ले सकती है। आज का भारत यह 1962 का भारत नहीं है। आज का भारत यह 2022 का सक्षम भारत है। 1962 की लडाई में चीन ने भारत का 38800 वर्ग किमी भू-भाग हथियाया है। अक्साई चीन भारत का ही हिस्सा था अब वो चीन के पास है। लेकिन फिर भी भारत ने अपना दावा छोडा नहीं है। भारत दावा करता है इसलिये चीन भी अरुणाचल प्रदेष पर अपना दावा प्रस्तुत करता है। दोनां देषों के बीच जो सीमा रेखा है उसे लाईन ऑफ एक्च्युअल कंट्रोल कहा जाता है। यह लाईन बडे-बडे पहाडों से, ग्लेषियर से, नदी और पर्वतों से होकर गुजरती है। लाईन ऑफ एक्च्युअल कंट्रोल पेंगांग स्थित झील से भी गुजरती है। यही से एक रास्ता त्रिषूल घाटी की तरफ जाता है। जहाँ से 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया था। 

2020 में भारत और चीन के सैनिको में जो संघर्ष हुआ था वो गलवान घाटी अक्साई चीन और लद्दाख के बीच में है। यहां से पाकिस्तान भी बहुत पास में है। इसलिये गलवान घाटी पर नजर रखना सुरक्षा की दृष्टि से बहुत आवष्यक है। 1962 में इसी गलवान घाटी से चीन ने भारत पर हमला किया था। इसी घाटी के बीच में चीन ने बहुत सारे रास्ते, बंकर और सैनिकों के लिए आवष्यक सुविधायें बनाई हुई है। लेकिन वो भारत से कहता है कि तुम “जैसे थे“ उसी परिस्थिति को कायम रखो। इस प्रदेष में कोई भी निर्माण कार्य भारत नहीं करेगा ऐसा चीन का कहना है। 2017 में चीन ने सिक्किम और भूटान के बीच जो डोकलाम नाम का प्रदेष है वहां पर रस्ता बनाने का प्रयास किया था। भारत ने इसका विरोध किया। यह विवाद 70-80 दिन तक चला और आखिर में बहुत सारी चर्चा होने के बाद समाप्त हो गया। डोकलाम भारतीय पर्वत पर है और चीन नीचे, इसलिये यहां पर हमारी परिस्थिती बहुत अच्छी है। भूटान और बांग्लादेष के बीच में जो छोटा सा भारतीय प्रदेष है उसे चिकन नेक के नाम से जाना जाता है। अगर डोकलाम में चीन रस्ता बना लेता तो इस चिकन नेक के लिए खतरा पैदा होता। जिस तवांग में भारत और चीन के सैनिको के बीच में संघर्ष हुआ उस तवांग और तिब्बत की सांस्कृतिक एकता बहुत ज्यादा है। तवांग बौद्ध लोगों का एक प्रमुख केंद्र है। चीन तवांग को हथिया कर तिब्बत और तवांग के सारे बौद्ध मठां पर अपना अधिकार करना चाहता है। सिक्किम और दक्षिण तिब्बत के बीच में नाथूला नाम का दर्रा है। जहां से 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया था। यहां पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच में संघर्ष की खबरे आती रहती है। नाथूला हो या डोकलाम, गलवानघाटी हो या तवांग, चीन भारतीय सीमा पर अस्थिरता पैदा करने में लगा रहता है। उसका उद्देष स्पष्ट है कि भारत का पूरा ध्यान विकास से हटाकर सीमा पर लग जाये और चीन दुनिया में अपना व्यापार कायम रख पाये। चीन हमारी सीमाओं में घुसकर हमारे सैनिको के साथ संघर्ष करके भारतीय जनता का भी अपमान कर रहा है। चीन के इस अपमान का बदला लेने की जरूरत है। इसलिये चीन को एक धक्का देने की जरूरत है। और वो धक्का सामान्य नागरिक बाजारां में दे सकता है। बाजार में जाकर अगर हम कहेंगे कि “से नो टू चायना प्रॉडक्ट्स“ चीनी वस्तु का संपूर्ण बहिष्कार, तो ये चीन के लिए एक बहुत बडा धक्का साबित होगा। जितना हम चायना माल खरीदेंगे उतना चीन पैसे वाला और अमीर बनेगा। अमीर बनते ही उसका गर्व और उसकी मस्ती और बढेगी और उसका परिणाम सीमा पर हमारे सैनिकों को संघर्ष के रूप में भुगतना पडेगा। चीन हमारे सैनिकों को अगर धक्का देता है तो हम भी उसके वस्तुओं को धक्का देंगे ये मानसिकता बनानी पडेगी।  किसी संस्था ने आवाहन पर नहीं बल्कि हमें स्वयं से यह निर्णय लेना होगा कि हमारे दैनंदिन जीवन में हम चीनी वस्तु का उपयोग नहीं करेंगे। एक बार नहीं करेंगे और कभी भी नहीं करेंगे, इस प्रकार की प्रतिज्ञा जनता को लेने की जरूरत है। 

चीन में तानाषाही है। चीन दुनिया के पर्यावरण का दुष्मन है। चीन मानवाधिकार का उल्लंघन करता रहता है। चीन आतंकवाद को समर्थन देते रहता है। चीन हमारी सीमा सुरक्षा के लिए खतरा है। चीन ने हमारे साथ में लडाई कर हमारा भू-भाग हमसे छींना है। चीन हमारे छोटे उद्योगों का दुष्मन है। ये सब बातें ध्यान में रखते हुए हमें चीनी वस्तु का बहिष्कार करना चाहिए। टाटा जैसे देषभक्त समूह ने, हमारी कंपनी में हम चायनीज मषीने उपयोग में नही लायेंगे का प्रण किया है। बहुत सारे स्टील उद्योगों ने भी हम चायनीज मषीनरी का उपयोग नहीं करने का निष्चय किया है। ये अच्छे संकेत है। लेकिन इसे और बढाने की जरूरत है। चीन का चेहरा कोरोना के बाद विश्व में खराब हो चुका है। इसलिये चीन में कार्य कर रही कंपनियां किसी और सुरक्षित भूमि की तलाष में है। वो सुरक्षित भूमि भारत हो सकता है। इसलिये चीन को बाजारों में मात देने की जरूरत है। अगर  बाजार में भारतीय वस्तु न हो तो हमें विदेषी वस्तु खरीदते समय वो भारत के मित्र देष की हो, यह देखना भी आवष्यक है। तात्पर्य ऐसा है कि चीनी वस्तु हम न खरीदे। भारत आज विकसित हो रहा है। आने वाले दिनों में भारत एक बहुत बडी महाषक्ति के रूप में उभर सकता है। इसे मूर्तरूप देने के लिए जनता को स्वदेषी का मार्ग अपनाना आवष्यक है। जरुरत से देषी और मजबूरी में विदेषी यही हमारा मंत्र होना चाहिये। चायना वस्तुओं के बहिष्कार का अभियान निरंतर चलना चाहिए। और चीन को भी एक सबक मिलना चाहिए कि सीमा पर भारतीय जवान को दिया हुआ धक्का याने भारतीय बाजार में उसकी वस्तुओं का जनता द्वारा बहिष्कार। ये उसका अर्थ होगा। यह अभियान निरंतर चलाने के लिए लोकसहभाग, लोकप्रबोधन, लोकजागरूकता आदि बातें करने की आवष्यकता है। जवान सीमा पर अपना काम करेगा लेकिन हमें बाजार में अपना काम दिखाने की आवश्यकता है। 

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