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आशंका और उम्मीदों के आईने में बजट

गरीबों के लिए कुछ नहीं का दावा करने वाले बजट ठीक से पढ़ने के बाद यह नहीं कह पाएंगे कि मोदी सरकार को गरीबों की चिंता नहीं है। — विक्रम उपाध्याय

 

वर्ष 2022-23 का बजट प्रस्तुत होने के बाद यह स्वाभाविक था कि सत्ता पक्ष इस बजट की तारीफ में कसीदे पढ़ता और विपक्ष इस पर लानत भेजता। यह राजनीतिक रिवायत है। लेकिन कुछ खास लोगों की प्रतिक्रिया और विश्लेषण पर एक ईमानदार समीक्षा जरूरी है। इस बजट में जिन मुद्दों पर तीखी आलोचना हो रही है, उनमें मध्यवर्ग के लिए निराशा, कृषि क्षेत्र के लिए छलावा, गरीबों के लिए कुछ नहीं और युवाओं को नजरअंदाज जैसे मुद्दे हैं। क्या वाकई ऐसा है?

सबसे पहले यह विचार करते हैं कि मध्यवर्ग के लिए इस बजट में कुछ है या नहीं। आलोचना इस बात की हो रही है कि मध्यवर्ग को राहत देने के लिए ना तो आयकर की सीमा बढ़ाई गई है, ना घर खरीदने के लिए उठाए गए लोन के ब्याज भुगतान में आयकर की छूट बढ़ाई गई है और ना ही उनकी आमदनी बढ़ाने के कोई प्रावधान ही किए हैं। यानी आलोचकों की नजर में इस बजट में मध्य आय वर्ग को पूरी तरह नजरंदाज कर दिया है, जबकि कोरोना काल में मध्यवर्ग काफी परेशान रहा है।

सीधे सपाट यदि बजट भाषण को देखे तो सचमुच लगता है कि अपने सबसे बड़े वोटर वर्ग को भाजपा की केंद्र सरकार ने पूरी तरह निराश किया है। लेकिन अब जरा वास्तविकता पर नजर डालें। भारत की तुलना दुनिया के कुछ बड़े देशों में लागू आयकर की रेट पर डालें तो पाएंगे कि हमारे देश में आज भी इनकम टैक्स की दर बाकी देशों से कम है।

ऑस्ट्रेलिया और चीन में आयकर की दर 45 प्रतिशत है तो यूरोप के देश 41 प्रतिशत से अधिक आयकर वसूलते हैं। जापान में आयकर की दर 55 प्रतिशत है। साउथ अफ्रीका, साउथ कोरिया और यूनाइटेड किंगडम में आयकर की दर 45 प्रतिशत है, अमरीका में भी 37 प्रतिशत की दर से आय कर वसूला जाता है। हमारे पड़ोस पाकिस्तान में आय कर की दर 35 प्रतिशत है। भारत में आज भी 15 लाख तक की आय पर अधिकतम 30 प्रतिशत की दर से आय कर देय है। हमको मालूम होना चाहिए कि 2014 के बाद से भारत में आयकर की दर नहीं बढ़ाई गई है, भले ही लोगों की आय बढ़ी हो।

यह मांग जायज हो सकती है कि इस कोरोना काल में मध्य आयवर्ग के लोगों की बचत बढ़ाने का कोई उपाय किया जाना चाहिए था। इस संबंध में भारत सरकार के प्रिंसिपल इकोनोमिक एडवाइजर सान्याल की बात को ध्यान सुना जाना चाहिए। उनका कहना है कि आयकर में छूट प्रदान करने के बाद सरकार के पास दो विकल्प बचते हैं, या तो छूट से आय में होने वाली कमी के बराबर सरकार अपने खर्च कम कर ले, परियोजनाओं पर कम पैसा लगाए या फिर खर्च के लिए अतिरिक्त कर्ज ले। दोनों ही स्थितियां इस समय अर्थव्यवस्था को उबारने के प्रयास को कमजोर कर सकती थी। इसलिए सरकार ने देशहित का ध्यान रखते हुए करों में कोई छूट प्रदान नहीं की।

हमें यह जानना चाहिए कि कोविड के कारण 2020-21 में प्रत्यक्ष कर का संग्रह केवल 5, 87,702 करोड़ रुपये हुए थे, जबकि उस दौरान सरकार पर खर्च को बोझ बहुत बढ़ गया था। दुनिया के तमाम देशों ने इस दौरान अपने टैक्स रेट बढ़ा दिए। यह कम उपहार नहीं कि भारत में आयकर नहीं बढ़ा। यह तो गनीमत है कि 2021-22 में प्रत्यक्ष आयकर की वसूली पिछले साल के मुकाबले 60 प्रतिशत अधिक हुई। इस वर्ष दिसंबर तक 9,45, 276 करोड़ रुपये आयकर के रूप में देश को प्राप्त हुए। सरकार ने इसी आधार पर 22-23 के बजट में लगभग डेढ़़ लाख करोड़ बढ़ाकर खर्च का प्लान किया है।

तो क्या इस बजट में मध्य आय वर्ग को कुछ नहीं मिला? ऐसा नहीं है। इस बजट में भी सरकार ने मध्यम आय वर्ग और वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए कुछ प्रावधान किए हैं। जैसे शेयर से प्राप्त आमदनी पर सरचार्ज 15 प्रतिशत है, लेकिन अन्य संपत्ति की बिक्री से प्राप्त लाभ पर सरचार्ज अभी तक 33 प्रतिशत लगता था, लेकिन इस बजट में इसे घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया है। इसका फायदा यह होगा कि अन्य परिसंपत्तियों की खरीद-बिक्री पहले से ज्यादा लाभदायक होगी। ऐसे ही केंद्र के कर्मचारियों को नेशनल पेंशन स्कीम में अपनी हिस्सेदारी पर 14 प्रतिशत की आयकर छूट मिलती थी, जबकि राज्य सरकार के कर्मचारियों को इसी स्कीम में हिस्सेदारी पर केवल 11 प्रतिशत ही छूट मिलती थी। इस बजट में अब राज्य कर्मचारियों को भी पेंशन स्कीम में निवेश पर 14 प्रतिशत की कर छूट प्राप्त होगी। जाहिर है कुछ तो बचत होगी ही।

कृषि क्षेत्र न केवल अर्थव्यवस्था के लिए, बल्कि राजनीति के लिए भी बेहद संवेदनशील विषय रहा है। उसमें भी लगभग एक साल चले किसान आंदोलन के बाद लोगों को उम्मीद थी कि इस क्षेत्र के लिए सरकार जो भी करेगी, बड़ा करेगी। खासकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव को देखते हुए किसानों को रिझाने का प्रयास जरूर किया जाएगा। इस बजट में सरकार ने किसानों के लिए प्रावधान तो बहुत किए, लेकिन यह आभास जरा भी नहीं होने दिया कि सरकार कुछ हड़बड़ी में कर रही है। सीधे और तुरंत किसी लाभ की घोषणा के बजाए सरकार ने लंबी अवधि के सुधार और ढ़ांचागत विकास को प्राथमिकता इस बजट में दी है।

एमएसपी को लेकर आशंकाओं को खारिज करते हुए वित्त मंत्री ने सीधे घोषणा कर दी कि रबी और खरीफ फसल की सरकारी खरीद में तेजी लाते हुए किसानों के खातों में 2.37 लाख करोड़ रुपये की एमएसपी सीधे ट्रांसफर की जाएगी। इससे 163 लाख किसानों से 1208 लाख मीट्रिक टन गेहूं और धान की सरकारी खरीद सुनिश्चित की जाएगी। अब राकेश टिकैत के सामने सवाल नहीं बचता कि सरकार एमएसपी बंद करने जा रही है।

खेती में काम करने वालों को तकनीक से जोड़ने का प्रधानमंत्री मोदी का दर्शन बजट में दिखा। जैसे पूरी तरह से प्राकृतिक एवं जैविक खेती को प्रमोट किया जाएगा। गंगा किनारे किसानों की जमीन पर 5 किलोमीटर के कॉरिडोर का निर्माण किया जाएगा। किसानों को डिजिटल और हाईटेक तकनीक से जोड़ा जाएगा। किसानों की खेती के आकलन के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा। राज्यों को एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज को और उपयोगी बनाने के लिए सहायता दी जाएगी।

यदि आकड़ों की बात करें तो इस बजट में कृषि क्षेत्र को पहले से ज्यादा बजट आवंटन किया गया है। साल 2021-22 में 1,47,764 करोड़ रुपये का कृषि बजट था जिसे इस साल बढ़ाकर 1,51,521 करोड़ कर दिया गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम के तहत किसानों को उनके खाते में दी जा रही रकम के लिए भी बजट आवंटन बढ़ाया गया है। 2021-22 में इसके लिए 65000 करोड़ रुपये का आवंटन था, जिसे अब 2022-2023 के लिए 68000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इस बजट में फसल बीमा योजना के लिए 15500 करोड़ और उर्वरक सब्सिडी के तौर पर 1,05,222 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान लगाया है।

गरीबों के लिए कुछ नहीं का दावा करने वाले बजट ठीक से पढ़ने के बाद यह नहीं कह पाएंगे कि मोदी सरकार को गरीबों की चिंता नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद ही बजट के बाद अपनी प्रतिक्रिया में इस आशंका को निर्मूल बताते हुए कहा कि हर गरीब आदमी को पक्का मकान, पक्का शौचालय, घर में नल और मुफ्त रसोई गैस सिलेंडर मिलेगा। अकेले ग्रामीण और गरीबों के लिए 80 लाख मकान बनाए जाएंगे, जिस पर 44 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इन मकानों के निर्माण में गरीब मजदूरों को ही रोजगार दिए जाएंगे। महिलाओं और बच्चों के लिए मिशन शक्ति, मिशन वात्सल्य, सक्षम आंगनबाड़ी एवं पोषण के मामले में बड़ी घोषणा करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि इस साल दो लाख आंगनबाड़ियों का विस्तार होगा और उन्हें सक्षम आंगनबाड़ी बनाया जाएगा।

रोजगार सृजन एक ऐसा फंडा है जिसे दुनिया की हर सरकार दावे से शुरू करती है और अगले साल के वायदे से उसपर परदा डाल देती है। देश में इस समय बेरोजगारी दर अधिकतम है और सरकार पर इसे लेकर बहुत दबाव भी है। बजट में यह दबाव साफ दिखता है और इसे फिलहाल संभालने के लिए एक और बड़ा वायदा किया गया है। इस साल के बजट में मंत्र दिया गया है निर्माण से रोजगार। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे यह बजट रोजगार सृजन पर केंद्रित रहेगा। उन्होंने सपना दिखाया कि आत्मनिर्भर भारत योजना से 60 लाख युवाओं को नौकरियां मिलेंगी।

चूंकि, महामारी ने कई लोगों की नौकरियां समाप्त कर दी है इसलिए अब युवाओं के लिए अधिक अवसर पैदा करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। महामारी के दौरान सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों में भी बेरोजगारी बहुत बढ़ गई थी, अब उसे दूर करने के लिए आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना को मार्च 2023 तक बढ़ा दिया गया है, साथ ही गारंटी कवर को भी 50,000 रुपये तक बढ़ा दिया गया है। अब देखना है कि यह बजट आशंकाओं को खारिज करते हुए उम्मीदों पर कितना खरा उतरता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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