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देश के विखंड़न के बीज बोती जातिगत जनगणना

देश में किसी वर्ग को भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। वरना तो जातिगत जनगणना से देश में विखंड़न की प्रक्रिया और तेज हो जायेगी और देश का विकास अवरुद्ध हो जायेगा। - डॉ. सूर्यप्रकाश अग्रवाल

 

देश में जिस प्रकार कुछ जातिवादी राजनेताओं के द्वारा जातिगत जनगणना कराने पर बल दिया दिया जा रहा है, वह न केवल अल्पकालीन राजनीतिक सत्ता सुख प्राप्त करने के लिए आतुर है बल्कि इससे नासमझ लोग देश को खंड़ खंड़ करने का भी दृष्टिकोण रख सकते है। गरीब किसी भी जाति का हो, वह गरीब है और अमीर किसी भी जाति का हो, वह अमीर है। विश्व में इस समय मात्र दो ही जातियां है वह है केवल अमीर व गरीब। शेष सभी जातियां का विश्लेषण मात्र अपनी राजनीति की दुकानें चलाने के लिए मात्र दुराग्रह ही कहा जा सकता है  जिनका राजनीतिक नाटक किसी को लाभ नहीं पहुंचता बल्कि स्वतंत्रता के 76 वर्ष बीतने पर भी लोगों को बेवकूफ बना कर उनका उद्देश्य उनसे उनका वोट ही प्राप्त करना है। गरीब व पिछड़ी जाति के लोंगों की स्थिति तस की जस बनी हुई है, जिन तथाकथित गरीब व पिछड़ी जाति के लोगों को आरक्षण का लाभ मिल चुका है, वे भी अपने बच्चों को आरक्षण निरन्तर चाहते रहते है। इससे वे केवल अपने भाइयों का ही हिस्सा खा रहे है तथा आरक्षण की राजनीति करते रहते है।

जातिय गणना से जिन जातियों का जिन्न एक बार बोतल से बाहर निकला तो उसे वापस बोतल में न ड़ाला जा सकेगा और देश गृह युद्ध की तरफ चला जायेगा। जातिगत जनगणना के आंकड़े जो भी आये परन्तु उनसे सम्पूर्ण देश में ही जातिगत द्वेष व वैमनस्य जरुर उत्पन्न होगा। कर्नाटक राज्य में 2014 में सिद्धरैमयया ने 192 करोड रुपये लगा कर जातिगत जनगणना अथवा सर्वे करवाया था परन्तु उनकी भी हिम्मत नहीं हुई थी कि वे इस गणना के आंकड़ां को प्रकाशित कर सके। भारतीय जनतांत्रिक राजव्यवस्था में इस जातिगत गणना अथवा सर्वे के आंकडां़े का राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग (दुरुपयोग) ही होने की ही आशंका अधिक है। देश के जातिवादी राजनेता मात्र स्वंय का ही राजनीतिक लाभ देखते है। देश से उन्हें कोई मतलब नहीं। राजनीतिक स्वार्थों के चलते भारतीय समाज की विविधता की विशेषता का संकीर्ण लाभ ही उठाया जाता है। यह संकीर्ण लाभ उठाने की प्रवृति इस गणना के आंकड़े प्राकाशित होने के बाद और तेजी से अवश्य बढ़ेगी। देश के राजनेता और जो अभी अभी राजनेता बनने की ओर अग्रसर हो रहे है वे विभिन्न जातियों में पहले से ही फैली दरारों को पाटने का कोई काम नहीं करते है। उल्टे उन्हें भ्रम में ड़ाल कर जातियों में दरारों को और भी चौड़ा करने का ही काम करते है।

वर्तमान में भारत को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था का सम्मान दिलाने के लिए प्रयास किये जा रहे है। परन्तु कुछ जातिवादी राजनेता देश को पिछड़ा व बीमारु होने का रुप ही विश्व के सामने रखने के इच्छुक दिखाई दे रहे है। इस समय समाज में एकता व प्रेम का भाव पैदा करने की आवश्यकता है। वंचित वर्गों के सशक्तीकरण के समस्त प्रयास गत 76 वर्षे से किये जा रहे है और आगे भी जारी रहेंगे। अब समय है कि उन सभी प्रयासों की समीक्षा की जानी चाहिए और प्रयासों में तेजी लानी चाहिए। वंचितों को ऊपर उठाने के लिए समस्त उपकरण ज्यों के त्यों लागू रहेंगे परन्तु जातिवादी राजनेता भवष्यि का कोई कार्यक्रम लेकर नहीं अपति जातिगत विद्वेष ही उत्पन्न करने से ही उन्हें अपना ज्यादा व देश का कम लाभ दिखाई देता है। जातिवादी राजनेता समाज में समभाव के स्थान पर दुराव बढ़ाने कर प्रत्येक सम्भव कोशिश करते दिखाई देते रहते है।

जातिगत जनगणना अथवा सर्वे के अांकड़े सामने आने पर उसके प्रतिकूल प्रभाव ही अधिक दिखाई देंगे तब राजनेता अपनी जिम्मेदारी से भाग कर विपक्ष पर दोषारोपण करने से भी बाज नहीं आयेंगें। सबसे ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव उद्योगों में निवेश पर पड़ेगा क्येंकि निजी क्षेत्र में सेवा तथा वस्तु की उत्पादकता व व्यावसायिक प्रतियोगिता पर आधारित होता है। वहां यदि राजनेता ने अपना स्वार्थ दिखाते हुए आरक्षण लागू कर दिया तो निवेश के आगमन को सबसे ज्यादा झटका लगेगा और उससे निवेश हतोत्साहित ही हो जायेगा जिसका सीघा सीघा प्रभाव युवाओं के रोजगार पर प्रतिकूल रुप से पड़ेगा। इस समय आवश्यकता है कि देश में 74 वर्ष से पुरानी नौकरियां में आरक्षण की व्यवस्था की सम्पूर्ण समीक्षा की जाय व जिन लोगों को आरक्षण मिल चुका है उनके स्थान पर उन्हीं ही जाति के अन्य लोगों को आरक्षण दिया जाय।

देश में अंग्रेजों ने 1931 में जातिगत जनगणना करवाई थी। अब यदि जनगणना होती है तो तमाम वास्तविकताओं का पता चलेगा तथा अांकड़ों की उपयोगिता राजनेता तय कर सकेंगे। जातिगत जनगणना के स्थान पर केन्द्र सरकार के द्वारा 2021 से बाट जोहती सम्पूर्ण देश की जनगणना की करवाई की जानी चाहिए उसमें जाति का एक कालम जैसा हो सकता है, वैसा होना चाहिए। मात्र केवल जातिगत जनगणना होने से इससे जातिगत आरक्षण का लाभ कहां तक पंहुचता है यह भी पता चलेगा। यह कार्यवाई हुई और आरक्षण का प्रातिशत 50 प्रतिशत से बढ़ा तो समाज में हो हल्ला मच जायेगा। अनुसूचित व पिछड़ी जातियों को मिलने वाला आरक्षण का लाभ कुछ वर्ग ही प्राप्त कर रहे है जबकि कुछ अन्य जरुरतमंद जातियों को यह लाभ नहीं मिला है। कोटे के भीतर कोटा की मांग बढ़ सकती है।

देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी जातिगत गणना के लिए इच्छुक नहीं दिखाई देती है जबकि विपक्षी दलों के राजनेता भाजपा को टक्कर देने के लिए जातिगत गणना को अस्त्र बनाने पर तुला हुआ है। विपक्ष जातिगत जनगणना के पक्ष में एक विमर्श खड़ा करने में सफल भी नहीं हुआ है। भाजपा अपने द्वारा घोषित सभी सरकारी योजनाओं का लाभ जातिगत समभाव पर देती है। वह जाति को देख कर लाभ नहीं देती है। जातिगत जनगणना से आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत को बढ़ाने का दबाब बढ़ सकता है। सवर्णों में असंतोष फैलेगा। वैसे भी सवर्णों के अधिकांश युवा भारत में सस्ती शिक्षा ग्रहण करके नौकरियोंं व रोजगार के लिए विदेशों में पलायन कर जाते है और उन देशों की प्रगति व उन्नति में योगदान देकर हिस्सेदार हो जाते है और भारत को उनसे कोई लाभ भी प्राप्त नहीं हो रहा है। ऐसे युवाओं पर इस जातिगत जनगणना को कोई प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। बल्कि अप्रत्यक्ष प्रभाव उनके द्वारा शिक्षा लेने पर ही पड़ेगा कई राज्यों में आरक्षण की निर्धारित  सीमा 50 प्रतिशत के पार कर गई है। इससे जातिगत आधार पर विभिन्न अधिकारों की मांग कर रहे वर्ग नए सिरे से मुखर हुए है। दलित, पिछड़े, वंचित वर्ग व वनवासी अब मात्र राजनीति का हथियार ही बन चुके है। उन पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना अब राजनेताओं की दृष्टि में जरुरी सा हो गया है।

देश का सम्पूर्ण आर्थिक विकास हो सके, यह सोचा जाना ज्यादा जरुरी है। जातिगत जनगणना की वजाह समान्य जनगणना होनी चाहिए और तब तक लोकसभा के आम चुनावों को पीछे टाल देना चाहिए। उन आंकड़ों का फिर विश्लेषण करना चाहिए। कम से कम लोकसभा के चुनावों को ही दो वर्ष के लिए आगे टाल देने से जनगणना के विश्लेषण करके आगे योजना बनाने में काफी आसानी हो सकेगी। देश में किसी वर्ग को भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। वरना तो जातिगत जनगणना से देश में विखंड़न की प्रक्रिया और तेज हो जायेगी और देश का विकास अवरुद्ध हो जायेगा।         ु

 

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल, सनातन धर्म महाविद्यालय, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।
 

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