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चंद्रयान-3 से हासिल होगा अनुसंधान एवं विकास और ग्रामीण विकास का दोहरा लक्ष्य

हमारे राष्ट्र की आत्मा जो हर चीज को दैवीय वास्तविकता का हिस्सा मानती है पेड़ों, नदियों, पहाड़ों, जानवरों, सांपों और चट्टानों आदि का पूजा करती है। हमारी परंपरा धरती माता की पूजा करती है। समृद्धि और संतुष्टि के इस संश्लेषण का निर्माण ही भारतीयता का मुख्य ध्येय है। मेरे लिए चंद्रयान-3 का यही अर्थ भी है। - श्रीधर वैंबू

 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रमा के अब तक अज्ञात रहे दक्षिणी ध्रुव पर विक्रम लैंडर को सुरक्षित उतार कर इतिहास रच दिया है। भारत के इस कारनामे से दुनिया को हमारी बढ़ती प्रौद्योगिकी क्षमताओं का अंदाज़ा तो मिला ही है, अनुसंधान एवं विकास की बढ़ती रफ्तार के रास्ते ग्रामीण विकास के लक्ष्य को हासिल करने का दरवाजा भी खुला है।

भारत ने बीते 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कर इतिहास रच दिया था।भारत चंद्रमा की सतह पर पहुंचने वाला दुनिया का चौथा देश और इसके दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया है।इस परीक्षण से वैज्ञानिकों को भविष्य के चंद्र मिशन में तो मदद मिलेगी ही जहां से पृथ्वी पर नमूने भेजे जा सकते हैं, इससे भी महत्वपूर्ण यह की इससे उन मानव अभियानों को भी मदद मिल सकती है जिनकी योजना इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा बनाई जा रही है।

आमतौर पर की जाने वाली बातचीत में पड़ोसी देश चीन अपनी पराधीनता की अवधि को राष्ट्रीय अपमान की शताब्दी कहकर संबोधित करता है, लेकिन हर भारतीय जनमानस में पराधीनता के अपमान की गाथा सहस्राब्दियों की है। ऐसे में पूरी दुनिया को पीछे छोड़ते हुए भारत ने अपने अनुसंधान एवं विकास पर फोकस करते हुए एक स्वतंत्र देश के रूप में चांद पर जो उपलब्धि हासिल की है यह ऐतिहासिक तो है ही एक राष्ट्र के रूप में वैज्ञानिक रूप से विकसित होते हुए भारत की गाथा भी है।

इसमें कोई दो राय नहीं की अनुसंधान और विकास किसी भी देश की चौतरफा प्रगति के मूल आयाम होते हैं। भारत में भी अनुसंधान और विकास ग्रामीण विकास से गहरे तौर पर जुड़ा हुआ है। मेरी अपनी राय है कि भारत जैसे विशाल देश से गरीबी को मिटाने, बेरोजगारी को दूर करने, भुखमरी पर काबू पाने के लिए भारत को अनुसंधान एवं विकास में एक महाशक्ति के रूप में खड़ा होना होगा। भारत अपनी प्रतिभा और अपनी प्रौद्योगिकी के बल पर राष्ट्र के समक्ष खड़ी चुनौतियों पर सहज जीत हासिल कर सकता है।

भारत आज जिन समस्याओं का सामना कर रहा है उन्हें केवल प्रौद्योगिकी जानकारी प्रणाली और प्रक्रियाओं को संदर्भ मुक्त आयात करके हल नहीं किया जा सकता है।हमें सिलिकॉन वैली, जापान, चीन, स्विट्जरलैंड, जर्मनी और ताइवान के अनुभवों से सीखना चाहिए। हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि हम थोक में सामान आयात नहीं कर सकते हैं। क्योंकि आयातित सामान एक गरीब देश के लिए बेहद मंहगे और कई बार अप्राप्य हैं। हमारे लिए यह गर्व का क्षण है कि इसरो ने बहुत कम खर्चे में जो उपलब्धि हासिल की है वह अन्यत्र दुर्लभ है। इसरो ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने में जितना खर्च किया है अगर नासा को यही काम करना होता तो कम से कम 50 गुना से अधिक धन खर्च हुआ होता। पूर्व में भी नासा ने ऐसे अभियानों के लिए बहुत सारे धन खर्च किए हैं।

भारतीय अनुसंधान और विकास कम खर्च की बेहतर पद्धति विकसित करने के लिए जाना जाता है। यूपीआई, आधार, वंदे भारत ट्रेन,यह सभी हमारे घरेलू तकनीकी समाधानों के उदाहरण है, जो हमारी परिस्थितियों के अनुकूल भी हैं। यह सभी आविष्कार भारतीय है और कम लागत के हैं। भारत में अधिकांश नागरिक आज भी प्रतिदिन 5 डालर कमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में हमें कम लागत वाले नवाचारों की बहुत अधिक आवश्यकता है, और यह केवल अनुसंधान एवं विकास में गहन निवेश से ही संभव हो सकता है।

मालूम हो कि भारत के प्रमुख शहर पहले से ही फैले हुए और भरे हुए हैं। अब आगे हम इनको बहुत अधिक ना तो फैला सकते हैं और ना ही इनकी जनसंख्या बढ़ाते रह सकते हैं। दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में भी जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन प्रति वर्ग किलोमीटर में अमेरिका के एक सामान्य उपनगर के बराबर लोग रहते हैं। अगर हम ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को लगातार शहर की ओर ले आते रहे तो भविष्य के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। इसे हम जापान और टोक्यो की स्थिति से समझ सकते हैं। जापान के अधिकांश सुदूर इलाके धीरे-धीरे बढ़कर टोक्यो तक मिल गए हैं। इन सभी इलाकों का सत प्रतिशत शहरीकरण हो गया है। बड़े पैमाने पर हुई शहरीकरण की प्रक्रिया से जापान ने अपनी आत्मा और प्रेरणा खो दी है। भारत की आत्मा गांव में बसती है और हम अपनी आत्मा खोना नहीं चाहते।

अगर समाधान की बात करें तो पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम बार-बार जोर देकर कहा करते थे कि हमारे ग्रामीण क्षेत्रों को विकसित करने में मदद होनी चाहिए ताकि आबादी को पलायन न करना पड़े। उन्होंने अपने दृष्टिकोण को ’पूरा’ कहा था यानी  ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाएं प्रदान करना। मेरे लिए उस विजन का परिचालनात्मक अर्थ अनुसंधान एवं विकास केदो को ग्रामीण क्षेत्रों तक फैलाना है। अपने अनुभवों से सीख लेते हुए हमें एक मजबूत टीम के साथ इस पर आगे बढ़ना होगा। स्वदेशी जागरण मंच स्वावलंबी भारत अभियान के जरिए इस काम के लिए स्थानीय नेतृत्व को आगे कर मजबूत पहल शुरू कर दी है। आगे बढ़ने का यही सर्वाधिक उचित दृष्टिकोण भी होगा क्योंकि हमारे द्वारा सृजित अनुसंधान एवं विकास के जरिए उत्पन्न होने वाले रोजगार ग्रामीण क्षेत्र की समृद्धि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्वावलंबी धरातल पर सृजित प्रत्येक नौकरी सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था में अन्य रोजगार अवसरों को जन्म देती है, और रोजगार प्राप्त व्यक्ति अपनी आई स्थानीय व्यवस्था में खर्च करते हैं इसलिए यह एक सिलसिला बन जाता है। तेनकाशी में इसका असर देखा जा सकता है। आने वाले दिनों में यह अन्य क्षेत्रों में भी विकसित रूप में दिखाई देने लगेगा।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम अनुसंधान एवं विकास को समर्थन से, अनुसंधान एवं विकास को विनिर्माण से, सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को हाउसकीपिंग स्टाफ से अलग नहीं कर सकते। यह अलगाव वह द्वैतवाद होगा जो बड़े पैमाने पर सामाजिक समस्याओं को जन्म देता है। हमारे अनुसंधान एवं विकास से संबंधित लोगों को उस समाज से जुड़ा होना चाहिए जिसमें हम रहते हैं, क्योंकि हमारे समाज में बड़ी संख्या में साथी नागरिक ऐसे हैं जो गरीब हैं। इसलिए “मैं एक छोटे से गांव में रहता हूं। यहां रहने से मुझे हमारे जलस्तर में सुधार के लिए तालाब खोदने जैसे समाधानों के बारे में सोचने में मदद मिली है, ताकि हम अधिक कृषि श्रमिकों को रोजगार दे सके।मेरी बीएमडब्ल्यू वह अर्थ मूवर है जिसे हम तालाब खोदने के लिए खरीदते हैं। मुझे तालाब में तैरकर आनंद लेने का मौका मिलता है। इसलिए यहां पर  अर्थमूवर मेरे लिए बीएमडब्ल्यू से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।“

पश्चिमी सभ्यता के पास जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न मानवता के अस्तित्व संबंधित खतरे का कोई समाधान नहीं है। पश्चिमी जीवन शैली में प्रत्येक व्यक्ति के लिए भारी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यदि भारत जैसा देश भी वही जीवन शैली अपनाता हैं और प्रत्येक भारतीय अमेरिकियों जितना ऊर्जा खर्च करने लगता है तो ग्रह को समाप्त होने में देर नहीं लगेगी। बिल गेट्स जैसे लोग प्रौद्योगिकी आधारित त्वरित समाधान का सपना देखते हैं लेकिन उन समाधानों में और भी अधिक ऊर्जा का खर्च शामिल होता है।

ऐसे में हमें भारत में जीवन का एक बेहतर तरीका ईजाद करना होगा जो अनुसंधान एवं विकास से उत्पन्न होने वाली समृद्धि को जीवन के बेहद सरल तरीके के साथ जोड़ती हो।जब हम जल स्तर को बहाल करने के लिए तालाब खोदते हैं, जब हम छाया और ठंडी जलवायु के लिए पेड़ लगाते हैं तो हमें उन तालाबों और हमारे द्वारा बनाए गए जंगलों का आनंद मिलता है। हम अपनी स्वदेशी तकनीक से विकसित अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं पर शांति से काम कर सकते हैं और पृथ्वी नामक ग्रह की भरपूर मदद कर सकते हैं। भारतीयों के लिए समृद्धि का यही अर्थ भी रहा है। इसलिए धरती माता के साथ सद्भाव पूर्ण माहौल में रहने के लिए संतोष की आध्यात्मिक भावना आवश्यक है। हमारे राष्ट्र की आत्मा जो हर चीज को दैवीय वास्तविकता का हिस्सा मानती है पेड़ों, नदियों, पहाड़ों, जानवरों, सांपों और चट्टानों आदि का पूजा करती है। हमारी परंपरा धरती माता की पूजा करती है। समृद्धि और संतुष्टि के इस संश्लेषण का निर्माण ही भारतीयता का मुख्य ध्येय है। मेरे लिए चंद्रयान-3 का यही अर्थ भी है।           

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