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जलवायु संकट का सामूहिक नियंत्रण

जितना हो सके स्थानीय खाने की आदत डाली जाए। शाकाहारी नहीं बन सकते तो पशु आधारित उत्पादों की खपत कम करें और प्लास्टिक के कम से कम उपयोग का संकल्प लें। धीरे-धीरे ऑर्गेनिक खाने की और बढ़े, बड़े पैमाने पर हमें रेखीय के बजाय वृत्ताकार अर्थव्यवस्था का समर्थन करना चाहिए। — केके श्रीवास्तव

 

पूरी दुनिया जलवायु संकट से जूझ रही है, ऐसे में एक देश के रूप में चिली ने अगली पीढ़ी को जलवायु संकट के खतरे से बचाने के लिए अपने देश में एक नए संविधान का मसौदा बनाए जाने का फैसला किया है। मसौदे में इस बात को महत्व दिया जाना है कि खनन को कैसे विनियमित किया जाना चाहिए तथा स्थानीय समुदाय को अवैध खनन पर क्या आवाज उठानी चाहिए? प्रकृति द्वारा उपहार स्वरूप मिले संसाधनों पर नागरिकों का अधिकार होना चाहिए। इस प्रकार के अनेक सवालों को ध्यान में रखते हुए चिली सरकार ने एक महत्वपूर्ण पहल शुरू की है।

मालूम हो कि अतीत में चिली अपनी प्राकृतिक संपदा का दोहन करके एक समृद्ध देश बना था, लेकिन इससे वहां के पर्यावरण को काफी नुकसान हुआ और असमानता कई गुना बढ़ गई। चूंकि मानव गतिविधियां अनिवार्य रूप से नुकसान का कारण बनती है, ऐसे में अच्छे से जीने के लिए प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, इसे लेकर वहां विमर्श तेज हुआ है। वर्ष 2019 में खनन के खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ा, जो बाद के दिनों में विरोध के रूप में सामने आया। ऐसा माना जा रहा है कि चिली की सरकार अपने इस नए मसौदे के जरिए इसकी मरम्मत का प्रयास कर रही है।

आज दुनिया के देशों को जिस चीज की जरूरत है, वह है-जलवायु नवाचार, जो कम कार्बन वाले भविष्य की ओर ले जाए, प्रदूषण पर सीधा हमला, ऊर्जा दक्षता, स्वच्छ गतिशीलता और कई अन्य समाधान प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन के लिए तत्काल और व्यावहारिक समाधान प्रदान करते हैं। भारत के महिंद्रा समूह निर्माण उद्योग के लिए विज्ञान आधारित समाधान विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए गाइड बुक और टूलकिट विकसित किए हैं। 150 से अधिक सामग्रियों की पहचान की गई है जो थर्मल इंसुलेशन प्रदान कर सकती हैं, ऊर्जा की खपत को कम कर सकती हैं और उपयोगकर्ता के आराम और भलाई में सुधार कर सकती है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ वैश्विक उत्सर्जन को कम करने और ऊर्जा दक्षता स्थानीय पर्यावरण चुनौतियों की गतिशीलता, प्रदूषण इत्यादि से संबंधित पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करने के लिए समाधान पेश कर रहा है, जो कि छोटी प्रौद्योगिकी को पर्यावरण अनुकूल बना सकती है। भारत के लिए ईवी बैटरी चार्जिंग, सौर ऊर्जा, अंतरिक्ष हिटिंग, कुशल भंडारण के हवाले से बागवानी में अपव्यय में कमी और शीत श्रृंखलाओं के लिए थर्मल ऊर्जा भंडारण का सुझाव दिया जा रहा है। इसके लिए संस्थागत और कारपोरेट स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। लेकिन सवाल है कि क्या यह प्रयास काफी हैं?

ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान, बढ़ते समुद्र के स्तर, अस्थिर मौसम, अनियमित वर्षा, प्राकृतिक संसाधनों की कमी और असहनीय प्रदूषण के कारण जलवायु संकट पैदा हुआ है। तापमान में 2 डिग्री की वृद्धि के बाद दुनिया रहने लायक शायद नहीं होगी। इसलिए शुद्ध शून्य उत्सर्जन के काल्पनिक विचार के बारे में चर्चा की जा रही है। जिसमें उत्पादित ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा प्राकृतिक और कृत्रिम कार्बन सिंक का उपयोग करके हमारे वातावरण से समाप्त होने वाली मात्रा के बराबर होगी। यदि वास्तव में हम तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री से कम करने में सक्षम है तथा शुद्ध शून्य उत्सर्जन सुनिश्चित कर लेते हैं तो शायद हम मानव शक्ति को नियंत्रित करने में सक्षम हो सकते हैं। लेकिन वर्ष 2040 से 45 तक यदि हम शुद्ध शून्य उत्सर्जन के मोर्चे पर विफल रहे तो जलवायु संकट असहनीय हो जाएगा।

इस काम में हर आदमी मदद कर सकता है। जितना हो सके स्थानीय खाने की आदत डाली जाए। शाकाहारी नहीं बन सकते तो पशु आधारित उत्पादों की खपत कम करें और प्लास्टिक के कम से कम उपयोग का संकल्प लें। धीरे-धीरे ऑर्गेनिक खाने की और बढ़े, बड़े पैमाने पर हमें रेखीय के बजाय वृत्ताकार अर्थव्यवस्था का समर्थन करना चाहिए। वैश्विक अर्थव्यवस्था को उत्पादों और सामग्रियों को साझा करने, मरम्मत करने, नवीनीकृत करने और पुनः नवीनीकरण करने के लिए तंत्र स्थापित करना चाहिए। इससे उत्पादन प्रक्रियाओं में अपव्यय कम होगा, हमारे लैंडफिल ओवरफ्लो नहीं होंगे। नदी और समुद्र से बदबू नहीं आएगी। हमें सर्कुलर इकॉनामी को बढ़ाने की जरूरत है लेकिन इसके लिए उत्पादन इकाईयों को लाभकारी बनाना होगा। भारत में किसानों की संख्या बढ़ने के कारण औसत खेत का आकार कम होता जा रहा है। कृषि भूमि लगातार बंटकर छोटी हो रही है और जलवायु अप्रत्याशित। वन भूमि को कृषि भूमि में बदला जा रहा है। सतत् खेती कुल मिलाकर एक बड़ी क्षति है। भारत कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। जीवाश्म ईंधन देश की आधी बिजली का स्रोत है। अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य बड़े पैमाने पर हासिल करने की संभावना अभी बहुत कम लगती है। ठोस कचरे का हमारा प्रति व्यक्ति उत्पादन वैश्विक औसत से कम है, लेकिन विशाल जनसंख्या के कारण हम दुनिया में सबसे अधिक ठोस अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं। भारत भी कमोवेश एक पूंजीवादी समाज है, जहां खपत वृद्धि को बढ़ावा देती है। इसलिए कोई भी इसे धीमा नहीं करना चाहता, लेकिन पृथ्वी ग्रह को बचाने के लिए हमें सचेत जिम्मेदार उपभोग करने की जरूरत है।

कंपनियों को भी ट्रिपल बॉटम लाइन के लिए लक्ष्य बनाना चाहिए। उचित लाभ के साथ लोगों के कल्याण और प्रदूषण के समन के लिए उन्हें ट्रिपल-पी यानि प्रॉफिट, पीपुल और पापुलेशन को ध्यान में रखकर ही अपनी योजनाओं को विस्तार देना चाहिए। कंपनियों को जलवायु की देखभाल के लिए प्रक्रियाओं को बदलने की जरूरत है। प्रदूषण मुक्त गतिविधियां दिखावटी और उनके तैयार अभ्यास का हिस्सा न हो, बल्कि आम जीवन की बेहतरी के लिए आवश्यक पहल जैसी हो।

हालांकि सब कुछ निराशाजनक नहीं है लेकिन प्रदूषण और उत्पादन के बीच के समीकरण को ठीक करने के लिए प्रयास होने चाहिए और औद्योगिकरण और आधुनिकीकरण के साथ ही स्रोतों के संरक्षण के लिए आंदोलन चल रहे हैं। स्थानीय रूप से सोर्सिग, शाकाहार, नवीकरणीय, ऊर्जा संसाधन, रीसाइक्लिंग आदि को अपनाया जा रहा है, क्योंकि बिना लाभ के कोई व्यापार नहीं हो सकता, इसलिए हमें कंपनियों को उचित और आदर्श लाभदायक पैमाने तक ले जाने की जरूरत है। 

हरित जीवन शैली अपनाते हुए हमें सावधानी बरतनी है। हमें उत्पादन, आपूर्ति, खपत और निपटान श्रृंखला का पता लगाना होगा, क्योंकि प्रत्येक चरण में प्रदूषणकारी अपशिष्ट उत्पन्न होता है। आंख मूंदकर हरा उत्पादन का हम समर्थन नहीं कर सकते, क्योंकि हर हरा उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल ही नहीं होता। उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी में इस्तेमाल होने वाले लिथियम और कोबाड अत्यधिक जहरीले होते हैं, एक बार मरने के बाद प्रोटो वोल्टिक कोशिकाएं समान रूप से हानिकारक होती है। हमारे पास इनका कोई समाधान नहीं। इसी तरह सूक्ष्म प्लास्टिक पानी में, हवा में, नदियों में, सागरों में, समुद्री जीवन में और सभी जीवित प्राणियों के भीतर सर्वव्यापी है।

दूसरी तरफ वैश्विक और स्थानीय स्तर पर पर्यावरणीय नस्लवाद का भी एक मुद्दा है। किसी भी समाज में वंचितों को अमीरों की जीवन शैली से पैदा हुए जलवायु विनाशकारी आदतों का बोझ उठाना ही पड़ता है। यही आगे चलकर असंतुलन अन्याय और असमानता को बढ़ाता है। ऐसे में जलवायु न्याय सुनिश्चित करने के लिए धनी राष्ट्रों और अमीर लोगों, जिन्होंने ग्रह को एक गर्म गैस कक्ष में तब्दील कर दिया है, को चुनौती का सामना करने के लिए अधिक बलिदान करने की आवश्यकता है। उन्हें नेट नेगेटिव अपनाने की जरूरत है, न कि केवल नेट जीरो जीने की शैली को अपनाने की। ऐसे में एक राष्ट्र के तौर पर चिली ने जो निर्णय लिया है हमें उसका समर्थन करने के लिए आगे आना चाहिए। 

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