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संविधानः भारतीय जीवन दर्शन का ग्रंथ

भारत का संविधान देश को संप्रभु, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतांत्रिक गणतंत्र घोषित करता है और अपने नागरिकों के लिए समानता, स्वतंत्रता और न्याय की प्रत्याभूति देता है। जिस पर हमें असीम गर्व और गौरव है। —  हेमेन्द्र क्षीरसागर

 

भारत रत्न डॉ भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के जनक और मुख्य वास्तुकार थे। उन्हें 1947 में संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। भारतीय संविधान यानि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का धर्मग्रंथ। जिसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता वाली संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को ग्रहण किया गया। विश्व में भारत का संविधान सबसे बड़ा लिखित संविधान है। संविधान लागू होने के समय इसमें 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियां और 22 भाग थे, जो वर्तमान में बढ़कर 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 25 भाग हो गए हैं। साथ ही इसमें पांच परिशिष्ठ भी जोड़ दिए गए हैं, जो कि प्रारंभ में नहीं थे। संविधान सभा के सभी 284 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, जिनमें 15 महिलाएं भी शामिल थीं। इसके पश्चात 26 जनवरी को भारत का संविधान अस्तित्व में आया। इसे पारित करने में अभूतपूर्व 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा। 

अभिभूत, भारतीय संविधान की प्रस्तावना विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। उद्देशिका के माध्यम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएं, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है। इसी कारण यह ’हम भारत के लोग’ इस वाक्य से प्रारम्भ होती है। संविधान भाग 3 व 4 नीति निर्देशक तत्त्व मिलकर संविधान हृदय, चेतना और रीढ कहलाते है। क्योंकि किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के लिए मौलिक अधिकार तथा नीति-निर्देश देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यथार्थ प्रदत्त अधिकार हमारे राष्ट्र के परम वैभव और जनकल्याण के लिए सारगर्भित हैं। 

विशेष, संविधान विधान भर नहीं है। यह भारतीय संस्कृति है। संविधान की आत्मा भारतीय है। इसलिए कि भारतीय, सभ्यता, संस्कृति से जुड़ा जो दर्शन है, हमारी जो उदात्त जीवन परम्पराएं हैं। संविधान उसे एक तरह से व्याख्यायित करता है। संविधान की नियमावली पर गूढ़ नजर डालें तो पाएंगे कि हमारे संविधान का आधार भगवान श्रीराम के आदर्शों का भी पालन करता है। उनके आदर्श समाज के प्रारूप को ही नहीं अपितु देश के संविधान को तय करने और देश का बेहतर संचालन करने में भी प्रासंगिक हैं। ऐसा ही कुछ विचार आया होगा भारतीय संविधान की मूल हस्तलिखित पांडुलिपि पर चित्र बनाने वाले महान चित्रकार नंदलाल बोस के दिमाग में। ‘सर्वधर्म समभाव’ की विचारमाला को अपने मानकों में पिरोने वाले भारतीय संविधान की रिक्तता को पूर्ण करने के लिए उन्होंने ऐसे चित्र बनाए। जो भारत की गौरवगाथा के अहम अध्याय हैं। 

स्तुत्य, भारतीय संविधान “हम भारत के लोगों“ के लिए हमारी अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत जनित स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्श मूल्यों के प्रति एक राष्ट्र के रूप में हमारी प्रतिबद्धता का परिचायक है। संविधान की मूल प्रति पर नटराज भी हैं और श्रीकृष्ण भी। वहां शांति का उपदेश देते भगवान बुद्ध, महावीर, गुरु गोविंद सिंह भी हैं। हिंदू धर्म के एक और अहम प्रतीक शतदल कमल भी संविधान की मूल प्रति पर मौजूद है। स्वतंत्रता वीर शिवाजी महाराज, रानी लक्ष्मीबाई, महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस का ओज है। महाराजा विक्रमादित्य का दरबार, नालंदा विश्वविद्यालय की मुहर और पृथ्वी पर गंगावतरण आलोकित है। हालांकि ये तस्वीरें संविधान का हिस्सा नहीं हैं, फिर भी ये संविधान की मूल प्रति के अभिन्न अंग हैं। जो मूलतः भारतीय संविधान के भारतीय चैतन्य को ही परिभाषित करते हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा के आलोक में निर्मित भारतीय संविधान भारत की ऋषि परम्परा का धर्मशास्त्र है। भारतीय जीवन दर्शन का ग्रंथ है। वस्तुतः भारत का संविधान देश को संप्रभु, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतांत्रिक गणतंत्र घोषित करता है और अपने नागरिकों के लिए समानता, स्वतंत्रता और न्याय की प्रत्याभूति देता है। जिस पर हमें असीम गर्व और गौरव है। सत्यमेव जयते!

हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार
 

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