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स्वदेशी वैक्सीन से बढ़ी देश की साख

प्रधानमंत्रा के आह्वान तथा भारतीय वैज्ञानिकों की मेधा पर विश्वास रखते हुए टीकाकरण कार्यक्रम को आगे ले जाने हेतु हर देशवासी को अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।  — स्वदेशी संवाद

 

भारत कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जीत की दहलीज पर पहुंच गया है। अब भारत के सामने टीकाकरण महाअभियान को सफल बनाने की बड़ी चुनौती है। जिस तरह भारत में पहले भी बड़े टीकाकरण अभियान सफलतापूर्वक चलाए जाते रहे हैं, उन्हें देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कोरोना के मामले में भी भारत सफलता की गाथा लिखने वाला है। सिरम इनस्टीटयूट आफ इंडिया की कॉपी सिल्ट और भारत बायोटेक के स्वदेशी टीके को वैक्सीन को डीसीजीआई से मंजूरी मिल चुकी है। कोरोना के चुनौती काल में हमारे वैज्ञानिकों की सफलता ने एक बार फिर देश की वैश्विक साख बढ़ाई है। दोनों तरीकों को लेकर दुनिया भर में भारत की तारीफ हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी के दौरान भारत की भूमिका की सराहना की है और इससे लड़ने के लिए उठाए गए कदमों को निर्णायक बताया है। डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि दुनिया भर में कमजोर लोगों को बचाने के लिहाज से भारत की यह कामयाबी बेहद अहम है।

कोरोना महामारी के खिलाफ पूरी दुनिया की उम्मीद वैक्सीन पर टिकी हुई है। अमेरिका, ब्रिटेन, भारत सहित कई देशों में वैक्सीन लांच कर दी गई है। हालांकि वैक्सीन को लेकर देश में असहमति के भी स्वर  भी उभरे हैं, अफवाहों के बाजार भी गर्म है। इंटरनेट और व्हाट्सएप पर तरह-तरह की नकारात्मक कहानियां फैलाई जा रही है। यह कोई नई बात नहीं है। देश में इस तरह के अफवाह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं। देश में जब पोलियो वैक्सीन लांच की गई थी, तब भी कुछ इस तरह की अफवाह फैलाई गयी थी। आज हर धर्म, हर जात और हर समुदाय के लोग पोलियो वैक्सीन लगवा रहे है। कोरोना वैक्सीन को लेकर कुछ धार्मिक और सियासी दलों ने वैक्सीन को भाजपाई टीका बताने से लेकर इसमें पोर्क होने जैसी अनर्गल आलोचना की है। जिस टीके को डब्ल्यूएचओ कमजोर देशों का कवच बता रहा है, विपक्षी दल आंकड़ों और परीक्षण की कमी जैसे आरोपों से टीके के असर और उन्हें मंजूरी देने की प्रक्रिया को जल्दबाजी बताकर वैज्ञानिकों की मेहनत को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। यह हकीकत है कि भारत में बने टीकों का तीसरा ट्रायल अभी नहीं हुआ है, लेकिन अमेरिका और यूरोप में भी फिलहाल इसी प्रोटोकॉल का पालन हो रहा है। क्योंकि टीके को तमाम परीक्षणों से गुजरने और इस्तेमाल के लिए पूरी तरह से सुरक्षित घोषित होने में इन्हें अभी कई साल लग जाएंगे। जबकि लाइलाज बने कोरोना का इलाज जल्द से जल्द जरूरी है। ऐसे में देश के सियासी दलों को मीनमैक्स निकालने की बजाए अपने देश के वैज्ञानिकों के इस आविष्कार पर ठहरकर भरोसा करना चाहिए तथा सरकार के साथ सहयोग करते हुए आम आदमी को कैसे लाभ पहुंचे, उसका रास्ता तैयार करना चाहिए। मीजल एमएमआर जैसे वैक्सीन ले रहे हैं और लोग सुरक्षित भी हैं। 

कोरोना महामारी का सामना करने के लिए वैज्ञानिक समुदाय ने जितनी तेजी से टीकों का विकास किया है, उसकी मिसाल नहीं मिलती। सभी ठीक है, पहली पीढ़ी के हैं, आगे इनमें सुधार भी होंगे। टीका बनाने वाली दोनों कंपनियों के लोग नामचीन हैं। सिरम इंस्टीट्यूट के सीईओ आधार पूनावाला दुनिया के वैक्सीन किंग कहे जाने वाले साइरस पूनावाला के बेटे हैं, जो बायोटेक के फाउंडर चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ कृष्णा हिला तमिलनाडु के किसान परिवार से हैं। अमेरिका की हवाई यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने इस क्षेत्र में दखल दिया। भारत में पहले हैपेटाइटिस की वैक्सीन रू. 5000 में मिलती थी, डॉक्टर कृष्ण लीला की मेहनत रंग लाई और अब भारत में हैपेटाइटिस की दवा महज रू. 10 में मिल जाती है। भारत बायोटेक के पास वर्तमान में 140 दवाओं का पेटेंट है।

ज्ञात हो कि पिछले दिनों इन दोनों वैक्सीन निर्माता कंपनियों के बीच नोकझोंक हुई थी, हो सकता है कि इस नोकझोंक के पीछे बाजार की भूमिका हो, क्योंकि सिरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन रू. 1000 की बताई जा रही है, वहीं भारत बायोटेक की वैक्सीन महज रू.200 में उपलब्ध होगी। लेकिन सरकार ने जल्दी ही इस मामले में दखल देकर मामले को स्पष्ट कर दिया है। अब दोनों ही कंपनियां एक साथ मिलकर भारत के 135 करोड़ लोगों के स्वास्थ्य की देखरेख के लिए प्राण प्रण से जुड़ने का ऐलान किया है। दोनों कंपनियों के वैक्सीन को सुरक्षित बताया गया है। कोफीसेंड बनाने वाली कंपनी सिरम इंस्टीट्यूट यूनाइटेड किंगडम के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में बनी एस्ट्रोजेनिक वैक्सीन की भारत में पार्टनर है, जबकि भारत बायोटेक की वैक्सीन पूर्ण रूप से स्वदेशी है। यह एक तरह से सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान को सफल बनाने का प्रतीक भी है। ऐसे में कंपनियों को प्राइस वार में उलझने की बजाय स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए अपनी रणनीति बनानी चाहिए, क्योंकि आगे इनमें और भी सुधार होंगे तथा और तरह की वैक्सीन भी विकसित की जाएगी।

भिन्न-भिन्न तरह के वायरस से संक्रमित होने का इतिहास पुराना है, तो टीकाकरण का इतिहास भी बहुत नया नहीं है। एडवर्ड जेनर ने 1796 में प्रतिरक्षीकरण का विकास करके मानव जाति के रक्षार्थ चिकित्सा विज्ञान को नया आयाम दिया था। अब तक असंख्य लोगों की जान बचाई है और रोकथाम के लिए कारगर काम किया है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पी.के. प्रत्येक वर्ष लाखों लोगों की जान बचाते हैं। शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली को तैयार करने का काम करते हैं तथा अपने द्वारा लक्षित वायरस और बैक्टीरिया को पहचानने और उनसे लड़ने में सहायक होते हैं। वैक्सीन को लेकर झिझक के मद्देनजर डब्ल्यूएचओ ने वर्ष 2019 में वैश्विक स्वास्थ्य के लिए मुख्य खतरों में से एक माना है। बहुत से लोग टीके लगवाने में संकोच करते हैं, क्योंकि पीके की प्रभावशीलता पर वह बिना किसी पुख्ता कारण के संदेह करते हैं, क्योंकि उन्हें टीके के बारे में सही जानकारी नहीं मिलती है। भारत में यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम 1978 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा पेश किया गया था। 1985 में इसे यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के रूप में संशोधित किया गया। संविधान के अनुच्छेद 45 में सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का प्रावधान है। अनुच्छेद 246 के अनुसार सातवीं अनुसूची के तहत लोक स्वास्थ्य राज्यों की सूची में छठवें आइटम तथा कंक्रीट सूची के 29 में आइटम के रूप में निहित है। हाल ही में एपिडेमिक डिजीज अमेंडमेंट एक्ट 2020 को भी एक अध्यादेश के जरिए मंजूरी दी गई है। संघवाद को मजबूत करने के लिए 15वें वित्त आयोग के प्रस्ताव में लोक स्वास्थ्य कोकन करंट लिस्ट में शामिल करने का मसौदा तैयार किया गया है।

ऐसे में प्रधानमंत्री के आह्वान पर भारतीय वैज्ञानिकों की मेधा पर विश्वास रखते हुए टीकाकरण कार्यक्रम को आगे ले जाने हेतु हर देशवासी को अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने ही होगी। जब देश में करुणा के खिलाफ जंग शुरू की थी, तब प्रधानमंत्री ने कहा था कि 135 करोड़ देश के महारथी महारथियों के बूते हमें इस लड़ाई को जीत नहीं है और इसी जीत के भरोसे के साथ देश की आम आवाम को इसके लिए आगे आना ही होगा।          

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