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कायदा-कानून से ही लोकतंत्र को मिलती है मजबूती

समय रहते ही चरमपंथी विचारधारा और आतंकवादी मानसिकता को समाप्त करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। यही मानवतावाद के लिए उपयुक्त होगा और यही लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। — अनिल जवलेकर

 

लोकतंत्र की व्यवस्था में कायदा-कानून मुख्य होता है और कायदा न मानने वाले जब बढ़ जाते है या संरक्षित हो जाते है, तो लोकतंत्र भी खतरे में पड़ जाता है। राजस्थान में हुई अमानुष धार्मिक हत्या इस ओर ध्यान देने को मजबूर करती है और सोचने पर विवश करती है कि भारत में एक ऐसी विचारधारा प्रसारित हो रही है जो किसी कानूनी व्यवस्था और किसी भी लोकतांत्रिक सह-जीवन में विश्वास नहीं करती। उससे भी दुःखद यह है कि ऐसी चरम और आतंकी विचारधारा को पनपने भी दिया जा रहा है। श्रीमती नूपुर शर्मा के केस में सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी तो इस संदर्भ में विचलित करने वाली कही जाएगी, जो इस आतंकी विचारधारा को स्वीकार करती नजर आ रही है। यह जरूर है कि इस आतंकी विचारधारा को स्वीकारने एवं उसके प्रसार में सहायक सत्ता की राजनीति और छद्मी कही जानी वाली भारतीय सेकुलर विचार-व्यवस्था रही है। समय रहते ऐसी चरम और आतंक को पनाह देने वाली विचारधारा एवं व्यवस्था को खत्म नहीं किया गया तो भारतीय लोकतंत्र के बचने की उम्मीद कम ही कही जाएगी। 

चरमपंथी विचारधारा को पनपने देना खतरनाक 

वैसे तो भारतीय संस्कृति अपने दार्शनिक विचार से लोकतांत्रिक और सर्व धर्म के प्रति सम-भाव मानने वाली है और भारतीय अपने प्रवृत्ति से ही सामंजस्य, सहनशील और एकात्म सामाजिक सह-जीवन में विश्वास करने वाला है। यह भी विदित है कि भारत बाहरी आक्रांताओं से जूझता आया है और उनके जुल्म का शिकार भी हुआ है। इतिहास गवाह है की बाहरी आक्रांताओं की सिर्फ विचारधारा अलग नहीं थी, उनमें अपने धर्म के प्रसार की मंशा और दूसरों पर ज़ोर जबरदस्ती अपने विचार थोपने की वृति भी थी जिसके चलते यहाँ का सामाजिक जीवन विचलित हुआ। स्वतंत्रता के बाद भी हिन्दू के सहनशील और क्षमाशील होने का गलत अर्थ लिया गया और उसे कमजोर समझकर अपमानित किया गया। उसका नतीजा यह है कि यहाँ के मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा हमेशा अपनी बात मनवाता रहा और चरमपंथी विचारधारा को अपनाता रहा तथा अन्य धर्म के लोगों के साथ सामाजिक सह-जीवन नकारता रहा। पाकिस्तान का निर्माण इसमें काफी हद तक ज़िम्मेवार ठहराया जा सकता है जो आए दिन यहाँ के मुस्लिमों को भड़काने और भारत में आतंकवाद फैलाने की कोशिश करता रहता है। आज ऐसी आतंकवादी शक्तियां अपना असर दिखाती नजर आ रही है जो आने वाले समय में राष्ट्रीय एकात्मता को खतरा पहुंचा सकती है। 

चुनावी राजनीति मुख्य कारण  

भारतीय लोकतंत्र सिर्फ चुनाव तक सीमित होने देना इसका बहुत बड़ा कारण कहा जा सकता है जिसके चलते वोटों की राजनीति हावी है और जब तक भारतीय लोकतंत्र चुनाव प्रक्रिया को सुधार नहीं लेता, तब तक यहां की राजनीति चरमपंथी विचारधारा को पनाह देती रहेगी। इसलिए यह जरूरी है कि चुनाव में किसी भी चुनाव क्षेत्र में किसी एक जाति या समुदाय विशेष का महत्व कम किया जाए। यह सभी जानते है कि चुनाव में विशेष समुदाय अपने इकट्ठा मतों से हिस्सा लेते है और चुनाव परिणामों पर असर करते दिखते है, इसलिए उनका चुनाव राजनीति में प्रभाव रहता है। चुनाव के लिए ऐसे समुदाय का प्रभाव कम किया जाना आवश्यक है। जरूरी है की आज के चुनाव क्षेत्र की रचना और व्याख्या बदली जाए। चुनाव क्षेत्र का आज का भौगोलिक आधार बदल कर जनसंख्या का आधार दे कर इसे सुलझाया जा सकता है। एक प्रांत को आधार मानकर प्रतिनिधित्व की संख्या तय करनी होगी और उस संख्या के तहत आभासी चुनाव क्षेत्र तैयार किया जा सकता है, जिसमें किसी एक जाति या समुदाय का मतदान में प्रभाव कम हो। छोटे-छोटे चुनाव क्षेत्र करने पर यह आसान हो सकता है। आज के भौगोलिक चुनाव क्षेत्र का पर्याय ढूंढना जरूरी है, यह समझने से बात स्पष्ट होगी। 

कानून स्पष्ट हो

आज का कानून भावना भड़काने वाले भाष्य के संदर्भ में संदिग्ध है। इसलिए यह जरूरी है कि इसे स्पष्ट किया जाये और सभी प्रकार के भाष्य जो हिंसा की बात करते है या किसी धार्मिक भावना या  धार्मिक संज्ञा, प्रतीकों  एवं धर्म ग्रंथों को अपमानित करने जैसी  बात करते है, उसे स्पष्ट रूप से कानून के दायरे में लाया जाये और कड़ी सजा का प्रावधान किया जाये। उसी तरह इस विषय में कानूनी प्रक्रिया भी सीधी और सरल होनी चाहिए। जहाँ प्रमाण स्पष्ट हो, उसे कानूनी प्रक्रिया में न उलझने दिया जाये। इस कानून के दायरे में व्यक्त होने के लिए उपलब्ध आज के सभी माध्यमों को लाना भी  जरूरी है। सार्वजनिक तौर पर कही जाने वाली हर बात इसमें शामिल होना जरूरी है और इस सार्वजनिकता की व्याख्या भी विस्तारित होनी चाहिए जिसमें सर्व प्रकार के  सार्वजनिक मंच, जिसमें राजकीय मंच भी आता है, मंदिर-मस्जिद या स्कूल, मदरसा, कॉलेज में पढ़ाई या इस संदर्भ में आयोजित समारंभ के वक्त कही जाने वाली हिंसा तथा नफरत फैलाने वाली या उसका प्रचार-प्रसार करने वाली बाते भी शामिल हो। 

इस विषय को नजर अंदाज करना गलत होगा  

यहाँ पर लोकतंत्र की व्यवस्था भी समझ लेना जरूरी है। यह व्यवस्था सभी वर्ग को शांति से सह-जीवन जीने के साथ-साथ अपना व्यक्तिगत न्यायपूर्ण विकास साधने की बात करती है। प्रतिनिधित्व के साथ-साथ यह व्यवस्था समान संधि तथा सभी के लिए एक कानून की भी बात करती है। इसलिए यह व्यवस्था किसी को अपनी ही बात का आग्रह करने तथा उसको मनवाने के लिए ज़ोर जबरदस्ती करने की इजाजत नहीं देती। सभी व्यक्ति तथा समुदाय को इस मर्यादा का पालन करना आवश्यक है। इसलिए लोकतंत्र में  किसी को किसी प्रकार के चरम और आतंकवादी विचारधारा को अपनाने की या उसे पनाह देने की इजाजत नहीं दी जा सकती।  इस बात को नजर अंदाज करना लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा इसमें कोई संदेह नहीं। 

राष्ट्रीय एकात्मता के प्रयास जरूरी 

भारतीय समाज की विविध स्तर पर एकात्मता और सभी भारतीय समुदायों में राष्ट्रवाद की समान इच्छा का निर्माण करना जरूरी है और उसके लिए जरूरी है कि सभी को एक कायदा सभी दृष्टि से लागू होना तथा सभी के लिए एक ही शिक्षण पद्धति होना। धर्म तत्व ज्ञान की चर्चा वैचारिक स्तर पर हो सकती है लेकिन धर्म पालन की छूट जीवन को व्यक्तिगत स्तर पर आध्यात्मिक उँचाई तक ले जाने तथा व्यवहार में सभी धर्मियों के साथ सह-जीवन बिताने के लिए मार्गदर्शक हो इतनी ही होनी चाहिए। किसी धर्म को अन्यों के साथ सह जीवन नकारने तथा उन पर अपने विचार थोपने नहीं देना चाहिए। इसके लिए जो भी व्यवस्था आवश्यक हो उसे अमल में लाना चाहिए। समय रहते ही चरमपंथी विचारधारा और आतंकवादी मानसिकता को समाप्त करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। यही मानवतावाद के लिए उपयुक्त होगा और यही लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।        

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