swadeshi jagran manch logo

जी-20 की बैठक में समावेशी शिक्षा पर बल - सा विद्या या विमुक्तये 

वर्तमान में शिक्षा पर खर्च किए जाने के मामले में भारत का स्थान दुनिया में 88 वें नंबर पर है। नई शिक्षा नीति में प्रावधान किया गया है कि पूरे देश में पांचवी कक्षा तक निष्चित रूप से तथा आठवीं तक वरीयता के आधार पर और उसके बाद एक स्वरूप में मातृभाषा और स्थानीय भाषा में छात्रों को शिक्षा दी जाएगी। - वैदेही

 

पिछले एक दिसंबर 2022 से शुरू होकर अगले 1 दिसंबर 2023 तक चलने वाली जी-20 की बैठकों की अध्यक्षता भारत कर रहा है। जी-20 षिक्षा मंत्रियों की चौथी षिक्षा कार्य समूह बैठक गत 19 से 21 जून 2023 तक पुणे में संपन्न हुई। इस चौथी बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय षिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने की, इसमें अतिथि देषों के साथ 14 मंत्रियों और 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस बैठक में सभी ने यह बात स्वीकार की कि षिक्षा मानवता के भविष्य का वास्तुकार है, जिससे एक सभ्यता का निर्माण होता है। षिक्षा का उद्देष्य विकास, शांति, समृद्धि व मानव जाति का नेतृत्व करना है। जी-20 समूह के सारे प्रतिनिधियों ने मानवीय गरिमा और महिला सषक्तिकरण एक लचीले और न्याय संगत समावेषी समाज और टिकाऊ भविष्य के साथ मिलकर काम करने की आवष्यकता पर जोर दिया। लगभग आम राय थी कि उपरोक्त मूलभूत सिद्धांतों को अपनाकर के ही एक षिक्षित समाज का निर्माण किया जा सकता है। सभी सदस्य इस बात पर भी सहमत हुए कि उम्र, लिंग, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के बावजूद या जो लोग शारीरिक या मानसिक रूप से किसी कठिनाई का सामना कर रहे हैं, उन सब तक भी गुणवत्तापूर्ण समावेषी और न्याय संगत षिक्षा और प्रषिक्षण की पहुंच जल्दी से जल्दी उपलब्ध होनी चाहिए।

शिक्षा का उद्देष्य केवल अकादमिक नहीं अपितु भविष्य के लिए तैयार करने और तकनीक व व्यवसाय व्यवसाई कौषल विकसित कर जीवन को सुगम बनाने की प्रक्रिया है। षिक्षा हमें आजीवन सीखने की प्रक्रिया में बनाए रखती है। इस सीखने की प्रक्रिया के तहत ही देष समाज में हो रहे तमाम डिजिटल परिवर्तनों के साथ समाज के उन हिस्सों को जो अब तक किन्ही कारणों से पीछे रह गए हैं को प्रषिक्षित कर आगे लाया जा सकता है।

सभी देषों के प्रतिनिधियों ने स्वीकार किया कि समाज में विकलांग लड़कियों के लिए, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों के बच्चों के लिए षिक्षा का बुनियादी ढांचा विकसित कर उनके भीतर व्याप्त षिक्षा के दंष को जल्दी से जल्दी दूर किया जाना चाहिए। इस हेतु सदस्य देषों ने सहभागिता निभाने की प्रतिबद्धता जाहिर की। गांव और शहरों के विद्यार्थियों के बीच मौजूद खाई को पाटने डिजिटल विभाजन को दूर करने और स्थानीय भाषाओं सहित प्रौद्योगिकी के साथ षिक्षण संस्थानों को प्रभावी रूप से क्रियाषील बनाने के लिए सामूहिक काम करने की साझा प्रतिबद्धता को भी दोहराया गया।

बैठक के दौरान और भी ढेर सारे मुद्दों पर चर्चा हुई। कागजों पर बड़े-बड़े आश्वासन भी दिए गए लेकिन आज तक जितनी षिक्षा नीतियां बनी उन सब में कुछ ना कुछ कमियां बाद में दिखी। उन कमियों को आगे कर उनमें व्यापक बदलाव की भी बात हुई। परंतु जमीनी सच्चाई आज भी यही है कि षिक्षा क्षेत्र में कई एक विसंगतियां आज भी विद्यमान है।

नई षिक्षा नीति 2020 में षिक्षा को एक केंद्रीकृत रूप में पूरे भारत में लागू करने पर जोर दिया गया है। पर सवाल यह है कि व्यवहार में इतने विविधता पूर्ण देष में यह एकबारगी कैसे संभव होगा। भारत एक ऐसा देष है जहां 22 औपचारिक भाषाएं प्रचलित है। जितने राज्य अलग अलग संस्कृति के लोग हैं। रहन-सहन, खान-पान, वेषभूषा में भी वैविध्य है। लोकमन तो अलग है ही, संस्कृतियां भी अलग-अलग तरह की है। इतनी सारी विविधताओं से भरे समाज के लिए यह शिक्षा का केंद्रीकरण करना क्या उचित फलदाई हो सकता है। भारत का समाज और भारतीय समाज में जी रहे लोगों का मन मिजाज काफी लचीला रहा है। अनेक समाजषास्त्रीय अध्ययन उपलब्ध हैं जिसमें यह स्पष्ट किया गया है की सबको उनके अनुरूप ही जोड़कर रखा जा सकता है। इसीलिए भारत के लिए एक स्लोगन यह भी है यहां अनेकता में एकता है। उदाहरण के लिए सरकारी संस्थानों में मातृभाषा पर जोर देने की वजह से वे बच्चे गैर सरकारी संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों से अंग्रेजी में पिछड़ सकते हैं। नई षिक्षा नीति में भारतीय संस्कृति पर काफी महत्व दिया जा रहा है जिसके कारण आज प्राचीन और आधुनिक षिक्षा के मध्य संतुलन एक तरह से सिरे से गायब हो रहा है। भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने के लिए प्राचीन गौरव को पुनर्जीवित करने, अलग तरह से परिभाषित करने की हड़बड़ी में इतिहास से उन पन्नों को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है जिन्हें पढ़ने समझने की आज और आगे भी षिद्दत के साथ जरूरत महसूस की जाएगी।

शिक्षा सिर्फ एक शब्द नहीं है बल्कि क्रांति है जिससे समाज में बदलाव लाया जा सकता है। नेलसन मंडेला ने कहा था कि ‘षिक्षा वह शक्तिषाली हथियार है जिससे आप दुनिया बदल सकते हो। हमारा भविष्य इस बात पर निर्भर है कि आज क्या तैयारी है षिक्षा ही आपको जानकार नागरिक बनाती है जो नागरिक आत्मनिर्भर होगा और सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने में सक्षम होगा। एक षिक्षित आदमी ही क्या सही है क्या गलत है, में फर्क कर सकता है।’

भारत में षिक्षा को संविधान के अंतर्गत मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया है। अनुच्छेद 45, 6 वर्ष तक के बच्चों को षिक्षा देने की बात करता है। आजादी के बाद भारत की पहली षिक्षा नीति इंदिरा गांधी के समय 1968 में आई थी। कोठारी कमीषन के नाम से चर्चित यह समिति वर्ष 1964 से 1966 के दौरान अध्ययन के बाद कुछ सिफारिषें की थी। उन सिफारिषों में कहा गया था कि षिक्षा का उद्देष्य बच्चों को गुणवत्तापूर्ण षिक्षा प्रदान करना, षिक्षा प्राप्ति के अवसर को बढ़ाना, त्रिभाषा फार्मूला को लागू करना तथा विदेषी विदेषी भाषाओं को सीखने पर भी जो दिया गया था। कोठारी समिति ने अपनी सिफारिष में विकलांग बच्चों अनुसूचित जाति जनजाति और लड़कियों की षिक्षा पर विषेष रूप से फोकस किया था।

इसके बाद वर्ष 1986 में राजीव गांधी ने षिक्षा नीति में बड़ा परिवर्तन किया और उनके जमाने में आई नई षिक्षा नीति ने प्रचलित षिक्षा नीति में आधुनिकता का पुट डालकर उसकी एक तरह से फिर से दोबारा ओवरहालिंग की थी। वर्ष 1986 में आई षिक्षा नीति में उन्होंने देष में ओपन यूनिवर्सिटी खोलने का रास्ता तैयार किया था।उसी रास्ते देष में पहली बार इंदिरा गांधी के नाम पर नेषनल ओपन यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई जिसे आज हम इग्नू के नाम से जानते हैं। ग्रामीण षिक्षा के विकास पर भी जोर देने की बात की गई साथ ही साथ कंप्यूटर और डिजिटल पुस्तकालय जैसे संसाधनों को जुटाकर षिक्षा के केंद्रीकरण की बात की गई। राष्ट्रीय षिक्षा नीति 1986 में देष में षिक्षा के विकास के लिए व्यापक ढांचा पेष किया गया। प्राथमिक षिक्षा पर बच्चों के स्कूल छोड़ने पर रोक लगाने के उद्देष्य से प्राथमिक षिक्षा को मुफ्त किया गया। गरीब परिवारों से आने वाले बच्चों के लिए पोषाहार की बात की गई। आर्थिक रूप से अत्यंत पिछड़े अनुसूचित जाति जनजाति अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों की षिक्षा के लिए आर्थिक सहयोग की भी बात की गई। महिलाओं के लिए व्यवसायिक और तकनीकी षिक्षा के लिए रास्ता तैयार किया गया। गरीब और उत्कृष्ट विद्यार्थियों के लिए नवोदय विद्यालय की परिकल्पना की गई जिसमें खासतौर पर गरीब बच्चों को विद्यालय में ही रहकर पढ़ने की सुविधा प्रदान की गई। नई षिक्षा नीति ने देष के गैर सरकारी संगठनों को भी षिक्षा से जुड़कर सीधे लाभार्थियों तक पहुंचने तथा हाषिए पर बैठे लोगों को षिक्षा के केंद्र में लाने का ताना-बाना तैयार किया।

समय के साथ षिक्षा नीति में परिवर्तन किया जाता रहा है ताकि सीखने सिखाने की कोषिष कभी बाधित ना हो और साथ ही बच्चे और षिक्षक आसपास के वातावरण के अनुसार अपनी शैक्षिक पद्धतियों में आवष्यकता के अनुसार संषोधन भी कर सकें। 24 जून 2017 को इसरो के प्रमुख वैज्ञानिक के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 9 सदस्यों की एक समिति ने दोबारा नई षिक्षा नीति का मसौदा तैयार किया। इस षिक्षा नीति को केंद्रीय कैबिनेट ने 24 जुलाई 2020 को मंजूरी दे दी। इस षिक्षा में प्री प्राइमरी क्लासेज से लेकर बोर्ड परीक्षाओं अंडर ग्रेजुएट एडमिषन के तरीके आदि कई चीजों में कुछ अहम परिवर्तन किए गए हैं। स्कूली षिक्षा उच्च षिक्षा के साथ एग्रीकल्चर षिक्षा, चिकित्सक षिक्षा, तकनीकी षिक्षा आदि को भी जोड़कर एक एकीकृत स्वरूप प्रदान किया गया है, ताकि छात्रों को षिक्षा के साथ-साथ रोजगार के योग्य भी बनाया जा सके। षिक्षा नीति की सिफारिषों में आषा की गई है कि षिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो अक्षर ज्ञान के साथ-साथ जीवनयापन का रास्ता भी आसान करें। इसीलिए षिक्षा के साथ-साथ कौषल विकास पर अत्यधिक जोर दिया गया है। नई षिक्षा नीति में दावा किया गया है कि षिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च सुनिष्चित करने के लिए रास्ता तैयार किया जाएगा। ज्ञात हो कि वर्तमान में षिक्षा पर खर्च किए जाने के मामले में भारत का स्थान दुनिया में 88 वें नंबर पर है। नई षिक्षा नीति में प्रावधान किया गया है कि पूरे देष में पांचवी कक्षा तक निष्चित रूप से तथा आठवीं तक वरीयता के आधार पर और उसके बाद एक स्वरूप में मातृभाषा और स्थानीय भाषा में छात्रों को षिक्षा दी जाएगी। इस निर्णय से निष्चित रूप से छात्रों का संबंध अपनी मातृभाषा और स्थानीय भाषा से बना रहेगा। स्थानीय भाषा में पढ़ने से बच्चों की समझ विकसित होगी तथा अगर उच्च षिक्षा भी मातृ स्थानीय भाषा में उपलब्ध होगी तो उनका बेस मजबूत होगा। लेकिन दूसरे हाथ विदेषी विश्वविद्यालयों के लिए सारे दरवाजे खोल दिए गए हैं। ऐसे में भारतीय स्कूलों कालेजों से पढ़कर निकले छात्रों का मुकाबला सीधे विदेषी भाषाओं से षिक्षित प्रषिक्षित लोगों से होगा।

ऐसे में हमारी कोषिष समग्र षिक्षा के प्रति अधिक होनी चाहिए जहां सामाजिक ज्ञान, देषज ज्ञान, ऐतिहासिक ज्ञान और लोक भावना को आधुनिकता से जोड़कर पूर्ण नागरिक और आत्मनिर्भर भारत की आधारषिला रखी जा सके। लेकिन निष्चित रूप से उस तालीम के बारे में भी जगह बनानी ही होगी जिसके जरिए हम प्रतिस्पर्धियों का मुकाबला कर भारत को और अधिक मजबूत और समृद्ध देष बना सकें।       

Share This

Click to Subscribe