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हरित अनुबंध पत्र (ग्रीन बॉन्ड)  

हरित परियोजनाओं और  बॉण्डों के लिये क्रेडिट रेटिंग या रेटिंग दिशा-निर्देशों के लिए भी प्रावधान करने की आवश्यकता है। सरकार की इस पहल का समर्थन करने की इच्छा रखने वाले निवेशकों को अपने साथ जोड़ने के लिए यह आवश्यक है कि जुटाए गए फंड का इस्तेमाल पारदर्शी तरीके से उल्लिखित उद्देश्यों के लिए ही किया जाए। - विनोद जौहरी

 

पर्यावरण हमारे जीवन की पद्धति और आधार है। श्री मदभागवत गीता में भगवान कृष्ण ने प्रकृति के पाँच तत्वों के स्थान पर आठ तत्वों का उल्लेख किया है यथा ‘‘भूमिरापोनलो वायुः खं मनो बुद्धि रेवच। अहंकार इतीयं में भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।’’ (श्रीमद्भागवद् गीता अ-7/4)।

पर्यावरण-सन्तुलन से तात्पर्य है जीवों के आसपास की समस्त जैविक एवं अजैविक परिस्थितियों के बीच पूर्ण सामंजस्य। वर्तमान कालखंड में औद्योगिक क्रांतियों के अलग अलग चरणों में मानव उपभोग हेतु विभिन्न उत्पादों के निर्माण के लिए जिन मशीनों और प्रक्रियाओं की रचना की गयी उनमें ईंधन के रूप में कोयला, पेट्रोल, डीजल के प्रयोग को आधार रख कर ही उत्पादन की नींव रखी गयी जिसका विनाशकरी रूप आज हम सब को यह सोचने और कार्यान्वित करने को विवश का रहा है की हम अपनी औद्योगिक संरचना को परिवर्तित करें और मानव जीवन की रक्षा के लिए ऊर्जा के हरित और अक्षय संसाधनों के अनुरूप न केवल देश में बल्कि विश्व में अक्षय ऊर्जा के विभिन्न स्वरूपों को अपनाएं। हरित और अक्षय ऊर्जा से तात्पर्य है - सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, हाइड्रोजन आदि जो विषाक्त गैसों का उत्सर्जन नहीं करते। यह इतना सरल नहीं है। सरकार और व्यक्तिगत स्तर पर दीर्घकालीन योजना, शोध, नवोन्मेष और निवेश की बहुत बड़े पैमाने पर आवश्यकता है। कॉप 26 और 27 के सम्मेलनों में सभी देशों के लिए लक्ष्य नियत किए गए और उनके अनुपालन की बाध्यता तय की गयी। वैश्विक मानक जो भी हों परंतु पर्यावरण की चिंता हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक है और प्रकृति का आक्रोश बहुत विनाशकारी है जैसा हम बार बार विभिन्न देशों में बाढ़, सूखा, ग्लाशियरों का पिघलना, पर्वतों पर स्ल्खन, भूकंप, सुनामी की विनाशलीला देख रहे है।  

1 फरवरी 2022 को वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने बजट वित्त वर्ष 2022-23 के लिए केंद्रीय बजट पेश किया था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करने के दौरान कई बड़े फैसलों की घोषणा की। वर्ष 2022-23 के लिए बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी कर ग्रीन प्रोजेक्ट्स के लिए रिसोर्सेज जुटाने की बात कही थी। यह वित्त मंत्रालय के अनुसार 2021 में ग्लासगो में कॉप-26 में पीएम मोदी की दृष्टि “पंचामृत” के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के अनुरुप है। सरकार ने गत वर्ष एक व्यापक नोट जारी किया था और इस विषय में विस्तार से जानकारी दी थी। वित्त मंत्रालय ने कहा था कि उसने संबंधित मंत्रालयों के प्रतिनिधित्व के साथ ग्रीन फाइनैंस वर्किंग कमेटी का गठन किया है। कमेटी की अध्यक्षता भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार करेंगे। यह कमेटी एक वार्षिक रिपोर्ट भी तैयार करेगी जिसमें आवंटन, परियोजना का विस्तार से ब्योरा, क्रियान्वयन की स्थिति तथा आवंटित न हो सकी, प्राप्तियों का ब्योरा होगा। 

ग्रीन बॉण्ड ऋण प्राप्ति का एक साधन है जिसके माध्यम से ग्रीन परियोजनाओं के लिये धन जुटाया जाता है, यह मुख्यतः नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ परिवहन, स्थायी जल प्रबंधन आदि से संबंधित होता है। बॉण्ड जो कि आय का एक निश्चित साधन होता है, एक निवेशक द्वारा उधारकर्त्ता (आमतौर पर कॉर्पोरेट या सरकारी) को दिये गए ऋण का प्रतिनिधित्व करता है। पारंपरिक  बॉण्ड (ग्रीन बॉण्ड के अलावा अन्य बॉण्ड) द्वारा निवेशकों को एक निश्चित ब्याज दर (कूपन) का भुगतान किया जाता है। वर्ष 2007 में यूरोपीय निवेश बैंक और विश्व बैंक जैसे कुछ बैंकों द्वारा ग्रीन बॉण्ड लॉन्च किया गया। इसके बाद वर्ष 2013 में कॉरपोरेट्स द्वारा भी इन्हें जारी किया गया जिस कारण इसका समग्र विकास हुआ। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा ग्रीन बॉण्ड जारी करने एवं इन्हें सूचीबद्ध करने हेतु पारदर्शी मानदंडों को लागू किया गया है।

आमतौर पर वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिये जाने वाले ऋण की तुलना में ग्रीन बॉण्ड पर कम ब्याज लिया जाता है। हरित निवेश विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के साथ-साथ पूंजी जुटाने की लागत को कम करने में मदद कर सकता है। ग्रीन बॉण्ड  अक्षय ऊर्जा जैसे सनराइज़ सेक्टर के वित्तपोषण को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण रहे हैं, इस प्रकार यह भारत के सतत् विकास में योगदान देते हैं।

ग्रीन बॉन्ड विभिन्न श्रेणियों- अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा कुशलता, स्वच्छ परिवहन, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन, टिकाऊ जल एवं कचरा प्रबंधन, प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण, ग्रीन बिल्डिंग्स, प्राकृतिक संसाधनों एवं जमीन के इस्तेमाल का टिकाऊ प्रबंधन और स्थलीय एवं जलीय जैव विविधता संरक्षण, ऊर्जा सक्षम भवनों, सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण, जलवायु के अनुकूल बुनियादी ढांचे, ऑर्गेनिक फार्मिंग, भूमि और समुद्री जैव विविधता परियोजनाओं हेतु हैं।  

भारतीय रिजर्व बैंक ने जनवरी 2023 के अंतिम सप्ताह में पहली बार भारत सरकार की ओर से 8,000 करोड़ रुपये मूल्य के सॉवरिन ग्रीन बॉन्ड जारी किए। ऐसे निवेशक हैं जो हरित पहल का समर्थन करने के लिए अपेक्षाकृत कम प्रतिफल के लिए राजी हैं। कुछ संस्थागत निवेशकों के लिए यह आवश्यक किया गया है कि वे अपने फंड का एक भाग ऐसी योजनाओं में निवेश करें। यही कारण है कि हरित कारोबार में लगे निकाय अपेक्षाकृत कम दरों पर फंड जुटाने में कामयाब हैं। वैश्विक स्तर पर सरकारों ने अब तक हरित बॉन्ड का सीमित इस्तेमाल किया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के 2022 के नोट में प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक 2016 से 2022 के बीच जारी किए गए कुल बॉन्ड में सॉवरिन ग्रीन बॉन्ड केवल 2 फीसदी थे।

भारत सरकार ने 5 और 10 वर्षों की प्रतिभूतियों के रूप में ग्रीन बॉन्ड जारी किए। पहली नीलामी में प्रतिफल समान अवधि के नियमित बॉन्ड की तुलना में 5-6 आधार अंक तक कम था। इस अंतर को ग्रीनियम कहा जाता है। आईएमएफ द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक अमेरिकी डॉलर वाले बॉन्ड में उभरते बाजारों के लिए ग्रीनियम 49 आधार अंकों के बराबर था। यह दर्शाता है कि प्रारंभ में अंतर कम था जो समय के साथ बढ़ता गया। ऐसे में यह संभव है कि इस प्रकार के बॉन्ड की मांग बढ़ने के साथ ही आरबीआई इसकी अधिक प्रतिस्पर्धी कीमत तय कर सकेगा।  ग्रीन बॉन्ड की पहली खेप सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों द्वारा जमकर खरीदी गई थी। सूचना के अनुसार संस्थागत विदेशी निवेशकों ने भी करीब 700 करोड़ रुपये मूल्य के ग्रीन बॉन्ड खरीदे। 

यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण होगा कि इस फंड का इस्तेमाल उल्लिखित उद्देश्यों के लिए किया जाए। प्राप्तियों को भारत की संचित निधि में जमा किया जाएगा जो यह हरित परियोजनाओं के लिए उपलब्ध होगा। वित्त मंत्रालय इसके लिए एक अलग खाते की व्यवस्था करेगा। वह एक ग्रीन रजिस्टर भी बनाएगा जिसमें फंड के जारी होने और आवंटन की जानकारी रखी जाएगी। सरकार का इरादा तृतीय पक्ष के समीक्षकों को जोड़ने का भी है ताकि वे सालाना आकलन पेश कर सकें। इस ढांचे का पारदर्शी क्रियान्वयन जरूरी हरित बदलाव की दिशा में सरकार की उधारी की लागत कम करने में मदद करेगा। 

सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक ग्रीन बॉण्ड बाज़ार को विकसित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू दिशा-निर्देशों एवं मानकों के साथ सामंजस्य स्थापित करना है। ग्रीन बॉण्ड के संदर्भ में सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश निजी निवेश को आकर्षित करने और साथ ही ग्रीन बॉण्ड बाज़ार में निवेशकों का विश्वास स्थापित करने में मदद करता है। यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि लक्षित परियोजनाएं पर्याप्त रूप से हरित परियोजनाएँ ही हैं क्योंकि  ग्रीन बॉण्ड से प्राप्त आय का उपयोग पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु किया जा रहा है। हरित परियोजनाओं और  बॉण्डों के लिये क्रेडिट रेटिंग या रेटिंग दिशा-निर्देशों के लिए भी प्रावधान करने की आवश्यकता है। सरकार की इस पहल का समर्थन करने की इच्छा रखने वाले निवेशकों को अपने साथ जोड़ने के लिए यह आवश्यक है कि जुटाए गए फंड का इस्तेमाल पारदर्शी तरीके से उल्लिखित उद्देश्यों के लिए ही किया जाए।

विनोद जौहरीः सेवानिवृत अपर आयकर आयुक्त 

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