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दूध का धुला नहीं है हिन्डनबर्ग

विदेशी एजेंसियों द्वारा भारतीय उद्यमों पर किये गये हमलों से इन कंपनियों को बचाना होगा। यदि किसी भी प्रकार की गलती इन कंपनियों द्वारा की भी जाती है तो उसे भी देश के कानूनों के अनुसार दुरूस्त करना जरूरी होगा। - डॉ. अश्वनी महाजन

 

हिन्डनबर्ग रिसर्च नाम की फर्म ने अडानी समूह के खिलाफ अपनी हालिया रिपोर्ट में कुछ गंभीर आरोप लगाये हैं, जिसमें धोखाधड़ी और गलत तरीके से शेयर कीमतों को प्रभावित करने के आरोप भी शामिल है। उसके बाद अड़ानी समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट आ गई है। कहा जा रहा है कि इस रिपोर्ट के कारण शेयरों में गिरावट के कारण गौतम अड़ानी की निवल संपत्ति 30 अरब डालर यानि 2.5 लाख करोड़ रूपये घट चुकी है। यही नहीं अड़ानी समूह के कुल मूल्य में 65 अरब डालर यानि 5 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा का नुकसान अभी तक हो चुका है।

गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद गौतम अड़ानी समूह की कंपनियों का तेजी से विस्तार हुआ है। विपक्षी दलों द्वारा यह भी अरोप लगाया जाता रहा है कि सरकार द्वारा इस समूह को जरूरत से ज्यादा समर्थन दिया गया है। हिन्डनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद विपक्षी दलों ने भी अड़ानी समूह पर हमला बढ़ा दिया है।

हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट की सत्यता क्या है, इसके बारे में अभी टिप्पणी करना संभव नहीं है, लेकिन, चूंकि हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट मात्र अड़ानी समूह के बारे में ही आई है, इसलिए इन गलतियों या धोखाधड़ी के बारे में केवल अड़ानी समूह को ही कटघरे में खड़ा करना कितना सही है, यह समझना होगा। क्या जो आरोप अड़ानी समूह पर लगाये गये है वहीं आरोप क्या अन्य समूहों पर भी आ सकते हैं? इस पर भी विचारा होना चाहिए।

क्या है हिन्डनबर्ग रिसर्च और उनके आरोप

हिन्डनबर्ग रिसर्च नाथन एंडरसन द्वारा स्थापित एक फोरंसिक वित्तीय शोध फर्म है, जो शेयर (अंश), क्रेडिट और डेरिवेटिव का विश्लेषण करती है। कहा जा रहा है कि इससे पहले यह 16 कंपनियों की गलतियों और धोखाधड़ियों का खुलासा कर चुकी है। जिसमें इलैक्ट्रिक ट्रक कपंनी निकोला कारपोरेशन और ‘एलॉन मस्क’ द्वारा ट्विटर के अधिग्रहण के संदर्भ में, ट्विटर के बारे में खुलासे शामिल है। यानि हिन्डनबर्ग रिसर्च द्वारा अड़ानी समूह के बारे में खुलासा पहला ऐसा खुलासा नहीं है।

समझना होगा कि हिन्डनबर्ग रिसर्च एक व्यवसायिक फर्म है, जिसका काम ‘शॉर्ट सैलिंग’ का है। शेयर बाजार की शब्दावली में ‘शॉर्ट सैलिंग’ उस स्थिति को कहते हैं, जब कोई फर्म या व्यक्ति अपने अधिकार में शेयरों से ज्यादा शेयरों की बिक्री करती है। ऐसे में सौदे के निपटारे के समय ‘शॉर्ट सैलर’ को उस समय के भाव के अनुसार निपटान करना पड़ता है। अपने पास शेयरों से ज्यादा शेयरों को बेचने (यानि शॉर्ट सैलिंग) विक्रेता स्वभाविक रूप से इस मान्यता पर चलता है कि भविष्य में शेयर का दाम कम होगा और ऐसे में पहले ऊंची कीमत पर शेयर बेचने पर उसे निपटान के दिन फायदा होगा। यानि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हिन्डरबर्ग रिसर्च, जिसके हित कंपनियों के शेयरों की कीमतों में गिरावट के साथ जुड़े हैं, ऐसे तथाकथित खुलासों के माध्यम से धन कमाने के उद्देश्य से भी जुड़े हुए हैं। यानि यह ‘हितों के टकराव’ का मामला बनता है।

दिलचस्प बात यह है कि इसी हिंडनबर्ग को दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने जुलाई 2022 में एबिक्स, एक कंपनी जिसमें हिंडनबर्ग रिसर्च शॉर्ट पोज़िशन में थी, के आवेदन पर ट्वीट वापस लेने के लिए आदेश दिया था, जिसका प्रतिकार हिन्डनबर्ग नहीं कर पाया। एबिक् रिपोर्ट की ओर इशारा करते हुए गूगल खोज परिणामों को भी प्रतिबंधित कर दिया गया था।

क्या करती है अडानी की कंपनियां

अडानी विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर एवं अन्य लोजेस्टिक, खनन, धातु, ऊर्जा समेत विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में देश का सबसे तेजी से बढ़ता समूह बन चुका है। अडानी की कंपनियों में अड़ानी पोर्ट्स एवं एससीजेड़, अड़ानी पावर, अड़ानी ट्रांसमिशन, अड़ानी एंटरप्राइसेस, अड़ानी टोटल गैस, अड़ानी विलमार्क सरीखी कंपनियां शामिल है। अगर केवल अडानी एयर पोर्ट्स की बात की जाए तो मुंबई, अहमदाबाद, लखनऊ, बेगलूरू, जयपुर, गुवाहटी, तिरूवंतपुरम् समेत कई एयरपोर्टो का विकास एवं संचालन अडानी समूह द्वारा किया जा रहा है। हाल ही में शुरू अडानी ग्रीन एनर्जी नाम की कंपनी द्वारा बड़ी मात्रा में सोलर पैनल और अन्य उपकरण बनाये जा रहे हैं। जिससे देश की निर्भरता चीन समेत दूसरे मुल्कों पर घटने लगी है। अडानी पोर्ट्स एवं एससीजेड द्वारा कई बंदरगाहों को निर्माण एवं संचालन हो रहा है। अभी हाल ही में भारत सरकार द्वारा सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से एक बड़ा प्रयास किया गया है और सरकार सेमीकंडक्टर उद्योग को लगभग 60 हजार करोड़ रूपये के उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन देने की घोषणा कर चुकी है। उसी के तहत ऐसा माना जा रहा है कि जल्द ही अडानी समूह द्वारा बनाये गये सेमीकंडक्टर बाजार में उतर जायेंगे। यानि देखा जाए तो अडानी समूह की सभी कंपनियां देश में मैन्यूफेक्चिरिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में वास्तविक परिसंपत्तियों का निर्माण कर रही हैं।

क्या देश को हो सकता है नुकसान?

कुछ लोगों का यह मानना है कि हिंडनबर्ग द्वारा अडानी समूह की बदनामी और उसके कारण शेयर बाजार में भारी गिरावट के कारण मात्र अडानी समूह ही नहीं बल्कि पूरे देश की साख पर बट्टा लग सकता है और विदेशी निवेशकों को यह भारत से विमुख कर सकता है। लेकिन समझना होगा कि हितों के टकराव से ग्रस्त किसी एजेंसी की रिपोर्ट को इतनी गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। भारत इस समय दुनिया भर के निवेशकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। भारत के बड़े बाजार, विश्व की सबसे ऊंची संवृद्धि दर, विविध क्षेत्रों में प्रगति, मैन्यूफेक्चरिंग क्षेत्र में भारत सरकार के प्रभावी प्रयासों के कारण देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ता जा रहा है। आज देश में विकास की समर्थक सरकार, राजनीतिक स्थायित्व और हर क्षेत्र में प्रगति व विविध प्रकार की अनुकूलता का वातावरण है। लोकतंत्र और न्यायसंगत व्यवस्था, भारत के प्रति आकर्षण का एक मुख्य कारण है। इसलिए यह समझना कि हितों के टकराव से ग्रस्त किसी एजेंसी की एक कंपनी को निशाने पर लेकर रिपोर्ट से भारत का निवेश वातावरण प्रभावित हो जायेगा, सही नहीं होगा।

परिसंपत्ति निर्माण बनाम कैश बर्निग

आज देश और दुनिया में दो प्रकार के व्यवसायिक मॉडल चल रहे हैं। एक है, परंपरागत परिसंपत्ति निर्माण का मॉडल, जिसमें उत्पादन इकाईयां, इंफ्रास्ट्रक्चर और विविध प्रकार के लोजिस्टिक का निर्माण होता है और उसके माध्यम से उत्पादन क्षमता एवं जीडीपी बढ़ाई जाती है। अडानी समूह के द्वारा व्यवसाय का यह मॉडल अपनाया गया है। इसके कारण देश में विविध क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता बढ़ रही है। दूसरी तरफ व्यवसाय का एक अन्य मॉडल चल रहा है, जिसे कैश बर्निग मॉडल कहते है। इसमें उपभोक्ताओं को विविध प्रकार के डिस्काउंट के माध्यम से अपने बाजार का विस्तार किया जाता है और उसके आधार पर फर्म का वैल्यूवेशन बढ़ाकर निवेशकों को आकर्षित कर उनसे निवेश लिया जाता है। वैश्विक स्तर पर अमेजॉन, भारत में पेटीएम, जोमेटो, नाईका, फ्लिपकार्ट सरीखी अनेक कंपनियां इस बिजनेस मॉडल को अपनाकर आगे बढ़ रही हैं। हाल ही में इनमें से कई कैश बर्निग कंपनियां द्वारा ‘सेबी’ के माध्यम से आईपीओ जारी कर आम निवेशकों से धन लिया गया। इनमें से अधिकांश निवेशकों का 40 से लेकर 70 प्रतिशत तक धन डूब चुका है।

समझना होगा कि जब भारत के अनेक धनाढ़य लोग यह मानकर कि भारत में रहना लाभप्रद नहीं है, अपनी संपत्तियां बांधकर विदेशों को स्थानांतरित हो गये और कुछ धनाढ़य लोगों ने भारत में ही रहकर उद्यम बढ़ाने का निर्णय लिया तथा तेजी से विस्तार भी किया, तो चाहे वो अंबानी हो, अडानी हो, टाटा हो, महेंद्रा हो, विरला समूह की कंपनियां हो, आईटीसी हो, अथवा एलएंडटी, इन समूहों और कंपनियों ने भारत की ग्रोथ यात्रा को आगे बढ़ाने का काम किया है। निश्चित रूप से ये कंपनियां कैश बर्निग व्यवसायों से बेहतर काम कर रही है। ऐसे में विदेशी एजेंसियों द्वारा भारतीय उद्यमों पर किये गये हमलों से इन कंपनियों को बचाना होगा। यदि किसी भी प्रकार की गलती इन कंपनियों द्वारा की भी जाती है तो उसे भी देश के कानूनों के अनुसार दुरूस्त करना जरूरी होगा।                

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