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अंतरिम बजट 2024-25ः नवाचार हेतु एक बड़ा प्रयास

1 फरवरी 2024 को संसद में अंतरिम बजट 2024-25 पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की कि सरकार एक लाख करोड़ रूपए का कोष स्थापित करेगी, जिससे निजी क्षेत्र के लिए सूर्योदय क्षेत्रों में अनुसंधान और नवाचार को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इस कोष की मदद से 50 वर्षीय ब्याज मुक्त ऋण प्रदान किया जाएगा, यानि यह कोष लंबी अवधि और कम अथवा शून्य ब्याज दरों के साथ दीर्घकालिक वित्त पोषण या पुनर्वित्त प्रदान करेगा। ऐसा माना जा रहा है कि सरकार द्वारा इस कोष की स्थापना से देश में नवाचार को एक नई गति मिलेगी। पिछले लगभग एक दशक से सरकार द्वारा अपनाई जा रही विभिन्न नीतियों, कार्यक्रमों और अभियानों के कारण देश में नवाचार को एक बड़ी गति मिली है, जो देश में पेटेंटों की संख्या से स्पष्ट हो रहा है। हाल ही में सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के हिसाब से भारत में जारी पेटेंट की संख्या वर्ष 2023-24 के पहले 8 महीनों के दौरान यानि नवंबर तक 41,010 तक पहुंच गई। गौरतलब है कि वर्ष 2021-22 के पूरे वर्ष में कुल 30,073 पेटेंट ही प्रदान किए गए थे, जबकि 2013-14 में यह संख्या मात्र 4227 की ही थी। कहा जा सकता है कि पिछले एक दशक में, एक वर्ष में जारी पेटेंटों की संख्या में 10 गुणा से ज्यादा वृद्धि हुई है। 

गौरतलब है कि 2022 में दुनिया भर में पेटेंट आवेदनों की संख्या में 1.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिजाईनों के आवेदनों की संख्या में क्रमशः 14.5 प्रतिशत और 2.1 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई। दुनिया में लगातार दूसरे साल पेटेंट आवेदनों की वृद्धि दर में कमी आ रही है, चीन में तो यह वृद्धि दर 2021 में 6.8 प्रतिशत से घटती हुई 2022 में 3.1 प्रतिशत ही रह गई, लेकिन भारत में यह 21.6 प्रतिशत की दर से बढ़ी। गौरतलब है कि पूर्व में भारत में अधिकांश पेटेंट आवेदन बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किए जाते थे, ताकि वे विदेशों में लिए गए अपने पेटेंटों को भारत में मान्य करा सकें। लेकिन हाल ही के वर्षों में भारतीयों द्वारा ही ज्यादा पेटेंट आवेदन हो रहे हैं। उदाहरण के लिए 2016-17 में कुल पेटेंट आवेदनों में से भारतीयों द्वारा मात्र 29 प्रतिशत ही किए जाते थे, जबकि 2022-23 में यह अनुपात बढ़कर 52.3 प्रतिशत हो गया। देश में यह सब पेटेंट कार्यालयों को पहले से अधिक दुरूस्त करने के कारण संभव हुआ है। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में पेटेंट कार्यालयों में परीक्षकों की संख्या में वृद्धि हुई है। लेकिन अभी भी यह संख्या चीन और अमरीका की तुलना में बहुत कम है। भारत में जहां अभी भी मात्र 900 लोग पेटेंट कार्यालय में कार्यरत हैं, चीन में यह संख्या 13704 और संयुक्त राज्य अमरीका में यह 8234 है। जो बात देश में बढ़ती मात्रा में पेटेंट आवेदनों और जारी पेटेंटों की संख्या के रूप परिलक्षित हो रही है, उसके कारणों का विश्लेषण करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि उससे भविष्य में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए उचित नीतियां और कार्यक्रम अपनाए जा सकेंगे। यदि पिछले 10 सालों का लेखा-जोखा लिया जाए तो ध्यान में आता है कि इस दौरान देश में विभिन्न क्षेत्रों में और विभिन्न स्तरों पर प्रगति दिखाई देती है। यह प्रगति मैन्युफैक्चरिंग/औद्योगिक, कृषि एवं सहायक गतिविधियों और सेवा क्षेत्र सभी में दिखाई देती है। बड़ी बात यह है कि यह प्रगति केवल संख्यात्मक रूप से ही नहीं, बल्कि गुणात्मक रूप में भी दिखती है। यदि हम विचार करें तो औद्योगिक क्रांति 4.0 के सभी आयाम भारत की इस प्रगति में दिखाई देते हैं। हालांकि पहली, दूसरी और तीसरी औद्योगिक क्रांति में प्रोत्साहक नीतिओं के अभाव में भारत उल्लेखनीय प्रगति करने में सफल नहीं रहा, लेकिन उसके बावजूद भारतीय वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने कभी हार नहीं मानी। पिछले लम्बे समय से देश में अंतरिक्ष के क्षेत्र में विशेष प्रगति देखने को मिलती है, जिसकी एक विशेष उपलब्धि चंद्रयान के चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव, जहां विश्व में अभी तक कोई देश नहीं पहुंच पाया, वहां सफलतापूर्वक लैंड करना था। 

भारत का ‘इसरो’ संगठन लगातार केवल प्रगति ही नहीं कर रहा, बल्कि अपने नवाचार के आधार पर उसने विश्व बाजार में भी मजबूत कदम रखा है। आगे चलकर अंतरिक्ष विज्ञान के आधार पर दुनिया में इंटरनेट को कम लागत पर उपलब्ध कराते हुए उसे वर्तमान से कई गुणा अधिक गति दी जा सकती है। आज इसरो अपने निजी क्षेत्र के सहयोगियों के साथ अंतरिक्ष के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर प्रगति कर रहा है। यह सब नवाचार और नई खोजों के बिना संभव ही नहीं था। इसके अतिरिक्त एक अन्य बड़ा क्षेत्र टेलीकॉम एवं कम्प्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का है। अभी तक कम्प्यूटर हार्डवेयर की दृष्टि से देश में प्रगति धीमी थी, लेकिन पिछले एक दशक में टेलीकॉम, कम्प्यूटर हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर सभी में तेज प्रगति देखने को मिली है। देश में इस क्षेत्र में संलग्न स्टार्टअप ईको सिस्टम ने विशेष योगदान दिया है। सरकार द्वारा प्रारंभ नेशनल क्वांटम मिशन से देश चुनिंदा देशों की श्रेणी में पहुँच चुका है। यदि देखें तो इन सभी क्षेत्रों में तो नवाचार और नई खोजें देखने को मिल ही रही हैं, इससे जुड़े एप्स, भुगतान नेटवर्क आदि दुनिया में भारत को एक अलग पहचान दे रहे हैं। डिजिटल क्रांति की बात करें तो यूपीआई और अन्य माध्यमों से भुगतानों का डिजिटलीकरण तो हुआ ही है, साथ ही ओपन नेटवर्क डिजिटल कॉमर्स, ई पाठशाला, ई गवर्नेंस, ई क्रांति-सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी, डिज़ीलॉकर समेत कई डिजिटल प्रयास दुनिया को अचंभित कर रहे हैं और दुनिया में भारत की एक अलग पहचान बना रहे हैं। हमारे युवा ‘एआई’ यानि आर्टिफिश्यिल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आगे बढ़े हैं। यही नहीं ड्रोन, रोबोट्स, प्रतिरक्षा के साजो-सामान आदि सभी में भारत की प्रगति उल्लेखनीय है। ऐसे में भारत में बढ़ता नवाचार केवल संख्यात्मक रूप से नहीं बल्कि गुणात्मक रूप से भी दिखाई देता है। इस बजट में एक लाख करोड़ रूपए की बड़ी राशि, जब देश के युवाओं और नवाचार में संलग्न संस्थानों को बिना ब्याज लम्बी अवधि के लिए प्राप्त होगी तो भारत नवाचार के क्षेत्र में एक लम्बी छलांग लगा सकेगा, इसमें कोई संशय नहीं।

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