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काशी, एक लाक्षणिक आयाम...

काशी पुराने समय में महान शिक्षा विश्वास और भाषाओं की एक स्थापित और प्रसिद्ध सिद्ध पीठ थी। — डॉ. जया कक्कड़

 

प्राचीन काशी का आकर्षण अब भी जस का तस है। काशी आज भी मोक्ष चाहने वाले भक्तों को सांसारिक बंधनों से मुक्ति पाने के लिए आमंत्रित करती है। काशी ने प्राचीन काल से ही सभी का स्वागत किया है। कभी यह कौशल की समृद्ध राजधानी थी। अतीत में काशी एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र था, जो भारत को खैबर दर्रे की भूमि से जोड़ता था। यहां के काते हुए कपास और महीन रेशम के धागों से बुनी रेशम की साड़ियों ने पूरी दुनिया को ललचाया है। इतिहास के एक बड़े कालखंड तक यह विद्या का एक प्रसिद्ध और उन्नत केंद्र था। काशी में कुशल कारीगरों, कलाकारों, संगीतकारों की एक बड़ी जमात थी। हममिजाज लोगों का काशी ने दिल खोलकर स्वागत भी किया, लेकिन समय के साथ इसी काशी को तुर्क और मुगलों के आक्रमणों के कारण उदासीनता, उपेक्षा और संत्रास का सामना भी करना पड़ा। इतिहास के काल क्रम में कई उतार-चढ़ाव देख चुकी प्रसिद्ध काशी में दुनिया का प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर भी स्थित है। जगत प्रसिद्ध इस शिव मंदिर के साथ विदेशी आक्रांताओं ने समय-समय पर घोर अतिक्रमण किया। वर्तमान में केंद्र की मोदी सरकार ने काशी कॉरिडोर का निर्माण तथा मंदिर का पुनरुद्धार का काम पूरा किया है। राष्ट्र के सामने पुनर्निर्मित मंदिर की प्रस्तुति गैर हिंदुओं द्वारा बार-बार अपवित्र किए जाने की यादों को  सदा-सदा के लिए मिटाने के प्रतीक के रूप में देखी जा सकती है। शायद इसीलिए देश के प्रधानमंत्री ने खुद आगे बढ़कर इसकी पहल की तथा इसके उद्घाटन के लिए 13 दिसंबर का दिन चुना। 13 दिसंबर इतिहास की वही तारीख है जिस दिन आतंकवादियों ने भारत की संसद पर हमला किया था। अतीत में अंतिम बार मंदिर का पुनर्निर्माण मराठा रानी अहिल्याबाई ने 1777 से 1780 के बीच कराया था।

काशी पुराने समय में महान शिक्षा विश्वास और भाषाओं की एक स्थापित और प्रसिद्ध सिद्ध पीठ थी। यह नाग, यक्ष देवताओं का आसन था जो सभी देवताओं का स्वागत करता था और असंतुष्ट को भी परोपकारी के रूप में देखता था। योगी, नाथ, सिद्ध और अघोरपंथियों, सभी प्रकार के विद्यार्थियों को यहां निवास मिला। पक्ष विपक्ष दोनों को दरबार में बराबर की इज्जत दी गई। धीरे-धीरे हिंदी में नई हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए उर्दू और अन्य बोलियों को भी अपनाया। काशी की सबसे बड़ी विशेषता है कि इस शहर ने बहुत सारे नरसंहार देखें, औपनिवेशिक लूट का दंश झेला और सांप्रदायिक दंगों को  झेला लेकिन कभी भी अपनी सांस्कृतिक जीवन शक्ति नहीं खोई थी। काशी कॉरिडोर बन जाने के बाद अब बगल की ज्ञानवापी मस्जिद देखने में बहुत बौनी लगने लगी है। सवाल है कि क्या यह एक नई परियोजना है जो प्रतीकात्मकता से भरी हुई है? मंदिर में नंदी की मूर्ति बगल की मस्जिद के सामने है। लेकिन भक्तों के अनुसार नंदी हमेशा भगवान के सामने रहते हैं। इसलिए भक्तों का मानना है कि असली गर्भग्रह वही स्थित होना चाहिए। हिंदू भक्तों के मुताबिक 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान शिव की काशी का यह स्थान सबसे पवित्र है। माना जाता है कि यह स्थान अविनाशी है, इसका न कोई आदि है, न कोई अंत है।

जनसामान्य में एक आम धारणा है कि यह मंदिर अनादिकाल से अस्तित्व में है। 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। औरंगजेब ने उसे गिराने का आदेश दिया था तथा इसके बजाय यहां ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया गया था। इतिहासकार आंद्रे ट्रस्टी के अनुसार मंदिर का निर्माण अकबर के शासन काल में राजा मानसिंह ने करवाया था। अब वर्तमान में मस्जिद इमारत में शामिल खंडहर मंदिर की दीवार के हिस्से के साथ खड़ी है। आज का काशी विश्वनाथ मंदिर बगल के स्थान पर अहिल्याबाई द्वारा बनवाया गया था। सन 1991 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मस्जिद के स्थान पर मूल संरचना को बहाल करने के लिए एक मुकदमा दायर किया गया था, लेकिन मुसलमान इस पर स्टे लेने के लिए कोर्ट चले गए। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के शासनकाल में तत्कालीन सरकार ने संसद के माध्यम से पूजा स्थलों को लेकर विशेष प्रावधान अधिनियम पारित किया, जिसमें कहा गया था कि भारत के स्वतंत्रता दिवस  के बाद सभी पूजा स्थलों (अयोध्या को छोड़कर) की प्रकृति अपरिवर्तित रहेगी। अयोध्या को इसलिए बाहर रखा गया क्योंकि उस पर पहले से ही मुकदमे चल रहे थे।

हालांकि काशी और मथुरा सहित देश के सभी पूजा स्थलों को इस अधिनियम के द्वारा एक ढ़ाल दिया गया था लेकिन बाबरी मस्जिद क्षतिग्रस्त कर दी गई। नरसिम्हा राव के इस कृत्य पर सुप्रीम कोर्ट ने जब राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद मामले में हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया तो उस पर एक अनुकूल टिप्पणी भी की है। हालांकि 30 मार्च 2021 को उच्चतम न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सरकार से प्रतिक्रिया मांगी है जो अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती है। इस बीच अप्रैल 2021 में बनारस की एक अदालत ने इस दलील को स्वीकार किया कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर एक विवाद पहले से ही था। अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक को आदेश दिया है कि उनका विभाग ठीक-ठीक सर्वेक्षण करें कि क्या विवादित पक्ष की मस्जिद की संरचना वहां पहले से थी या उसे उसमें कोई परिवर्तन या जोड़ या कोई अतिक्रमण कर नई संरचना की गई अथवा मस्जिद पूरी तरह से एक अध्यारोपण का मामला है। फिलहाल इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगा दी है, क्योंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाएं पहले से लंबित है। विवादित स्थल की मौजूदा कानूनी स्थिति यही है।

इस बीच प्रधानमंत्री मोदी ने 800 करोड रुपए के काशी विश्वनाथ  धाम कारी डोर का उद्घाटन किया तथा कहा कि यह अतीत और भविष्य के बीच का एक सेतु है। वाराणसी दुनिया के सबसे पुराने जीवित शहरों में से एक है और हमेशा के लिए हिंदुओं के बीच अपनी पवित्र स्थिति को बनाए रखने में हमेशा सक्षम रहा है। नवनिर्मित काशी विश्वनाथ कॉरिडोर ने कुछ मौजूदा लिंक को तोड़ने की कीमत पर नए लिंक को आकार दिया है। खासकर पुनर्निर्माण का पैमाना विस्मयकारी है। मंदिर को भव्य रूप से पुनर निर्मित किया गया है। मंदिर परिसर से लेकर ललिता घाट तक पूरा परिसर अब एक शानदार वास्तुकला का चित्रण भी प्रस्तुत करता है। यह पूरी परियोजना का केवल प्रथम चरण है। इसका दूसरा चरण भी है जिसे भविष्य में पूरा होना है। प्रधानमंत्री के अनुसार काशी धाम कारी डोर का पूरा विचार हमारी संस्कृति और प्राचीन इतिहास को सुदृढ़ करना है। उनका मानना है कि प्राचीनता का आधुनिकता से मेल हो।

ऐसा नहीं है कि बेचैनी की आवाजें नहीं है क्या धर्मनिरपेक्ष भारत में चर्च और राज्य की बैठक हुई है? ऐसे सवालों पर हमारे प्रधानमंत्री का नजरिया बिल्कुल अलग है। प्रधानमंत्री के अनुसार उन्होंने राजनीति धर्म आस्था और विज्ञान आदि जैसे समान प्रतीत होने वाले क्षेत्रों के बीच संतुलन हासिल करने की कोशिश की है। उनका साफ कहना है कि भारत मंदिरों के साथ-साथ चिकित्सा संस्थानों का भी निर्माण कर सकता है। उनका सुझाव है कि भारत को विकास और विरासत दोनों को एक साथ सुनिश्चित करने की जरूरत है और इन दोनों में कोई विरोधाभास नहीं है।

हालांकि संशयवादी इससे अलग राय रखते हैं। भारत एक महान सभ्यता रही है जो अब एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई भी बन गई है। भारत में कभी भी संस्कृति और धर्म भाषाओं और विचारधाराओं के संदर्भ में समाज में विद्यमान मतभेदों को स्वीकार करने में संकोच नहीं किया। इसके लिए दुनिया भर में भारत का सम्मान किया जाता है। भारत आमतौर पर विविध शक्तियों के बीच नाजुक संतुलन बनाए रखने में सक्षम रहा है। भारत के संस्थापक पूर्वजों ने बहिष्करण की जगह आत्मसात करने की प्रवृत्ति का स्वागत किया था लेकिन आलोचकों के अनुसार अब देश का ध्रुवीकरण हो रहा है। देश का बंटवारा हो रहा है। शक्तिहीन और प्रभावी/विपक्ष की अनुपस्थिति के कारण हाल के दिनों में इसे और तेज गति से आगे बढ़ाया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि खंडित विपक्ष धर्म को एक अहम उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने से मुक्त है। वह भी समय के हिसाब से धर्म का इस्तेमाल करता है।

भारत का विचार जैसा कि पहले जाना जाता था, अब धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से बदल रहा है। हालांकि अभी यह जल्दी बाजी होगी यह तय करना कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र बना रहेगा या हिंदू राष्ट्र बन जाएगा, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि आजकल एक नया सामाजिक अनुबंध लिखा जा रहा है। एक नई आम सहमति विकसित की जा रही है कि हिंदुओं को भारत में अब अपना सही स्थान हासिल कर लेना चाहिए। नया भारत, एक बड़ी परियोजना के कार्यान्वयन के माध्यम से एक मूलभूत परिवर्तन को निमंत्रण दिया जा रहा है। सभी मीडिया, सांस्कृतिक, अभिजात वर्ग, महत्वाकांक्षी, राजनीतिक, अभिनेताओं के सहयोग और सहायता से एक भव्य डिजाइन को लागू करने  का आग्रह सहज ही दिखाई दे रहा है। भारत के हिंदू राष्ट्र होने के बारे में विचारों की व्यापक स्वीकार्यता है। विपक्ष जो कुछ भी रह गया है उसने तो बिना लड़ाई लड़े मैदान छोड़ दिया है।

ऐसे में सवाल यह है कि जब भारत का संविधान अभी भी भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करता है क्या इसे आज का लोकप्रिय जनमानस स्वीकार करने को तैयार नहीं है? खैर लोकतंत्र में अंतिम राय मतदाता की होनी चाहिए। हालांकि लोकतंत्र के शासन पर भी कई लोग सवाल उठा सकते हैं लेकिन यह एक अलग सवाल है। ऐसे में लाजमी भी है कि हम उत्तर प्रदेश के चुनाव का इंतजार करें?         

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