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स्वदेशी को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने वाले मदन दास देवी जी

मदन दास देवी, जिन्हें उनके अनुयायी, प्रषंसक और साथी मदन जी के रूप में संबोधित करते थे, की उपस्थिति ऐसी थी कि आप वहाँ सबसे जटिल मुद्दों के समाधान की भी उम्मीद कर सकते थे। कार्यकर्ताओं के मार्गदर्षन के लिए हमेषा उपलब्ध मदन दास जी को उनके अनुषासन, उनकी ईमानदारी, उद्देष्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को इस बात के लिए बहुत सम्मान मिला कि उनके उनके सान्निध्य मात्र से ही समाधान की संभावना स्पष्ट थी। इस राष्ट्र के लिए उनका सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि उन्होंने सबसे कठिन समय में स्वदेषी को मुख्यधारा में लाने का कार्य किया। आज, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ रहे हैं, तो उसकी नींव मदन जी के ’आर्थिक राष्ट्रवाद’ से पड़ी। इस विचार को उनके नेतृत्व में एबीवीपी में गढ़ा और प्रचारित किया गया। 

9 जुलाई, 1942 को महाराष्ट्र के सोलापुर में जन्मे मदन जी एम.कॉम, एलएलबी और चार्टर्ड अकाउंटेंसी की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे आरएसएस के प्रचारक बने और उन्होंने अपना पूरा जीवन देष की सेवा में समर्पित कर दिया। वे 1970 और 1992 के बीच वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री रहे; और उसके बाद वर्तमान सरकार्यवाह, दत्तात्रेय होसबोले ने वहां उनसे कमान ली।

श्रद्वेय शेषाद्री जी, श्रद्वेय दत्तोपंत ठेंगड़ी, प्रो. एमजी बोकरे और अन्य नेताओं के साथ, 1991 में गठित स्वदेषी जागरण मंच के संस्थापक सदस्यों में से वे एक थे; और उस समय उन्होंने मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक का दायित्व लिया। यह लड़ाई पष्चिमी दुनिया द्वारा चलाए जा रहे वैश्वीकरण और भारत को महज एक बाजार के रूप में विकसित करने के खिलाफ थी। जहां दत्तोपंत ठेंगड़ी स्वदेषी को वैचारिक अधिष्ठान प्रदान कर रहे थे, मदन दास देवी जी, पहले एबीवीपी के प्रतिनिधि के रूप में और फिर बाद में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से संरक्षक के रूप में, लगातार स्वदेषी जागरण मंच की संचालन समिति में रहते हुए मंच का मार्गदर्षन करते रहे। प्रारंभिक वर्षों से, उस समय तक जब स्वदेषी जागरण मंच आर्थिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए एक ताकत बना, मुद्दों को उठाने और विभिन्न स्तरों पर प्रभावी ढंग से हस्तक्षेप करने के साथ, वे हमेषा मंच के मामलों की धुरी में रहे। मंच के सभी कार्यक्रमों और गतिविधियों पर मदन दास जी की छाप आज भी दिखती है। डब्ल्यूटीओ (विष्व व्यापार संगठन) के गठन से पहले विवादास्पद डंकल ड्राफ्ट के विरोध को रूप देने से लेकर, बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित मुद्दे; और बाद में ’सिंगापुर’ मुद्दों पर जब विकसित देष श्रम मानकों, पर्यावरण मानकों, लिंग (जेंडर) जैसी नई शर्तों को जोड़ने की कोषिष कर रहे थे, तो उनके सक्षम मार्गदर्षन के तहत इसका पुरजोर विरोध किया गया। बाद में जब महाराष्ट्र में बिजली क्षेत्र में वैश्विक दिग्गज कंपनी एनरॉन को लाने का प्रयास किया गया, तो उनके मार्गदर्षन में इस परियोजना का पुरजोर विरोध हुआ और अंतोत्गत्वा देष इसे रोकने में सफल रहा।

जब प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गठबंधन सहयोगियों के साथ केंद्र में सत्ता की बागडोर संभाली और सरकार में ऐसे नेता भी थे, जो स्वदेषी विचारधारा के प्रति अधिक सहानुभूति नहीं रखते थे, मदन दास जी उस सबसे कठिन समय में चट्टान की तरह खड़े रहे। यही वह समय था जब मदन दास जी को सह सरकार्यवाह के रूप में सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच समन्वय स्थापित करने का काम सौंपा गया था। कई विवादास्पद मुद्दे सामने आए, जिससे स्वदेषी जागरण मंच और सरकार आमने-सामने हो गए। इनमें एनरॉन, डब्ल्यूटीओ, बीमा में एफडीआई, विनिवेष जैसे कुछ मुद्दे शामिल हैं। उन दिनों डब्ल्यूटीओ के विभिन्न मुद्दों पर 2003 में स्वदेषी जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान संघ ने दिल्ली के रामलीला मैदान में महाधरना आयोजित किया, जिसने डब्ल्यूटीओ में भारत सरकार के दृष्टिकोण को बदला और श्री अरुण जेटली, जो उस समय भारत के वाणिज्य मंत्री थे, ने डब्ल्यूटीओ के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में स्वदेषी जागरण मंच द्वारा सुझाये वे सब मुद्दे उठाए, जिनकी विकासषील देषों ने खासी सराहना की। उसी कालखंड में बीमा क्षेत्र में एफडीआई खोलने के खिलाफ स्वदेषी जागरण मंच द्वारा आंदोलन किया गया, जिसके कारण सरकार को बीमा में एफडीआई को केवल 26 प्रतिषत तक सीमित करने के संसदीय संकल्प को अपनाना पड़ा। ऐसे अनेकानेक उदाहरण हमें मिलते है, जहां मदन दास जी के मार्गदर्षन में स्वदेषी जागरण मंच के सामूहिक नेतृत्व द्वारा देषहित में ऐसे अनेक मामले उस कालखंड में और उसके बाद भी उठाए, जिससे देष की दिषा और दषा दोनों पर अनुकूल प्रभाव पड़ा। वो एक ऐसा कालखंड था, जिसमें मदन दास जी पर दोहरा दायित्व था, कि एक ओर उन्हें स्वदेषी जागरण मंच जैसे संगठनों, जिनके निर्माण में उनकी भूमिका थी, और जिसे उन्होंने पुष्ट किया था, के मुद्दों पर सहयोग देना था, तो दूसरी ओर मंच सहित इन संगठनों और वाजपेयी सरकार के बीच संतुलन स्थापित करना था। यह सब काम उन्होंने अपेक्षा से कहीं अधिक सफलता से किया। 

मदन जी के सक्षम मार्गदर्षन के कारण, कई मुद्दों को उठाया गया और बाद में अंततः सुलझा लिया गया। उनके माध्यम से जो कुछ कहा और किया गया, उसके कारण स्वदेशी जागरण मंच को एक दुर्जेय शक्ति के रूप में जाना जाने लगा, वे उस परिस्थिति के रचयिता कहे जा सकते हैं।

उन दिनों से, लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए, स्वदेशी जागरण मंच राजनीतिक व्यवस्था की परवाह किए बिना, राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को उठाता रहा है, जो मंच को अलग पहचान देता है। मदन जी ने इसकी नींव रखी थी। और शायद, इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हीं मुद्दों को लागू कराने के लिए आज तत्परता से कार्य कर रहे हैं।    

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