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नकारात्मकता नहीं, सकारात्मकता से बनेगी बात

यदि मीडिया सकारात्मक हालातों को प्रमुखता देगा तो मानवता के गिद्धों पर अंकुश लगेगा, लोगों में विश्वास जगेगा और दवा या अन्य की अनुपलब्धता के भय से मौतों को रोका जा सकेगा। — राणा अजित प्रताप सिंह

 

कोरोना की दूसरी लहर के चरम पर होने के समाचारों के बीच सुखद खबर है कि देश में 2 करोड़ से अधिक कोरोना संक्रमित देशवासी कोरोना को मात देने में सफल रहे हैं। कोरोना पर विजय पाने वाले लोगों का यह आंकड़ा अमेरिका के बाद दुनिया के देशों में सबसे अधिक है। वर्तमान में संक्रमण दर में हम दूसरे नंबर पर चल रहे हैं, तो वहीं मौत के मामलों में अमेरिका और ब्राजील के बाद हम तीसरे नंबर पर हैं। हालांकि इस बीमारी से अब तक 2 लाख 90 हजार लोगों ने दम तोड़ दिया है, लेकिन 2 करोड़ से अधिक लोगों ने बीमारी से लड़कर जिंदगी की जंग जीत ली है। ऐसे में आज यह आवश्यक है कि मौत के कुछ आंकड़ों को प्रमुख्यता देने की बजाए रोग से ठीक होने वाले लोगों की बातों को समाचारों में प्रमुख्यता दी जानी चाहिए, ताकि समाज में सकारात्मकता का माहौल बन सके।

यह सच है कि कोरोना की भयावहता को हम झुठला नहीं सकते, पर लोगों को दहशत में जीने से तो हम बचा सकते हैं। देश दुनिया में नंबरों का यह खेल किसी भी तरह से तुलनीय नहीं हो सकता। क्योंकि दुनिया के किसी भी हिस्से में केवल कोरोना के कारण ही नहीं अपितु किसी भी कारण से एक भी व्यक्ति की मौत होती है तो वह अपने आप में गंभीर और चिंता का विषय है। 

सरकार के विरोध में खड़े लोगों द्वारा लाख नकारात्मकता फैलाने के बावजूद हाल के दिनों में देष में वैक्सीनेशन की स्थिति में भी सुधार हो रहा है। अस्पतालों में ऑक्सीजन की उपलब्धता भी बढ़ी है। हालातों में दिन-प्रतिदिन बदलाव आ रहा है। लोगों में आत्मविश्वास जगने लगा है। पिछले दिनों देश में ऑक्सीजन की जिस तरह से मारामारी हुई और आक्सीजन सिलेंडरों की अनुपलब्धता के कारण तड़पती हुई मौतों से साक्षात्कार हुआ, उस स्थिति में अब गुणात्मक गति से सुधार आने लगा है। अब यदि देश में किसी चीज की सबसे अधिक आवश्यकता है, तो वह है कि कुछ गिने-चुने लोगों द्वारा कमियों को उजागर करने और समाज में नकारात्मकता को दिखाने के वक्तव्य या समाचारों के स्थान पर देष में हिम्मत, सहयोगात्मक रवैया तथा समाज में सकारात्मकता का संदेश देने की। आवश्यकता है चिकित्सकों, दवाओं, आवष्यक उपकरणों के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक तौर पर लोगों को संबल देने की, क्योंकि जो संक्रमण से जूझ रहे या संक्रमण के डर से भयभीत है, उनमें आशा का संचार पैदा कर सकें। समस्या संक्रमित व्यक्ति की ही नहीं है अपितु कोरोना के कारण जो परिवार प्रभावित हुआ है, चाहे वह परिवार कोरोना को हराने में सफल रहा हो या कोरोना की जंग में हार गया हो। पर आज सबसे अधिक उस परिवार को मनोवैज्ञानिक सहारे की जरूरत है तो दूसरी तरफ लोगों को कोरोना से डराने की नहीं, बल्कि उससे लड़ने की, हेल्थ प्रोटोकाल का पालन करने की तथा इसके लिए समाज को भी प्रेरित करने की है।

लेकिन जो हो रहा है, वह इसके ठीक उलट है। टीवी चैनलों व मीडिया के अन्य माध्यमों पर जिंदगी हारते लोगों की तस्वीरें, प्रशासन की नाकामियों जैसी नकारात्मक खबरों को उजागर करते समाचार प्राथमिकता से दिखाए जा रहे हैं। इस काम में सरकार का विरोध करने वाले कुछ गिने-चुने विघ्न संतोषी लोग प्रमुखता से शामिल है। लेकिन ऐसे लोगों को कम से कम यह तो पता ही होना चाहिए कि उनके ऐसे कृत्यों से मानवता का कोई भला होने वाला नहीं है। खासतौर से सोशल मीडिया और व्हाट्सएप के तथाकथित ज्ञानियों ने तो हद ही कर दी है। इन मंचों पर विरोध में खड़ लोग दिनभर अज्ञान फैलाते रहते हैं या फिर नकारात्मक तस्वीरों से समाज में दहशत का माहौल बनाने का काम कर रहे हैं। आज सरकार की कमियां निकालने, अभाव का दुखड़ा रोने की नहीं बल्कि अभी जो भी है, जैसे भी है, के आधार पर उसे बेहतर करने की जरूरत है। कहीं कोई कमी दिखाई दे रही है तो उसे उचित प्लेटफार्म पर जरूर उजागर किया जाए, लेकिन साथ ही साथ उसके निराकरण के सुझाव भी दिए जाने चाहिए ताकि इस महामारी की भयावह स्थिति से हम अधिक ताकत के साथ लड़ सके।

हालांकि मानवता के दुश्मनों ने अपनी करनी से कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। कोई अस्पतालों में बेड उपलब्ध कराने की बोली लगा रहा था, तो कोई जीवनरक्षक दवाओं की कालाबाजारी में लिप्त था, कई सारे लोग आवश्यक उपकरणों जैसे कि थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर आदि मनचाहे दामों में बेचने लगे थे। तो कुछ दवाओं का स्टॉक जमा कर बाजार में कृत्रिम अभाव पैदा करने में जुटे हुए थे। यहां तक कि हालात इस तरह के बना दिए गए कि लोगों में भय अधिक व्याप्त हो गया। देश में इस तरह के गिद्धों की जमात ने नागरिकों को नोचने में कोई कमी नहीं छोड़ी। मानवता को शर्मसार करने वाली हरकतों में ऐसे लोगों ने बढ़-चढ़कर के हिस्सा लिया। मानवता के यह गिद्ध हमारे इर्द-गिर्द ही मंडरा रहे हैं। ऐसे में हमारा भी फर्ज होता है कि इस तरह के मानवता के दुश्मनों को सार्वजनिक करें और प्रशासन को सहयोग करें। ऐसे लोगों को सामने लाएं। ऐसे लोग व्यवस्था को बिगाड़ने और लोगों में दहषत पैदा करने में कामयाब हो जाते हैं और उसका खामियाजा समूचे समाज को भुगतना पड़ता है।

पिछले दिनों देश भर में जिस तरह से ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों के मरने के समाचारों और बेड नहीं मिलने के समाचारों को प्रमुखता दी गई, उससे देश भर में भय का माहौल बना। लोग घबराने लगे और इसी का परिणाम रहा कि देश भर में मारामारी वाले हालात बनें। यह सही है कि प्रशासन की कमियों को उजागर किया जाए, पर उसमें संयम बरतना भी उतनी ही आवश्यकता है। यह कमियां गिनाने का समय नहीं है। सरकार अपने स्तर पर प्रयास कर रही है। समझना होगा कि एक साल से भी अधिक समय से कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। प्रवासी मजदूरों व असंगठित मजदूरों के सामने दो रोटी का संकट आ रहा है तो स्थाई रोजगार वालों के भी वेतन में कटौती हो रही है या छंटनी का डर सता रहा है। सरकार चाहे केन्द्र की हो या राज्यों की, उनके संसाधनों की सीमाएं सब जानते हैं।

यह भी सही है कि पैनिक करने से समाधान भी नहीं हो सकता। ऐसे में यदि सरकार को अलग-अलग फोरम पर सुझाव और मीडिया में सकारात्मकता का संदेश दिया जाए, तो इस संकट से देशवासी जल्दी ही उबरने की स्थिति में होंगे। अच्छा लगा, जब यह जानकारी सामने आई कि देश में दो करोड़ से ज्यादा लोगों ने कोरोना के खिलाफ जंग जीत ली है। कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा जो चार लाख को छूने लगा था वह अब घटकर करीब ढाई लाख पर आ गया है, तो ठीक होने का आंकड़ा चार लाख प्रतिदिन को पार कर रहा है। रिकवरी रेट में लगातार सुधार हो रहा है। हालांकि देश में करीब 35 लाख संक्रमित लोग हैं और कोरोना की जंग जीतने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हिम्मत और सकारात्मक सोच के समाचारों से उन्हें रिकवर होने में अधिक आसानी होगी। इसलिए आज आवश्यकता संक्रमितों को बचाने के साथ-साथ लोगों में विश्वास पैदा करने की भी है। लोगों के मन से यह डर निकालना होगा कि अस्पताल गए तो वहां देखने वाला कोई नहीं हैं, कभी भी ऑक्सीजन की कमी हो सकती है या दवाओं के लिए भटकना पड़ सकता है। गैर सरकारी संगठनों के लोग भी यदि सहयोगी की भूमिका में आगे आते हैं तो हालातों को जल्दी ही सुधारा जा सकता है। कोरोना के पहले दौर में जिस तरह से भयमुक्त वातावरण बनाकर लोगों को बचाया गया था, वैसा ही प्रयास किया जाता तो दूसरी लहर से भी निपटना आसान हो जाएगा। यदि मीडिया सकारात्मक हालातों को प्रमुखता देगा तो लोगों में विश्वास जगेगा और दवा या अन्य चिकित्सा उपकरणों  की अनुपलब्धता के भय से होने वाली मौतों को रोका जा सकेगा।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।

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