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भारत और अमेरिका की साझेदारी के मायने

भारत और अमेरिका के बीच संबंधों की ऊंचाई का नया पड़ाव इसी साल सितंबर में तब आएगा, जब जी-20 राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में भाग लेने अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन नई दिल्ली आएंगे। - विक्रम उपाध्याय

 

सोच बदलिए, परिणाम बदल जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिकी दौरे की सबसे बड़ी उपलब्धि ही यही रही कि राष्ट्रपति बाइडेन ने एक बार नहीं, कई बार यह संकेत दिया कि भारत के प्रति अमेरिकी सोच में बहुत बड़ा बदलाव आया है। उनकी यह घोषणा कि 21 वीं सदी भारत और अमेरिका की होगी, इसकी पुष्टि करती है। नई दिल्ली और वाषिंगटन के बीच सुरक्षा, तकनीक, माइक्रोचिप्स और वीजा की सहूलियतें जैसे दर्जनों समझौते दोनों देषों के बीच विश्वास बहाली के परिणाम हैं।

तीन साल पहले तक अमेरिका नई दिल्ली के साथ एक संतुलन की नीति पर काम कर रहा था। पाकिस्तान उसके लिए मजबूरी था, लिहाजा इस्लामाबाद को एक दम नजरअंदाज कर भारत को एक रणनीतिक साझीदार नहीं बना सकता था। लेकिन जब अमेरिका मई 2021 में अफगानिस्तान को पूरी तरह खाली कर निकल गया तो उसके सामने भारत के साथ अपनी साझेदारी बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। भारत को संतुष्ट करने के लिए बाइडेन ने राष्ट्रपति बनने के बाद एक बार भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बात नहीं की। इमरान खान बाइडेन के एक फोन कॉल के लिए तरसते रह गए।

अमेरिका का निवेष एषिया में सबसे ज्यादा चीन में है। 2021 में यह 118 अरब डॉलर था, जबकि भारत में लगभग 60 अरब डॉलर। कोविड काल और उसके बाद चीन में अमेरिकी निवेष खतरे में है। व्यावसायिक कटुता इतनी बढ़ गई है कि चीन से अमेरिकी कंपनियां लगातार बाहर जा रही हैं। चीन के अलावा पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देष है, जहां सस्ते और पर्याप्त संख्या में मजदूर उपलब्ध हैं। अंग्रेजी बोलने वाले पेषेवर लोग हैं। आईटी और उससे जुड़ी सेवाओं की भरमार है और प्रधानमंत्री मोदी की सत्ता में आने के बाद से नीतियों में निरंतरता और राजनीति स्थिरता बरकरार है।

यही कारण है कि चीन से उठ कर बाहर जाने वाली हर अमेरिकी कंपनी के लिए भारत सर्वोच्च प्राथमिकता वाली डेस्टिनेषन बन गया है। अब एप्पल अकेला उदाहरण नहीं है, जो अपनी उत्पादन इकाई भारत में लाकर खुष है। प्रधानमंत्री मोदी की इस अमेरिकी यात्रा के बाद भारत में टेस्ला, माइक्रोन टेक्नोलॉजी, बोइंग, एमैजन, फॉक्सकॉन, सिस्को, वालमार्ट, जनरल इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियां भारत में अपना कारोबार बढ़ाने के लिए तत्पर हो गई हैं।

भारत के साथ फाइटर जेट के इंजन और ड्रोन की आपूर्ति और निर्माण के लिए अमेरिकी कंपनियों की प्रधानमंत्री मोदी के सामने जताई गई सहमति केवल व्यापारिक हितों के लिए नहीं है। इसके पीछे अमेरिका की अपनी सुरक्षा नीति है। चीन की आक्रामता रोकने के लिए यूएस प्रषासन ने जो रणनीति बनाई है, वह कुछ हद तक नाटो की रणनीति से मिलती जुलती है। क्वाड एषिया में वही काम करेगा जो यूरोप और अमेरिका में नाटो कर रहा है। जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत को भी सामरिक दृष्टि से मजबूत बनाना अमेरिका की रणनीति का हिस्सा है।

चीन ने बाकायदा एक बयान जारी कर यह कहा है कि अमेरिका क्वाड के जरिए एषियन नाटो बना रहा है। क्वाड का मुख्य उद्देष्य ही इंडो पैसेफिक क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को चुनौती देना है। चीन के पास इस समय 2,566 लड़ाकू विमान हैं, जबकि भारत के पास उसके आधे भी नहीं है। भारत बाहर से लड़ाकू विमानों को खरीद कर इस खाई को पाट नहीं सकेगा। केवल हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ही उत्पादन बढ़ाकर वायु सेना की जरूरतों को पूरा कर सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी इस अमेरिका यात्रा में बाइडेन प्रषासन से यह करार कर लिया है कि जनरल इलेक्ट्रिक न सिर्फ भारत में फाइटर जेट का इंजन बनाने का कारखाना लगाएगी, बल्कि तकनीकी हस्तांतरण भी करेगी। इससे स्वदेषी फाइटर जेट तेजस मार्क 2 के उत्पादन में गुणात्मक तेजी आएगी।

हमारे उन नवयुवकों के लिए इससे बड़ी राहत नहीं हो सकती, जो अमेरिका में जाकर नौकरी करना चाहते हैं, लेकिन एच-वन वीजा की कठिन प्रक्रिया के कारण एक निष्चित समयावधि के बाद अमेरिका छोड़ना पड़ता है। अब उन्हें वहां रहते ही वीजा अवधि का समय विस्तार हो जाएगा। निष्चित रूप से अमेरिकी प्रषासन ने इसमें उदारता दिखाई है। पर इसके पीछे उनकी अपनी भी जरूरतें हैं। इस समय भारत के लगभग 40 लाख लोग वहां रह रहे हैं, जो लगभग सभी क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। स्पेस से लेकर रिटेल व्यवसाय तक में भारतीय सक्रिय हैं और वे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भी बड़ा योगदान कर रहे हैं। यह सुखद आष्चर्य है कि अमेरिका में भारतीय लोगों की जनसंख्या में भले ही एक प्रतिषत है, लेकिन उनके कुल कर संग्रह में भारतीय 6 प्रतिषत से अधिक का योगदान करते हैं। यही स्थिति अमेरिका जाकर पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की है। अकेले 2023 के सत्र में अमेरिका सवा लाख भारतीय छात्रों को पढ़ाई का वीजा दे चुका है। भारत का हर छात्र पढ़ाई के एवज में 20 हजार से लेकर 60 हजार डॉलर तक अमेरिका में निवेष कर रहा है।

आज दुनिया आष्चर्य कर रही है कि आखिर प्रधानमंत्री मोदी में ऐसा क्या है कि बाइडेन उनका इस तरह से रेड कार्पेट वेलकम कर रहे हैं। बीबीसी न्यूज ने अपने एक लेख में कहा है कि - वर्तमान वैश्विक आर्थिक और भूराजनीतिक परिस्थितियों में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। यह स्वागत उस नेता के लिए है जिसे एक बार मानवाधिकार के मुद्दे पर अमेरिका की यात्रा के लिए वीजा देने से इंकार कर दिया गया था। पर अब अमेरिका प्रधानमंत्री मोदी को एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है।

बीबीसी का भी मानना है कि अधिकांष देष विनिर्माण के लिए चीन का विकल्प चाहते हैं, और भारत के पास बढ़ते मध्यम वर्ग के साथ एक बड़ा बाजार भी है। दुनिया भारत को चीन प्लस वन नीति के तहत देखना चाहती है। वाषिंगटन में विल्सन सेंटर थिंक-टैंक में दक्षिण एषिया संस्थान के निदेषक माइकल कुगेलमैन का कहना है कि अमेरिका और भारत ने अब व्यापक इंडो-पैसिफिक थिएटर पर आंखें मिलाकर देखना शुरू कर दिया है।

यह प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व की कुषलता और नीतियों में भारत की स्थिरता का प्रभाव है कि अमेरिकी स्वागत सत्कार तथा रक्षा एवं व्यापार में तमाम संभावनाओं के बावजूद भारत ने अपने अन्य सहयोगियों के प्रति दृष्टिकोण में किसी बदलाव का संकेत नहीं दिया है। प्रधानमंत्री मोदी न केवल रूस यूक्रेन युद्ध को बातचीत से हल करने के अपने स्टैंड पर कायम रहे, बल्कि मॉस्को और कीव पर भी कोई टीका टिप्पणी नहीं की।

स्वाभाविक है दोनों देषों के अपने हित हैं जिससे दोनों ही समझौता नहीं करना चाहते। फिर भी तकनीकी, उत्पादन, सेवा और रक्षा उपकरण के क्षेत्र में दोनों की भागीदारी के लिए इक्कीसवीं सदी का खुला मैदान दोनों के सामने है। सधे कदमों से आगे बढ़ते हुए दोनों दूर तक तो साथ जा ही सकते हैं। भारत और अमेरिका के बीच संबंधों की ऊंचाई का नया पड़ाव इसी साल सितंबर में तब आएगा, जब जी-20 राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में भाग लेने अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन नई दिल्ली आएंगे।    

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