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सौर ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन और बजट 2024 

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने अंतरिम बजट में सौर ऊर्जा पर 10 हजार करोड़ रुपये के प्रावधान द्वारा नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य पूरा करने की दिशा में एक ठोस कदम उठाया है। - डॉ. धनपत राम अग्रवाल

 

ऊर्जा सुरक्षा के तीन स्तम्भ हैं- सस्ते दर पर ऊर्जा की उपलब्धि, पर्यावरण की दृष्टि से कार्बन उत्सर्जन में कमी और ऊर्जा की सदैव उपलब्धता। भारत सरकार ने 2070 तक नेट जीरो कार्बन-उत्सर्जन का जो लक्ष्य तय किया है उसे वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने अंतरिम बजट में सौर ऊर्जा पर 10 हजार करोड़ रुपये के प्रावधान द्वारा पूरा करने की दिशा में एक ठोस कदम उठाया है। तदनुसार उन्होंने जो आर्थिक नीति और प्रस्तावों की घोषणा की है, उसमें न सिर्फ़ ऊर्जा सुरक्षा के इन तीन बिंदुओं का ध्यान रखा गया है बल्कि इससे भारत के एक करोड़ लोगों के लिये 300 यूनिट मुफ़्त बिजली की गारंटी और सौर ऊर्जा के उनके घर की छत पर वर्तमान सब्सिडी योजना (10-22 हजार रुपये तक) से सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना का दायित्व आरईसी कंपनी को दिया गया है, जिसे लगभग 1.20 लाख करोड़ रुपये की ऋण व्यवस्था से पूरा किया जायेगा। जो बिजली उत्पादित होगी उसे अपने स्वयं के व्यवहार से ज़्यादा यूनिट को ग्रिड में बेच दिया जाएगा और उसका लाभ भी गृहस्थ को मिलेगा और साथ ही 300 यूनिट के मुफ़्त उपयोग का भी अनुमानतः 15-20 हजार रुपये की मासिक बचत के बराबर होगा। वित्तमंत्री की यह घोषणा प्रधानमंत्री के 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के उद्घाटन के समय की गई सूर्योदय योजना का हिस्सा है। इस पूरी योजना से देश भर में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के साथ-साथ इससे संबंधित बहुत से संयंत्रों के निर्माण में वृद्धि होगी तथा बहुत से रोज़गार सृजित होंगे। इस योजना से पेरिस समझौते के तहत प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये पंचामृत रूपी संकल्प की भी पूर्ति होगी जिससे हम 2030 तक नवीकरणीय अथवा अक्षय कार्बन रहित ऊर्जा अथवा गैर-जीवाश्म ईंधन सृजन से 500 गीगावॉट बिजली का उत्पादन कर सकेंगे, जो हमारी सकल उत्पादन क्षमता का 50 प्रतिशत होगा। ग्रीन हाइड्रोजन तथा विंड एनर्जी भी इस कार्बन रहित ऊर्जा सृजन का ही हिस्सा हैं। 

मोदी सरकार सौर ऊर्जा के लिये कई प्रयास कर रही है। किसानों के लिये 2019 से ही प्रधानमंत्री कुसुम योजना चालू है। प्रधानमंत्री कुसुम योजना के तहत किसानों को सोलर पंप या नलकूप लगाने पर सरकार द्वारा 60 प्रतिशत तक की सब्सिडी और बैंक द्वारा 30 प्रतिशत का ऋण दिया जाता है। इस योजना के तहत किसानों को लागत का केवल 10 प्रतिशत ही भुगतान करना होता है। इसके अलावा 2014 में मोदी सरकार के गठन के तुरंत बाद सौर ऊर्जा के विकास के लिये सोलर पार्क, हरित ऊर्जा गलियारा तथा उच्च दक्षता वाले पीपी मॉडयूल के उत्पादन को बढ़ाने के लिये पीएलआई (उत्पादन जुड़ा प्रोत्साहन) योजना तथा उन्नत रसायन विज्ञान सेल (एसीसी) बैटरी भंडारण की भी योजना लागू की गई है। 

ज्ञात हो कि वर्तमान में भारत की कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 168.96 गीगावॉट (28 फरवरी 2023 तक) है। इसमें 64.38 गीगावॉट सौर ऊर्जा, 51.79 गीगावॉट पन-बिजली ऊर्जा, 42.02 गीगावॉट पवन ऊर्जा और 10.77 गीगावॉट जैविक-ऊर्जा शामिल हैं। यानि 300 गीगावॉट के लगभग का लक्ष्य प्राप्त करना बाक़ी है, जिसे मुस्तैदी से पूरा करने के लिए सरकार सचेष्ट है। इसे ध्यान में रखकर पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा अभी हाल ही में द्वितीय इंडिया एनर्जी वीक (आईईडब्ल्यू) 6-9 फ़रवरी को गोवा में मनाया गया। जहां प्रधानमंत्री ने लगभग 35 हजार प्रतिनिधियों को संबोधित किया और ग्रीन ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता तथा जलवायु परिवर्तन में हमारी ज़िम्मेवारी के पालन पर आगामी कार्यक्रमों की घोषणा भी की। इस प्रयास में निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र की सभी बड़ी कंपनियों ने भागीदारी ली। विश्व भर से ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी सभी बड़ी कंपनियों के उच्च अधिकारी तथा मंत्रियों ने भी अपने विचार रखें तथा आधुनिक तकनीक के आदान-प्रदान के आपसी सहयोग पर भी संधियाँ हुई हैं। 

भारत में सौर ऊर्जा की उपलब्धिता  है। संपूर्ण भारतीय भू-भाग पर 5 हजार लाख करोड़ किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है, जो कि विश्व की संपूर्ण विद्युत खपत से कई गुणा अधिक है। साफ धूप वाले दिनों में प्रतिदिन का औसत सौर-ऊर्जा का सम्पात 4 से 7 किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर तक होता है। देश में वर्ष में लगभग 250 से 300 दिन ऐसे होते हैं जब सूर्य की रोशनी पूरे दिन भर उपलब्ध रहती है। फिर भी यह जानना आवश्यक है कि चीन वर्ष 2021 में सौर ऊर्जा उत्पादन में दुनिया में पहले स्थान पर था और अभी भी है। चीन की 307 गीगावाट सौर ऊर्जा दुनिया में सबसे बड़ी कुल स्थापित क्षमता है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की पहल द्वारा पारस्परिक सहयोग से आधुनिक तकनीक के नवाचार स्थापित करने का उत्साहजनक कदम उठाया है। 30 नवंबर 2021 तक 110 देशों ने आईएसए के फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके साथ ही भारत के नेतृत्व में ग्रीन ग्रिड पहल - वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (जीजीआई - ओएसओडब्ल्यूओजी) के द्वारा भी सौर ऊर्जा को सारी दुनिया के साथ मिलकर सबके सहयोग से आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। 

सौर ऊर्जा के सृजन संबंधी तकनीक के अलावा सबसे बड़ी असुविधा ऊर्जा को बैटरी आदि में बचाकर रखना है। बैटरी के लिये जो सबसे उपयुक्त धातु की आवश्यकता है वह लिथियम-आयन है और इसकी आपूर्ति सीमित है। विश्व बाज़ार में दक्षिण अमेरिका के कुछ देश हैं जहां इसकी उपलब्धता सबसे ज़्यादा है। लिथियम का उपयोग पहले 2010 में बैटरी बनाने में सिर्फ़ 23 प्रतिशत हुआ करता था जो 2021 में बढ़कर 74 प्रतिशत हो गया है, यह अमरीका भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में पाया गया है। एक टन लिथियम की क़ीमत 60 से 85 हजार अमरीकी डालर तक ऊपर-नीचे रहती है, जो ई-वाहन की मांग और उत्पादन पर निर्भर करती है।

लिथियम धातु जो कि एक खनिज पदार्थ है, इसको बैटरी के उपयुक्त बनाने की 60 प्रतिशत प्रक्रिया चीन में ही होती है। भारत में भी अभी हाल में जम्मू- कश्मीर में लिथीयम की खान मिली है, जिससे भविष्य में आपूर्ति स्थानीय हो सकती है। अभी इसका चीन और कोरिया से ही आयात करना पड़ रहा है, जो पिछले सालों में काफ़ी तेज़ी से बढ़ा है और 2018-19 में 384.6 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2022-23 में 2.8 बिलियन डालर हो गया है। भारत सरकार “ऊर्जा भंडारण मिशन” पर काम कर रही है, ताकि सौर ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सकें।                    

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