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उद्भव परियोजनाः प्राचीन ज्ञान और आधुनिक युद्ध

प्राचीन ज्ञान कहीं से भी उपहास करने योग्य नहीं है इसे लाभप्रद रूप से आत्मसात किया ही जाना चाहिए, लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना होगा की विश्व अब एक अलग तरह का युद्ध क्षेत्र बन चुका है, इसलिए हमें देश काल परिस्थिति के मुताबिक खुद को अद्यतन करने की भी आवश्यकता है। - डॉ. जया कक्कड़

 

भारत में सबसे पहला युद्ध संभवतः सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान लड़ा गया था। इस परिकल्पना की पुष्टि इस तथ्य से भी होती है कि उन्होंने अपनी रक्षा के लिए किलों का निर्माण किया। इसके बाद आर्यों ने मूल निवासियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। बाद में प्राचीन काल के दौरान रामायण और महाभारत के महाकाव्य में उस समय के युद्ध व्यापार का विवरण मिलता है। सभी कालों में विभिन्न संप्रदायों के युद्ध लड़े गए और इन युद्धों के तत्कालीन वृतांत उस समय के दौरान प्रचलित युद्ध की कला की जानकारी प्रदान करते हैं। उन सभी युद्धों में एक तरफ सैनिकों और जानवरों को प्रशिक्षित किया गया तो लगे हाथों विरोधी अर्थव्यवस्था को हराने के लिए रणनीतियां और युक्तियां भी तैयार की गई।

प्राचीन काल में शारीरिक फिटनेस पर बहुत जोर दिया जाता था। मानसिक और शारीरिक चुस्ती फुर्ती बनाए रखने के लिए खेलों की एक समृद्ध परंपरा थी। सैन्य रणनीति एवं रणनीति के आसपास विशिष्ट खेल बनाए गए थे जैसे चतुरंग, अष्ट पद, तीरंदाजी आदि। इसके अलावा अधिकारियों, पुरुषों और संचालकों को उनके काम के लिए विशिष्ट विषय सिखाए जाते थे, उदाहरण के लिए एक घोड़ा संचालक जानवरों के व्यवहार उसके नियंत्रण आदि के बारे में सीखना था। अधिकारियों को युद्ध कानून और न्याय के बारे में ज्ञान होना आवश्यक था। सैनिकों को सिखाया जाता था कि व्यक्तिगत रूप से और लड़ाकू इकाइयों के रूप में युद्ध कैसे लड़ना है। गुरुकुलों में धनुर्वेद या हथियारों से लड़ने की कला कुछ चुनिंदा लोगों को सिखाई जाती थी।

सैनिक रणनीति का विकास सैन्य विज्ञान के रूप में किया गया जिसका वर्णन अग्नि पुराण, अर्थशास्त्र तथा अन्य ग्रंथों में मिलता है। हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘‘उद्भव परियोजना’’ शुरू की, जो कूटनीति, शासन काल, रणनीति और युद्ध के क्षेत्र में प्रासंगिक सबक लेने के लिए प्राचीन भारतीय दर्शन पर आधारित है। इस योजना के जरिए महत्वपूर्ण सिद्धांतों को सीखने के लिए अर्थशास्त्र, नीति शास्त्र, थिरुकुरल और अन्य का गहराई से अध्ययन और विश्लेषण किया जाएगा। यह वर्तमान शासन की सोच के अनुरूप है कि हमारा प्राचीन अतीत ज्ञान और बुद्धिमत्ता का बहुत समृद्ध भंडार था, जिसे फिर से तलाशने, दोबारा देखने और पुनर्वास करने की आवश्यकता है। लेकिन क्या यह प्राचीन विचारक जैसे कि चाणक्य और कामन्दक आधुनिक जनरलों की सहायता के लिए आगे आ सकते हैं? या क्या यह पाठ आधुनिक युद्ध के प्रबंधन में आत्म बधाई संदेश को छोड़कर बहुत कम मदद करेंगे? भारतीय सेवा ने पूरे अहंकार के साथ स्वदेशी सैन्य प्रणालियों उनके मूल्यांकन रणनीतियों और सहस्त्राब्दियों से भूमि पर शासन करने वाली रणनीतिक विचार प्रक्रियाओं की गहराई में जाने का फैसला किया है। इसके अलावा इसका इरादा शास्त्रीय शिक्षण को फिर से शुरू करना और प्राचीन ज्ञान सृजन को पुनर्जीवित करना भी है।

निश्चित रूप से अर्थशास्त्र में राज्य निर्माण, भू-रणनीति और सैन्य युद्ध में मूल्यवान अंतर दृष्टि शामिल है। इस तरह के कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथ दक्षिण में भी हैं, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि सेना का कहना है कि इसके लिए आठवीं सदी से पहले लिखे गए शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन किया जाएगा। इस अवधि के बाद के ग्रंथ क्यों नहीं, विशेष रूप से इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए की बाद की अवधि जैसे 11वीं और 15वीं शताब्दी महान सैन्य परिवर्तनों की गवाह रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अर्थशास्त्र राज्य निर्माण के लिए एक आधार के रूप में काम कर सकता है लेकिन वर्तमान संदर्भ में नहीं। अर्थशास्त्र जीत सुनिश्चित करने के लिए किसी भी कीमत, यहां तक कि अत्यधिक हिंसा को भी काफी बड़ा नहीं मानता है। तो ऐसे में सवाल उठता है कि आधुनिक लोकतंत्र में अर्थशास्त्र को किस हद तक प्रसांगिक बनाया जा सकता है? और क्या आठवीं शताब्दी के शास्त्रीय काल के बाद शासन करने वाली राजनीति और ग्रंथ जैसा कि भारतीय सेना द्वारा परिभाषित किया गया है। आधुनिक शासन काल के लिए महत्वपूर्ण सबक लेने के लिए अप्रासंगिक है? निश्चित रूप से यह मध्य युगीन साम्राज्य ही थे जिन्होंने उन्नत घुड़सवार, सेना बंदूक शक्ति, रणनीति आदि का विकास देखा इनमें से कई को भारतीय सेना द्वारा अनुकूलित किया गया है इसलिए प्राचीन काल पर ध्यान केंद्रित करना कुछ हद तक अदूरदर्शिता पूर्ण लगता है। लेकिन सबसे बड़ी आपत्तियां इस तथ्य के रूप में सामने आती हैं कि प्राचीन ग्रंथो में राज्य के बारे में वैसा लिखा गया जैसा उसे होना चाहिए ना कि राज्य के बारे में जैसा वह था। उन सभी ने एक अधिनायक वादी राज्य को ध्यान में रखा जिसका उद्देश्य एक ही था हर कीमत पर अपनी सीमाओं को जारी रखना और उसका विस्तार करना। फिर भी सब अप्रासंगिक नहीं, इनमें से कुछ अध्ययन काम आएंगे।

आयोजित युद्ध की उत्पत्ति मोटे तौर पर नेपोलियन युग में हुई थी जिसमें मोबाइल तोपखाने, पैदल सेना, घुड़सवार सेना को रसद सामग्री और इंजीनियरों के ढांचे से समर्थित किया गया था। बाद के दिनों में टेलीग्राफ और परिवहन के बेहतर साधनों के साथ राइफल, मशीन गन जैसे कई परिष्कृत हथियार सामने आए। इससे युद्ध क्षेत्र और सैन्य रणनीति दोनों बदल गई। आज के युद्ध क्षेत्र में ऑपरेशन चलाने वाले जनरल और एडमिरल सैन्य विचारों द्वारा तैयार की गई रणनीतियों द्वारा निर्देशित होते रहते हैं जिन्होंने युद्ध के इस नए रूप का अध्ययन किया है।

बाद में दुनिया ने दो बड़े विश्व युद्ध देखें जिसने कई देशों को तबाह कर दिया और उनकी सेना और संबंधित रणनीतियों को नया रूप दिया। परमाणु हथियारों की खोज को जोड़ा गया जिससे एक दूसरे के खिलाफ सक्रिय शारीरिक व्यवस्थाओं के विरुद्ध शीत युद्ध के युग की शुरुआत हुई। ऐसा नहीं है कि परमाणु की खोज के बाद सक्रिय शारीरिक झड़पें, लड़ाइयां, युद्ध एक साथ गायब हो गए। रूस यूक्रेन और इसराइल हमास का संघर्ष इस बात के गवाह है।

मुख्य बात यह है कि अब युद्ध कई मोर्चे पर लड़ा जा रहा है जिनमें कई बार अपने मोर्चों पर भी युद्ध लड़ना पड़ता है। आज ऐसा कोई भौतिक स्थान नहीं है जिसे युद्ध क्षेत्र के रूप में सीमा अंकित किया जा सके, ऐसी स्थिति में मानव मस्तिष्क या प्रौद्योगिकी समर्थन की कोई भी मात्रा राष्ट्र के दुश्मन का मुकाबला करने में सत्तारूढ़  स्वभाव की सहायता के लिए आगे नहीं आ सकती है। आज कोई भी रणनीति पर्याप्त नहीं है तो प्राचीन ज्ञान की बात तो बहुत दूर है। प्राचीन ज्ञान हमारे सेना अध्यक्षों को आज के संदर्भ में सामरिक सहायता प्रदान करने में कई बार सफल हो सकता है क्योंकि अब सुरक्षा के भी ढेर सारे मोर्चे हैं। प्राचीन ज्ञान अतिरिक्त अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है, लेकिन रोज-रोज जटिल हो रही दुनिया अद्यतन ज्ञान के भरोसे ही आगे बढ़ सकती है। प्राचीन ज्ञान में कुछ सीखने लायक हो तो अवश्य सीखा जाना चाहिए लेकिन प्राचीन के भरोसे बैठकर आज की दुनिया से लड़ना असंभव जैसा है। इसलिए सीखने का शुद्ध सबक यह है कि प्राचीन ज्ञान यदि कुछ काम का है तो उसे हमें जानना चाहिए तथा आधुनिक सैन्यकला में पारंगत सेनानायकों को लाभप्रद चीजेंबतानी चाहिए लेकिन जमीनी स्तर पर हमारे नायकों को आज की वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं और विचारों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। आधुनिक युद्ध के बारे में प्राचीन और मध्ययुगीन सभी कालों के ज्ञान को अतीत के ज्ञान के साथ पूरा करने की आवश्यकता है।

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